- द्रव्यगुण विज्ञान की अनुपाण विधि से कोई भी ओषधि अमृत है और जहर भी। अगर आपको सेवन विधि ज्ञात नहीं है तो।
- सफेद मूसली खाने से पहले आपका पाचन संस्थान मजबूत होना जरूरी है। क्योंकि अश्वगंधा, शतावरी, कोंच बीज, विदारीकंद, शिलाजीत आदि यौन वर्धक ओषधियां बाजीकारक होने से बहुत गरिष्ठ होती हैं और आसानी से नहीं पचती।
- पाचन शक्ति मजबूत हो, तो ये सभी चूर्ण एक दिन में 3 से 5 ग्राम तक केवल दूध के साथ सुबह खाली पेट और रात्रि भोजन से पूर्व कम से कम 4 महीने तक लेना हितकारी रहता है।
- मूसली दो प्रकार की होती है। काली मूसली और सफेद मूसली दोनों ही सप्तधातु वर्धक हैं और मूत्रमार्ग में इसकी विशेष क्रिया होती है। सफेद मूसली गुडूच्यादिवर्गः की ओषधि है।
सफेद मूसली के विभिन्न नाम
- संस्कृत में श्वेत मुशली, मुसली। हिंदी में सफेद मुशली, खैरूव मराठी में-सफेद मुसली, पाटली मुसली। गुजराती में – घोली मुसली ता०तन्निरविट्टगं । ते०-सल्लोगडडा। मलयालम०- शेडेबेली। अरबी, फा० शकाकुले हिन्दी। ले० – Asparagus adscendens Roxb. ( एस्पेरेगस् एड्स्केन्डेन्स र।क्स.)। Fam. Liliaceae (लिलिएसी) ।
- सफेद मूसली पश्चिम हिमालय, पञ्जाब, गुजरात, रतलाम, बम्बई, रुहेलखण्ड, अवध तथा मध्य भारत में पाया जाता है। उत्तम सफेद मुसली मप्र के रतलाम से आती है।
सफेद मूसली का क्षुप
- स्वावलम्बी तथा कांटेदार होता है। शाखाएँ – झुकी हुई, आरोहणशील, धूसर वर्ण की नालीदार और कोणयुक्त होती हैं। प्रधान कांड-लम्बा, ऊँचा, मोटा, गोल और चिकना होता है। कांटे-आधे से पौन इंच लम्बे, सीधे और मोटे होते हैं। पत्राभास काण्ड आधे से दो इश लम्बे, केशाकार, गोल ६ – २० की संख्या में एक साथ गुच्छबद्ध रहते हैं। –
- मूलस्तम्भ से श्वेत, कन्दसदृश तथा लम्बगोल मूलों का गुच्छा निकला रहता है। छाल निकालकर सुखाई हुई सफेद, झुर्रीदार, २-२३ इन्च लम्बी, सूजा के इतनी मोटी, कुछ ऐंठी हुई, कड़ी तथा आसानी से टूटने वाली, जड़ें बाजार में मिलती हैं।
- अधिक से अधिक यह १ इन्च मोटी रहती है। इसका स्वाद लबाबदार किन्तु अच्छा रहता है । इसे पानी में डालने से यह फूलकर शतावरी जैसी दिखलाई देती है।
सफेद मूसली रासायनिक सङ्गठन –
- इसके जल में घुलनशील भाग ७७३%, जल ६% तथा सीठी १२३% रहती है। जलविलेय भाग में मांसल पदार्थ रहता है । इसमें पिष्ट बिल्कुल नहीं रहता। सूखी हुई जड़ में ३३% राख रहती है।
सफेद मूसली के गुण, लाभ और प्रयोग –
- यह शीत, लघु, स्नेहन एवं उत्तम बल्य है। इसमें स्टार्च न होने के कारण इसको मधुमेह में दिया जा सकता है। सभी प्रकार के दौर्बल्य में १ तोला चूर्ण १ तोला चीनी मिलाकर दूध के साथ देते हैं।
- नपुंसकता, शुक्रमेह, प्रदर, अतिसार तथा प्रवाहिका में सफेद मूसली दूध के साथ देते हैं। यह लिंग को कठोर और कड़क बनाने में लाजवाब है। वीर्य, शुक्र रस की वृद्धि करती है।
मात्रा – चूर्ण ३ से 5 ग्राम
- बाजार में सफेद मूसली की जगह हल्की क्वालिटी की शतावरी का चूर्ण बेचा जा रहा है।
- शतावरी के इन कन्दों को कुछ लोग सफेद मुसली मानते हैं तथा पहले जिस सफेद मुसली का वर्णन किया जा चुका है उसे शतावरी भेद मानते हैं। इसका भी उपयोग सफेद मुसली के समान किया जाता है।
सफेद मूसली से नुकसान
- बहुत भारी, गरिष्ठ होने से जल्दी पच नहीं पाती और पेट में ऐंठन, दर्द की समस्या खड़ी कर देती है।
- भैषज्य रत्नाकर ग्रंथ में सफेद मूसली को हमेशा आमला मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा में मिलाकर खाने की सलाह दी है।
- अश्वगंधा, शतावरी, कोंच बीज, विदारीकंद, शिलाजीत आदि यौन वर्धक दवाओं के मिश्रण से निर्मित अवलेह या माल्ट उत्तम है।
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