समर्पण या आक्रमण दोनों में क्या सही है?..

अमृतमपत्रिका, ग्वालियर द्वारा साभार…
शास्त्रों के मुताबिक शक्तियां तीन ही है।
अध्यात्मिक शक्ति, आदिदैविक और भौतिक।
महत्व तीनों का है। क्योंकि ये सभी ऊर्जावान, शक्तिप्रदाता हैं।
प्रकृति का संतुलन इसी पर निर्भर है।
 शक्ति समर्पण में है-आक्रमण में नहीं। ईश्वर को सन्सार-सृष्टि की शक्ति का घोतक माना जाता है।
क्योंकि वह सन्सार के लिए समर्पित है।
अग्नि,जल, वायु, आकाश और पृथ्वी के द्वारा हमें वो सब देता है, जिसकी हमें जरूरत है।
समपर्ण से बड़ी कोई शक्ति नहीं है। शिव का एक अर्य्ह कल्याण इसलिए भी है कि वे सदा सबका कल्याण करते हैं।
सन्सार का अंत नहीं है कि कितना विशाल या बड़ा है लेकिन ईश्वर अनंत है। वह आदि भी है।
शास्त्रों में सबसे प्रेम करना समर्पण बताया है। आक्रमक आदमी घृणा से भरा होने के कमजोर ही बना रहता है।
भगवान महावीर के अनुसार जब व्यक्ति अंदर से मजबूत, शक्तिशाली होजा है,
तो वह अहिंसक होकर भला करने, समर्पण को योजनाएं बनाने लगता है।
समर्पण की शक्ति अपने आप में सिद्धि है, साधना है, शिव उपासना है।
इसी से मन का मनोबल मजबूत होकर आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
आजकल पुरुषों में कल्याण यानि शिव का भाव मिटने से उसकी इकार शक्ति क्षीण हो रही है।
जब शिव शब्द से छोटी【 इ】की मात्रा हटा दें, तो व्यक्ति शिव से शव हो जाता है।
पुरुष का पुरुषार्थ नष्ट होने लगता है, जिससे उसे हर क्षेत्र बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
स्वास्थ्य हो या समृद्धि के मामले में पिछड़ता ही चला जाता है। वह सदैव खाली हाथ ही रहता है।
ऐसे लोगों की हालत “न खुदा ही मिले, न बिसाले सनम” जैसी हो जाती है।
स्त्री भी शक्ति है-
महिलाओं को शक्ति कहते हैं। सृष्टि रचना में इनका ही विशेष योगदान है।
शक्ति जब शक्त हो जाती है, तो घर-परिवार, सन्सार सब जगह उथल-पुथल मचने लगती है।
शक्ति में भी सारा खेल इकार शक्ति का ही है।
शक्ति से भी जब छोटी 【इ】की मात्रा हटते ही वह शक्त होकर आक्रमक हो जाती है।
फिर समर्पण का भाव नहीं रहता। स्त्री की महानता इसलिए भी है कि वह लंबी प्रतीक्षा कर सकती है, जब कि पुरुष उतावला होता है।
अपने देखा होगा कि जब कोई महिला विधवा हो जाती है, तो पुनः घर नहीं बसाती।
जब कि पुरुष कुछ समय बाद दूसरा विवाह करने को आतुर रहता है।
स्त्री कभी भी पहल नहीं करती। बिना क्रिया के खींचना, बिना क्रिया के आकर्षित करना,
निगाह से निवेदन, नम्रता आदि के कारण श्रीमद्भागवत गीता में स्त्री को अकरम कहा गया है।
स्त्री पुकारती अवश्य है, लेकिन आवाज कभी नहीं देती। बिना कहे, बोले निमंत्रण देती है। निषेध नारी की विशेषता है।
स्त्री सदैव सत्य का साथ पर भरोसा करती है। यही उसकी शक्ति है।
शिव पुराण में स्त्री को ही सत्यम-शिवम-सुन्दरम का रूप बताया है। तीनों ही शक्ति का पर्याय है।
पुरुष झूठा है इसलिए उसे शक्ति कभी नहीं कहा गया। वह स्वार्थी होने से समर्पित नहीं हो सकता।
पुरुष को वीर्यवान कहा गया किंतु शक्तिवान कभी नहीं
 पुरुषार्थ शक्ति, ताकत की वजह से मर्द को शक्तिमान कह सकते हैं।
आज की स्त्री में कुछ हद तक पुरुषों के गुण आ रहे हैं।
वयः अपनी समर्पण की शक्ति का त्याग करने के कारण अवसाद की तरफ जा रही है।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *