आयुर्वेद के अनुसार बाजीकरण क्या है…

वाजीकरण की आवश्यकता क्यों है -पुरुषों को
चिन्तया जरया शुक्रं व्याधिभिः कर्मकर्षणात्।
क्षयं गच्छत्यनशनात् स्त्रीणां चातिनिषेवणात् ॥१॥
अर्थात अनेक प्रकार की चिन्ता से, वृद्धावस्था के कारण, रोग से, व्यायामादिकर्म से अथवा पञ्चकर्म के हीन या अतियोग से अधिक दिनों तक भूखे रहने से, स्त्रियों के साथ अति सम्भोग करने से और अधिक मात्रा में शुक्र यानि वीर्य का क्षय होने से पुरुष प्रायः क्लैब्य (नपुंसक) हो जाता है, अतः उसे वाजीकरण औषधियों द्वारा पुनः पुंसत्व प्राप्त कराना चाहिए ।
वाजीकरण की निरुक्ति
येन नारीषु सामर्थ्यं वाजिवल्लभते नरः। व्रजेच्चाप्यधिकं येन वाजीकरणमेव तत् ॥२॥
(चरक)
अर्थात जिस औषधि एवं आहार-विहार के द्वारा वीर्यहीन पुरुष स्त्रियों के साथ घोड़ा के समान सम्भोग करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है, उसे वाजीकरण कहते हैं। साथ ही वाजीकरण गुणयुक्त जैसे बी फेराल गोल्ड माल्ट एवम B FERAL Gold Capsule जैसी औषधियों के सेवन से वीर्य की अधिक वृद्धि होती है।
वाजीकरण पर्याय तथा निरुक्ति
 
वाज:= शुक्रंतदस्यास्तीति वाजी,
अवाजी वाजी क्रियतेऽनेनेति वाजीकरणम् ॥३॥
अर्थात वाज के अर्थ इस प्रकार हैं। वाज:= शुक्रं, वाज:= प्राणः, वाजः = इन्द्रियः, वाजः = अश्व:, मैथुनं, वाजः = पुंस्त्वः, वाजः = वेगः, वाजः = पक्षः, वाजः = अतिबलं, वाजः = स्त्रीवशीकरणं )
जिस पुरुष में शुक्र हो, उसे वाजी कहते हैं, जिस पुरुष में शुक्र नहीं हो उसे अवाजी कहते हैं। ऐसे अवाजी (शुक्र या वीर्यहीन) पुरुष को जिस औषधादि योग से वाजी बनाया जाय, उस औषधि को वाजीकरण औषधि कहते हैं।
वाजो नाम प्रकाशत्वात्तच्च मैथुनसंज्ञितम् । वाजीकरणसंज्ञाभिः पुंस्त्वमेव प्रचक्षते ॥४॥
वाज शब्द से मैथुन अर्थ ग्रहण करने पर ‘वाजी’ का अर्थ मैथुन शक्ति वाला पुरुष होगा।
अतः जिस औषधि से अवाजी (मैथुनशक्ति रहित) पुरुष को वाजी (मैथुनशक्ति से युक्त) बनाया जाता है, वह वाजीकरण कहलाता है।
अतः वाजीकरण संज्ञा से पुंस्त्व का ही बोध होता है। अतः पुंस्त्व को बढ़ाने वाली औषधि को ही वाजीकरण कहते हैं।
तद्वाजीकरणम्’।उक्तं हि —
‘वाजीवातिबलो येन यात्यप्रतिहतः स्त्रियम्’।
तथा च— ‘वाजीकरणमग्र्यञ्च क्षेत्रं स्त्री या प्रहर्षिणी’। (चरक. चि. २।१।४)
वाजीकरण औषधि का सेवन क्यों जरूरी है?
ग्लानिः कम्पोऽवसादस्तदनु च
कृशता क्षीणता चेन्द्रियाणां शोषोच्छ्वासोपदंशज्वरगुदजगदाः
क्षीणता सर्वधातौ।
जायन्ते दुर्निवारा: पवनपरिभवाः
क्लीबता लिङ्गभङ्गो
वामावश्यातियोगाद् भजत
इह सदा वाजिकर्मच्युतस्य ॥५॥
अर्थात वाजीकरण औषधि लिए बिना स्त्रियों के वशीभूत होकर अत्यधिक मैथुन करने से ग्लानि शरीर में कम्पन, अवसाद (शिथिलता), कृशता, इन्द्रियों की क्षीणता, शरीर का शोष, श्वास, उपदंश, ज्वर, गुदरोग (अर्श – भगन्दरादि), सभी सप्तधातुओं (रस-रक्त-मांस-मेद – अस्थि मज्जा-शुक्र) की क्षीणता, असाध्य एवं दुश्चिकित्स्य वातरोग, नपुंसकता, लिङ्गभङ्ग (ध्वजभङ्ग) आदि भयंकर रोग हो जाते हैं।
B Feral Gold Capsule वाजीकरण औषधियों के समुचित प्रयोग से स्त्रियाँ वश में रहती हैं। अतः हे पुरुष! वाजीकरण गुणयुक्त औषधियों का सेवन करो!
वृष्य की परिभाषा (चरक)
यत्किञ्चिन्मधुरं स्निग्धं जीवनं बृंहणं गुरु।
हर्षणं मनसश्चैव सर्वं तद् वृष्यमुच्यते ॥६॥
अर्थात जो द्रव्य मधुर है, स्निग्ध है, जीवन के लिए हितकर है, बृंहण (शरीर को मोटा करने वाला) है।
गुरु है, मन को प्रसन्न करने वाला है, उसे वृष्य गुण युक्त द्रव्य कहते हैं।
वाजीकरण औषध सेवन की विधि एवं आयु (भाव.प्रकाश.)
नरो वाजीकरान् योगान् सम्यक् शुद्धो निरामयः। सप्तत्यन्तं प्रकुर्वीत वर्षादूर्ध्वं तु षोडशात् ॥७॥ आयुष्कामो नरः स्त्रीभिः संयोगं कत्तुमर्हति।
न च वै षोडशादर्वाक् सप्तत्याः परतो न च ॥८॥
अर्थात स्वस्थ पुरुष को वमन-विरेचनादि पञ्चकर्म के बाद अर्थात् शरीर की सम्यक् शुद्धि पश्चात, १६ वर्ष की आयु के बाद से लेकर ७० वर्ष की आयु के पहले तक की अवस्था में ही B Feral गोल्ड माल्ट तथा कैप्सूल दोनों आयुर्वेदिक वाजीकरण औषधों का प्रयोग करना चाहिए।
दीर्घायु की कामना करने वाले पुरुष को चाहिए कि १६ वर्ष का अवस्था से पूर्व और ७० वर्ष की आयु के बाद मैथुन कर्म की कामना है, तो B Feral गोल्ड माल्ट का उपयोग वीर्य कम नहीं होने देगा।
वाजीकरण के अनुकूल विषय (भा.प्र.)
भोजनानि विचित्राणि पानानि विविधानि च।
 गीतं श्रोत्राभिरामाश्च वाचः स्पर्शसुखास्तथा॥९॥ यामिनी चन्द्रतिलका कामिनी नवयौवना।
 गीतं श्रोत्रमनोज्ञं च ताम्बूलं मदिरा स्रजः॥१०॥
 गन्धा मनोज्ञा रूपाणि चित्राण्युपवनानि च।
 मनसश्चाप्रतीघातो वाजीकुर्वन्ति मानवम्।।११।।
अर्थात अनेकों प्रकार के सुस्वादु एवं विचित्र भोजन, विविध पान (विविध मद्य, दुग्ध, जल, मांसरस, फलरस आदि द्रव), मनोनुकूल एवं कर्णप्रिय गीत एवं संगीत, मधुर वचन (कामिनियों से मधुर प्रेमालाप), प्रिया का स्पर्श।
सुखस्पर्शी वस्त्र आभूषणादि, पूर्णचन्द्रमा युक्त चन्द्रकिरण, निरभ्रयुक्त चन्द्रमा, नवयौवना कामिनियों की संगति, वार्तालाप, स्पर्श-सुख।
कर्णप्रिय संगीत, गीत, ताम्बूल, मदिरा, स्फटिक एवं अन्य रत्नों की माला, मन को प्रसन्न करने वाले सुगन्धित इत्र एवं सुन्दराकृति स्त्रियों के दर्शन।
विचित्र एवं विभिन्न वर्णों वाले सुगन्धित तथा मनोहर पुष्पों की वाटिका (उपवन), जहाँ पर मन अशान्त नहीं हो अर्थात् मन को प्रेरित करने वाले सभी कामुक साधन उपस्थित हों, वे सभी भाव पुरुष को वाजीकरण के लिए अनुकूल है।
धातुवैषम्य भाव क्या होता है…
योगान् संसेव्य वृष्यान् ससितमथपयः
शीतलं चाम्बु पीत्वा
गच्छेन्नारीं रसज्ञां स्मरशरतरलां कामुकः काममाद्ये। यामे हृष्टः प्रहृष्टां व्यपगतसुरतस्तत्समुत्पाद्य सद्यः कान्तः कान्ताऽङ्गसङ्गादमहदपि न वै धातुवैषम्यमेति
।।१२॥
अर्थात कामी पुरुष को सफल एवं अनुभूत तथा सर्वोत्कृष्ट स्वर्ण भस्म, शिलाजीत युक्त वृष्य योग यानि B Feral gold का सेवन करना चाहिए तथा बाद में चीनी युक्त सुखोष्ण गाढ़ा दूध या शीतलजल पीना चाहिए।
तदनन्तर प्रसन्नचित्त होकर कामकला में प्रवीण तथा कामिनी स्त्री के साथ रात्रि के प्रथम प्रहर में सुखपूर्वक सम्भोग करें। इस प्रकार मैथुन करने से थोड़ी मात्रा में भी धातु की कमी नहीं होती है।
वृष्यतमा स्त्री कैसी होती हैं?....(वङ्गसेन)
सुरूपा यौवनस्था च लक्षणैर्यदि भूषिता।
वयस्या शिक्षिता या वै सा स्त्री वृष्यतमा मता॥१३॥
अर्थात जो स्त्री रूपवती हो, युवती हो, कामशास्त्र के लक्षणों से युक्त हो, अर्थात् नृत्य, गीत, वाद्य, संगीत, लास्य तथा कामशास्त्र की कलाओं से परिपूर्ण हो, अवस्था भी अनुकूल हो एवं सुशिक्षित हो, ऐसी स्त्री ‘वृष्यतमा’ कही जाती है।
महर्षि चरक ने भी कहा है; यथा –
‘सुरूपा यौवनस्था या लक्षणैर्या विभूषिता।
 या वश्या शिक्षिता या च सा स्त्री वृष्यतमा मता॥
नानाभक्त्या तु लोकस्य दैवयोगाच्च योषिताम्।
 तं तं प्राप्य विवर्धन्ते नरं रूपादयो गुणा:।। वयोरूपवचोहावैर्या यस्य परमाङ्गना।
प्रविशत्याशु हृदयं दैवाद्वा कर्मणोऽपि वा।
 गत्वा गत्वाऽपि बहुशो यां तृप्ति नैव गच्छति।
सा स्त्री वृष्यतमा तस्य नानाभावा हि मानवाः’॥
(च.चि. २/१/७-१५)
अर्थात महर्षि अग्निवेश ने विशेषरूप से ‘वश्या’ शब्द का प्रयोग किया है जो वश में रहने का संकेत है।
जिस स्त्री के साथ पुनः पुनः सम्भोग करने पर पुरुष को तृप्ति नहीं मिलती हो; अपने रूप, लावण्य, सुन्दरता, वचन, हाव-भाव, भक्ति एवं वशीभूत के कारण पुरुष के हृदय में प्रविष्ट होकर स्वयं तथा पुरुष को भी कामासक्त बना देती है, वही स्त्री वृष्यतमा कहलाती है।
वाजीकरण के योग्य पुरुष (भा.प्र.)
स्त्रीष्वक्षयं मृगयतां वृद्धानाञ्च रिरंसताम् । क्षीणानामल्पशुक्राणां स्त्रीषु क्षीणाश्च ये नराः॥१४॥ विलासिनामर्थवतां रूपयौवनशालिनाम्।
राणां बहुभार्याणां विधिर्वाजीकरो हितः॥१५॥
अर्थात स्त्रिया साथ यथेच्छ सम्भोग करने वाले तथा सम्भोग करने की अधिक इच्छा वाले पुरुष, वृद्ध, क्षीण शरीर वाले, अल्पवीर्य वाले एवं सम्भोग की इच्छा रखने वाले, स्त्रियों के साथ सम्भोग जन्य शुक्रक्षीण वाले, विलासी पुरुषों, धनिकों, रूप तथा यौवन वाली अनेक स्त्रियों के साथ नियमित सम्भोग करने वाले पुरुषों के लिए B feral Gold malt/Capsule आदि वाजीकरण औषधों का प्रयोग उचित है।
वाजीकरण के लिए सक्षम पुरुष की पहचान
(आ.भा.प्र.ग्रंथ)
योषित्प्रसङ्गात्क्षीणानां क्लीबानामल्परेतसाम्।
हिता वाजीकरा योगाः प्रीणयन्ति बलप्रदाः।
एतेऽपि पुष्टदेहानां सेव्याः कालाद्यपेक्षया ॥१६॥
अर्थात अत्यधिक स्त्रियों से सम्भोग करने के कारण क्षीण शुक्र एवं क्षीण शरीर वाले, साध्य नपुंसकों के लिए, अल्प वीर्य वाले पुरुषों के लिए बी फेराल वाजीकरण योग का सेवन करना हितावह है।
 यह वाजीकरण योग शरीर को पुष्ट करता है तथा बलदायक है।
परिपुष्ट शरीर वाले पुरुषों को भी देश – कालादि पर विचार कर वाजीकरण औषधों का सेवन करना चाहिए।
माषद्विदल क्षीरपाक प्रयोग क्या है?…
घृतभृष्टमाषविदलं दुग्धं सिद्धं च शर्करामिश्रम्।
भुक्त्वा सदैव कुरुते तरुणीशतमैथुनं पुरुषः।।१७॥ माष (उड़द) की दाल को यवकुट कर घृतभृष्ट करें। तत: दुग्ध में अच्छी तरह पकाकर खीर बना लें और उसमें यथेच्छ मात्रा में शर्करा डालकर सदा सेवन करना चाहिए।
प्रतिदिन इस खीर का २५० मि.ली. की मात्रा में सेवन करने से शुक्र/वीर्य की वृद्धि होती है और वह पुरुष एक माह में १०० स्त्रियों के साथ मैथुन कर सकता है।
B Feral में मिश्रित शतावरी क्षीरपाक….
शतावरीशृतं क्षीरं प्रपिबेत्सितया युतम्।
रममाणस्य विरतिं मृदुतां याति नेन्द्रियम्॥१८॥
शतावरी पाक बनाने की विधि इस प्रकार है…
शातावर २५ ग्राम, गोदुग्ध ४०० मि.ली., जल १२०० मि.ली. लें। पहले शतावरी का यवकुट करें। तत: एक स्टेनलेस स्टील के पात्र में शतावरी, गोदुग्ध एवं जल मिलाकर मन्दाग्नि पर पाक करें।
 केवल दूध ही शेष रहने पर उक्त दूध को कपड़ा से छान लें और शर्करा मिलाकर सुखोष्ण दुग्ध का पान करें। इस क्षीरपाक को प्रतिदिन सेवन करने से मैथुनशक्ति बढ़ती है तथा सम्भोग काल में पुरुष लिङ्ग शिथिल नहीं होता है।
वाजीकरण के अन्य योग/फार्मूले….
वृद्धशाल्मलीमूल रसपान ….
वृद्धशाल्मलिमूलस्य रसं शर्करया समम्।
प्रयोगादस्य सप्ताहाज्जायते रेतसोऽम्बुधिः॥१९॥
पुराने सेमलवृक्ष के मूलत्वक् को कूट-पीसकर स्वरस निकालें और उसमें १० ग्राम चीनी मिलाकर प्रतिदिन प्रात: पीने से १ सप्ताह में ही शुक्र की अत्यधिक वृद्धि होती है।
इसे रेतसोऽम्बुधि =यानि शुक्र का समुद्र कहते हैं। प्रतिदिन १० मि.ली. स्वरस का पान करना चाहिए।
लघुशाल्मलीमूल प्रयोग…
लघुशाल्मलिमूलेन तालमूलीं सुचूर्णिताम्।
 सर्पिषा पयसा पीत्वा रतौ चटकवद्भवेत्॥२०॥ सैन्धवलक इसी प्रका बकरे उबाल निकाल प्रमदाओ
छोटे (२-३ वर्ष के) शाल्मलीमूल (जो २ हाथ लम्बा हो) को लेकर छोटे-छोटे टुकड़े कर सुखा लें। अब यह शुष्क सेमल मुशली (शाल्मलीमूल) १०० ग्राम, श्वेतमुशली १०० ग्राम तथा मिश्री चूर्ण १०० ग्राम लें। इन तीनों द्रव्यों का सूक्ष्म चूर्ण कर काचपात्र में संग्रहीत करें।
इस चूर्ण का ५ ग्राम की मात्रा में गोघृत के साथ लेहन (चाट) कर ऊपर से चीनी युक्त सुखोष्ण गोदुग्ध पियें। ऐसा प्रतिदिन करना चाहिए । १-२ सप्ताह तक सेवन करने पर वह पुरुष चटक (गौरैया-पक्षी) जैसा मैथुन कर्म करने लगता है। इसमें थोड़ा भी सन्देह नहीं है।
विदारीकन्द चूर्ण प्रयोग (चक्रदत्त ग्रंथ से)
विदारीकन्दचूर्णञ्च घृतेन पयसा पिबेत्।
 उदुम्बररसेनैव वृद्धोऽपि तरुणायते।।२१॥
विदारीकन्दचूर्ण ३ ग्राम, मिश्रीचूर्ण ३ ग्राम, गोघृत ५ ग्राम तथा गोदुग्ध २५० मि.ली. लें।
 विदारीकन्दचूर्ण में मि मिलाकर गोघृत के साथ चाटें और ऊपर से चीनी मिलाया हुआ सुखोष्णदूध पियें। अथवा उदुम्बरत्वक्स्वरस या क्वाथ ५०  मि.ली. के साथ अनुपान रूप में प्रयोग करने से १ सप्ताह में ही वृद्ध पुरुष भी तरुण (युवा) पुरुष के जैसा सम्भोग में समर्थ हो जाता है। अर्थात् वृद्ध भी जवान हो जाता है।
आमलास्वरस भावित आमलाचूर्ण प्रयोग…
सप्तधाऽऽमलकीचूर्णमामलक्यम्बुभावितम्।
घृतेन मधुना लीढ्वा पिबेत्क्षीरपलं नरः। वाजीकरणयोगोऽयमुत्तमः परिकीर्तितः॥२२॥
अर्थात आमलाचूर्ण में ताजे आंमले के स्वरस की ७ भावना दें और बाद में सुखा लें और काचपात्र में संग्रहीत करें।
सेवन विधि – प्रतिदिन ३ से ५ ग्राम की मात्रा में विषम मात्रा में मधु-घृत मिलाकर लेहन (चाट) कर ऊपर से मिश्री मिश्रित सुखोष्ण गोदुग्ध पियें। ऐसा प्रतिदिन करने से कामशक्ति प्रतिदिन बढ़ती है तथा यह उत्तम वाजीकरण योग है।
वाजीकरण में अपथ्य यानि त्यागे…
अत्यन्तमुष्णकटुतिक्तकषायमम्लं
क्षारञ्च शाकमथवा लवणाधिकञ्च।
 कामी सदैव रतिमान् वनिताभिलाषी
नो भक्षयेदिति समस्तजनप्रसिद्धिः॥२३॥
अर्थात जो पुरुष कामी हो, हमेशा ही सम्भोग करना चाहता हो, अहर्निश स्त्रियों को चाहने वाला हो, वह पुरुष अतिउष्ण, अतिकटुद्रव्य, अत्यन्तअम्लद्रव्य, अत्यन्तक्षारीयपदार्थ, अत्यन्तलवण तथा अत्यन्तशाक (पत्रशाक) का सेवन नहीं करें। ऐसी मान्यता समस्त जनता में प्रसिद्धि है।
यष्टिमधु चूर्ण (च.द.) इसे Bferal में भी मिश्रित किया है।
कर्ष मधुकचूर्णस्य घृतक्षौद्रसमन्वितम्।
पयोऽनुपानं यो लिह्यान्नित्यवेगः स ना भवेत् ॥३१॥
यष्टिमधुचूर्ण (मुलेठी) १० ग्राम, मधु १० ग्राम एवं गोघृत ५ ग्राम मिलाकर प्रात:- सायं लेहन कर शर्करा मिश्रित सुखोष्ण गोदुग्ध २५० मि.ली. पिलायें । ऐसा १ माह तक सेवन करने से पुरुष प्रतिदिन अनेक स्त्रियों के साथ सम्भोग करने का उत्सुक रहता है।
मांसाहारी पुरुषों हेतु….
 घृतभर्जित बस्ताण्ड प्रयोग – (च.द.)
पिप्पलीलवणोपेतौ बस्ताण्डौ क्षीरसर्पिषा।
साधितौ भक्षयेद्यस्तु स गच्छेत्प्रमदाशतम् ॥२४॥
बकरे के दोनों अण्डकोष को निकालकर उसे जल के साथ उबाल लें। बाद में उन दोनों अण्डों को दबाकर जलीयांश को निकाल दें तथा गोघृत में हल्का लाल होने तक भून लें। उसमें सैन्धवलवण और पिप्पलीचूर्ण मिलाकर प्रतिदिन २-२ अण्डे इसी प्रकार सेवन करें। ऐसा प्रतिदिन सेवन करने से १०० प्रमदाओं के साथ सम्भोग करने की शक्ति हो जाती है।
बाजीकर्ण के लिए अमृतम बी फेराल गोल्ड माल्ट और कैप्सूल एक बेहतरीन असरकारक आयुर्वेदिक ओषधि है। स्थाई आराम हेतु इसे ३ से ६ महीने टीके दूध के साथ सेवन करना हितकारी है। यह ३५ देशी जड़ीबुतियों से निर्मित एक चमत्कारी बाजीकर योग है।
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