क्या होता है त्रिदोष –
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ ‘त्रिदोष-सिद्धांत’ के मुताबिक तन में जब वात, पित्त और कफ संतुलित या सम अवस्था में होते हैं, तब शरीर स्वस्थ रहता है । इसके विपरीत जब ये प्रकुपित होकर असन्तुलित या विषम हो जाते हैं, तो तन अस्वस्थ हो जाता है।
कैसे निर्मित होता है वातरोग –
पृथ्वी और पानी मिल कर कफ बनाते हैं।
तेज से पित्त बनता है। वायु और आकाश से वात होता है।
क्या पहचान है वात प्रकृति वालों की –
जिन लोगों में वात सबसे प्रबल होता है वो पतले, हल्के, फुर्तीले होते हैं एवं वात प्रकृति वाले व्यक्ति की त्वचा रूखी-सूखी होती है। वो अक्सर बेचैन होते हैं। उनकी भूख बदलती रहती है और वो ज़्यादा आसानी से बीमार पड़ जाते हैं।
वात से प्रभावित लोगों का अक्सर पेट खराब रहता है। कब्ज़ बहुत होता है। उदर में गैस बहुत बनती है, पर पास नहीं होती।
आदतें
ऐसे लोग गर्म खाना पसन्द करते हैं और ठण्डी चीज़ें सख्त नापसन्द करते हैं।
सर्दियों में इन्हें ठंड बहुत सताती है। वे हमेशा गर्म ऊनी कपड़े पहनना पसन्द करते हैं। इन लोगों में त्वचा की ऊपरी शिराएँ काफी प्रबल होती है। शरीर का मॉंसल भाग भी मुलायम होने की जगह सख्त होता है।
वात उत्पन्न करने वाले आहार –
अरहर, तुअर या पीली दाल और दलहन वात
उत्पन्न करने में विशेष सहायक होती हैं।
रात में दही का सेवन बहुत नुकसान दायक होता है।
वात प्रकृति वाले लोग मटर का सेवन भी कम करें, तो ठीक रहता है, क्यों कि मटर भी वात पैदा करती है। जिन फलों में से काटने पर पानी निकलता है (जैसे कि मीठा कद्दू) उनसे भी वात होता है। कड़वी, तीखी और ठंडी चीज़ें भी वात पैदा करती हैं। वात पैदा करने वाली खाने की चीज़ें आमतौर पर कफ पैदा करने वाली चीज़ों के मुकाबले कम पोषक होती हैं।
वातनाशक चीजें –
वात पैदा करने वाले पदार्थों के उपयोग से मल सूख हो जाता है, जिससे कब्ज़ हो जाता है। मीठी चीज़ें, वसा और तेल, नमक, आसानी से पचने वाली चीज़ें, गेहूँ, मूंग की दाल, तिल्ली से बनी वस्तुएं और काले चने आदि के सेवन से और तेल की नियमित मालिश से वात रोग शान्त होते है।
वात के कारण होने वाली बीमारियों के लक्षण –
वात विकार से पीड़ित रोगी में इन में से कोई न कोई लक्षण जरूर मिलता है जैसे – दिनों-दिन वजन घटना, त्वचा या हाथ पैर का क्षरण होना, दौरे पड़ना, रोगों में वृद्धि होते जाना और बीमारियों का बढ़ते जाना याबिगड़ जाना, नींद न आना एवं पूरे बदन में दर्द सा बने रहना।
कड़वे चरपरे, कसैले पदार्थ वायु को बढ़ाने वाले हैं जैसे नीम, करेला आदि।
मीठे, खट्टे, नमकीन रस, कफ को बढ़ाते हैं ।
वे ही रस वायु को शान्त भी करते हैं।
वात-ग्रीष्म ऋतु में संचित होता है, वर्षा ऋतु में कुपित रहता है और शरद ऋतु में शान्त रहता है ।
किस आयु में ज्यादा सताता है वात रोग –
वृद्धावस्था में वात का प्रकोप अधिक होता है । इसी प्रकार दिन के प्रथम प्रहर में वात का प्रकोप ज्यादा होता है।
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