Pcod की समस्या आम होने की क्या वजह है ?

  • प्राचीनकाल का लिकोरिया, श्वेत प्रदर, प्राचीन सोमरोग ही आज का पीसीओडी है…जाने-कौनसी आयुर्वेदक जड़ीबूटियों से PCOD ठीक किया जा सकता है।
  • पीसीओडी PCOD या सोमरोग से हो रही हैं नारियों को -55 से अधिक बीमारियां….जाने वे कौन से रोग हैं?
  • महावारी या पीरियड की परेशानी को नजरअंदाज न करें.। आयुर्वेद ग्रन्थों में लगभग 72 स्त्रीरोगों का वर्णन है।
  • सोमरोग की शुरुआत….जब दिनचर्या प्रभावित होने लगे, समझें… शरीर रोगों का अखाड़ा बन रहा है।
  • पीसीओडी की बीमारी.…. नारी के बल को बर्बाद कर बदसूरत बना देती है। इस रोग से नारियों में मर्दों के लक्षण उभरने लगते हैं।
  • आयुर्वेद में इसी पीसीओडी स्त्री रोग को सोमरोग, श्वेत तथा रक्त प्रदर बताया है। ये दर-दर भटकाकर कुरूप एवं दरिद्र बना बना देता है।

पीसीओडी सोमरोग के लक्षण…

  • योनि से रिसाव होना, व्हाइट डिस्चार्ज की शिकायत कम नहीं होती, तब महिलाएं कहती हैं- रास्ते का पत्थर किस्मत ने हमें बना दिया!!
  • लड़कियों में सौंदर्य का बजूद खत्म कर देता है…पीसीओडी के कारण ही मानसिक क्लेश, अशांति, तनाव अर्थात तन-मन की डूबती नाव, योनि के घाव, मुख के ताव, सुंदरता का अभाव, चेहरे के दूषित प्रभाव, तथा सकरात्मक भाव या आत्मसम्मान की कमी से अन्तरात्मा में घमासान ध्यान चलते रहते हैं। इसी विकार की वजह से असँख्य आधि-व्याधि में वृद्धि होने लगती है
  • अतः पीसीओडी जैसे नारी विकारों की वजह एवं कुविचारों की विशालता से शरीर में शिथिलता आना आरम्भ होती है। निगेटिव सोच को ही स्वास्थ्य किताबों में मोह-लोभ-राग-रोग एवं भोग यानी सेक्स से अरुचि का कारण मानते हैं।

आयुर्वेद में पीसीओडी क्या है…

  • आयुर्वेद के 5000 साल पुराने ग्रन्थ में महिलाओं के शरीर को जर्जर करने वाला- सोम रोग बताया है। ग्रन्थ के नाम नींचे दिए गए हैं:
  1. द्रव्यगुण विज्ञान,
  2. भैषज्य रत्नावली,
  3. शंकर निघण्टु,
  4. वंगसेन सहिंता,
  5. भैषज्य सहिंता (गुजराती),
  6. नारायण सहिंता केरल,
  7. ओषधि तंत्र,
  8. रावण सहिंता, अर्क प्रकाश
  9. मारण सहिंता (तंत्र) आदि

पीसीओडी क्या है?….

  • ■ माहवारी की अनियमितता, कम या नहीं होना अथवा कष्ट से होना जिसे आयुर्वेद की भाषा में कष्टार्तव कहा है।
  • ■ श्वेत प्रदर, सफेद पानी, व्हाईट डिस्चार्जट, लिकोरिया और अनियमित मासिक धर्म आदि समस्या ही आज का पीसीओडी यानि सोमरोग है।
  • ये जानकारी सबको है कि नारी कभी हारी नहीं, लेकिन बीमारी के कारण वह कमजोरी का एहसास करने लगी है। पीसीओडी के चलते कम आयु में ही बुढापे के लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
  • सोमरोग या पीसीओएस या पीसीओडी क्या है?…. (What is PCOS or PCOD)
  • वर्तमान समय में नवयुवतियों और महिलाओं के बीच सोमरोग पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम या पीसीओएस (PCOS) एक मेटाबोलिक, हार्मोनल और साइकोसोशल बीमारी है।
  • सोमरोग का समय पर उपचार न होने से उच्च या निम्न रक्तचाप यानि बीपी की समस्या उच्च कोलेस्ट्रॉल, चिंता और अवसाद, स्लीप एपनिया (सोते समय शरीर को पूरी ऑक्सिजन न मिलना), दिल का दौरा, मधुमेह और एंडोमेट्रियल, डिम्बग्रंथि व स्तन कैंसर के लिए कमजोर बना सकता है।

ये तन ही वतन है — मन अमन में बाधक है।

  • जब अच्छा होगा मन तो क्यो आयेगा वमन । बस इतना मन माना कि मनन शुरू प्रत्यन करो कि मन मना न करे।
  • मानने के लिए मन है कि- तनाव दिए बिना मानता ही नही और तनाव तन की नाव डुबो देता है!

मानसिक क्लेश अशांति तनाव आदि…

  • घाव ताव अभाव तथा भाव सम्मान की कमी तथा मोह लोभ राग रोग का कारण बनते हैं।
  • कम खाओ गम खाओ वाली विचारधारा विविध विकारों का विनाश करने में सहायक है। मन में अमन और जीवन में चमन चाहिए, तो परमात्मा प्रदत प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करें एवं असरकारक अमृतम आयुर्वेदिक औषधि नारी सौंदर्य माल्ट का नियमित सेवन करें

तन को पतन से बचाने हेतु उपयोगी है —

  • NARI SOUNDARY Malt/ नारी सौंदर्य माल्ट मैं पूर्ण प्राकृतिक 20 से अधिक गुणकारी वनस्पति जड़ी बूटी रस औषधियों का मिश्रण है, जो अनेक आधि – व्याधियों का नाशक है।
  • पीसीओडी/PCOD सोमरोग, श्वेत प्रदर आदि स्त्रीरोग मिटाने में उपयोगी ओषधियाँ नारी सौंदर्य के फायदे …
  1. यह माल्ट हर महीने मासिक धर्म समय पर लाकर तन के रोगों का पतन कर मानसिक शांति देता है
  2. भावनात्मक संतुलन रक्त की शुद्धि त्वचा की कांति शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाकर नई नारियों में नकारात्मक नखरे का नाश कर… तन मन में नजाकत नवीनता नाजुकता मैं वृद्धि करके नारी को बुरी नजर से बचाता है।
  3. अविवाहित अथवा गर्भावस्था से लेकर प्रसव के बाद भी ताउम्र लेते रहने से लंबे समय तक यौवनता प्रदान करता है
  4. विशेष — धर्म सत्कर्म पूजा प्रार्थना प्राणायाम एवं योग ध्यान का अभ्यास औषधि के असर को और अधिक असरकारक बना देता है
  5. नारी सौंदर्य माल्ट में मिश्रित घटक-द्रव्य…
    स्त्री रोगों में उपयोगी दशमूल, धात्री लोह, त्रिवंग भस्म, सिता और कुक्कवाण्डत्व भस्म, हरड़ मुरब्बा आंवला मुरब्बा, किशमिश आदि के मिश्रण मैं इसे और भी असरकारक बना दिया है ताकि नारी सौंदर्य माल्ट
  6. सभी उम्र की महिलाओं को कारगर सिद्ध हो।
  7. यह सब असरदायक औषधियां पीसीओडी से सम्बंधित रोग जैसे- सभी प्रकार के प्रदर, आंतरिक ज्वर का नाश कर परिणाम स्वरूप नवीन रक्त निर्माण एवं डिंब की कमजोरी से गर्भधारण की स्थिति में बाधा को दूर करने में अत्यंत विश्वसनीय हैं
  8. नारी सौंदर्य माल्ट मैं मिलाए गए घटक द्रव्य एवं जड़ी बूटियों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है
  9. अशोक छाल — अशोक के विषय शास्त्रों में कहा गया है कि — अशोकः न शोकोअस्मात्अर्थात इसके कारण स्त्रियों को रोगों से भयभीत नहीं होना चाहिए अशोक छाल समस्त योनि दोषों में उपयोगी है। यह रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर एवं गर्भाशय के विकारों में अत्यंत लाभदायक है। ये कष्टार्तव यानि बहुत तकलीफ के साथ होने वाली माहवारी के समय दर्द कम करता है।
  10. लोध्रा — इससे गर्भाशय की शिथिलता दूर होकर रक्त प्रदर एवं श्वेत प्रदर आदि रोगों से स्त्रियां बची रहती हैं इसके प्रयोग से सन्तान उत्पत्ति की बाधा मिट जाती है। लोध्रा के सेवन से गर्भवती स्त्री का गर्भाशय संकुचित हो जाता है, इस कारण गर्भपात की संभावना क्षीण हो जाती है।
  11. अर्जुन — हृदय के विकार रक्तविकार प्रमेह आदि में लाभकारी है।
  12. दशमूल — दस प्रकार की जड़ी बूटियों के मूल को दशमूल कहते हैं। प्रसूति रोग की यहां प्रसिद्ध दवा है। नवयौवन काल या जवानी में प्रवेश करने वाली नवयुवतियों नवविवाहिताओं को कष्ट के साथ कम या ज्यादा यह निर्धारित 28 दिन की अवधि में ना हो, छोटे शिशुओं की माताओं को यदि अनियमित मासिक धर्म की शिकायत रहती हो उन महिलाओं के लिए दशमुल अद्भुत औषधि है।
  13. दशमूल क्वाथ मासिक धर्म के समय होने वाले सभी प्रकार के दर्द एवं वात विकार मे उपयोगी है
  14. नागर मोथा — मुस्तयति सम्यक हन्ति , मुस्त संघाते । महिलाओं में अनेक ज्ञात अज्ञात मासिक धर्म संबंधी रोगों का नाशक यहां मूत्र जनक, आर्तवजनक गर्भाशयोत्तेजक, केशववर्धक एंव कृमिनाशक जड़ीबूटी है।प्राचीन काल से ही गर्भाशय की बीमारियों में नागरमोथा का व्यवहार वैद्य गण करते आ रहे हैं। इसे 5000 साल से गर्भवती स्त्री को विशेष रूप से दिया जाता रहा है।
  15. भुई आंवला — मलेरिया यकृत प्लीहा वृद्धि दाह मूत्र मार्ग के रोग रक्त विकारों में उपयोगी है।
  16. शतावर — शातेन आवृणोति इति। अर्थात इसके मूल में अनेक शाखाएं होती हैं। महाशतावरी मेध्या ह्दया वृष्या रसायनी। शतावरी महिलाओं के हृदय के लिए हितकारी एवं सुरक्षित रसायन है धारणा शक्ति कारक है। प्रसूता स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि करता है
  17. गोखरू — जिन महिलाओं को दुर्गंध युक्त और गंदला मूत्र आता हो, उनके लिए यह विशेष उपयोगी है। गोखरू का मूत्र जनन धर्म अतिउत्तम होता है। महिलाओं में काम शक्ति (सेक्स पावर) का हास तथा अपने आप पेशाब छूट जाने जैसे मूत्र विकार नाश करने में उपयोगी है। गोखरू मूत्र त्याग के समय जलन नहीं होने देता प्रसूति रोग में हितकर।
  18. आंवला — आमलते घारयति शरीरम् वा रसायन गुणान् । विटामिन सी से भरपूर रसायन गुणों का भंडार है प्रकोप जन्य अत्यार्तव मैं बहुत उपयोगी है। आँवला एक बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट फल है।
  19. हरड़ — विजया सर्वरोगेषु। हरड़ हर लेती है सर्व रोग। आरोग्यदाता परम हितकारी है। पुराने, जिद्दी उदर रोगों के लिए यह अमृत है। शरीर के समस्त दोषों का नाश करना इसका मुख्य गुण है। हरित् रोगान् मलान् इति हरीतकी ! अष्टाङ्ग ह्रदय, चरक सहिंता में कहा गया है कि- पेट की बीमारी ही सब विकारों की जननी है। हरड़ रोगों का हरण करती है। यह उदर से मल विसर्जन द्वारा रोगों को शरीर से निकाल सकती है और आंतों सहित पेट की शिथिल इंद्रियों को क्रियाशील बनाती है
  20. अमृतम गुलकंद — अम्लपित्त, पित्तदोष, देह की गर्माहट एवं कब्ज नाशक! गुलाब के पुष्पों से निर्मित गुलकंद त्वचा का रंग साफ रख यौवनता प्रदान करती है। गुलकंद तन-मन में अमन शांति देता है! स्त्रियों के मासिक धर्म में होने वाले अधिक रक्त स्त्राव रोकता है तथा गर्भाशय की शुद्धि करता है! नारी सौंदर्य माल्ट में मिश्रित गुलकंद गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी है
  21. किशमिश — रक्त वृद्धि कारक पाचन मल त्याग मैं सहायक आतो की गति व क्रियाशीलता में वृद्धि दायक गैस पेशावा पेट की जलन रक्त शुद्धि बवासीर फेफड़ों की कमजोरी वमन अपरा आदि हृदय रोगों में उपयोगी
  22. ब्राम्ही — गर्भधारण होते ही गर्भवती स्त्रियां इसका उपयोग करें तो संतान प्रखर सिद्धि बुद्धि वाली होती है सिर दर्द चक्कर आना जी मिचलाना नींद ना आना चिंता मगन रहना आदि अप्राकृतिक रोगों में ब्राम्ही सिद्ध औषधि है मानसिक विकारों को क्षय करती है
  23. चतुर्जात — दालचीनी छोटी इलायची तेज पत्र तथा नागकेशर इन चारों मसाले का योग मिश्रण चतुर्जात कहलाता है जात का अर्थ सुगंध होने से महिलाओं के लिए अत्यंत लाभकारी है त्रिकटु सोंठ काली मिर्च एवं पिप्पली इन तीनों के मिश्रण त्रिकुट योग है जो तन की तासीर को त्रिदोष रहित बनाती है। मुंह सूखना हाथ पांव आदि अवयव ठंडे पड़ जाना चक्कर आना पसीना अधिक आना खांसी श्वास छाती तथा पसली का दर्द तंद्रा और सिरदर्द युक्त सत्रिपातज्वर सूतिका ज्वर और शोथ रोग में इसके प्रयोग से अच्छा लाभ होता है।
  24. क्या अधिक लगना रक्त की कमी पेट व संपूर्ण अंग में दर्द होना सूजन अन्न से अरुचि आदि लक्षण प्रसव के बाद कमजोरी और थकान आना प्रसव के बाद प्रसूता स्त्री के लिए स्वाभाविक बात है।
  25. बच्चा पैदा होने के बाद पेट में दूषित रक्त आदि रहने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिससे दूध भी दूषित हो जाता है इसका बुरा प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य पर होता है प्राचीन काल में प्रसूता स्त्री को 1 माह तक निरंतर दशमूल काथ अवश्य दिया जाता था ताकि जच्चा बच्चा स्वस्थ रहें।
  26. शिलाजीत — निदाते धर्मसन्तप्ता धातुसारं धराधराः । पर्वतों पर गर्मी में जो धातुओं का सार पिघल कर पत्थरों से निकलता है उसे शिलाजीत कहते हैं योग वाही कफ प्रमेह पथरी शकरा श्वासबादी पाण्डुरोग उन्माद बबासीर शरीर की आंतरिक व भारी कमजोरी आदि अनेक रोगों में अत्यंत लाभकारी है
  27. कुक्कुटाण्डत्व्क भस्म — स्त्रियों में रजोविकार यथा प्रदर सोमरोग आदि नष्ट हो जाते हैं इसके प्रयोग से प्रसव के बाद स्त्रियों की कमजोरी दूर होती है
  28. धात्री लौह — आंबले का चूर्ण लोह भस्म मुलेठी चूर्ण को गिलोय स्वरस को भावना देकर इसे निर्मित किया जाता है जो महिलाएं थोड़े से श्रम से थक जाती हैं या जिनमें सदा आलस्य भरा रहता है काम में मन ना लगना सिर में भारीपन रहना स्वभाव चिड़चिड़ा होना आदि रोगों में गायनो की माल्ट विशेष उपयोगी है
  29. गायनो की माल्ट शरीर के वर्ण को अच्छा बनाती है यह गर्भाशय को संकोचक है मूत्रवरोध अश्मरी आर्तवविकार अनार्तव शोधयुक्त विकार नाशक इससे गर्भाशय की शुद्धि होती हैं।
    1. पीसीओडी/सोमरोग की समस्या का अंत-तुरन्त…
  30. नारीसौन्दर्य माल्ट एवं कैप्सूल प्राकृतिक जड़ीबूटियों, आयरन, मिनरल, विटामिन “सी” से भरपूर ओषधि है। इसका नियमित सेवन इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक है।
  31. लिवर की दिक्कतें दूर कर मेटाबॉलिज्म करेक्ट करने में विश्शेष कारगर है।
  32. भूख को सन्तुलित करता है अर्थात अगर भूख कम लगती है, तो बढ़ाता है और अधिक लगती है, बेलेंस बनाकर पाचनतंत्र सुधारता है।
  33. पीसीओडी, सोमरोग, श्वेतप्रदर, लिकोरिया आदि नारी रोगों के कारण उत्पन्न खून की कमी/एनीमिया की कमी दूर करे।
  34. मन को चमन बनाए — नारी सौंदर्य माल्ट
  35. मैं मिश्रित यह औषधि परिणाम शूल खाने के बाद पेट में दर्द होना पंक्ति शूल भोजन पचने के समय पेट में दर्द होना अजीर्ण अम्ल पित्त कब्ज गले में जलन खट्टी डकार आना आदि पैत्तिक लोगों में बहुत शीघ्र लाभ करता है इसके सेवन से पाचन विकार अच्छा होता है।
  36. नेत्रों की ज्योति बढ़ाने में सहायक है। बढ़ती है अंग्रेजी दवाओं के दुष्प्रभाव व दाह दर्द के दमन से उत्पन्न नारियों की नाड़ी दोष तथा वात पित्त कफ पित्त जन्य विकार दूर करने में सहायक है इससे जीवनीय शक्ति चमत्कारी रूप से बढ़ती है
  37. नारी सौंदर्य माल्ट
  38. से योनि रोग योनि दहा सब प्रकार के प्रदर रक्त श्वेत नीला काला व पीला योनि स्राव योनिक्षत बादी तथा खूनी बवासीर अतिसार दस्त मैं खून आना क्रमी और खूनी आंव जैसे रोग नष्ट होते हैं जो स्त्रियों में अनेक प्रकार के रोगों का नाश करता है
  39. नाजुक नारी — नारी रोगों में जब गर्भाशय डिंबकोष या प्रजनन संस्थान किसी कारणवश विकास ग्रस्त ने से ऋतुचक्र बिगड़ जाता है तब स्त्रियों को अनेक प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोग कष्ट पहुंचाने लगते हैं जैसे —
  40. प्रजनन संस्थान के विकार(Female reproductive system Disorder ) श्वेत प्रदर रक्त प्रदर योनि में शुष्क फुंसिया जख्म गर्भाशय की सूजन शिथिलता गर्भ स्त्राव या गर्भपात मूत्र नलिकाओं बस्ती प्रदेश बेटवा नलों में सूजन तथा दर्द व बांझपन (infertility) आदि
  41. मासिक धर्म संबंधी विकार ( Menstrual Disorder) बदबू युक्त या कष्ट के साथ स्त्राव ऋतु स्त्राव का देर से होना।
  42. समय से पहले या समय के बाद में होना महीने मैं कई बार ऋतु स्त्राव होना कई कई दिनों तक होते रहना यह संपूर्ण ऋतु चक्र ना होना अचानक बंद हो जाना।
  43. ऋतु स्त्राव से पहले पेडु नलो हाथों पैरों एवं शरीर में भारी दर्द होना मांस पिंड या छिछले गिरना
  44. प्राकृतिक एवं स्वास्थ्य मासिक स्त्राव का लक्षण मासिक धर्म के 26 या 27 दिन कुछ बूंदों का स्त्राव तीसरे दिन प्रथम दिन की तरह और चौथे दिन बंद इसके विपरीत ऋतु स्त्राव रोग है।
  45. वैज्ञानिक विकास के परिणाम स्वरुप पर्यावरण प्रदूषण एवं आधुनिक जीवन शैली की अंधी दौड़ में संभव है कि प्रति हजार एक दो स्त्रियों को ही प्राकृतिक मासिक स्टाफ समय पर सही तरीके से होता हो
  46. मानसिक व नाड़ी संस्थान के विकार (Nervous & Mental Disorder ) — उन्माद भय भ्रम भ्रान्ति अपस्मार मानसिक उत्तेजना चिड़चिड़ापन अकारण थकावट हाफना कमजोरी चिंता क्रोध अप आज कमर दर्द नींद ना आना उदासीनता आदि।
  47. पाचन संस्थान के विकार(Disorder of Digestive system ) अग्निमान्द्य अजीर्ण अपरा अम्ल पित्त खट्टी डकारे भोजन में अरुचि आदि
  48. पोषण संबंधी विकार(Neutritional Disorder) कमजोरी निस्तेज रक्ताल्पता योनि या गर्भाशय डांस आदि तथा बार-बार गर्भपात होना
  49. ठंडापन (Frigidity) सहवास के प्रति अरुचि शीतलता आलस्य आदि
  50. महिलाओं नवयोवनाओ बालाओ के मासिक धर्म और उपयुक्त रोगों को दूर करके नारियों के नवीन निर्माण में नारी सौंदर्य माल्ट
  51. पूर्णता सक्षम है
  52. जाम नाडियों को मुलायम कर वात विकार का
  53. नाश करता है एवं कब्जियत हो नहीं होने देता।
  54. निवेदन: अपने तन पर तरस खाएं-महिलाएं…
  55. ये तन ही वतन है। इसे पतन से बचकर इसमें अमन की अमरबेल का वृक्षारोपण करें। दूषित तन हो या मन यह….अमन यानि तन्दरूस्ती एवं शांति में बाधक है!कहते हैं कि- मन के मत से, मत चलियो…ये जीते-जी मरवा देगा।
  56. कहते हैं कि जब अच्छा होगा मन, तो…..क्यों आयेगा वमन? बस, इतना मन को मनाने के लिए महादेव-महाकाल मनन-मंथन शुरू कर दे।
  57. प्रत्यन करो कि- मन….मन्त्र जाप हेतु मना न करे। ये चिंतन बहुत मायने रखता है। मन की ज्यादा न माने। क्योंकि मन है कि- तनाव दिए बिना मानता ही नही और तनाव से तन्मयता-एकाग्रता भंग होकर तन की नाव डुबने लगती है। मान्यता है कि मन में मलिनता विचारों से आती है।
  58. पुराना एक गीत से जीवन को जीत सकते हैं-
  59. अरे मन..समझ-समझ पग धरिये।
  60. इस जीवन में कोई न अपना, परछाईं से डरिये।रिश्ते-नाते, कुटुम्ब कबीला, इनसे मोह न रखिये।ध्यान धरें, तो पावे सब कोई…
  61. अतः कम खाओ-गम खाओ… वाली विचारधारा विविध विकारों का विनाश करने में सहायक है। मन में अमन तथा जीवन में चमन चाहिए, तो परमात्मा प्रदत प्राकृतिक परिपाटियों को पहचान कर उन्हें अपनाएं।
  62. विशेष आध्यात्मिक उपाय — धर्म सत्कर्म पूजा प्रार्थना प्राणायाम एवं योग ध्यान का अभ्यास औषधि के असर को और अधिक असरकारक बना देता है।
  63. बहुत से लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि नारिसौन्दर्य मॉल्ट और कैप्सूल में क्या अंतर है? कौन सा अधिक शक्तिशाली है?
  64. जाने माल्ट क्या है?…
  65. माल्ट या अवलेह मूल रूप से तरल औषधियों से निर्मित एक आयुर्वेदिक चटनी है
  66. माल्ट निर्माण की प्रक्रिया भी बहुत जटिल है। इम्ने डाले गए सभी मुरब्बे, गुलकन्द को पीसकर 15 से 20 दिन तक देशी घी मिलाकर पकाते हैं।
  67. नारिसौन्दर्य माल्ट में सोमरोग यानि पीसीओडी नाशक ओषधियाँ जसए- शतावर, मुलेठी अशोक छाल, त्रिफला, दशमूल आदि 20 जड़ीबूटियों का काढ़ा मिलाकर 10 से 15 दिन तक पुनः कम आंच में सिकाई की जाती है।
  68. जब माल्ट पूरी तरह पक जाता है, तब इसमें त्रिकटु, चतुरजात, कालीमिर्च, सौंठ, पिप्पली, नागकेशर, हरिद्रा आदि मसालों के पॉवडर का मिश्रण कर, 10 से 12 के लिए ठंडा होने हेतु छोड़ देते है। माल्ट जब पूर्णतः तैयार हो जाता है, तो छानकर पैक किया जाता है।
  69. आयुर्वेद के अनुसार वात-पित्त-कफ को सन्तुलित करने या त्रिदोष को सम करने के लिए अनेकों मुरब्बों का उल्लेख है। जैसे- आँवला मुरब्बा,
  70. कुष्मांडअवलेह, हरीतकी मुरब्बा, गुलकन्द, गाजर मुरब्बा, गीला एलोवेरा पद्मकाष्ट, इत्यादि तरल-गीले पदार्थों या औषधियों को कैप्सूल में समावेश करना सम्भव नहीं है।
  71. यह सब तरल पदार्थ शरीर में अनेक मलादि विकार को फुलाकर लैट्रिन के माध्यम से बाहर निकाल फेंकते हैं। और कैप्सूल इन बीमारियों को जड़ से ठीक करने में उपयोगी है।
  72. कैप्सूल क्यों जरूरी है और उससे लाभ…
  73. नारिसौन्दर्य माल्ट एवं कैप्सूल दोनों का ही अपना अलग महत्व है। पुराने समय में वैद्य गण आयुर्वेदिक अवलेह (माल्ट) तथा हाथ की बनी हुई चूर्ण या पॉवडर की पूड़ियाँ मरीजों को देकर इलाज करते थे।
  74. यह दवाएं कम से कम एक से 2 महीने तक खानी पड़ती थीं, ताकि मरीज पूर्णतः निरोगी हो सके।
  75. वर्तमान में उन्हीं ओषधि पुड़ियों को आयुर्वेद सारः सहिंता, भावप्रकाश निघण्टु, रस-तन्त्र सार, आयुर्वेद चंद्रोदय, द्रव्यगुण विज्ञान आदि 5000 साल प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार कैप्सूल के रूप में प्रस्तुत किया है।
  76. नारिसौन्दर्य कैप्सूल आयुर्वेद की जड़ीबूटियों के घनसत्व अर्क, एक्सट्रेक्ट, रस भस्म आदि दवाओं को महीन होने तक खरल कर, रसादि औषधियों की भावना देकर मुख्य रूप से बनाया जाता है।
  77. अतः नारिसौन्दर्य माल्ट एवं कैप्सूल दोनों को एक साथ लिया जावे, तो तत्काल अपना शुभपरिणाम दिखाती हैं। जिन्हें अलग-अलग भी लिया जा सकता है। रिजल्ट एकल ओषधि यानि माल्ट या कैप्सूल दोनों में से कोई एक लेकर भी पा सकते हैं। लेकिन कुछ अधिक समय तक धैर्य रखना पड़ता है।
  78. आजकल जिन महिलाओं को तुरन्त असरकारी दवाएं वे दोनों भी एक साथ ले सकती हैं। अन्यथा माल्ट या कैप्सूल इनमें से कोई भी एक लंबे समय तक उपयोग करें।
  79. कैप्सूल या माल्ट दोनों में से बेहतर क्या है?…
  80. कुछ स्त्रियों को देशी दवाओं, माल्ट आदि के खाने से हीक आती है। किसी के पास दूध आदि का साधन नहीं है। कई तरल या गीली वाली दवाएं पसंद नहीं करती। किसी को माल्ट के वजन की वजह से लाने-ले जाने में दिक्कत होती है।
  81. कहीं बेग चिपचिपा खराब न हो जाये इस भय के कारण भी मॉल्ट उन्हें नापसंद है अथवा जो महिलाएं कामगर या नोकरी करती हैं, वे अकेला नारिसौन्दर्य कैप्सूल का सेवन कर सकती हैं।
  82. पेट की खराबी तथा गन्दगी को बाहर करने में मॉल्ट ज्यादा मुफीद है। पेट साफ रहने से शरीर का नदियां मुलायम बनी रहती हैं।
  83. अगर आप माल्ट या कैप्सूल दोनों में पहले कुछ लेना चाहती हैं, तो शुरुआत कैप्सूल से करें।
  84. हमारी सलाह यही है नारियां दोनों दवाओं का सेवन करें। देखरेख, नियम और लेने की दृष्टि से कैप्सूल आमतौर पर खुराक लेने में थोड़ी आसान एवं अधिक सटीक होती हैं।
  85. अगर स्थाई रूप से स्वस्थ्य-सुन्दर बने रहना चाहते हैं, तो नारी सौंदर्य माल्ट और कैप्सूल को जीवन भर लेते रहें। यह रोगप्रतिरोधक क्षमता अर्थात इम्युनिटी बढ़ाने में बेजोड़ है।
  86. नारिसौन्दर्य माल्ट व कैप्सूल अकेले दवा ही नहीं, यह हर्बल सप्लीमेंट भी है।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *