अरोग्य, धन, प्रसिद्धि, ईश्वरी दाता भगवान सूर्य के प्राचीन रहस्य जानकर हैरान हो जाएंगे।

सूर्य उपासना द्वारा अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हैं। जाने आदित्य देवता की रोचक और विशेष बातें। Amrutam

सूर्य का एक अष्टाक्षर मंत्र 80 दिन में आपकी किस्मत बदल सकता है। जाने कोनसा है वह मंत्र और उसके जाप करने की विधि।

सूर्य के पास है संसार की सारी समस्याओं का समाधान

  • भारतीय संस्कृति में सूर्य का बहुत महत्त्व है। सूर्य को आदि-अनादि काल से देवता के रूप में पूजा गया है
  • प्रातःकालीन उगता सूरज ऐसी लालिमा लिए रहता है कि उसके दर्शन करना सकारात्मक भावनाओं को जन्म देता है।
  • सूर्य की किरणें जीवन के लिए अमृतमयी हैं। इनसे विटामिन-डी का निर्माण शरीर में होता है।
  • पौधे भी प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड व पानी आदि के द्वारा सूर्य के प्रकाश में भोजन बनाते हैं एवं ऑक्सीजन देते हैं।
  • आप जानकार हैरान हो जाएंगे की वृक्ष प्राणियों को जीवित रखते हैं और प्राणी पेड़ों को जिंदा रखते हैं।
  • यदि शरीर को सूर्य का प्रकाश कम मिले, तो शरीर में ‘मेलाटोनिन’ बढ़ जाता है एवं आलस्य, सुस्ती, नींद में वृद्धि हो जाती है।
  • आर्य संस्कृति में आदित्य नाम से तो ग्रीस में भगवान ‘हेलीयोज’ के रूप में। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को सूर्य पूजा में दीक्षित किया। हमारे त्योहार मकर संक्रान्ति, छठ पूजा, पोंगल आदि सूर्य एवं सूर्य के उत्तरायण में आने से संबंधित है।
  • मुल्तान (पाकिस्तान), मोढेड़ा (गुजरात), कोणार्क (ओडिशा), उन्नाव (यूपी), सूर्य पहाड़ (असम), गया (बिहार) मोहना (भिंड मप्र) आदि में सूर्य के भव्य प्राचीन मंदिर हैं।
  • हमारे देश ही नहीं, विदेश में सूर्य, सूर्य उपासना, सूर्य से संबंधित संस्कारों का बहुत महत्त्व है।
  • जापान को उगते सूरज का देश कहा जाता है। वहां के राष्ट्रीय ध्वज में सूर्य का निशान है। वहां के लोग़ प्रातः उठकर सूर्य को झुककर प्रणाम करते हैं।
  • चीन : सूर्य को नमस्कार सहित चाय भेंट की जाती है। इस प्रकार सूर्य का संबंध ऊर्जा व प्रेरणा से है, जो विश्व के हर कोने में स्वीकार्य है।
  • सौर ऊर्जा से ही वर्तमान युग की मानव जाति की ऊर्जा संबंधी और पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
  • आज ग्लोबल वार्मिंग एक समस्या बन गई है। कहीं भारी वर्षा हो रही है, कहीं सूखा पड़ रहा है, कहीं जंगलों में आग लगी है।
  • पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इसलिए अब परंपरागत फॉसिल फ्यूल का प्रयोग पृथ्वी पर मानव जाति के ही संकट में डाल देगा।
  • चारों वेद और संसार के सारे धर्मशास्त्र, ग्रंथ सूर्य की शक्ति से लबालब हैं। 18 पुराणों में भी सूर्य की चर्चा है। भविष्यपुराण के सभी खंडों में सूर्य की उपासना का विधान बताया है। ब्रह्माण्ड भी कोई भी देवी देवता, सविता बिना अपूर्ण है।
  • सूर्यादित्य की कृपा से ही व्यक्ति रंक से राजा या चक्रवर्ती सम्राट बन पाता है। सुबह ब्रह्ममुहुर्त में जागने से सूर्य की विशेष करुणा प्राप्त होती है और आखिरी श्वास तक प्राणी निरोग रहता है।
  • सूर्य के बारे में ये दुर्लभ रहस्यमय बातें अन्यत्र नहीं मिलेंगी। करीब 25 प्राचीन पांडुलिपि, ग्रंथ, भविष्य पुराण, ईश्वरोपनीष भाष्य आदि से ग्रहण कर यह जानकारी दी जा रही है। यह लेख कुछ बड़ा है।
  • अनुभव में पाया कि शिव/सूर्य की साधना, भक्ति से अपार शक्ति पाकर जिंदगी की घोर गरीबी, गंदगी को मिटाया जा सकता है। इसमें कोई शंका नहीं है। यह बात १०० फीसदी दावे के साथ कह सकते हैं। इतना याद रखें जब तक सूर्य या शिव का ध्यान नहीं करेंगे, तब तक अनेक योनियों में भटकना पड़ेगा।

दुर्लभ जानकारी, जिसे सिद्ध अघोरी/अवधूत ही जानते हैं।

  • प्राचीन हस्तलिखित उपनिषदों, पांडुलिपियों में उल्लेख है कि सृष्टि रचना के समय सूर्य की रश्मियों से केवल दो ही मंत्र निकले थे।
    • पहला गायत्री मंत्र दूसरा शिव मंत्र जिन्हे सर्वप्रथम महादेव ने देखकर ग्रहण किया। त्रिकालदर्शी परमहंसों ने इनके गुणों का प्रचार किया। त्रिलोक में बस ये दो ही मंत्र सर्वसिद्धि, समृद्धि, आरोग्य और शक्तिदाता हैं। जो अरबों वर्षों से आज तक गुंजायमान हो रहे हैं। शेष मंत्र कलियुग के गुरुओं की खोज है।
    • विशेष गायत्री मंत्र के बारे में सबको ज्ञान है, किंतु इसे जपना केसे है इसकी जानकारी amrutampatrika अमृतम पत्रिका का गायत्री मंत्र लेख गुगल पर उपलब्ध है।

गायत्री का अर्थ और सारांश

  • ॐ इति ब्रह्मस्यरूपमस्ति। पृथिवी-पायु स्वर्ग-लोकेषु च व्याप्तोऽस्ति, चराचर जगाध्य उत्पादकस्य सवितुः देवस्य यः अपूर्व-ब्रह्मरूपा तेज (भर्गः) अस्ति, यः वरणीयोऽस्तित भंगरचयी ध्यायामः। सवितुः देवस्य सं एवं भर्गः (तेजः) अस्मांक बुद्धीः सर्व प्रकारेभ्यः दुष्कर्मभ्यः पृथक्कुर्यात् सत्कर्मसु च पूर्णरूपेण
    • अर्थात ॐ ब्रह्मका रूप है। पृथिवी, वायु (भुवः) और स्वर्ग लोकों में जो व्याप्त है और चराचर जगत को उत्पन्न करने वाले सविता देव (सूर्य) का जो अपूर्व-ब्रहम-रूपतेज (भर्ग), जो वरण करने योग्य है, उस भर्ग का शिवजी ध्यान करते हैं। उस भर्ग का (तेज) महादेव की तरह हमारी भी बुद्धियों को सभी प्रकार के दुष्टकर्मो से पृथक और सत्कर्म पर्णरूप से प्रेरित करे।

गायत्री जपने से पूर्व शाप विमोचन जरूरी है

    • गायत्री मंत्र के तेज को काम करने हेतु इसे अनेक ऋषियों द्वारा किलित किया गया है। अतः इस मंत्र को किसी वैदिक ब्राह्मण से दीक्षा लेकर ही जपने का विधान है। जाप से पहले इसका विनियोग जरूरी है अन्यथा फायदे की जगह भरी नुकसान दायक रहता है।
  • हरि ॐ अथ सूर्याथर्वाङ्गिरस दक्षिणकरतले जलं गृहीत्या विनियोगः स्वसमक्षे पृथिव्यां जलंत्यजेत् (सूर्योपनिषद्)
  • अर्थात दाहिनी हथेली में जल लेकर विनियोग कहने के बाद धरती पर जल छोड़ विनियोगः

अस्य सूर्याथर्वअंगिरसमन्त्रस्य ऋषिः ब्रह्मा, गायत्री छन्दः, आदित्यो देवता, हंसः सोऽहमग्निनारायणयुक्तं बीजम्, हल्लेखा शक्तिः, वियदादिसर्गसुयक्तं कीलकमस्ति। चतुर्विध- पुरुषार्थ-सिद्ध्यर्थे सूर्योपनिषदः विनियोगः।

    • दूसरा शिव मंत्र जो भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम, गुरु दत्तात्रेय, गुरु गोरखनाथ, महर्षि दुर्वासा, परशुराम, दशानन रावण, पुलस्त्य, ऋषि अगस्त्य जपने के कारण आज तक विख्यात हैं। शिव मंत्र के रहस्य अलग से देंगे।
  • भगवान सूर्य/शिव को समर्पित इस लेख का आरंभ एक कड़वी एवम सत्य वचन से शुरू कर रहे हैं।, ताकि आपका तन स्वस्थ्य और मन अंतर्मन सुंदर हो सके।
  • शिव या सूर्य से जुड़ने के लिए पवित्रता पहली शर्त है। वैदिक मान्यता है कि जहां सत्य है, वहीं शिव है और जिस जगह सत्यम, शिवम है, वहां एक दिन सब कुछ सुंदर हो जाता है।
  • धर्म के वैज्ञानिक रहस्य को ज्यादातर धर्माचार्यों, कथावाचकों था धर्म के व्यापारियों ने ठीक ढंग से प्रस्तुत नहीं किया अथवा छुपाकर रखा। वे जानते हैं कि भारत के लोगों को सब कुछ पका हुआ तैयार सामान चाहिए और धन लोलुपों ने इसे मीठी वाणी से परोसकर, बेचकर धन एकत्रित किया और आपको धन, दौलत से मोह भंग करने की सलाह देकर स्वयं अथाह संपदा, मठों के मालिक बन गए।
    • यह कड़वी बात आपको तकलीफ जरूर देगी लेकिन अगर एक बार आप चेत गए, जाग गए, तो आने वाली पीढ़ियां आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करेगी। मेरा निजी अनुभव है कि अधिकांश राम राम जपने वाले पराया माल अपना करने में लगे हुए हैं।
  • अतः अपने जीवन का सार जानकार जीवन के पार जाना हो, तो कल्याणकारी भगवान शिव स्वरूप सूर्य को अपना गुरु, दोस्त, भाई मानकर सब कुछ समर्पित कर दें।

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा

  • हमने भी दरिद्रा रूपी गरीबी से मुक्ति के लिए बहुत ठोकर खाई, दर दर भटके, परेशानियों का अंत नहीं हुआ, तो एक दिन प्रवास के दौरान बस में सुबह बैठे बैठे सूर्योदय काल में भगवान सूर्य से आंख लड़ गई और स्वत: ही अश्रुधारा बहने लगी। एक घंटे रोने के बाद अचानक अंदर से किसी देवीय शक्ति ने झकझोरा कि सब कुछ सूर्य को सौंपकर पुनः प्रयास करें और सालों के संघर्ष के बाद शनै शनै: उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। फिर पता नहीं केसे भोलेनाथ से जुड़ गया। अमृतम नाम, काम सब शिव/सूर्य की देन है।

बस चलते जाना है

  • आज सभी काम छोड़कर साल में कम से कम 35 से 50 स्वयंभू शिवालय के दर्शन अवश्य जाते हैं और शिव के प्रति इसी अटूट आस्था के चलते लगभग 25000 से ज्यादा शिवलिंगों के दर्शन पूर्ण हो चुके हैं और अभी भी ये ही क्रम जारी है।
  • ध्यान रखें बिना सूर्य या शिव की उपासना के चित्त की शुद्धि था वित्त की वृद्धि नहीं होने वाली और जब तक चित्त, मन अंतर्मन पवित्र नहीं होगा, सभी पाखंडी महात्मा भटकाते रहेंगे।
  • अपने अंदर बह रही नदी को साफ, उज्ज्वल करें फिर चमत्कार देखें। क्योंकि इस ब्रह्मांड के सारे रहस्य, चमत्कार, सिद्धि समृद्धि आपके अंदर ही छिपी बैठी हैं। इन्हे पूरी संकल्प शक्ति के साथ उभारों।
    • भारत के महान सूर्य विज्ञानी ऋषियों ने अथर्ववेदीय सूर्योपनिषद्स के माध्यम से सभी के सुख स्वास्थ्य और ईश्वर प्राप्ति के लिए एक श्लोक द्वारा निर्देश दिया है कि

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः।।

(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

    • ॐ शान्तिः । शान्तिः शान्तिः। शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सामा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु।
  • अर्थात – हे सूर्यदेव! हम भगवान शिव का यजन (पूजनध्यान), अभिषेक करते हुए कानों से हमेशा कल्याणकारी वचन यानि अच्छी बातें सुनें।
  • आँखों से कल्याण ही देखें, किसी के प्रति कोई भी द्वेष दुर्भावना न रखें। तथा सुदृढ़ अड्गों वाले शरीर से महादेव की स्तुति करते हुए हमारी जो आयु है, उसे आराध्य देवों, सदगुरु एवं पुनीत कल्याणकारी कार्यों में व्यय कर सकें।
  • हे सदाशिव सूर्य! सब ओर फैले हुए सुयश वाले इन्द्र हमारा कल्याण करें, सम्पूर्ण विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा नामक देव (सूर्य का एक नाम) हमारा कल्याण करें।
  • हमारे कष्टों को मिटाने वाले चक्र समान शक्तिशाली गरुडदेव हमारा कल्याण करें एवं ज्ञान, बुद्धि व वृद्धि के स्वामी बृहस्पति भी हमारे कल्याण को पुष्ट करें। हे परमात्मन्! हमारे त्रिविध ताप (दैहिक, दैविक और भौतिक) तापों की शान्ति हो। संसार में सब स्थानों पर शान्ति प्रदान करो।

क्या नहीं है सूर्य में

  • दिशाओं का ज्ञान सूर्य से ही होता है। जीवन की दशा दुर्दशा के कारक भी सूर्य हैं। रंक से राजा बनने का मार्ग भी सूर्य साधना ही है। जगत को दिखने के कारण इन्हें जगदीश कहा गया है। सूर्य जगत की आत्मा है। सूर्य से ही प्राणवायु का आवागमन होता है। सूर्य से ही जल मिलता है।

जिस पर शिव/सूर्य की कृपा होती, वे पत्थर बन जाते मोती।

  • विश्व में एक मात्र देश भारत सदैव से सूर्य उपासक रहा है। सूर्य से दूर होकर हम एक पल भी नहीं जी सकते।
  • आकाश में सूर्य हैं और धरती पर सूर्य का ही प्रतिरूप शिवलिंग है। मानव मस्तिष्क भी सूर्य एवं शिवलिंग का ही प्रतीक है, जो सूर्य व शिवलिंग को जल अर्पित करने से ऊर्जावान हो जाता है तथा मन को परम शांति मिलती है।
  • भविष्य पुराण के अनुसार भगवान शिव ही सूर्य हैं या सूर्य ही शिव हैं। कहा गया है

एक आंख में सूरज साधा, दूसरे में चंद्रमा आधा

दोनों नेत्रों से रख ली शिव ने इस जग की मर्यादा

  • सूर्य से ही हमें ऊर्जा, एनर्जी, जीने की शक्ति, रोशनी, विटामिन डी और हड्डियों को ताकत मिलती है।
  • सूर्य ज्ञान, तेज, स्फूर्ति व शक्ति का अक्षय स्रोत है।
  • सूर्य ही सम्पूर्ण सृष्टि को अपनी तरंगमयी, ऊर्जादायिनि किरणों से उजियारा दे रहा है।

वैदिक मंत्रों में सूर्य से करबद्ध प्रार्थना की गई है कि

ॐ असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मामृतं गमय ॥

ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः।।

  • अर्थात हे आदित्य देवता! हमें असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ यह पवमान मंत्र बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28! से लिया गया है। Amrutam अमृतम का यही स्लोगन है।
  • प्रातः काल सूर्य दर्शन करना, सूर्य को जल चढ़ाना हमारी अटूट परम्परा का अंग है।
  • दैदीप्यमान सूर्य सौंदर्य, विकास, उत्साह, आशा का प्रतीक है।

सृष्टि संसार की सारी शक्तियां समाहित हैं सूर्य में

सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।

सूर्याद् वै खल्विमानि भूतानि जायन्ते।

सूर्याद् यज्ञः पर्जन्योऽन्नमात्मा नमस्त आदित्य।

त्वमेव प्रत्यक्षं कर्मकर्तासि। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रहूमासि।

त्वमेव प्रत्यक्षं विष्णुरसि। त्वमेव प्रत्यक्षं रूद्रोऽस्ति।

  • अर्थात सूर्यनारायण सम्पूर्ण जङ्गम तथा स्थावर जगत् के आत्मा हैं। निश्चय ही सूर्यनारायण से ही ये सभी भूत (चराचर प्राणी) उत्पन्न होते हैं। सूर्य से ही यज्ञ, तेद्य (बादल), अन्न और आत्मा (चेतना) का आविर्भाव होता है, उन आदित्य सूर्य को नमस्कार है।
  • हे शिव रूप सूर्य! तुम्हीं प्रत्यक्ष कर्मकर्ता हो। तुम्ही प्रत्यक्ष ब्रहम हो। तुम्ही प्रत्यक्ष विष्णु हो। आप ही प्रत्यक्ष शिव, रुद्र हो।

त्वमेव प्रत्यक्ष-मृगासि। त्वमेव प्रत्यक्षं यजुरसि।

त्वमेव प्रत्यक्षं सामासि। त्वमेव प्रत्यक्ष-मथर्वासि।

त्वमेव प्रत्यक्षं छन्दोऽसि।

  • अर्थात (१) तुम्ही प्रत्यक्ष ऋग्वेद हो। (२) तुम्ही प्रत्यक्ष यजुर्वेद हो। (३) तुम्हीं प्रत्यक्ष सामवेद हो। (४) तुम्ही प्रत्यक्ष अथर्ववेद हो। (५) तुम्हीं प्रत्यक्ष (वेदों के) छन्दः स्वरूप हो।
  • आदित्याद् वायुजायते। आदित्याद भूमिर्जायते। आदित्याद् आपो जायन्ते। आदित्याज् ज्योतिर् जायते। आदित्याद् व्योम दिशो जायन्ते। आदित्याद् देवा जायन्ते। आदित्याद् वेदा जायन्ते।
  1. अर्थात आदित्य (सूर्य) से वायु उत्पन्न होता है।
  2. आदित्यसे भूमि उत्पन्न होती है।
  3. आदित्यसे जल उत्पन्न होत है।
  4. आदित्यसे ज्योति, (अग्नि-प्रकाश) उत्पन्न होती है।
  5. आदित्य से आकाश और दिशाएँ उत्पन्न होती हैं।
  6. आदित्य से देवता उत्पन्न होते हैं। यानि सूर्य की कृपा से इंसान देवता बनकर अवतार रूप में प्रसिद्ध होते हैं। आदित्य से वेद उत्पन्न होते हैं।

आदित्यो वा एष एतन्मण्डलं तपति।असावादित्यो ब्रहूम।

आदित्योऽन्तः करणमनो-बुद्धि चित्ताहंकाराः।

आदित्यो वै व्यानः समानोदानोऽपानः प्राणः।

आदित्यो वै श्रोत्र – त्वक् – चक्षू रसना घ्राणा:।

आदित्यो वै वाक्-पाणि-पाद-पायूपस्था:।

आदित्यौ वै शब्द- स्पर्श-रूप-रस-

गंधा: वचना-दाना-गमन-विसर्गानन्दाः।

  1. अर्थात निश्चय ही ये आदित्य देवता ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मण्डल को तपा कर गर्मी, ऊर्जा, प्रकाश देते हैं।
  2. शिवजी का आकाशीय प्रतिबिंब एवं आकाश तत्व भगवान आदित्य ही मूल ब्रहम शिव है।
  3. आदित्य ही अन्तः करण, अर्थात्, मन, बुद्धि, चित और अहंकार है।
  4. आदित्य ही व्यान, समान, उदान, अपान और प्राण-ये पाँचों
  5. ब्रह्माण्ड को चलायमान रखने वाली वायु यानि प्राण हैं।
  6. आदित्य ही कान, त्वक (त्वचा या स्किन), नेत्र, जिव्हा और प्रणा अर्थात नाक इन पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के रूपमें कार्य करते हैं।
  7. आदित्य ही वाकू (वाणी) हाथ, पैर, गुदा और जननेन्द्रिय ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं।
  8. आदित्य ही शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये ज्ञानेन्द्रियों के पाँच विषय है।
  9. आदित्य ही वचन ( बोलना), आदान (लेना- हाथों से)
  10. गमन (चलना), मल-त्याग और आनन्द-ये कर्मेन्द्रियों के पाँच विषय है।

(१) आनन्दमयो ज्ञानमयो विज्ञानमय आदित्यः।

(२) नमो मित्राय भानवे मृत्योर्मा पाहि।

(३) भाजिष्णवे विश्यहेतये नमः।

(४) सूर्याद् भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु।

सूर्येलयं प्राप्नुवन्ति।

(५) यः सूर्यः सोऽहमेव च।

(६) चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः।

(७) चक्षुर्थाता दधातु नः।

  • अर्थात (१) आनन्दमय, ज्ञानमय और विज्ञानमय आदित्य ही है।
  • (२) मित्र देवता तथा भानु देवता को नमस्कार है। हे सूर्यदेवा रोग, दुःख, मृत्यु से मेरी रक्षा करो।
  • (३) दीप्तिमान तथा विश्वका कल्याण करने वाले सूर्यदेव को नमस्कार है।
  • (४) सूर्यसे ही चराचर जीव उत्पन्न होते हैं, सूर्य द्वारा ही उनका पालन-पोषण होता है और फिर सूर्य में ही वे सब लय को प्राप्त होते हैं।
  • (५) जो सूर्य हैं वही मैं (प्रथ्वी पर शिवलिंग) हूँ।
  • (६) हमारे चक्षु (नेत्र) सविता (सूर्य) देव ही हैं तथा किसी भी पर्व, उत्सव, त्योहार के द्वारा पुण्यकाल का आख्यान करने के कारण जो पर्यंत नाम से प्रसिद्ध है, वे सूर्य हमारे चक्षु हैं।
  • (७) सबको धारण करने वाले थाता नामसे प्रसिद्ध ये आदित्य देव हमारे नेत्रो को दृष्टि शक्ति प्रदान करके धारण करें।

डिप्रेशन मिटाने कारगर श्री सूर्यगायत्री मंत्र

    • ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।
  • अर्थात हम भगवान् आदित्य (ॐ) को जानते हैं- पूजते हैं। हम सहस्त्र (असख्य) किरणों से मण्डित सूर्यनारायण का ध्यान करते हैं, वे जगत कारक सूर्य सदैव सत्कर्मों के लिए प्रेरित करें।
  • भगवान सूर्य का चमत्कारी अष्टाक्षर मंत्र, जिसके जाप से अनेकों असाध्य बीमारी, दुःख, तकलीफ़, परेशानी और गरीबी मिट जाती है।

मात्र 80 दिन में गरीबी, लड़की मिटाएं

  • महर्षि अगस्त्य के मुताबिक प्रातः ब्रह्ममहूर्त में सविता देव के इस आठ अक्षर मंत्र का जप कोई भी साधक 80 दिनों में यदि 8 लाख बार जप लें, तो दुनिया की कोई भी दिक्कतें उसके पास नहीं ठहरती। महादरिद्र या गरीब व्यक्ति भी धनशाली बन जाता है। इसे हमने भी अजमाया है। बिलकुल सत्य है।
    • (१) सविता पाश्चात्तात्सविता पुरस्तात् सिवतोत्तरात् तात् सविता-धरात्तात्।
    • (२) सविता नः सु॒वतु सर्वतातिं सविता नो रासतां दीर्घमायुः
    • (३) ॐ ३मित्येकाक्षरं ब्रह्म
    • (४) घृणिरिति द्वे अक्षरे
    • (५) सूर्य इत्यक्षरद्वयम्।
    • (६) आदित्य इति त्रीण्यक्षराणि।
    • (७) एतस्यैव सूर्यस्याप्टाक्षरो मनुः।
    • (८) यः सदारहर्जपति’ स वै ब्राह्मअणु भवति स वै ब्राह्मणो भवति।
    • (९) सूर्या-भिमुखो भूत्वा इमं महामन्त्रं जप्त्त्वा महाव्याधि भयात् प्रमुच्यते अलक्ष्मिर्नक्ष्यति
  • अर्थात पीछे सविता (सूर्य) देव है, आगे भी सविता है, उत्तर व दक्षिण (बायें व दाहिने) सविता देव हैं और ऊपर-नीचे भी है। सविता देव हमारे लिए सब कुछ उत्पन्न करें तथा देवता हमें दीर्घ आयु प्रदान करें।

ॐ यह एकाक्षर मन्त्र ब्रह्म है।

घृणि: (गर्मी) यह दो अक्षरों का मन्त्र है।

सूर्य यह दो अक्षरों का मन्त्र है।

आदित्य यह तीन अक्षरोंका मन्त्र है।

इन सबको मिलाकर सूर्यनारायण का अष्टाक्षर महामन्त्र

!! ॐ घृणिः सूर्य आदित्योम् !!

    • मंत्र बनता है। इस मन्त्रका जो निरन्तर प्रतिदिन जपता है, यही ब्रह्म वेत्ता और शुद्ध ब्राह्मण हो जाता है।

महाव्याधि, महामारी नाशक अष्टाक्षर मंत्र के फायदे

  • सूर्यकी और मुख करके यह महामन्त्र जपकर महाव्याधि (सबसे बड़ी बीमारी और सभी मानसिक अशांति, चिंता, तनाव, अवसाद, भय, भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
  • साधक की गरीबी दूर हो जाती है। –

(१) मध्याहूने सूर्याभिमुखः पठेत्

(२) स॒द्योत्पन्न-पञ्च॒–ह॑ापातकात् प्रमुच्यते।

(३) सैषां सावित्रीं विद्यां न किचिंदपि न कस्मैचित् प्रशंसयेत्।

(४) य एतां महाभागः प्रातः पठति स भाग्यवाञ्जायते, पशूनू विन्दति, वेदार्थं लभते।

(५) त्रिकाल-मेत जपचा ऋतुशत-फल-मवाप्नोति।

(६) यो हरतादित्ये जपति स महामृत्युं तरति स महामृत्युं तरति य एवं वेद।

  • अर्थात मध्याह्न में सूर्य की ओर मुख करके इसका (अष्टाक्षर महामन्त्रका) जप करे, तो व्यक्ति तत्काल किए गए पंच महापातकों से मुक्त हो जाता है।
  • यह सावित्रो विद्या है, इसकी कहीं कुछ भी प्रशंसा न करे। जो महाभाग इसका (सूर्योपनिषद्का) प्रातः काल पाठ करता है, वह भाग्यशाली हो जाता है, उसे गौ आदि पशु प्राप्त होते हैं। और उसे वेदो का अर्थ मालूम हो जाता है।

कब कब जपे अष्टाक्षर मंत्र

  • तीनों काल ( प्रातः दोपहर और सायंकाल) जप करने से सैकड़ों यज्ञो का फल प्राप्त होता है।
  • हस्त नक्षत्र के अधिपति सूर्य देव हैं अतः जो (व्यक्ति) सूर्यके हस्त नक्षत्र जाप करता है, वह महामृसुरो तर हो जाता है; जो इस प्रकार (इस क्रियाको) जानता है, वह भी महामृत्युसे तर जाता है।

अथर्ववेदीय सूर्योपनिषद् पूर्ण हुआ।।ॐ शम्।।

  • ऐसे में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा यानी सोलर एनर्जी एक सही उपाय है। इस क्षेत्र में जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी में सुधार होगा, हम ज्यादा प्रभावी तौर पर सूर्य की ऊर्जा एकत्र कर अपने प्रयोग में ले पाएंगे।
  • वर्तमान में 1 स्क्वायर किलोमीटर में में प्रातः अस्तित्व को
  • सूरज की यह 1 गीगावॉट ऊर्जा गिरती है, जिसमें से हम 200 मेगावाट ही एकत्र कर पाते हैं।
  • जैसे-जैसे हम अपनी टेक्नोलॉजी अच्छी करके और अधिक ऊर्जा संकलित कर पाएंगे, व्यावहारिक जीवन में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग बढ़ता जाएगा।
  • कहा जाता है कि अमरीका के टेक्सास राज्य के एक छोटे से हिस्से में जो सरफेस एरिया है, उसका प्रयोग कर पूरे अमरीका को बिजली दी जा सकती है।
  • भारत में तो सौर ऊर्जा की उपलब्धता भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण बहुत बेहतर है।
  • मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सूर्य नमस्कार अति उत्तम माना जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रातः जल्दी उठ कर सूर्य को नमस्कार करने की, सूर्य को देखने की आदत डालनी चाहिए।
  • व्यक्ति आस्तिक नास्तिक कुछ भी हो, उसे समझना चाहिए कि सूर्य दर्शन का लक्ष्य रखने से व्यक्ति जल्दी उठेगा, जल्दी उठेगा तो उसका अपने दिन पर, अपने कार्यों पर नियंत्रण रहेगा।
  • सूर्य दर्शन से व्यक्ति आशावादी, ऊर्जावान, स्फूर्ति पूर्ण होगा।
  • सूर्य का इस जीव जगत में सर्वोच्च महत्त्व है। भारतीय न केवल उगते सूरज को जल चढ़ाते हैं, बल्कि बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में छठ पूजा के दौरान सूर्यास्त के वक्त विशेष रूप से पूजा की जाती है।
  • सूर्य का महत्त्व समझते हुए एक दार्शनिक अंदाज में यह बात की जा सकती है कि जैसे सूरज जब ढलता है, तब भी रोशनी और लालिमा लिए रहता है।
  • अंत में सूर्य को बारंबार नमन करते हुए इतना ही कह सकते हैं कि
  • विश्व की सभी सभ्यताओं में सूर्य का सदैव पूजनीय स्थान रहा है। इसका मनुष्य जाति ही नहीं सभी जीवों के कल्याण से सीधा जुड़ाव रहा है। प्राचीन भारत, मिस्र, चीन, अजटेक आदि सभी सभ्यताओं में सूर्य की उपासना की जाती रही है।
  • मिस्र में अभी अभी 5000 पुराना सूर्य मंदिर एक खुदाई के दौरान मिला है।

जीवन में सूर्य जैसा प्रकाश, प्रसन्नता, शक्ति, ऊर्जा चाहिए, तो सूर्य शांति कल्प का नियमित पाठ करना अत्यंत हितकारी है।

पढ़े amrutam पत्रिका महादेव ने सर्वप्रथम सूर्य देवता से महाशांति की प्रार्थना की थी।

सूर्य शांति कल्प के कुछ अंश

शान्त्यर्थं सर्वलोकानां ततः शान्तिकमाचरेत्।

सिन्दूरासनरक्ताभः रक्तपद्माभ लोचनः

सहस्रकिरणो देवः.सप्ताश्वरथवाहनः

गभस्तिमाली भगवान् सर्वदेवनमस्कृतः

करोतु मे महाशान्तिं ग्रहपीडानिवारिणीम्

  • अर्थात सभी लोकों की शान्ति के लिए शिव स्वरूप सूर्य से शान्ति का आचरण करे। सिन्दूर के समान रक्त आसन वाले, लाल कमल के समान नेत्रों वालों, हजारों (अर्थात् अगणित) किरणों वाले, सात अश्यों के रथ पर चलने वाले, करोड़ों किरणों के स्वामी तथा जिनको सभी देवता नमस्कार करते हैं, वे भगवान् सूर्य! संसार के सभी प्राणियों की, सभी ग्रहों की पीडा को दूर करने वाली महाशान्ति करें।
  • आप जानकार आश्चर्य करेंगे कि भगवान सूर्य से बड़ा स्मपूर्ण ब्रह्मांड में कोई दूसरा वैद्य नहीं है। इन्हे ही धरती पर वैद्यनाथ महादेव के नाम से पूजा जाता है। भारत में ज्योतिर्लिंग रूप में वैद्यनाथ धाम की पूजा बिहार में होती है।

मूल वैद्यनाथ धाम पांडिचेरी के पास है

  • लेकिन स्कंध पुराण के अनुसार मूल यानि ओरिजनल वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग दक्षिण भारत के वेदेहीश्वरम कोईल में स्थित है। यहीं भगवान कार्तिकेय ने अपने असाध्य रोग मिटाने के लिए महादेव की उपासना की थी। यह दुनिया का एक मात्र शिवालय है, जहां सभी नवग्रह एक ही सीध या लाइन में खड़े हैं। यह मंदिर 50 एकड़ में फेला है।
  • अभी बहुत सी जानकारी ऐसी हैं जिन्हें पढ़कर दिमाग हिल जायेगा और जल्दी भरोसा नहीं होगा।

त्रिकालदर्शियो की परिकल्पना

  • हिंदुस्तान के वैदिक वैज्ञानिकों का प्रकृति तथा पंच महाभूत को नियंत्रित करने वाली निराकार अदृश्य दैवीय शक्तियों में अटूट विश्वास था कि सृष्टि की सभी शक्तियां चेतन हैं और उनकी स्तुति से स्वस्थ तथा सफल जीवन की प्राप्ति संभव है।
  • पश्येम शरदः शतम्’ जेसी रोगरहित शतायु जीवन की कामना के साथ इनकी प्रार्थना संबंधी मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में भी विस्तार से उपलब्ध हैं।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रचित आदित्य ह्रदय स्त्रोत

दिमागी रूप से परेशान, अशांत, डिप्रेशन से पीड़ित लोगों को नीचे लिखे श्लोक का पाठ हितकारी रहता है

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