अच्छे लोग हमेशा दुख से ही क्यों घिरे रहते हैं? इस पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा था?

ईश्वर है या नहीं?
मानसिक तनाव झेल रहे एवं
मेन्टल हेल्थ से परेशान लोगों को यह लेख मार्ग दिखयेगा।
बहुत से बहुत पूजा-पाठ करके भी खुश नहीं हैं, तो कुछ बिना पूजा-अर्चना के भी खुश हैं। यह सवाल अक्सर लोगों के मन में बना रहता है।
जब व्यक्ति द्वेष-दुर्भावना, जलन, कुढ़न से भरकर उसका स्वभाव  रूखा, जीवन सूखा, यंत्रवत, संवेदना रहित हो जाता है, तो उसके अंतःकरण में शुष्कता बढ़ती जाती है। ऐसे लोग दुर्भाग्यशाली हो जाते हैं। इससे ही कालसर्प-पितृदोष निर्मित होता है, जो व्यक्ति के भाग्य को पनपने नहीं देता।

कुछ ऐसा सवाल जो स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से पूछे और रामकृष्ण परमहंस ने उनका जवाब बेहद सहजता के साथ दिया

स्वामी विवेकानंद : मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आपाधापी से भर गया है।

रामकृष्ण परमहंस : गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।

स्वामी विवेकानंद : आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है? 

रामकृष्ण परमहंस : जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो। यह इसे जटिल बना देता है।

जीवन को सिर्फ जियो, फल की आशा छोड़ो।.

स्वामी विवेकानंद : फिर हम हमेशा दु:खी क्यों रहते हैं?

रामकृष्ण परमहंस : परेशान होना तुम्हारी आदत बन गई है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते।

स्वामी विवेकानंद : अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस : हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद : आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस : हां, हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद : समस्याओं से घिरे रहने के कारण हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं?

रामकृष्ण परमहंस : अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद : क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस : सफलता वह पैमाना है, जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.
स्वामी विवेकानंद : कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस : हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद : लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस : जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, ‘मैं ही क्यों?’ जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, ‘मैं ही क्यों?’

स्वामी विवेकानंद : मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूं?

रामकृष्ण परमहंस : बिना किसी अफसोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद : एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं?

रामकृष्ण परमहंस : कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो। जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है।

 यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है। 

मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।

अक्सर लोगों की आदत है जहाँ ट्रैफिक का जैम लगा होता है। अपनी गाड़ी वहीं फंसा कर खड़े हो जाते हैं। 

दूसरा मार्ग नहीं चुनते। दिमाग का भी यही हाल बना लेते हैं। पुरानी बातों, यादों में पृरी शक्ति क्षीण कर डिप्रेसन के शिकार हो जाते हैं। यह आपको सोचना है कि मस्तिष्क को राहत क्या सोचने से मिल रही है। अतः वही सोच-विचार करें, जिससे मन प्रफुल्लित हो सके। 

बीती ताहिं बिसार कर, आगे की सुधि लें।

एक मात्र यही मूलमंत्र आपको स्वस्थ्य व जीवित रख सकता है। 

स्वामी विवेकानंद जीवनी से साभार-

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