जाने – प्राचीन आयुर्वेद के बारे में पार्ट -10
पिछले आर्टिकल पार्ट 9 में यक्ष्मा के बारे में बता चुके हैं। इस लेख पार्ट 10 में जाने –
अस्थिशूल, संधिशूल के बारे में —
जोड़ो का दर्द होना आजकल एक आम समस्या है। यह किसी उम्र वालों को कभी भी, किसी भी कारण से हो सकता है | जैसे बुढापा, पुरानी चोट , अप्राकृतिक जीवनचर्या और लापरवाह जीवन शैली की वजह इससे हड्डियों में खिचाव होने लगता है।
यह परेशानी एक बार शुरू होने के पश्चात
जीवनभर पीछा नहीं छोड़ती है।
इस कारण बहुत अधिक तकलीफ होती है और उठने-बैठने, चलने-फिरने में परेशानी उठानी पड़ती है। शरीर में होने वाले जोड़ों के दर्द, कमरदर्द अस्थिशूल, संधिशूल को कभी अनदेखा नहीं करके हमें इसका तत्काल आयुर्वेदिक इलाज करना चाहिए। आयुर्वेद में इस रोग की सर्वश्रेष्ठ
ओषधि ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सुल है।
हड्डियों को गलाने वाली बीमारी —
आस्टियोपोरोसिस यानि आस्टियो ’ का अर्थ होता है ‘अस्थि’ तथा ‘पोरस’ का ‘मुलायम’ या ‘छिद्रयुक्त अर्थात हड्डियों का मुलायम और छिद्रयुक्त होना। 88 प्रकार के वातविकारों में से यह एक भयानक रोग है। ऐसी अवस्था जिसमें हड्डियां कमजोर और नाजुक हो जाती हैं। अस्थियों यानि हड्डियों से जुड़े इस रोग से सबसे ज्यादा हानि यह है कि जोड़ों की हड्डियां कमजोर, खोखली और मुलायम होती जाती हैं। अस्थियां यानि हड्डियां क्षीण होकर टूटने नहीं लगतीं हैं, तब, तक इसके लक्षणों का पता ही नहीं चलता।
हड्डियों में सघनता कम होने से आता है हड्डियों में खोखलापन —
ओस्टियोपोरोसिस’ (Osteoporosis)
इसे आयुर्वेद ग्रंथों में अस्थि भंगुर रोग कहा गया है। मानव अस्थियां कैल्शियम फॉस्फेट और कोलाजेन (कोलेजन एक स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले प्रोटीन का समूह है।) नाम के प्रोटीन से मिलकर बनी होती हैं। ये तत्व आपस में मधुमक्खी के छत्ते की तरह जुड़े होते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर की अस्थियों के भीतर बहुत कम रिक्त स्थान होता है, जिसके कारण हड्डियों में मजबूत होती हैं और वह आसानी से बाहरी दबावों और झटकों को सह लेती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस रोग होने पर रोगी की हड्डियों के बीच सघनता कम होती जाती है और इसी कारण हड्डियां मुलायम व खोखली हो जाती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या होने पर थोड़ा सा झटका लगने या गिरने आदि से मरीज की हड्डियां टूट सकती हैं।
अस्थि ढांचे का ऐसा रोग है जिसमें अस्थि सघनता के कम होने एवं अस्थिमज्जा (bone marrow), की संरचना या बनावट की क्षीणता (ह्रास) से हड्डियाँ कमजोर होकर, उनमें लचीलापन एवं लुब्रिकेशन कम होने लगता है। जिससे उनके टूटने का खतरा बढ़ जाता है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि ओस्टियोपोरोसिस अस्थि पुननिर्माण प्रक्रिया से सम्बद्ध रोग है जिसमें हड्डियों में रस व रक्त का बनना कम हो जाता है। हड्डियों का क्षय उनके निर्माण की तुलना में अधिक तेजी से होता है। इस रोग में शरीर का सम्पूर्ण कंकाल(Skeleton) विशेषत: मेरुदण्ड (spinal cord) दुष्प्रभाव पड़ता है तथा कुब्जता, कुब्जक या कुबड़ापन (Kyphosis) की स्थिति प्रकट हो जाती है।
सन्धि शोथ या गठिया -Arthritis
एक अथवा अनेक सन्धियों का शोथ सन्धि-शोथ (Arthritis) कहलाता है. यह अधेड़ और वृद्धयावस्था में अधिक होता है. यह दो प्रकार का होता है —
1- रयूमेटायड अर्थराइटिस.
2- ऑस्टिओअर्थरिटिस
एक प्रकार का पोली अर्थराइटिस (polyarthritis के रोगियों में एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इसमें जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है)
है, जो द्विपक्षीय (bilateral) तथा सममित
(Symmetrical) होता है. सर्वप्रथम यह शोध हाथ व अंगुलियों जोड़ों एवं लघु संधियों को प्रभावित करता है। यह हड्डी के केवल एक बड़े जोड़ को प्रभावित करता है।
अस्थिशूल की पीड़ा को कम करने वाली आयुर्वेदिक दवा –
https://www.amrutam.co.in/arthritisandthyroid-ayurvedicmedicinewith100results/
[best_selling_products]
Leave a Reply