क्या भगवान नाम की कोई शक्ति है?

संसार को चलाने वाले ये जो पंचमहाभूत हैं ये ही भगवान हैं। शिवलिंग इसी पंचतत्व का प्रतीक है।

भारतीय परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को धार्मिकता का चोला इसलिए पहनाया गया है, ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।..

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

शिव के ये सभी पंचतत्व ज्योतिर्लिंग प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचमहाभूत कहते हैं।

पंचभूत अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्हीं पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिष्टापित किया गया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम् में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है! वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

भगवान शब्द भी 5 अक्षर से निर्मित है। यही पांच शब्द से पंचाक्षर मन्त्र की रचना हुई, जिसे जपकर

एक सामान्य व्यक्ति परम्ज्ञाहंस स्वरूप ईश्वर हो जाता है।

भ से भूमि

ग से गगन

व से वायु

अ से अग्नि

न से नीर

यही भगवान हैं।

वैज्ञानिकों ने वेद-पुराणों का गहन अध्ययन कर भारत के विज्ञान केंद्र भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही बनाया है।

भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।

महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।

क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

!!ॐ नमःशिवाय!! मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई और विभिन्न भाषाओं में नाम …

सावन माह/श्रवण मास पर दुर्लभ जानकारी!

भजले मनवा नमःशिवाय।

व्यर्थ सुनहरा जीवन जाय।।

भगवान शिव को प्रसन्न कर रिझाने

वाले सृष्टि का महामन्त्र ॐ नमः शिवाय

की उत्पत्ति का रहस्य बहुत कम लोगों को मालूम है।

नमः शिवाय मन्त्र का अर्थ है-

भगवान भोलेनाथ शिव को नमस्कार, जो सदैव सबका मङ्गल करता है। इस पंचाक्षर के अजपा तथा सिद्ध होने से सन्सार का हर सुख साधक के साथ सूक्ष्म रूप जुड़ जाता है।

!!ॐ नमः शिवाय!! के निरन्तर जाप से व्यक्ति की हरेक मनोकामना सोचने मात्र से पूर्ण होने लगती है।

कहां से आया ॐ नमःशिवाय मन्त्र….

ॐ नमः शिवाय मन्त्र चार वेदों में से

एक कृष्ण यजुर्वेद रुद्राष्टाध्यायी के

हिस्से श्री रुद्रम् चमकम् में मौजूद है।

यह तैत्तिरीय संहिता के दो अध्यायों

से मिल कर बना है।

यह मंत्र “न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य”

इस वेद के प्रत्येक अध्याय में एकादश

स्तोत्र हैं, जो महादेव शिव के एकादश

रुद्रों यानि रक्षक को समर्पित हैं।

दोनों अध्यायों में अध्याय पाँच

का नाम नमकम् एवं अध्याय सात

नाम चमकम् कहलाता है।

इन्हें नमक-चमक भी कहा जाता है।

!!

ॐ नमः शिवाय

!! महामंत्र, महादेव

को प्रसन्न करता है।

यह शैव सन्त सम्प्रदाय के गुरुमन्त्र में से लिया गया है। यह मुक्तिमन्त्र भी है।

शिष्य या साधक की साधना से प्रसन्न

होकर सदगुरु बाद में अपने परमशिष्य

को प्रदान करते हैं।

!!ॐ!! रहित रुद्री नमकम् अध्याय

के आठवे स्तोत्र में

ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च

नमः शङ्कराय च मयस्कराय च

नमः शिवाय

च शिवतराय च।।

के रूप में मौजूद है। इसका अर्थ है ”

शिव को नमस्कार, जो शुभ है और

शिवतरा को नमस्कार जिनसे अधिक

कोई शुभ नहीं है, जो हर असम्भव को

शिव पल में सम्भव कर देते हैं।

मंत्र का विभिन्न परंपराओं में अर्थ..

नमः शिवाय का अर्थ “भगवान शिव

को नमस्कार” या उस मंगलकारी

को प्रणाम! है।

इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है।

यह भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाने, बतलाने वाला मन्त्र है।

पंचतत्व का प्रतीक इस मंत्र का निरन्तर

जाप शिव भक्त की आत्मा-हृदय की गहराइयों में पहुंचकर शिव से उसका साक्षात्कार कराता है।

पांच अक्षर का महत्व..

ॐ नमःशिवाय मंत्र में पांच फ़नधारी

शेषनाग और पंचब्रह्मरूपधारी भगवान

शिव इसमें अप्रमेय होने के कारण वाच्य

है और मंत्र उनका वाचक माना गया है।

यह मंत्र शिव तथ्य है जो सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, सर्वव्यापी होकर कण-कण में प्रतिष्ठित हैं।

आदि वैद्य बाबा वैद्यनाथ..

जैसे आयुर्वेदिक ओषधियाँ रोगों का

स्वभाव से दुश्मन हैं, उसी प्रकार भगवान

शिव सम्पूर्ण संसार दोषों के स्वाभाविक

शत्रु माने गए हैं।

जिस प्रकार बीमार व्यक्ति बिना वैद्य या चिकित्सक के रोग मुक्त नहीं हो सकता,

वह देह सुख से रहित होकर अनेक

परेशानी या क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार

बैधनाथ शिव का ध्यान, स्मरण नहीं

करने तथा सदाशिव का आश्रय न लेने

से संसारी जीव नाना प्रकार के कष्ट,

दुःख गरीबी भोगते हैं।

एक खास बात यह भी है कि- वैद्य या

चिकित्सक केवल शरीर के रोगों का

इलाज करते हैं और बाबा बैद्यनाथ

तन-मन, अन्तर्मन और अन्तरात्मा

को रोगरहित और पवित्र कर देते है।

!!ॐ नमःशिवाय!! जपने से फायदे…

■ ॐ नमःशिवाय मन्त्र के जाप से रोग,

शोक, दुःख-दरिद्र का दमन हो जाता है।

■ पच्चाक्षर मंत्र के जप में लगा प्राणी

चाहें किसी भी वर्ग या जाती का हो।

■ महा कपटी महापापी हो।

पंडित, मूर्ख, अंत्यज अथवा

अधर्मी भी हो, तो वह पाप जनित

दुःखों से मुक्त होकर तर जाता है।

■ ॐ नमः शिवाय मंत्र आदमी के

अहंकार और आक्रामकता को झुकाकर शालीन बनाता है।

■ ॐ नमःशिवाय मन्त्र गुरु रूप में

समय-समय पर सही मार्गदर्शन कर

सफलता, सम्पत्ति दिलाता है

■ और साधक के अतिरंजित मन से

विकार, तनाव को मिटाता है।

■ नवग्रहों की विपरीत चाल से उत्पन्न परेशानियां, अड़चनें, रुकावट दूर करता है।

■ हानि, अपमान तथा नकारात्मक

प्रभाव को मिटाता है।

■ शिव को समर्पित इस पांच अक्षर के

मन्त्र में अनंत रहस्य, बहुमुखी प्रतिभा

और महान शक्ति छुपी है।

■ शिव भक्त ब्रह्मचारी साधु शैव संप्रदाय

में नमः शिवाय को भगवान शिव के पंचमहाभूतों का बोध कराकर भोलेनाथ

की पाँच तत्वों पर सम्पूर्ण सत्ता,

सार्वभौमिक एकता को दर्शाता मानते हैं ।

■ ॐ नमः शिवाय मन्त्र का हर अक्षर

बताता है कि सार्वभौमिक चेतना एक है।

■ इस मन्त्र के पांचों अक्षर पंचतत्व को ऊर्जावान बनाये रखते हैं। जिससे सन्सार चल रहा है।

ॐ नमःशिवाय मन्त्र पंचतत्व का

प्रतिनिधित्व करता है-जाने कैसे….

” ध्वनि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है

मः

” ध्वनि पानी का प्रतिनिधित्व करता है।

शि

” ध्वनि अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है।

वा

” ध्वनि प्राणवायु अर्थात श्वांसों का

प्रतिनिधित्व करता है।

“य” ध्वनि आकाश का प्रतिनिधित्व करता है।

सृष्टि को बैलेंस में रखने के लिए सभी

को ॐ नमःशिवाय मन्त्र की कम से

कम एक माला जपकर हम प्रकृति का

ऋण चुका सकते हैं, जिससे सृष्टि चल

रही है। यह मन्त्र जपकर इन पंचमहाभूतों

को अर्पित करने से कभी दुख नहीं सताते। मानसिक सन्ताप नहीं होता।

आदि शंकराचार्य के गुरु गोविंदपाद

स्वामी के अनुसार पंचाक्षर नमःशिवाय

से ही सन्सार चलायमान है।

सृष्टि संचालक नमःशिवाय के रहस्य…

“न” शब्द भोलेनाथ की तिरोधान शक्ति

ईश्वर के रहस्यों को गुप्त रखने की शक्ति

का प्रतिनिधित्व करता है।

“मः” शब्द सम्पूर्ण चराचर जीव-जगत का प्रतिनिधित्व करता है।

“शि” मानव के शिवरूपी शिंवलिंग का प्रतिनिधित्व करता है।

“वा” यह नटराज की अनुग्रह शक्ति

यानि खुलासा करने वाली शक्ति का

प्रतिनिधित्व करता है।

“य” सृष्टि में हरेक आत्मा का

प्रतिनिधित्व करता है।

सार यही है कि ॐ का अर्थ मैं

शिवांश रूपी आत्मा देह नहीं,

नमः अर्थात नमन-नमस्कार करता हूँ….शिवाय मतलब परम सत्ता

परमात्मा को।

दक्षिण में धूम….

ॐ नमःशिवाय मन्त्र का सर्वाधिक

प्रचार ऋषि दुर्वासा, गुरु परशुराम,

महर्षि अगस्त्य, शुक्राचार्य, राहुदेव,

दशानन रावण, मार्केंडेय ऋषि,

ने किया।

तिरुमंतिरम, तमिल भाषा में लिखित

शास्त्र, इस मंत्र का अर्थ बताता है ।

शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के

अध्याय १/२/१० और वायवीय संहिता

के अध्याय १३ में ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र

लिखा हुआ है।

तमिल शैव शास्त्र, तिरुवाकाकम,

“न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य”

अक्षरों से शुरू हुआ है।

ॐ नमःशिवाय कैसे सिद्ध करें..

प्रातः सुबह स्नान के बाद किसी भी

स्वच्छ स्थान पर एक दीपक अमृतम

राहु की तेल का जलाकर आसन पर

बैठ जाएं और गहरी-गहरी सांस नाभि

तक धीरे-धीरे तीन बार लेकर छोड़े।

रुद्राक्ष की या अन्य कोई माला से

।।ॐ नमःशिवाय।।मन्त्र कण्ठ से

जपते हुए नाभि में स्टोर करें अर्थात

अपना ध्यान केवल नाभि पर लगाएं।

हमारे सद्गुरु बताते हैं कि कोई भी

मन्त्र जपते समय शरीर के किसी हिस्से में संकलित करना जरूरी है।

जैसे हम समृद्धि, सम्पत्ति को अलमारी

आदि में संग्रहित करते हैं, तभी वह सिद्ध होता है।

आवश्यक नहीं है कि आप रोज

10-20 या 100 माला जाप करें।

एक माला भी यदि अपने नाभि में

ध्यान लगाकर स्टोर करने का अभ्यास

कर लिया, तो मात्र 54 दिन में आपको

अपनी सिद्धि-शक्तियों का अहसास या अनुभव होने लगेगा। यह अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी ज्ञान है।

शेष जानकारी अगले किसी लेख में दी जावेगी। फिलहाल यह प्रयोग कर अपना अनुभव साझा करें।

ऐसा नहीं है कि यह पंचाक्षर मन्त्र

केवल हिंदुओं या भारतवासियों के

लिए महत्वपूर्ण है।

दुनिया में ॐ नमःशिवाय मन्त्र का

जाप करने वाले अनेकों साधक हैं….

यह पाँच तत्वों पर सार्वभौमिक एकता

को दर्शाता है। ऐसी वैदिक मान्यता है।

शिव के इस मन्त्र में लय-प्रलय,

कला-काल और महाकाल की

शक्ति समाहित है।

डमरू में ब्रह्माण्ड की लय-ताल गूंजती है।

त्रिशूल में तीन शूलों अर्थात तीन

तकलीफों को मिटाने की क्षमता है।

ये शिव के वैज्ञानिक यंत्र यानि अस्त्र हैं।

सृष्टि में विष-अमृत और गंगाजल के

स्वामी हैं।

कंकर-कंकर में शंकर होने की मान्यता

आदिकाल से चली आ रही है।

किसी शिवालय में अपने घर के

शिवलिंग के पास भी मंत्र जप करना

उत्तम बताया गया है।

ॐ नमः शिवाय के जाप से विष्णुजी

को मिला था सुदर्शन चक्र.

भगवान विष्णु ने नमः शिवाय मन्त्र

द्वारा शिंवलिंग पर १००८ पुष्प चढ़ाने

का संकल्प लिया, किंतु एक पुप्ष अंत में घटने से श्रीहरि अपना नयन अर्पित करने लगे, तभी महादेव उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को नवीन नाम कमलनयन और सुदर्शन चक्र प्रदान किया था, जो सदैव उनकी कनिष्ठका उंगली पर विराजमान रहता है।

सुदर्शन चक्र की विशेषता यह है कि

यह ब्रह्माण्ड का एक ऐसा अस्त्र है,

जो वार करके पुनः वापस आ जाता है।

इसिलए इसे अस्त्र कहतें हैं। शस्त्र सदृ

हाथ में या पास रहकर ही आक्रमण करता

है। शास्त्र के अनुसार बनने के कारण

इनका निर्माण हुआ। लेकिन अस्त्र की

खाशियत के बारे में शास्त्रों में जानकारी

उपलब्ध है, परन्तु बनाने की विधि अज्ञात

है। यही अस्त्र-शस्त्र में अंतर है।

सुना है – आज तक ऐसा अस्त्र सम्पूर्ण

ब्रह्माण्ड में दूसरा नहीं बना।

किस-किसने जपा यह मन्त्र…

@ भगवान परशुरामजी न ॐ नमः शिवाय

मन्त्र का 11 करोड़ पुनश्चरण किया, तो

भोलेनाथ ने उन्हें धनुष दिया, जिसे

षित स्वयंवर में राम ने तोड़ा था।

@ दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ॐ नमःशिवाय

मन्त्र के 11 करोड़ पुरुश्चरण किये, तो

जीवित करने वाली संजीवनी विद्याका

ज्ञान दिया था।

@ दशानन रावण ने 11 करोड़

!!

ॐ नमःशिवाय

!! मन्त्र

का जप किया तो उन्हें आत्मलिंग और

सोने की लंका प्रदान की।

@ गुरुद्रोणाचार्य ने शिव को अपना गुरु बनाकर ॐ नमःशिवाय पंचाक्षर का

अजपा जप किया, तो वे युद्ध गुरु कहलाये।

गुड़गांव या गुरुग्राम में गुरुद्रोणाचार्य द्वारा स्थापित प्राचीन शिवालय दर्शनीय है।

@ धनुर्धर अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर

भोलेनाथ ने इन्हें अर्जुन नाम दिया।

@ कर्ण भी परम गुरु एवं शिव भक्त थे।

ॐ नमःशिवाय के अजपा जाप से आज भी वे दानवीर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हैं।

करनाल का पुराण नाम कर्णपाल भी बताते हैं।

राजा कर्ण ने लगभग 108 स्वयम्भू शिवालय का जीर्णोद्धार कराया था। जिसमें करनाल हरियाणा,

कोटा राजस्थान, कर्णावद निमाड़ मालवा मप्र, सिहावा धमतरी 36 गढ़ का कर्णेश्वर महादेव मंदिर

सिद्ध प्रसिद्ध हैं।

उत्तरांचल में पांडुकेश्वर के पास हिम में स्थित कर्णेश्वर शिंवलिंग सभी चमत्कारी हैं।

सूर्य कृपा हेतु यह अदभुत हैं।

ॐ नमःशिवाय मन्त्र अन्य भाषाओं में

नेपाली भाषा में~ ॐ नम: शिवाय

रूसी भाषा में~ Ом Намах Шивайа

चीनी भाषा में~ 沒有Om Namah

अंग्रेजी में~ Om Namah Shivaya

कन्नड़ भाषा में~ ಓಂ ನಮಃ ಶಿವಾಯ

मलयालम में~ ഓം നമഃ ശിവായ

तमिल में~ ஓம் நம சிவாய

तेलुगु में~ ఓం నమః శివాయ

बांग्ला में~ ওঁ নমঃ শিবায়

गुजराती में~ ૐ નમઃ શિવાય

पंजाबी में~© ਓਮ ਨਮਃ ਸ਼ਿਵਾਯ

ओड़िया में~ ଓଁ ନମଃ ଶିଵାୟ

उर्दू में~ اوم نامہ شیوا

अरबी में~ بدون ام نعمة

डच भाषा में~ Zonder Om Namah

इंडोनेशिया में~ Tanpa Om Namah

टर्किश भाषा में~ Om Namah olmadan

अफ्रीकन में~ Sonder Om Namah

थाई भाषा में~ โดยไม่ต้อง Om Namah

यह मंत्र के मौखिक या मानसिक रूप

से दोहराया जाते समय मन में भगवान

शिव की अनंत व सर्वव्यापक उपस्थिति

पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

परंपरागत रूप से इसे रुद्राक्ष माला

पर १०८ बार दोहराया जाता है।

इसे जप योग कहा जाता है।

इसे कोई भी गा या जप सकता है,

परन्तु गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा के बाद

इस मंत्र का प्रभाव बढ़ जाता है।

मंत्र दीक्षा के पहले गुरु आमतौर पर

कुछ अवधि के लिए अध्ययन करता है।

मंत्र दीक्षा अक्सर मंदिर अनुष्ठान जैसे कि पूजा, जप, हवन, ध्यान और विभूति लगाने का हिस्सा होता है। गुरु, मंत्र को शिष्य के दाहिने कान में बोलतें हैं और कब और कैसे दोहराने की विधि भी बताते हैं।

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