- भारत में सोने का सबसे ज्यादा उपभोग तमिलनाडु के कीलडी गांव में सोना होता रहा है। तमिलनाडु में स्वर्ण पहनने का इतिहास तीन हजार साल पुराना; तब इसे गहना नहीं, इलाज के लिए पहनते थे।
- कीलाडी दक्षिण तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में एक छोटा सा गांव है । यह मंदिर शहर मदुरै से लगभग 12 किमी दक्षिण-पूर्व में है और वैगई नदी के किनारे स्थित है।
कर्नाटक में है सोने का भण्डार है
- कर्नाटक को ‘सोने की भूमि’ कहते हैं, क्योंकि यहां देश का सबसे ज्यादा करीब 80% सोना उत्पादित होता है।
- देश की सबसे बड़ी हट्टी गोल्ड माइन भी कर्नाटक राज्य में ही हैं। जबकि केरल में देश का सबसे सस्ता सोना मिलता है। यहां 22 कैरेट सोने का भाव 72 हजार रु. प्रति 10 ग्राम है। लेकिन, तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां सोने का सबसे ज्यादा उपभोग होता है।
- तमिलनाडु की महिलाएं सबसे ज्यादा सोना पहनती हैं। शादियों में प्रचलित परंपरा के तहत बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी सोना पहनते हैं।
- यहां देशभर में सबसे ज्यादा 30% लोग सोने में निवेश करते हैं। यहां स्वर्ण आभूषणों का इतिहास 3 हजार साल से भी पुराना है, लेकिन उस वक्त लोग इसे सौंदर्य या प्रतिष्ठा के रूप में नहीं, बल्कि चिकित्सा के लिए पहनते थे।
शव जिन घड़ों में दफनाते थे, उनमें भी मिला सोना
- प्राचीन कालीन साहित्य शिल्पादिकरम, मणिमेघलई और टोलकप्यम में इसका जिक्र है।
- तमिलनाडु में भी सोना पहनने की परंपरा की शुरुआत दो गांव कीलडी और आदिचत्रलूर से हुई।
- कीलडी वैगई नदी के किनारे मदुरै के नजदीक है, जबकि आदिचत्रलूर कोरकाई बंदरगाह से 25 किमी दूर ताम्रवर्णी नदी के किनारे है।
- पुड्डुचेरी विश्वविवद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. राजन बताते हैं कि कीलडी में सोने का इतिहास हड़प्पा संस्कृति से जुड़ा है।
- जबकि आदिचन्नलूर में मिले स्वर्ण आभूषण को ती पत्ती कह जाता है। यहां शवों को जिन घड़ों में दफन किया जाता था, उनमें नेती पत्ती मिलते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि उस वक्त अमीरों से लेकर गरीब तक सोने का उपभोग करता था।
तमिलनाडु का कीलडी के संग्रहालय
- तमिलनाडु में सोना पहनने की परंपरा पांड्य राजाओं के समय से है, तब लोग दो वजहों से सोना पहनते थे। पहला- व्यापार तो दूसरा- आयुर्वेद के लिए। दूसरा बचत हेतु।
- दक्षिण के विषुवत रेखा के नजदीक होने व स्वर्ण आभूषणों के साथ ही सोने के मेडिशनल उपयोग के कई प्रमाण हैं।
- उत्तर भारत के आयुर्वेद से अलग दक्षिण में सिद्ध चिकित्सा पद्धति है, इसमें भी सोने का उल्लेख प्रमुखता है। इसे अगस्त्य ऋषि तथा सिद्ध चिकित्सा में सोने को शीतलता से जोड़ा गया है।
- इसलिए 3. हजार साल पहले इसे जब पहनाते थे, तो चांदी के साथ मिलाकर आभूषण तैयार होता था, ताकि अधिक सर्दी और गर्मी में दोनों धातुएं शरीर की मैग्नेटिक फील्ड पर बराबर काम करती थीं।
रोग होने पर पहनते हैं स्वर्णाभूषण
- आज भी यही परंपरा है। शरीर के जिस भाग में तकलीफ होती है, वहां सोना पहना देते हैं। सोना हमारी जिंदगी से जुड़ा हुआ है।
- कोई भी आयोजन हो, धार्मिक या सामाजिक, सोने के बिना नहीं हो सकता। हम सोने के दान की परंपरा सदियों से निभाते आ रहे हैं।
- कीलडी में बाजार (सराफा ) में छोटी-बड़ी 5 हजार दुकानें हैं, जिनमें ज्यादातर ऐसी हैं, जो 100 से 200 साल पुरानी हैं।
मदुरै में मंदिरों का अंबार , जहां बार बार जाएंगे
- करपागा विनयगर मंदिर तमिलनाडु के सबसे पुराने गुफा मंदिरों (चट्टान को काटकर बनाया गया) में से एक है और पिल्लयारपट्टी में स्थित है, जो पुदुक्कोट्टई और कराईकुडी के बीच है।
- पिल्लयारपट्टी मदुरै से 71 किमी और कराईकुडी से 12 किमी दूर थिरुपथुर – कराईकुडी राज्य राजमार्ग पर स्थित है।
- गांव को इसका नाम मंदिर से मिला है। यहां भगवान विनयगा 2 हाथों से प्रकट होते हैं, जबकि अन्य स्थानों पर वे 4 हाथों से दिखते हैं।
- छह फीट के पीठासीन देवता को करपागा विनयगर को वलमपुरी मुद्रा कहा जाता है।
- मंदिर के भीतर 15 से अधिक शिलालेख पाए गए हैं, जो मंदिर की आयु स्थापित करने में मदद करते हैं।
- अगस्त-सितंबर के दौरान विनयगर चतुर्थी उत्सव मंदिर का मुख्य त्योहार है।
- अन्य स्थानों से अलग, तीन लिंगम थिरुवीसर, मरुधेसर और सेंचदेश्वर और तीन देवियाँ शिवगामी अम्मन, वडामलार मंगईअम्मन और सौंदरा नयागियाम्मन सभी एक ही स्थान पर एक साथ प्रकट होते हैं।
- करीब 20साल पहले अमृतम परिवार ने इस तीर्थ का दर्शन किया था। पास में ही भगवान कार्तिकेय के 6 मुखों में से एक मुख तिरुचित्तूर मंदिर के दर्शन करें।
- मदुरै के आसपास 1600 करीब प्राचीन मंदिर होंगे।
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