सिरदर्द की समस्या आखिर क्यों होती है?

    • सिरदर्द हमने स्वयं उत्पन्न किया, तो इसे हम ही दूर कर सकते हैं। कहीं न कहीं हमारी जीवनशैली, विचारधारा अनुचित है।
    • सिर संसार का सरदर्द :–मानव शरीर का ढूढ़तम अंग है-सिर। सिरदर्द दवाओं से नहीं मिटेगा…
  • इस सिर ने ही संसार में सिरदर्द बना रखा है। जो सिर कभी सर (गुरु) के आगे नतमस्तक रहता था, अब टीचरों सिर फोड़ने पर उतारू है।
  • देखना एक दिन इस सिर की शातिरता समाप्त कर देगी। आज सिर में लचीलापन नहीं है। जहां हम समझते हैं कि हमने सिर झुका दिया, सचमुच हम एक गलत परिभाषा को मान लेते है। झुकती है गरदन….
  • गरदन शरीर के अन्य अंगों की तरह ही एक अवयव है। गरदन के ऊपर है, सिर और यही हैं। जो न झुकता है और न इसका अंहकार नष्ट होता है।
  • सिर की शातिरता चिंतन और चेतना के बीज मन्त्रों का यही केन्द्र बिन्दु है। कभी चिन्ताओं को अनंत श्रृंखलाओं को निर्मित कर वायु की तरह भटकाता है। तथा सोच के असंख्य द्वारों को एक साथ, इस तरह खोलता रहता है कि मनुष्य की समुची क्रियाशीलता उसी तरह संचालित होने लगती है!
  • सिर ही सदैव सबको भटकाता रहता है। भटकन हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। भटकन की कोई एक दिशा नहीं होती।
  • हमारा भटकाव हो भाग्य बर्बाद करता है – वह परंपराओं से साक्षी होकर उनका मित्र बनता है, तो वही परंपराओं को तोड़ने के लिए कृत संकल्प हो जाता है और विनाश के बादल बनाने लगता है।
  • सारा संसार भटकन के अधीन है। भटकन और परिवर्तन एक क्रम है जो जीवन के समस्त पहलुओं में रचा बसा है।
  • हम भटकन को न अपनी मुठ्ठियों में कैद कर सकते है। और ना ही उसे पतंग की तरह उड़ाकर खेलने का मजा ले सकते है। भटकन से मुक्ति का एक मात्र साधन है-साधना साथ ही ध्यान कहा है!

झुकते वही है जिनमें जान होती है

अकड़ना तो मुर्दो की शान होती है

  • लोग समझते हैं कि झुका कि ठुका लेकिन ऐसा नहीं है। झुकने वाला व्यक्ति झुलसता नहीं सुलझ जाता है। एक गीत के बोल है-
  • तुम्हारे महल चौबारे, यहीं रह जायेगें सारे अकड़ किस बात की प्यारे…
  • अक्कड़ आदमी सदा फक्कड़ रहता है। अकड़, अहंकार की एक सीमा है। झुकने की कोई सीमा नहीं है।
  • अकड़ ही गुरु शिष्य के बीच दीवार की तरह खड़ी है। सिर को थोड़ा झुकाते ही ज्ञान का श्री गणेश हो जाता है।
  • अकड़-अहंकार कभी सपने साकार नहीं होने देता। इसीलिए झुको, जितना झुक सकते हो झुक जाओ।
  • केदारनाथ, हिमालय की पहाड़ियों का नाजारा देखकर लगता है कि आसमान भी झुक रहा है अपने सदगुरु शिव के समक्ष।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *