वात दोष कैसे पनपता है
और जाने-
८८ तरह के वात दोषों का समाधान
शरीर में वात का स्थान है पेट में मौजूद बड़ी आंत। इसलिए वात दोष होने पर कई बार रोगी का पेट फूल जाता है, बार-बार अफरा होता है और
पेट में कड़ापन महसूस होने लगे, तो पक्का मानिए की आप बहुत शीघ्र ही वात दोष से पीड़ित होने वाले हैं।
आयुर्वेद में 88 तरह के वात रोगों का वर्णन है। वात विकारों से बचने के लिए
आँवला मुरब्बा, हरीतकी मुरब्बा, सहजन, रास्ना, दशमूल, शुद्ध गूग्गल, शुद्ध शिलाजीत, वृहत्वात चिंतामणि रस स्वर्णयुक्त, योगेंद्र रस स्वर्णयुक्त, वातगंजकुश रस, रसराज रस स्वर्णयुक्त, मुलेठी, अश्वगंधा, शतावरी, आदि सर्वश्रेष्ठ वातनाशक ओषधियाँ हैं,
जो ऑर्थराइटिस, पैरालिसिस, जॉइंट पेन,
थायराइड जैसी बीमारियों को जड़-मूल से
नाश करने की क्षमता रखती हैं।
वात दोष होने से पहले के लक्षण-
लगातार पेट खराब होना, कब्ज होना, पेट का कड़ापन के अलावा मुंह से लार टपकना, भूख न लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, थका हुआ महसूस करना, शरीर का कांपना, पेट में गुड़गुड़ आदि भी वात दोष के ही लक्षण हैं।
सावधानी –
【】असाध्य वात रोगों से पीड़ित मरीजों को कड़वी चीजों के उपयोग से बचना चाहिए।
【】सुबह खाली पेट आयुर्वेदिक मुरब्बे जैसे सेव, आँवला, हरड़ मुरब्बा घर का बना हुआ केमिकल रहित का सेवन करना अत्यंत लाभप्रद रहता है।
【】सुबह उठते ही 3 से 4 गिलास गुनगुना जल खाली पेट पीना जरूरी है।
【】रात्रि में दही, छाछ, फल का उपयोग कतई न करें।
【】प्रतिदिन पूरे शरीर में तेल की मालिश करें
इसके लिए तिल्ली का तेल, बादाम तेल,
जैतून तेल, चन्दनबलालक्षादि तेल, या दर्द नाशक
ऑर्थोकी पेन ऑयल पूरे शरीर में मलकर
गर्म गुनगुने जल में थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर
स्नान करना चाहिए।
【】गेंदे के फूल का काढ़ा बनाकर इस काढ़े से नहाने पर भी वात दोष से तुरन्त छुटकारा मिलता है।
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