क्या आसानी से सफलता मिल सकती है? Amrutam

  • प्रयत्न साधन है, तुम्हे आलस्य छोड़ना पड़ेगा। याद रखो, जीवन श्रम हैं। मृत्यु विश्राम है। अगर मरना है तो कुछ करने की जरूरत नहीं पर अगर जीना हो, तो कुछ करना पडेगा
  • और अगर विराट जीना है, तो विराट संघर्ष, अंदर का उधम बंद कर बाहर का उधम करना होगा।
  • सिद्धि हो या समृद्धि दोनों का अपना महत्व है।
  • सिद्धि के लिए समर्पण के साथ दिल दिमाग को शांति देवें और समृद्धि के लिए शांतिपूर्वक धैर्य के साथ संघर्ष जरूरी है।
  • सफलता तो निश्चित मिलती है लेकिन इसका समय निर्धारित नहीं है। क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।
  • अंदर के अभ्यास से तात्पर्य है अजपा जाप अर्थात हाथ में काम हो और मुख में ॐ शभूतेजसे नमः शिवाय का मंत्र। ये आपके अंदर बन्दर जैसी भटकने की आदत पर लगाम लगाकर तेज प्रदान करेगा।

अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार।

Amrutam का यह लेख आपका जीवन बदलकर सफलता में सहायक हो सकता है।

  • भगवान ने इंसान को धरती पर भेजा है, तो सफलता के लिए आपको भरपूर प्रयास करना पड़ेंगे।
  • आपको जितना भी मंदिर मस्जिद, सिद्ध स्थान या साधु संतों के पास भटकना हो, भटक लें। अंत में आपकी तपस्या, साधना, एनर्जी ही काम आएगी।
  • ध्यान रखें आपसे बाहर कुछ भी नहीं है। सब कुछ आपके अंदर ही है। आप ही शिव है फिर शव बनने की कोशिश करना व्यर्थ है।
  • सफलता की शुरुआत संघर्ष से शुरू होती है। संघर्ष का अर्थ है जिसके साथ संग+हर्ष है यानी खुश, मस्त रहते हुए कर्म करते रहना।
  • कर्म को निष्काम भाव से करेंगें, तो सफलता निश्चित मिलती है। परिणाम कुछ भी हमें व्यस्त रहने की आदत बनाना चाहिए।
  • कर्म का अभ्यास बड़े बड़े मर्म मिटाकर इंसान को हर क्षेत्र का मर्मज्ञ बना देता है। उसका ज्ञान अनुभव भी किसी सफलता से कम नहीं होता। ऐसा मनुष्य ज्ञानी बन जाता है।
  • जब कोई अंदर के अभ्यास का आदी हो जाता है, तो उसे हर चीज का अहसास भी होने लगता है।
  • अमृतम पत्रिका का जिस दिन ये लेख पढ़ा, तो जीवन में परिवर्तन आरम्भ हुआ। अधोकजी कि एक बात बहुत अच्छी लगी कि कभी भी बड़े सङ्कल्प न करके छोटे छोटे संकल्प करें।
  • अगर पहाड़ या हिमालय चढ़ना है, तो 5 से 10 किलोमीटर रोज पैदल चलन चालू करें। साल दो साल बाद आपको 100 किलोमीटर चलना भी ज्यादा नहीं लगेगा।
  • यदि आप सुबह 8 बजे सोकर उठते हैं, तो 7 बजे जागने की आदत बनाएं और फिर, धीरे धीरे 3 से 6 महीने में प्रातः 4 बजे जागना शुरू कर देंगे।

सफलता के लिए जरूरी बातें

  • हमारा सूक्ष्म शरीर-ऊर्जा या प्राण शरीर पंचमहाभूतों द्वारा संचालित है। हमारी देह में 7 बड़े ऊर्जा केंद्र हैं। शुरू के 5 केंद्र या चक्र पंचतत्व के प्रतिष्ठान हैं। सबसे नीचे रीढ़ की हड्डी के नीचे स्थान पर है हमारा-मूलाधार चक्र।

मूलाधार चक्र में विकार आने से कमर-हाथ-पैर-घुटनों के दर्द, सूजन, थायराइड, मोटापा, अर्श, बबासीर, व्यसन, मानसिक गिरावट, सन्ताप, तनाव, चिंता भय-भ्रम जैसे भाव या रोग प्रकट होते हैं।

वर्तमान में सभी में धरती माँ जैसी कल्याण की भावना का अभाव होने से पृथ्वी तत्व से सम्पर्क टूटता जा रहा है। दिनों-दिन शिव तत्व की जगह शव जैसी प्रवृत्ति का उदय हो रहा है।

ग्रामीण के बिना पढ़े-लिखे बुजुर्गों की एक बात स्मरण आती है कि-

एक ने खाया, कुत्ते ने खाया।

सबने खाया, अल्लाह ने खाया।

  • अर्थ बहुत आसान है। फिर भी समझने की बात इतनी सी है कि-अधिकांश इंसानों की सोच कुत्तों की तरह स्वार्थी होने से श्वान यानी कुत्ते जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं हैं।
  • आयुर्वेद वात-पित्त-कफ को सन्तुलित कर सम्पूर्ण तन-मन की कार्यप्रणाली की नियमित करता है। देह की किसी भो रोग को ठीक करने में समय लग सकता है, लेकिन बीमारी का इलाज जड़ से होता है।
  • वात-पित्त-कफ का संतुलन आप स्वयं भी बना सकते हैं इस हेतु ayurveda life style बुक का अध्ययन कर अमल करें। इस किताब के पढ़ने से आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि शरीर की तासीर कैसी है।
  • अगर आप आयुर्वेद चिकिसकों या स्त्रीरोग विशेषज्ञ द्वारा घर बैठे ऑनलाईन उपचार कराना चाहते हों, तो amrutam.globle पर परामर्श ले सकते हैं।

असफलता भी अस्वस्थ्य बनाती है

  • भारत में 80 फीसदी लोग हर क्षेत्र में असफल, बेरोजगार और तन-मन-धन से दुखी हैं। इसका मूल कारण है सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करना।
  • बिना धैर्य के जल्दबाजी में सब कुछ पाने की तीव्र कामना। यह वे लोग हैं, जो कोई भी प्रयास-प्रयोग या अध्ययन करना नहीं चाहते। ऐसे लोगों का भगवान भी मालिक नहीं है।
  • स्वस्थ्य रहने में श्रीमद भागवत गीता भी मदद कर सकती है। एक माह तक कोई भी एक अध्याय पढ़ें। हर रोज श्रीमद भागवत गीता का अर्थ अलग समझ आएगा।

सबसे पहले मन को नियंत्रित करें

कहा गया है कि-

चंचलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवदृढम।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।

  • अर्थात- मन का नियंत्रण वायु पर अंकुश के समान कहा गया है। इसलिए तन की एक इन्द्रिय की चंचलता भी स्वास्थ्य व जिंदगी के लिए भारी पड़ सकती है।
  • बड़े-बड़े बलशाली, महत्वकांक्षी, महान पुरुष भी मात्र एक इन्द्रिय के बिगाड़ से बर्बाद या मर जाते हैं। हाथी, हिरन, भ्रमर, मछली मात्र एक ही विषय की आसक्ति के कारण मर जाते हैं।
  • महर्षि चरक कहते हैं- मनुष्य केवल शरीर को साधे, बाकी शेष प्रकृति या परमात्मा देने को तत्पर बैठा है।
  • स्कन्ध पुराण के हिसाब से तन-मन को दोषपूर्ण या रोगी बनाना या बनाये रखना सबसे बड़ा पाप है। इन्हें परमपिता भी क्षमा नहीं करता। इनकी सभी प्राथनाएं अनसुनी रहती हैं। कभी कोई मनोकामना पूर्ण नहीं होती। इस बारे में बहुत से श्लोकों का वर्णन दिया है-

स्वस्थ्य रहने हेतु क्या करना चाहिए?

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।६:३५

  • अर्थात- हे मनुष्यों! मन चञ्चल और कठिनता से ही वश में होता है, किंतु अभ्यास से अर्थात् किसी चित्तभूमि (अपनी नाभि) में एक समान वृत्ति की बारंबार आवृत्ति करने से और दृष्ट तथा अदृष्ट प्रिय भोगों में बारंबार दोष दर्शन के अभ्यास द्वारा उत्पन्न हुए अनिच्छा रूप वैराग्य से चित्त के विक्षेप रूप प्रचार (चञ्चलता) को रोका जा सकता है।
  • अर्थात् इस प्रकार उस मन का निग्रह निरोध किया जा सकता है। इसे 10 बार पढ़ने पर समझ आएगा।

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश:!

इन्द्रियाणिन्द्रियार्थेभ्स्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता!!श्रीमद्भागवत गीता २:६८

  • अर्थात-हमारे जीवन की निर्माण सामग्री पंचमहाभूत है। धन-दौलत, माया कारीगर है। प्रकृति नक्शा बनाती है। ब्रह्म यानि आत्मा रह कर चली जाती है। उसके रहने तक आवास अर्थात हमारी देह शुद्ध व पवित्र रहे। सुदृढ़ रहे!
  • यह अति आवश्यक है। इसका एक ही उपाय है कि- हमारे मन में आकाश तत्व की निर्मलता बनी रहे। इसका माध्यम है नाद ध्वनि! ॐ कार की उच्चारण। शंखनाद। अग्निदान! यही स्वस्थ्य रहने एवं भक्ति मार्ग की भूमिका है।
  • आयुर्वेद या प्राकृतिक चिकित्सा पध्दति के अनुसार हम प्राचीन नियम-धर्म , संस्कार-संस्कृति को अपनाकर जीवन भर स्वस्थ्य रह सकते हैं-
  • स्वस्थ्य रहने के लिए सर्वप्रथम क्रोध, ईर्ष्या, दुर्भावना दोषों को दूर करें। संसार में भारतीय शास्त्र ही अंतिम सत्य हैं, इन्हें झुठलाना बहुत मुश्किल है।

शास्त्र भी यही निर्देश देते हैं-

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

  • अर्थात-क्रोध द्वेष से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानि मूढ़ एवं मूर्ख हो जाती है। कुंद बुद्धि होने से व्यक्ति वेवक़ूफ़न की श्रेणी में गिना जाता है ओर कभी सफल नहीं हो पाता
  • क्रोध-द्वेष, दुर्भावना से स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है। मानव उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

जीवन भर स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए आप निम्नलिखित अभ्यास, उपाय, प्रयोग या प्रयास कर अहसास करें

  1. सुबह सूर्योदय के पहले उठकर, मुहँ में पानी भरें और उस पानी से आंखें धोने से कभी नेत्र रोग, दूरदृष्टि एवं नेत्रज्योति कम नहीं होती।
  2. प्रतिदिन बादाम, जैतून, चंदनादि तथा महालक्षादि तेल से सुबह की धूप में अभ्यङ्ग करें। इन तेलों से निर्मित काया की ऑयल Kaya Key Oil भी एक बेहतरीन आयुर्वेदिक मसाज़ ऑयल है।
  3. नित्य कसरत, योग तथा ध्यान अवश्य करें।
  4. सुबह स्नान से पहले नाश्ता आदि न करें।
  5. नहाने के बाद एक दीपक जरूर जलाएं, इससे ऊर्जा बनी रहती है।
  6. रात में दही, अरहर की दाल, जूस, फल-सलाद आदि न लेवें।
  7. सुबह नाश्ते में थोड़ा सा मीठा दही लेवें।
  8. कब्ज होने पर लंघन करें यानी व्रत रखें।
  9. क्रोध-चिड़चिड़ापन, द्वेष-दुर्भावना, जलन आदि मानसिक विकारों को पूर्णतः त्यागें।
  10. अच्छी भूख लगने पर ही भोजन करें।
  11. दिन भर में 5 से 6 लीटर सादा पानी पिएं।
  12. खाने के तुरन्त बाद पेशाब करने से किडनी यानि गुर्दा क्रियाशील रहता है। मधुमेह की समस्या नहीं होती।
  13. एसिडिटी या गैस की दिक्कत होने पर केवल Amrutam Gulkand का सेवन करें।
  14. अम्लपित्त से मुक्ति हेतु जल को एक-एक घूँट पीने की आदत बनाये। यह जल चिकित्सा शास्त्र में लिखा है।
  15. दुपहर के खाने में मूंग की दाल, सलाद, फल, जूस, मट्ठा एवं मीठा जरूर लेवें। भोजन के बाद मीठा खाने से वात रोग और थायरॉइड आदि विकार उत्पन्न नहीं होते।
  16. आयुर्वेद चंद्रोदय ग्रन्थ के मुताबिक अगर गर्म पानी पीना हो, तो केवल भोजन के एक घण्टे लेवें। हमेशा नहीं। दिन भर गर्म पानी पीने से नाड़ियाँ शिथिल होने लगती है। इसका दुष्प्रभाव बुढापे में होता है।
  17. Amrutam Panchamrut यानि शुद्ध शहद की मात्रा 20 ग्राम और नींबू का रस 2 से 3 Ml तक ही सादे या गर्म जल से लेवें। अधिक खट्टा नपुंसकता लाता है।
  18. नीम की पत्तियों को बस इतना ही चबाएं, जिससे कण्ठ कड़वा हो सके।
  19. तुलसी के पत्ते 5 से अधिक न लेवें।
  20. किसी तह के चूर्ण को एक बार में अधिकतर 2 से। 3 ग्राम तक लेना हितकारी है।
  21. कोई भी काढा 15 ML से अधिक नहीं लेना चाहिए।
  22. प्रतिदिन कोई भी लिवर टॉनिक लेना श्रेष्ठ रहता है, इससे लिवर मजबूत बनता है। आप चाहें, तो अमृतम द्वारा निर्मित कीलिव स्ट्रांग सिरप KeyLiv Strong Syrup खाने के बाद 2 से 3 चम्मच एक गिलास पानी में मिलाकर ले सकते हैं।
  23. मानसिक तनाव, सन्ताप, चिंता, भय-भ्रम आदि से बचने के लिए गहरी-गहरी श्वांस पेट में भरकर या नाभि तक ले जाकर कुछ सेकंड रोककर धीरे-धीरे छोड़े।
  24. अघोरी की तिजोरी से मनोरोगों का प्राकृतिक उपचार स्वयम ही करें।
  25. जब कभी भी गन्दे विचार या दुर्भावना का मन में उदय हो, उस समय तत्काल गहरी श्वांस…. नाभि तक ले जाकर रोकने से, तुरन्त मन हल्का और कुविचार या विकार रहित हो जाता है। यह अघोरियों का प्रयोग है। इससे मुझे भी बहुत फायदा हुआ। कुछ दिन आजमाकर देखें। बहुत राहत महसूस होगी।
  26. फेफड़ों को संक्रमण से बचाने के लिए रोज की ये आदत भी बनाएं। एक कुर्सी या जमीन पर सीधे होकर बैठ जाएं।
  27. धीरे-धीरे मुख से पृरी श्वांस छोड़े यानि फेफड़ों में भरी हवा को पूर्णतः खाली कर दें।
  28. धीरे धीरे चार 7 से 9 बार ॐ की गिनती व ध्यान करते हुए नाक से श्वांस लें। हर सांस के साथ ॐ नाभि तक पहुंच रहा है। अहसास करें।
  29. सांसों को नाभि पर रोक कर 5 बार !!ॐ शम्भूतेजसे नमःशिवाय!! का जप करें।अब शनै-शनै: श्वांस को छोड़ते जाएं। मन में यह भावना रखकर कि मेरे शरीर के सब विकार बाहर निकल रहे हैं।
  30. यह प्रक्रिया सुबह की धूप में सूर्योदय के समय करने से विटामिन डी की पूर्त और हड्डियां मजबूत होने लगती है। थायराइड नहीं होता।
  31. उपरोक्त उपचार से तन की आधि- व्याधि मिटती हैं। मन शांत होता है। नर्वस सिस्टम सुधरता है। फिर 100 वर्ष तक भी निरोग रह सकते हैं।
  32. सदैव हैल्दी बने रहने के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन नियमित करते रहना बहुत जरूरी है, ताकि वात-पित्त-कफ सन्तुलित रहे। आयुर्वेद कभी भी किसी भी बीमारी को ठीक करने की गारंटी नहीं लेता अपितु यह देह की सिस्टम को ठीक कर सभी सिम्टम्स सुधरता है।
  33. आप सपरिवार जीवन भर अमृतम गोल्ड माल्ट ले सकते हैं

यह एक तरह का आयुर्वेदिक जैम है। Amrutam Gold Malt | Ayurvedic Jam) यह जाम (शराब) की लत भी छुड़वाने में सहायक है।

सभी असाध्य व पुराने जीर्ण-शीर्ण रोगों में विशेष उपयोगी एक अद्भुत शक्तिदायक आयुर्वेदिक टॉनिक है —

मात्रा– एक चम्मच गर्म गुनगुने दूध से सुबह खाली पेट, रात में खाने के एक घंटा पहले 1 चम्मच बच्चों को आधा चम्मच सुबह खाली पेट गर्म गुनगुने दूध दे देना है ।

अमृतम गोल्ड माल्ट

  • मेवा–मुरब्बों,जड़ी–बूटियों के काढ़े से तैयार आयुर्वेद की प्राचीन प्रक्रिया द्वारा निर्मित शुद्ध हर्बल अवलेह है। जिसे आधुनिक भाषा में माल्ट कहा जाने लगा है।

एक दवा 100 रोग करे दफा

  1. यह पुराने से पुराने, सभी असाध्य रोगों में लाभकारी है। 2 महीने लगातार सुबह शाम एक-एक चम्मच गुनगुने दूध से लेने पर शरीर में
  2. जीवनीय शक्ति औऱ रोगप्रतिरोधक क्षमता में भारी वृद्धि कर कमजोर Cell तथा शिथिल नाडियों–वाहिनियों में ऊर्जा,शक्ति बढ़ाता है। रक्तसंचार सुचारू होता है।
  3. अन्य किसी भी वायरस, केन्सर जैसे असाध्य रोग-बीमारियों में जब कोई दवा काम नही कर रही हो। उनके लिए यह आयुर्वेदिक टॉनिक के रूप में अमृत है।
  4. पुराने से पुराना मलेरिया,
  5. लिवर की सूजन,
  6. पांडु,यकृत रोग,
  7. पीलिया, खून की कमी,
  8. खून की खराबी,
  9. किडनी की खराबी
  10. पुराना कम्पन्न रोग,
  11. पुराना वात विकार,
  12. जोड़ों में पुराना दर्द,
  13. थायराइड,पुरानी सूजन
  14. पुरानी खांसी,अस्थमा ,
  15. दमा, फेफड़ों की सूजन
  16. आलस्य, भय,चिंता
  17. चिकनगुनिया
  18. डेंगू फीवर,
  19. ओर इसके बाद की
  20. बीमारियां, पुरानी खुजली,दाद, खाज,खुजली,
  21. फोड़ा-फुंसी,चकत्ते,
  22. बालों का झड़ना,
  23. जुएं पड़ना
  24. आंखों की खराबी
  25. लचक,कमजोरी,
  26. शिथिलता,
  27. गेस, एसिडिटी,
  28. हेल्थ न बनना,
  29. सिरदर्द, नींद न आना,
  30. चिंता, सेक्स में कमी,
  31. माहवारी बिगड़ना,
  32. बच्चे न होना,
  33. बार-बार गर्भपात,
  34. स्त्री की सुंदरता में कमी,
  35. स्तनों का बहुत छोटा होना,
  36. बच्चों का सूखा रोग,
  37. Tb रोग, खून की कमी
  38. जीवनीय शक्ति की कमी,
  39. ऐसे हजारों रोग हैं जिन्हें कोई भी वैद्य या चिकित्सा विज्ञान पकड़ नहीं पाते उन्हें कम से कम एक से 2 महीने एक चम्मच रोज गुनगुने गर्म दूध या सादे जल से पूरे दिन में 2 या 3 बार लेना हितकारी है।

एक निवेदन नम्रतापूर्वक

  • आप सभी पाठकों को लगता होगा कि- हम अमृतम के उत्पादों का प्रचार-प्रसार कर व्यापार बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
  • सच्चाई यह है कि- देश दुनिया में स्वास्थ्य की अलख जगाने हमारा संकल्प है।
  • अमृतम ने मात्र 7-8 वर्षों में आध्यात्मिक, विश्वसनीय और बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से इतने असरदार हर्बल प्रोडक्ट बनाएं है कि- 100 साल पुरानी आयुर्वेदिक कम्पनियों से आगे निकल कर प्रसिद्धि-ख्याति पाई है।
  • आज ग्राहकों के भरोसे की वजह से अमृतम आज विश्व स्तरीय ब्रांड बन चुका है। अमृतमपत्रिका पत्रिका परिवार भी विश्वास बनाये रखने हेतु पुरजोर प्रयासरत है।
  • हमारा उद्देश्य है कि लोग दवा और दुआ दोनों से ठीक हों।
  • अतः अमृतम की सभी दवाएं शास्त्रमत तरीके से हजारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पध्दति द्वारा बहुत ही विधि-विधान तथा रुद्राभिषेक माध्यम से निर्मित की जाती हैं। ये विश्वास और बरक्कत दोनों में वृद्धि करेंगी ही।

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