बच्चों के नाम रखने से पहले उसका अर्थ समझ लें, अन्यथा वे भाग्यशाली नहीं बन पाते।

वर्तमान में ज्यादातर माता पिता अपने लाडले का नाम कुछ ऐसा रखना चाहते हैं जो सुनने में नये लगे तथा अंक ज्योतिष के अनुसार भाग्य वृद्धि कारक भी हों।
लेकिन नामकरण के समय वे अर्थ पर ध्यान नहीं देते। इससे कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
संस्कृत भाषा वैसे भी शब्दार्थों के मामले में अत्यंत समृद्ध होने के साथ ही कहीं कहीं दिग्भ्रमित करनेवाली भाषा है।
अमृतम के इस लेख में एचएम संस्कृत नामों के कुछ अटपटे अर्थों वी भावार्थ के बारे में बता रहे हैं।
बढ़िया संस्कृत नामों के अटपटे अर्थ….
जैसे किसी शिशु का नाम ‘तपस्वी’ रखा।
 संस्कृत में तपस्वी’ का मुहावरे दार अर्थ ‘तरस’ खाने योग्य’ यानी ‘बेचारा’ होता है।
संस्कृत नाटकों में ‘तपस्वी’ और ‘तपस्विनी’ शब्दों का इस अर्थ में प्रयोग बार-बार हुआ है।
संस्कृत या हिंदी का कोई बड़ा शब्दकोश टटोलें तो आपको अनेक बढ़िया संस्कृत नामों के ऐसे अटपटे अर्थ मिल जाएंगे, जिनकी आप कभी कल्पना भी नहीं कर सकते।
यहां कई नये-पुराने संस्कृत नामों के अजीब अर्थ आपके मनोरंजन के लिए प्रस्तुत किये जा रहे हैं,-
(१). बच्चों का नाम आपने अक्षय रखा, तो इसका अर्थ बेघर-दरिद्र (अक्षय-बेघर) होता है।
घर के अर्थ में ‘अप’शब्द का प्रयोग वाल्मीकि रामायण में कई जगह मिलता है। वह निवासार्थक ‘वि’ धातु से बनता है।
{2} अत्रि यानि अधिक खानेवाला।
(3). अनिरुद्ध यानि गुप्तचर।
(4). अभिनव का अर्थ नौसिखिया।
(5). अमितः असंस्कृत।
(6). अमृत अर्थात गिलोय जडीबूटी।
7. अम्बरीष यानि अथरी, जिसमें भड़भूजे दाना भूनते हैं।
(8).अरुण अर्थात: गुड़, आक का पौधा। (अरुण सूर्य का नाम है और संस्कृत में सूर्य के जितने नाम हैं वे सब आक के भी नाम है)।
9. अर्जुन : यानि आंख का जाला।
10. अश्विनी को आयुर्वेद में जटामांसी खाते हैं।
11. असित का अर्थ : शनिग्रह होता है।
12. आदर्श यानि: दर्पण। (दर्पण के अर्थ में यह शब्द भगवद्गीता में भी आया है)-
‘धूमेनाऽवियते वहिर्यथाऽदर्शो मलेन च’।
13. आनंद का अर्थ: मदिरा है।
14. इंद्र : कुटज को कहते हैं। कुटज यकृत रोग की एक औषधि है। इन्द्रजो भी एक बूटी है।
15, उदय: यानि नफा, ब्याज।
16.ऋषभ : बैल, सांड, बकरा, मगरमच्छ या सूअर की पूंछ को बोलते हैं।
17. कपिल का अर्थ कुत्ता, आग, शिलाजित होता है। 18.कश्यप: कछुआ को कहते हैं।
 19. कृष्णः का मतलब कौआ, करौंदा, काला अंगूर। 20. कौशिक : उल्लू, नेवला (उत्तररामचरित 2.29 में लिखा है) संपेरा।
21.चंद्र : कपूर।
22. जीवन : पानी, गिलोय, कल दुहे गये दूध का मक्खन।
23. तरुण : एरंड, जीरा।
 24. दीपक भूख बढ़ानेवाला। (इस अर्थ में यह आयुर्वेद का पारिभाषिक शब्द है)।
 25. नकुल : नेवला।
26.नंद/नंदन: मेढक।
27. निर्मल : अभ्रक।
28. पार्थिव का अर्थ कसीस एवम शोरा। है)।
29. पीयूष : पेऊस (गाय-भैंस के ब्याहने के दिन से सात दिन तक का दूध)।
30. प्रकाश : कांसा।
31. बलभद्र : नर नीलगाय।
32. भरत : कांसा, कसकुट, बुनकर।
33. भरद्वाज : भरदूल नाम का पक्षी।
34. भार्गव : कुम्हार (देखें, महाभारत 1.142.1)
35. मदन: मोम, धतूरा, पिस्ता।
36. माधव : महुए का पेड़, वैशाख का महीना।
 37. मुकुंद : कुंदरू।
38. मोहन : धतूरा।
39. रंजन : मूंज घास।
40. रोहित अर्थात रोहू मछली, लोमड़ी, लाल घोड़ा।
४१ : वरुण : जीरा, बरना या बरुन का पेड़।
42. वर्धन : कटाई-छिलाई; एक कोश के अनुसार ‘कत्ल’ भी। (संस्कृत में ‘वृथ्’ धातुएं दी हैं. एक का अर्थ काटना है, दूसरी का बढ़ना। पहली से बने ‘वर्धकि’ शब्द से हिंदी का ‘बढ़ई’ शब्द निकलता है)।
43. वर्धमान : सकोरा।
44. वसंत को अतिसार रोग भी कहते हैं।
45. विवेक : पानी का हौज, टंकी।
46. शंकर : भीमसेनी कपूर, मजीठ।
47. शिव : फिटकरी, पारा का भी नाम शिव है।
48. शीतल : तारपीन का तेल।
49. शील : अजगर।
50. सिद्धार्थ का अर्थ सफेद सरसों।
51. धातुओं और प्रत्ययों के मामले में संस्कृत असाधारण रूप से समृद्ध भाषा है और उसमें बहुत बार एक ही शब्द को अलगअलग धातुओं से सिद्ध किया जा सकता है।
कन्याओं के नाम अदिति यानि गरीबी, मौत।
52. अपराजिता : उत्तर-पूर्व दिशा
53. अभया : हरड़।
54. अमला : गर्भनाल
55. अमृता : आंवला, गिलोय, हरड़।
56. अलका : आठ से दस वर्ष तक की लड़की।
57. इंदु: कपूर (संस्कृत के हिसाब से यह नाम पुल्लिंग
58. इरा : शराब।
59. इला: यानि  गाय।
60. उमा का अर्थ अलसी है।
61. ऊर्मि : भूख-प्यास, जरा-मृत्यु, शोकमोह-ये छह मनुष्य-धर्म।
 62. ऋतु : स्त्री का रजःस्राव।
63. कनक : धतूरा । यह अर्थ हिंदी में भी प्रचलित है। उदाहरणार्थ- कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। (संस्कृत में जितने भी सोने के नाम हैं, वे सब धतूरे के भी नाम हैं)।
64. कला : सूद, व्याज।
65. कांता: बड़ी इलायची1
66. कामिनी : शराब, दारूहलदी।
67. कीर्ति : कीचड़। (सुबंधु ने वासवद्त्ता में इस शब्द का प्रयोग श्लेष में यह-कीर्ति और कीचड़ दोनों के लिये किया है-यथा
सरसीव कीर्तिशेष गतवति भुवि विक्रमादित्ये।।
68. कुमारी : घी कुंवार।
69. कुसुम आंख की फूली।
70. कृष्णा : काला जीरा, एक प्रकार की जोंक।
71. क्षमा : खैर का पेड कहलाता है।
72 गौरी : हलदी, गोरोचन।
73. चंद्रिका : बड़ी इलायची।
74 चित्रा : कबाड़ी, चितकबरी गाय:
75. जया : भांग, पाटान, हरड़.
76 ज्योत्स्ना : सौंफ, सफेद फुलवाली तुई।
77. तस्ला: चावल या जौ की काजी।
78 दीप्ति : कांसा लाख।
79. दुर्गा नारियल का पेड. नील का पौधा नौ साल की लाडकी
80. नलिनी : नारियल की शराब। तंत्र विद्या में बाएं नथूने को नलिनी’ कहा गया है।
81.निशा: हलदी। (संस्कृत में जितने भी रात के नाम हैं. वे सब हलदी के भी नाम हैं।)
82. पद्मा : कुसुंभ का फूल।
83. पार्वती : गोपीचंद्न तथा बकायन को कहते हैं।
84 मंदिरा : मंदिर. प्रासाद अस्तबल। (यह नाम नया उभरा है, पर शब्द पुराना है। अश्वचिकित्सा शास्त्र में यह पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ है- घोड़े के घुटने का पिछला हिस्सा।)
85. मल्लिका अर्थात मदिरा पीने का एक पात्र। एक अलग थे की मछली।
86. माधवी : सीक, महुए की शराब।
87. पिप्पली. मरोड़कली हरड़। 1. बैदेही
गोरोचन हरड, वणिक् स्त्री। 92. शशिलेखा: खारफली। 93. शुभा : वंशलोचन। 94. शुभाः फिटकरी। 95. शोभा : हल्दी, गोरोचन। 96. श्यामा : गुग्गल, सावां धान, सोलह साल की तरुणी। 97. संध्या : करार, हद। 98 सीता : कूड़, खेती, कृषि-उपज। (कौटिल्य के अर्थशास्त्र’ में सरकारी खेती के प्रमुख अधिकारी ने ‘सीताध्यक्ष’ कहा गया है।) 99. सुधा : चुना। 100. सुंदरी : हल्दी। बहुत लंबी परंपरा है।
शब्दों का संसार….कोई शब्द कैसे बना? इस पर विचार करने की लंबी परंपरा संस्कृत में है। धातुओं और प्रत्ययों के मामले में संस्कृत असाधारण रूप से समृद्ध भाषा है और उसमें बहुत बार एक ही शब्द को अलग-अलग धातुओं से सिद्ध किया जा सकता है।
 इससे उस शब्द के अलग-अलग अर्थ भी हो जाते हैं। ऊपर की सूची में अक्षय, अदिति, वर्धन इसके उदाहरण हैं।
संस्कृत में केवल काव्य ही नहीं, कानून, आयुर्वेद, ज्योतिष आदि शास्त्रों के ग्रंथ भी छंदों में रचे जाते रहे, जिसमें एक ही वस्तु या भाव के लिए अलग-अलग वजन के शब्दों की जरूरत पड़ती थी। ऐसे अनेक कारणों से संस्कृत शब्दार्थों के मामले में अत्यंत समृद्ध और साथ ही दिग्भ्रमित करनेवाली भाषा बन गई है।

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