सदैव स्वस्थ्य रहने के लिए क्या तरीका अपनाएं…

स्वास्थ्य ही जीवन का सार है।

सन्सार से पार लगना हो, तो सर्वप्रथम अपने शरीर को तन्दरुस्त रखें।

100 वर्ष से ज्यादा जीने वाले बुजुर्ग कहते थे कि- स्वास्थ्य है, तो 100 हाथ हैं।

स्वस्थ्य व्यक्ति के साथ सदैव 100 साथी रहते हैं।

वर्तमान में लोगों ने तन-मन-अन्तर्मन की तन्दरूस्ती तथा खूबसूरती के प्रयास स्थगित कर दिए हैं।

आयुर्वेदिक ग्रन्थ कहते हैं …पहला सुख निरोगी काया!

ये मूल बात हम भूलते जा रहे हैं।

आजकल घर-घर नीम-हकीम खतरे की जान जैसे लोग अपना खूब ज्ञान बघेर रहे हैं।

जनता भी कुछ भी घरेलू दवाएं अंटशंट खाकर बीमार हो रहे हैं और बदनाम आयुर्वेद हो रहा है।

खतरे की घण्टी को पहचाने….

अगर आपके भोजन में नमक एवं मीर्च मसाले की अधिकता लगे, तो सावधान हो जाएं।

क्योंकि अब आपके लिवर ने हथियार डाल दिये हैं।

तकृत अब नवीन रस को निर्मित करने में असहज महसूस कर रहा है।

जाने खास बातें…

पेट की लगातार खराबी और कब्ज की खतरनाक शिकायत की वजह से लीवर रस का नवनिर्माण करना बंद कर देता है।

अधिकतर यह समस्या उन लोगों को ज्यादा हो रही है,

जो घरेलू सादा भोजन न खाकर बाहरी या बाज़ारु गला-तला, सड़ा पदार्थ ज्यादा खाते हैं।

दुनिया में जितने भी स्वादिष्ट बाजारू बिकने वाले खाद्य-पदार्थों में स्वाद बढ़ाने वाले भयंकर रसायनिक या केमिकल युक्त प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल किया जाता है।

ध्यान रखें, सदैव ताजी खाना ही स्वस्थ्य रखने में सहायक है।

आजकल लोग सुबह उठते ही गर्म या गुनगुना पानी पी लेते हैं,

जिससे जठराग्नि दूषित होकर लिवर में विकार पैदा कर रही है।

शरीर आपका है और आपको ही चैतन्य रहकर समझना होगा कि हमारे लिए क्या हितकारी है।

सुनी-सुनाई बातों पर या बिना सन्दर्भ ग्रन्थ के गूगल पर अनेकों मनगढ़ंत तथा भ्रमित करने वाली जनकारियौन का भंडार भरा है।

द्र्वगुण विज्ञान ग्रन्थ के अनुसार हल्दी एक महीने में 10 से 15 ग्राम पर्याप्त है और लोग एक दिन में 10 ग्राम तक हल्दी सेवन कर रहे हैं।

नीम 2 से 3 कोपल तक केवल फाल्गुन, चैत्र, वैशाख के महीने में ही चबाने का निर्देश है।

लोग एक दिन में 10 से 15 पके पत्ते कहा रहे हैं।

चरक सहिंता के मुताबिक ज्यादा कड़वा खाने या करेला, लोंकी का जूस पीने से लीवर रस बनाना बन्द अथवा कम कर देता है।

शरीर में दर्द, आलस्य, सुस्ती, ग्रन्थिशोथ या थायराइड की वजह भी अधिक कड़वी चीजे लेना है।

यह सब प्राकृतिक ज्ञान मात्र आयुर्वेद के 5000 साल प्राचीन षडरों में पढ़ने को मिलता है।

अष्टाङ्ग ह्रदय ग्रन्थ में लिखा है कि आप केवल उदर को ठीक रखें।

यही रोगों की गंगोत्री है। पेट की बीमारियों के चलते यकृत दोष पनपने लगते हैं।

गुर्दा की खराबी हो, डाइबिटीज की समस्या हो या महिलाओं को लिकोरिया, सोमरोग, पीसीओडी की तकलीफ हो इन सब समस्याओं की जन्मदाता मानव उदर ही है।

इन सब असाध्य रोगों की चिकित्सा आयुर्वेद में आसानी से उपलब्ध हैं।

आयुर्वेदिक इलाज…

सुबह उठते ही कम से कम 3 गिलास सादा जल पियें।

फ्रेश होकर घूमने की आदत बनाएं।

बिना नहाए कुछ न खाएं।

प्रतिदिन Kayakey oil  https://bit.ly/3bdvJJ0 से धूप में बैठकर मालिश करें। इससे विटामिन डी की वृद्धि होगी।

सुबह खाली पेट एक चम्मच Keyliv malt https://bit.ly/3ChPbQL दूध के साथ 3 महीने तक सेवन करें।

रात को एक से 2 गोली amrutam teblet  https://bit.ly/2Vj1N9B की सादा पानी से लेवें।

यकृत/लिवर की खराबी या कमजोरी की वजह क्या है?..

रोगप्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाएं?…

इम्युनिटी वृद्धिकारक हर्बल मेडिसिन क्या है।

क्या नीम, हल्दी, करेला, लोंकी तथा कड़वी चीजों से कोई फायदा होता है?..

मुहँ का स्वाद सही करने के लिए क्या करें

यह सब जानने के लिए अमृतमपत्रिका गूगल पर पढ़ें..

http://amrutampatrika.com

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