जानिए उत्तराखण्ड के प्रमुख धाम
निम्नलिखित सभी मन्दिरों के बारे में सब कुछ बताया जाएगा।
अमृतमपत्रिका पढ़ते रहें
www.amrutampatrika.com
{{१}} चार छोटे धाम – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रनाथ।
{{२}} पंचकुण्ड – तप्तकुण्ड, नारथकुण्ड, सत्यपथकुण्ड, मानुसीकुण्ड, त्रिकोणकुण्ड।
{{३}} पंचधारा – प्रहलाद धार, कूर्मुधारा, उर्वशीधारा, वसुधारा, भृगुधारा
{{४}} पंचकेदार – केदारनाथ, तुंगनाथ, मदमहेश्वर नाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वरनाथ।
{{५}} पंचबद्री – बद्रीनाथ, आदिबद्री, भविष्यबद्री, वृद्धबद्री, योगध्यानबद्री।
{{१}} चार छोटे धाम – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रनाथ।
{{२}} पंचकुण्ड – तप्तकुण्ड, नारथकुण्ड, सत्यपथकुण्ड, मानुसीकुण्ड, त्रिकोणकुण्ड।
{{३}} पंचधारा – प्रहलाद धार, कूर्मुधारा, उर्वशीधारा, वसुधारा, भृगुधारा
{{४}} पंचकेदार – केदारनाथ, तुंगनाथ, मदमहेश्वर नाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वरनाथ।
{{५}} पंचबद्री – बद्रीनाथ, आदिबद्री, भविष्यबद्री, वृद्धबद्री, योगध्यानबद्री।
बद्रीनाथ धाम के बारे में पूरा एक लेख पूर्व में अमृतमपत्रिका की वेबसाइट पर दिया जा चुका है। अगले लेखों में केदारनाथ और पंचकेदार की पूरी जानकारी दी जावेगी।
उपरोक्त सभी तीर्थ के अलावा इस ब्लॉग में
नाग मन्दिरों के विषय में पढ़िए-
नागों की भूमि है उत्तराखंड
प्राचीन काल में टिहरी गढ़वाल में रहने वाले नागवंशी राजाओं और नागाओं के वंशज आज भी नाग देवता की पूजा करते हैं। प्राचीन समय से इस क्षेत्र में बहुत से सिद्ध नाग मन्दिर स्थापित हैं।
नागराज का अर्थ है- नागों के राजा। संस्कृत में नागराज का मतलब है- नाग और यह नागराजा से मिलकर बना है।
नागों का जन्म
धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि कश्यप एव उनकी पत्नी दोनों परम शिव भक्त थे। घोर तपस्या के उपरांत उन्होंने वरदान मंगा कि मुझे ऐसे पुत्र प्रदान करें, जो सदैव आपकी सेवा, करें, रक्षा करें, हमेशा आपके साथ रहें। शिंवलिंग के साथ-साथ मेरे पुत्र नाग की भी पूजा हो। इस वरदान के फलस्वरूप कश्यप एवं कद्रू के यहां 12 सिद्ध व दिव्य नागों ने जन्म लिया, जो सभी मणिधारी और अनेक शिव शक्तियों से परिपूर्ण थे, इन सभी नागों का आधा शरीर मानव का और आधा नाग रूप था।
अनन्त नाग ही शेषनाग हैं-
अनन्त नाग के पांच मुख हैं, जिन्हें धर्म ग्रंथो में शेषनाग कहा गया है। कश्मीर का अनन्तनाग नामक स्थान इन्हीं के द्वारा बसाया गया था। इसके अलावा तक्षक, कर्कोटक नाग तथा वासुकि नाग आदि बहुत सिद्ध पवित्र हैं। मान्यता के अनुसार नाग का वास पाताललोक में है।
अनन्त नाग ही शेषनाग हैं-
अनन्त नाग के पांच मुख हैं, जिन्हें धर्म ग्रंथो में शेषनाग कहा गया है। कश्मीर का अनन्तनाग नामक स्थान इन्हीं के द्वारा बसाया गया था। इसके अलावा तक्षक, कर्कोटक नाग तथा वासुकि नाग आदि बहुत सिद्ध पवित्र हैं। मान्यता के अनुसार नाग का वास पाताललोक में है।
नागों का भंडार है
देवभूमि उत्तराखण्ड में नागराज के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नागराजा कहा जाता है। यहां लगभग 108 के करीब सिद्ध तथा प्राचीन नाग मन्दिर हैं, जो स्वयं प्रकट माने जाते हैं।
【1】 सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध नागतीर्थ है। यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में यह सेममुखेेेम
नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है।
सेममुखेम नागराज
सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मन्दिर का सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर के
सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मन्दिर का सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर के
गर्भगृह में नागदेवता की स्वयं प्रकट शिला स्थापित है, जो कि द्वापर युग की है।
सेम नागराजा की पूजा करने से पहले
मन्दिर के दाँयी तरफ गंगू रमोला परिवार की पूजा की जाती है।
【】वर्ष में एक बार ही खुलते हैं कपाट
नागमणि मंदिर के पट वैशाख महीने की पूर्णिमा को खुलते हैैं, यहां के महन्त पट खोलते समय काले वस्त्र से मुख को ढक
नागमणि मंदिर के पट वैशाख महीने की पूर्णिमा को खुलते हैैं, यहां के महन्त पट खोलते समय काले वस्त्र से मुख को ढक
लेते हैं। साल में टिहरी गढ़वाल जिले के भिलंगना ब्लाक में स्थित दल्ला गांव में नागराजा ग्रामीणों का ईष्ट नागदेव है। सूर्य देवता जब मिथुन राशि में आते हैं, तो दूसरे रविवार को सुबह विधिवत पूजा-अर्चना कर नागराजा के निशान को बाहर निकाला जाता है। इस समय सात गांवों के श्रद्धालुजन देवी-देवताओं व उनके पश्वा भी दल्ला गांव जाते हैं। इस गाँव में देवताओं के स्वरूप को पांडव नृत्य एवं नचवाने की प्राचीन परम्परा है। नई-नई धियाणियां यानि शादीशुदा महिलाएं भी विशेष रूप से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेती हैं।
नागराजा मन्दिर के आसपास रहने वाले साधु-सन्त, पुजारी तथा ब्राह्मण बताते हैं कि
हजारों साल पहले सेम-मुखेम के ग्रामीण अपने नाग निशान को बदरीनाथ धाम ले गए थे। लौटते समय उन्होंने दल्ला गांव में विश्राम किया। दूसरे दिन प्रातः वह निशान जमीन से
हजारों साल पहले सेम-मुखेम के ग्रामीण अपने नाग निशान को बदरीनाथ धाम ले गए थे। लौटते समय उन्होंने दल्ला गांव में विश्राम किया। दूसरे दिन प्रातः वह निशान जमीन से
उठा ही नहीं और वहीं पर जम गया, तब से यह दल्ला गांव में ही स्थापित हैं। इस निशान की विशेषता यह है कि पुजारी के अलावा इस नाग निशान को कोई दूसरा उठा नहीं सकता।
एक गागर पानी पी जाता है पश्वा
नागराजा देवता के निशान को प्रत्येक तीसरे वर्ष जब, बाहर निकाला जाता है, तो देवता के पश्वा को अवतरित किया जाता है। सबसे आश्चर्य जनक बात यह है कि इस दौरान पश्वा एक गागर पानी व 20 से 25 लीटर कच्चा दूध पी जाता है। नागराजा देवता को धूप-दीप दिखाने का जो पात्र है वह भी अनूठा है। इस पात्र की तरह बना अन्य कोई पात्र क्षेत्र में कहीं नहीं है और न ही अब तक इस तरह की बनावट गढ़वाल में कही देखी गई। किवदंति है कि यह पात्र आक्षरियों (परियों) से छीना गया था। तब से अब तक इसी पात्र में धूप जलाकर नागराजा को अवतरित किया जाता है।
एक गागर पानी पी जाता है पश्वा
नागराजा देवता के निशान को प्रत्येक तीसरे वर्ष जब, बाहर निकाला जाता है, तो देवता के पश्वा को अवतरित किया जाता है। सबसे आश्चर्य जनक बात यह है कि इस दौरान पश्वा एक गागर पानी व 20 से 25 लीटर कच्चा दूध पी जाता है। नागराजा देवता को धूप-दीप दिखाने का जो पात्र है वह भी अनूठा है। इस पात्र की तरह बना अन्य कोई पात्र क्षेत्र में कहीं नहीं है और न ही अब तक इस तरह की बनावट गढ़वाल में कही देखी गई। किवदंति है कि यह पात्र आक्षरियों (परियों) से छीना गया था। तब से अब तक इसी पात्र में धूप जलाकर नागराजा को अवतरित किया जाता है।
【2】पान्डुकेश्वर का शेष नाग मन्दिर
【3】रतगाँव का भेकल नाग मन्दिर
【4】तालोर का सांगल नाग मन्दिर
【4】तालोर का सांगल नाग मन्दिर
【5】भरगाँव का बम्पा नाग मन्दिर
【6】निति घाटी में जेलम का लोहन देव नाग मन्दिर
【7】देहरादून घाटी में नाग सिद्ध का बामन नाग मन्दिर है, अत्यंत पुराना है।
【6】निति घाटी में जेलम का लोहन देव नाग मन्दिर
【7】देहरादून घाटी में नाग सिद्ध का बामन नाग मन्दिर है, अत्यंत पुराना है।
【8】पौड़ी जिले में एक नाग मन्दिर डाण्डा नागराज के नाम से है।
【9】प्रसिद्ध रवाई घाटी
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित
पुरोला तहसील के अंतर्गत पट्टी सरबड़ीयाड़ स्थान में श्री मणिधारी नाग का मंदिर है। इस मंदिर के अहाते में एक अखण्ड धूनी प्रज्वलित है। यह धूनी कभी
ठंडी नहीं होती, इसका बुझना प्रकृति के लिए बहुुुत ज्यादा अनिष्ट कारक माना जाता है।
【10】कालिय नाग मन्दिर
चमोली देवल के पास लाटू मंदिर के नाम से
प्रख्यात यह कालिय नाग का मन्दिर नागमणि युक्त है, जहाँ एक विशाल मणिधारी नाग का निवास है। मान्यता है कि लाटू देवता नन्दा देवी के भाई हैं। यह उत्तराखंड का रहस्यमयी
नाग मंदिर है। इस मणि नाग मन्दिर में स्त्री या पुरुष का प्रवेश निषेध है।
नागमणि की चमक से अन्धे हो सकते हैं
बताते हैं कि उस नाग मणी की चमक ऐसी है कि यदि अगर कोई देख ले, तो वो अँधा हो सकता है, इसलिए आज तक कोई नागराज के सच को जानने का साहस नहीं जुटा पाया।
मन्दिर के महन्त भी पट्टी बांधकर करते हैं मणि नागराज की पूजा
इस मंदिर की पूजा करने वाले पुजारी अपनी आँख पर काला कपड़ा बांध कर अकेले ही इस नाग मन्दिर में प्रवेश करता है, ताकि मणि के प्रकाश से वो अँधा न हो और पूजा भी हो जाए। कहा जाता है कि पुजारी के मुंह की गन्ध देवता पर नहीं जाना चाहिए और नाहीं देवता की जहरीली गन्ध पुजारी पर जाये।
【11】ऐतिहासिक राजबुंगा किला, जो चंपावत में है, राजबुङ्गा किले का निर्माण राजा सोमचन्द्र ने कराया था, जो नागवंशी थे। इस किले नजदीक एक आदिकालीन नागनाथ मंदिर में श्रद्धालु की हमेशा भीड़ रहती है। यह तीर्थ सन्तति हीन लोगों को संतान सुख की प्राप्ति करता है। इनके दर्शन मात्र से शत्रुओं के संकट से निजात मिलती है।
यहां कालभैरव का एक प्राचीन मंदिर है, जो सदियों से लोगों की आस्था व श्रद्घा का केंद्र है। यहां हर दिन पूजा के समय नौमत लगती है।
मन्दिर के किस्से
कहा जाता है कि चंद राजाओं ने जब चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की, तो इसके शीर्ष भाग में नगर की रक्षा के लिए नाथ संप्रदाय के एक महंत ने अपना डेरा जमाया। जिसे राजा ने अपना गुरुदीक्षा लेकर उनसे आशीर्वाद लिया और यह स्थान नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कहा जाता है कि चंद राजाओं ने जब चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की, तो इसके शीर्ष भाग में नगर की रक्षा के लिए नाथ संप्रदाय के एक महंत ने अपना डेरा जमाया। जिसे राजा ने अपना गुरुदीक्षा लेकर उनसे आशीर्वाद लिया और यह स्थान नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
उत्तरकाशी का ज्योतिर्लिंग शिंवलिंग और अन्य प्रमुख मन्दिर
■ विश्वनाथ मंदिर – यह मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के दांए किनारे पर स्थित है। स्कन्द पुराण में इन्हें सतयुगी ज्योतिर्लिंग बताया है।
■ विश्वनाथ मंदिर – यह मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के दांए किनारे पर स्थित है। स्कन्द पुराण में इन्हें सतयुगी ज्योतिर्लिंग बताया है।
■ कण्डार देवी – उत्तरकाशी में स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
■ शक्ति मन्दिर – विश्वनाथ ही यविरल
ज्योतिर्लिंग शिवालय के सामने इस मंदिर की मुख्य विशेषता इसमें 20 फिट ऊचां एक लाखों वर्ष पुराना विशाल त्रिशूल है, जो केवल सबसे छोटी उंगली के लगाने से हिलता है। यह शिव त्रिशूल किस धातु से निर्मित है, आजतक ज्ञात नहीं हो सका है।
यमुनोत्री धाम
कचडू देवता
पौखू देवता
अन्नपूर्णा शक्तिपीठ – यह मंदिर गंगोत्री मंदिर का ही एक हिस्सा है।
दुर्योधन मंदिर-
परशुराम मंदिर
कालिंगानाथ मंदिर
लक्षेश्वर मंदिर
विश्वेश्वर मंदिर
कुट्टीदेवी
कमलेश्वर मंदिर
भैरव मंदिर
कण्डारा मंदिर
पौखू देवता
अन्नपूर्णा शक्तिपीठ – यह मंदिर गंगोत्री मंदिर का ही एक हिस्सा है।
दुर्योधन मंदिर-
परशुराम मंदिर
कालिंगानाथ मंदिर
लक्षेश्वर मंदिर
विश्वेश्वर मंदिर
कुट्टीदेवी
कमलेश्वर मंदिर
भैरव मंदिर
कण्डारा मंदिर
दत्तात्रेय मन्दिर
टिहरी गढ़वाल के प्रमुख मन्दिर
लक्ष्मण मंदिर –
टिहरी गढ़वाल के प्रमुख मन्दिर
लक्ष्मण मंदिर –
नागटिब्बा मंदिर
चन्द्रबदनी
चन्द्रबदनी
यह मन्दिर टिहरी मुख्यालय से 8 किमी दूर स्थित है।
कोटेश्वर महादेव
सुरकण्डा देवी
कुजांपुरी देवी
कोटेश्वर महादेव
सुरकण्डा देवी
कुजांपुरी देवी
रथी देवता
रघुनाथ मंदिर,
महानाग मंदिर
विष्णु मंदिर
रघुनाथ मंदिर,
महानाग मंदिर
विष्णु मंदिर
रमणा शक्तिपीठ
बूढा केदार
पाउकी देवी मंदिर
भद्रकाली मंदिर
बूढा केदार
पाउकी देवी मंदिर
भद्रकाली मंदिर
देवप्रयाग – जो शास्त्रों में इन्द्रप्रयाग भी कहा गया है। यहां के प्रमुख मंदिरों में रघुनाथ मंदिर है।
देहरादून के प्रमुख मन्दिर
महासू देवता मन्दिर
सतला देवी मन्दिर
देहरादून के प्रमुख मन्दिर
महासू देवता मन्दिर
सतला देवी मन्दिर
टपकेश्वर महादेव
हाडकाली मंदिर,
बुद्धा टैम्पल
लक्ष्मण सिद्धी – चैरासी सिद्धों में से एक है।
भरत मंदिर,
माल देवता,
लाखा मण्डल
हाडकाली मंदिर,
बुद्धा टैम्पल
लक्ष्मण सिद्धी – चैरासी सिद्धों में से एक है।
भरत मंदिर,
माल देवता,
लाखा मण्डल
महाभारत के समय में लाक्षागृह यहीं पर बनाया गया था इसी कारण यह कई प्रकार की मूर्तियां है। इसे मूर्तियों का भंडार भी कहा जाता है।
यहां एक स्वयम्भू शिवालय भी है।
अभी उत्तराखंड के बहुत से तीर्थो की जानकारी देना शेष है।
Leave a Reply