Diwali

क्यों चुना मोदीजी ने यह दिन…. 5 अप्रैल 2020 रविवार को दीपक जलाने का क्या रहस्य है और इससे भारत को क्या फायदा होगा…..०००

!!हर शब्द अमॄतम!!
05 अप्रैल को दीपदान का महत्व…. 
बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।
में संकट काल के समय
महाकाल से प्रार्थना का वर्णन है-
असतो मा सदगमय 
तमसो मा ज्योतिर्गमय 
मृत्युर्मा अमृतम गमय 
ॐ शान्ति:शान्ति: शान्तिः!
भावार्थ- हे महादेव! मुझे असत्य से
सत्य की ओर ले चलो।
हमें अन्धकार से प्रकाश की
ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता
की ओर ले चलो॥
यह लेख बहुत रोचक और रहस्यपूर्ण
है। जरा ध्यान से शांतिपूर्वक पढ़ें-
भविष्यपुराणअग्निपुराण के
दीपदान का महत्व
और स्कन्ध पुराण के खंड 5 में
“अग्नि दीप का रहस्य” आदि में
उल्लेख है कि-
दीपदान से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव
नहीं पड़ता। अचानक आपत्ति, बीमारियों
एवं संक्रमणों से रक्षा के लिए दीप जलाना
बहुत लाभकारी होता है।
बरसात के बाद दीपावली की रात को
भी दीपों की श्रृंखला जलाने का यही
रहस्य है।
5-अप्रैल-2020 यानि 5+4=9 रात्रि में
9 बजे, 9 मिनिट अर्थात 9+9+9=27
2 और 7 मिलकर कुल जोड़ 9…..
 इसमें  2020 के 2+2=4 मिल जाये,
 तो 9+4=13 अंक हो जाता है, जो कि
अभाज्य है। 4 और 13 केतु का अंक है,
जो बहुत अशुभ, रहस्यमय माना जाता है
कुल मिलाकर अर्थ यही है कि-
हे महादेव! तुम जो भी हमें दे रहे हो,
हम आपको दीपदान करके
लौटाने का निवेदन कर रहे हैं।
यह हर प्रकार से अविभाजित
9 का अंक आता है।
अंक ज्योतिष के हिसाब से 9
नम्बर का मालिक मङ्गल ग्रह है,
जो भूमिपुत्र होकर दीपदान से
प्रसन्न होते हैं।
मङ्गल को कल्याणकारी ग्रह माना
जाता है। प्रथ्वीपुत्र होने के कारण
सभी का मंगल करने की जिम्मेदारी
इन्ही की है।
दक्षिण भारत में कार्तिकेय, मोरगन
स्वामी, तिरुपति, तिरूतनी के रूप में
इनकी आराधना की जाती है।
मल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिंग
की स्थापना मंगलनाथ कार्तिकेय
की तपस्या के फल स्वरूप हुई थी।
इनके 6 मुख हैं और इन छह मुख
के अलग-अलग 6 मंदिरों की दक्षिण
में बहुत मान्यता है। इन 6 मंदिरों के
बारे में इस लेख/ब्लॉग के अंत में पढ़े।

 ग्रहों की ग्रहस्थिति...

इस दिन रविवार रात 9 बजे पूर्वफाल्गुनी
नक्षत्र  का दूसरा चरण है। चंद्रमा सिंह
राशि में स्थित है। सिंह राशि के स्वामी
भगवान भास्कर हैं। ज्योतिष के
जानकार जानते हैं कि-पूर्वाफाल्गुनी
नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह है।
दैत्य गुरु शुक्र को अग्नि कहा जाता है।
तिथि द्वादशी है, जो अग्नि तिथि
कहलाती है। ज्योतिष शास्त्रों को
टटोले, तो लिखा है कि-रविवार को
यह तिथि हो, शुक्र का नक्षत्र हो,
तो सन्धाकाल के सवा दो घड़ी बाद
दीपक जलाने से बड़ी-बड़ी नकरात्मक
ऊर्जा मिट जाती हैं।
मोदीजी ने शुक्र के नक्षत्र में, अमृत
 एवं चर चौघड़िया में 30 महूर्तो में
नवम सतमुखी महूर्त है।
एक दिन में कुल तीस महूर्त होते हैं।
मोदीजी ने किसी ज्योतिषाचार्य
के मार्गदर्शन में यह सोचा-समझा
महूर्त चुना।

दुनिया में शुक्र ग्रह का एक मात्र मन्दिर….

दक्षिण भारत में कुम्भकोंणम से
लगभग 20 किलोमीटर की दूरी
पर कावेरी नदी के तट पर स्वयम्भू
सूर्य मन्दिर “सूर्यनार कोइल” से 2
या 3 किमी की दूरी पर
कुँजनूर” नामक तीर्थ पर स्वयम्भू
 शिंवलिंग के रूप में विराजमान हैं।
 ज्योतिष में शुक्र....
नक्षत्र मण्डल में शुक्र ग्रह सूर्य और
बुध के सबसे नजदीक है। यहां भी
शुक्र का यह मन्दिर सूर्य ग्रह के पास
में है।
【】यह स्वास्थ्य प्रदाता शिवालय है।
【】यहां मुख्य शिवलिंग पर तेल से अभिषेक होता है।
【】असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए विशेषकर शुक्रवार के दिन राहुकाल
में “राहु की तेल” से और भौतिक
सुख-समृद्धि की वृद्धि के लिए
खुशबूदार इत्र और चंदनादि तेलों
से अभिषेक किया जाता है।
पुराने रोग या असाध्य तकलीफों से
मुक्ति पाने के लिए लोग यहाँ 7 शुक्रवार
अपनी उम्र के मुताबिक यानी जितनी
जिसकी उम्र है, उतने ही दीपक
जलाकर निरोगता पाते हैं।

रविवार रात 9 बजे ही क्यों….

वर्तमान में भी जो कोरोना वायरस
फैल रहा है यह बहुत ही जानलेवा है।
मोदीजी ने इसीलिए रविवार की रात
का दिन चुना। अग्नि दीपदान से
सृष्टि से संक्रमण सिमटकर नष्ट हो
जाते हैं।

शुक्र के मन्दिर की विशेषता..

यह प्राचीन तीर्थ “शुक्रअग्निश्वरा मंदिर”
के नाम से गुमनामी के अंधेरे में स्थापित है।
स्कन्ध पुराण” के चौथे खण्ड में इनकी
पूजा, ग्रह शान्ति का भी विधान बताया है।
साउथ के आदिकालीन ग्रन्थ शिव सहस्त्रणामवली तथा
 ज्योतिष ग्रन्थ “अगस्त्य नाड़ी सहिंता
में भी इस शिवरूप शुक्र ग्रह का उल्लेख है।

इस जगह की थी शुक्र ने शिव साधना

शुक्र ग्रह ने अपने सद्गुरु
महादेव द्वारा प्राप्त मन्त्र
!!ह्रीं ॐ नमःशिवाय ह्रीं!! 
का 7 करोड़  जप कर पुनश्चरण
पूर्ण कर यहाँ भोलेनाथ की कठिन
तपस्या की थी।
यहीं शुक्र देव को आसाध्य रोगों से
मुक्ति और सम्पन्नता का वरदान
मिला था।
महर्षि अगस्त्य” ने सर्वप्रथम
इस स्वयम्भू शिंवलिंग को अपने
ध्यानयोग द्वारा खोजा था।
शुक्र के इस मन्दिर में भगवान
शिव को अग्निश्वर और माँ को
करपगल्म महालक्ष्मी कहते है।
अग्रि देव ने भी यहां शिव की पूजा
की थी।
यहां पर ब्रह्मा जी ने भी शिवलिंग
की पूजा की थी।
भगवान शिव ने नटराज सभा में तांडव
किया था जिसे शिव तांडव न कहकर मुक्ति तांडव कहते हैं।

विचित्र बेलपत्र का वृक्ष है यहां....

इस शिवालय परिसर में पांचपत्ती एवं
सात पत्ते का बेल पत्र पाया जाता है,
जो दुनिया में दुर्लभ है।
शुक्र का संस्कृत में अर्थ है.
 साफ, शुद्ध, चमक तथा स्पष्ट।
ये दैत्यों के गुरु (शुकराचार्य) व शिक्षक हैं।
ये मनुष्य के जीवन में धन, खुशी व
प्रजनन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यदि मनुष्य की कुंडली में शुक्र दूसरे,
आठवें, बारहवें भाव में शुभकारक होता है।
शुक्र के  मजबूत स्थान पर होने से धन,
भाग्य व ऐशो-आराम की प्राप्ति होती है।
जन्मपत्रिका में शुक्र ग्रह की महादशा
बीस वर्षों तक सक्रीय रहती है।
कमलगट्टे की माला इन्हें अत्यन्त प्रिय है।
शुक्र को रजत अतिप्रिय है….
शुक्र का तत्व-जल, रंग-सफेद
रत्न-हीरा, धातु-चांदी (रजत) होती हैं।
हीरा रत्न यदि चांदी की धातु में
पहिने, तो बहुत ही ज्यादा शुभ
असरकारी होता है।
ज्योतिष नक्षत्र सहिंता
में भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और
पूर्वाषाढा ये तीनो शुक्र के नक्षत्र
प्राचीन काल से ही निर्धारित हैं।
यह तुला-वृष राशि के स्वामी है।
कन्या राशि में नीचत्व और मीन
राशि में उच्च के होते हैं।
शुक्रवार इनका दिन है।
मुस्लिम धर्म में शुक्रवार क्यों है खास
तथा जुमे की नमाज का विशेष
महत्व क्या है…
जानने के लिए अमॄतम पत्रिका पढ़ते रहिये।
ओर अधिक जानने के लिए नीचे की
लिंक क्लिक करें-

भगवान कार्तिकेय के 6 मंदिरों की  पूरी कहानी, उनके नाम….

कार्तिकेय ही मङ्गल हैं-
एक दुर्लभ जानकारी

मङ्गल स्वामी भगवान कार्तिकेय षड़ानन के

6 मुख के  6  अलग-अलग मन्दिर

【1】पहला पलनी तमिलनाडु में

पलनी मुरुगन मंदिर–  कोयम्बटूर से

100 km करीब यहां इनके हाथ मे एक दंड

होने से इन्हें दण्डपति कहते हैं। दंडीस्वामी पंथ या परंपरा इनके द्वारा ही शुरू की गईं ।

ये शिष्य रूप में स्थित हैं ।

【2】 दूसरा स्वामीमलय

स्वामीमलय मुरुगन मंदिर कुम्भकोणम

जहां अपने पिता भगवान शिव को ॐ शब्द का रहस्य इनके पुत्र मुरुगन स्वामी ने बताया था। बाद में ब्रह्म, विष्णु आदि देवताओं कोॐ का रहस्य शिव से ज्ञात हुआ था ।

【3】तीसरा तिरुतनी, तिरुपति से 50 km

तिरुतनी मोरगन स्वामी-

यहां दूसरा विवाह हुआ था। यहां 365 सीढ़ियां हैं जो 365 दिन की प्रतीक हैं।

अविवाहितों के लिए विशेष

तिरुपति से करीब 60-70 km अविवाहित लोग पैदल चढ़कर जाए,  तो अतिशीघ्र विवाह होता है । क्लेश कारक दाम्पत्य जीवन सुखमय हो जाता है । एक बार अवश्य जावें ।

【4】चौथा है- पज्हमुदिर्चोलाई ,

पजहामुद्रिचोलाई कार्तिकेय मन्दिर

मदुरै मीनाक्षी मन्दिर से करीब 25-,30 km है ।दोनों पत्नियां साथ होने से यह गृहस्थ रूप में पूजनीय हैं ।

【5】पांचवा है- तिरुचँदुर

तिरुचंदुर मुरुगन स्वामी–  मदुरै से लगभग 155 km यह समुद्र किनारे बसा एक मात्र मंदिर है शेष सब 5 मंदिर पहाड़ी पर हैं। यहां भगवान कार्तिकेय एक योद्धा सेनापति रूप में विराजमान हैं ।

【6】छठवां है- तिरुप्परणकुंरम 

तिरुप्परामकुंराम मोरगन स्वामी-

मदुरै से कुछ ही दूरी पर लगभग 10-15 km मोरगन स्वामी मंदिर नाम से प्रसिद्ध है । यहां इंद्र की बेटी देवयानी से विवाह किया था । अविवाहित लोग यदि दर्शन करें, तो शीघ्र विवाह होता है।

इस प्रकार भगवान कार्तिकेय के 6 मुखों के 6 अलग-अलग मंदिर हैं। ये मंगलनाथ भी हैं।

स्कन्द पुराण के अनुसार

ओरिजनल बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग-

दुनिया में बहुत कम लोगों को मालूम है कि

ओरिजनल बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग  दक्षिण भारत

के वेदेहीश्वरं कोइल में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग

शिवालय लगभग 5 किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है।

भगवान मोरगन ने किया था तप

इस स्थान पर कार्तिकेय ने घनघोर तो किया था,

जब वे असाध्य त्वचा रोग से पीड़ित हो गए थे।

भगवान शिव , तब इस पुण्य क्षेत्र में वैद्य बनकर

आये थे। यह दुनिया का ऐसा एक मात्र शिवालय

है जहां सभी नवग्रह एक ही सीध यानि लाइन

में हाथ जोड़े खड़े हैं।

शिवलिंगों का अंबार

वेदेहीश्वरं कोइल शिव मंदिर में लगभग

2000 से अधिक शिंवलिंग अनेक देवी-देवताओं, ऋषि, सप्त ऋषियों- मुनियों द्वारा स्थापित हैं।

जटायु की समाधि

इस मंदिर में ही जटायु का दाह संस्कार हुआ था।

अंगारक स्वामी मंदिर

दुनिया का एक मात्र दुर्लभ अंगारक मंजीर है। यहां पर हर मंगलवार को मङ्गल दोष निवारक पूजा करे जाती है, जिसमें 43 घण्टे का समय लग जाता है।

भोलेनाथ का भंडार-

यह स्थान ज्योतिष की सप्त नाड़ी सहिंता,

नन्दी सहिंता के लिए प्रसिद्ध है। यहां आसपास

करीब 100 से अधिक स्वयम्भू शिंवलिंग और

माँ काली के मंदिर जंगलों में हैं, जो दर्शनीय हैं।

मंगल से पीड़ित, मांगलिक दोष से परेशान हों, तो

जिनका विवाह नहीं हो पा रहा अथवा जिनका वैवाहिक जीवन अपूर्ण, अतृप्त, क्लेशकारक हो, उन्हें भगवान मुरुगन स्वामी ( कार्तिकेय) जिनके छः मुख के छः मंदिरों के दर्शन अवश्य करना चाहिए।

मङ्गल शांति के उपाय

कुंडली में मांगलिक दोष दूर करने के लिए

इन छः मंदिरों के दर्शन करने के बाद तिरुपति बालाजी

के करीब 4009 सीढ़ियों को पैदल चढ़कर दर्शन करें।

ततपश्चात उज्जैन के मङ्गल नाथ पर भात पूजा, रुद्राभिषेक, कराएं ।

घर लौटकर गरीब कन्यायों को घर पर श्रध्दा पूर्वक भोजन करावें।  अमृतम मधूपंचामृत,

बादाम जैतून,केशर, चन्दन से निर्मित

अमृतम तैल दान करें ।

इस प्रयोग, प्रयास  जीवन में चमत्कारी परिणाम करने में सहायक है। सभी प्रकार के अष्ट दरिद्र तथा भयंकर दुर्भाग्य दूर होकर सुख-सफलता, ऐश्वर्य में सहायक होगा।

तमिलों के कुल देवता कार्तिकेय

तमिल लोग इन्हें कडवुल यानि तमिलों के देवता कहकर संबोधित करते हैं।

श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि देशों में इनके बहुत प्राचीन और विशाल मंदिर हैं।

कुमार कार्तिकेय क्यों कहलाते हैं

भगवान स्कन्द या मङ्गल स्वामी कार्तिकेय को हमेशा एक कुमार बालक के रूप में ही दर्शाया जाता है, वे विवाहित हैं, उनकी दो पत्नियां हैं-

पहली-  देवसेना एवं दूसरी- वल्ली। ये महायोद्धा हैं लेकिन फिर भी उनका स्वरूप एक बालक का ही है।अपनी माता पार्वती के श्राप फलस्वरूप वह कभी अपनी बाल्यावस्था को त्याग ही नहीं पाए। उनके इस बालक कुमार स्वरूप के पीछे भी स्कन्द पुराण में एक रहस्यमय किस्सा छिपा हुआ है, जिसकी जानकारी आगे कभी दी जावेगी।

मंगल का दंगल कैसे करें कम
भगवान कार्तिकेय मोरगन स्वामी द्वारा
रचित ग्रन्थ श्री स्कन्द महापुराण
18 पुराणों में सबसे बड़ा ग्रन्थ हैं।
इस पुराण में 84000 से भी अधिक
भगवान शिव के स्वयम्भू शिवालय
शिवमंदिरों का वर्णन है।
चमत्कारी ग्रन्थ है-स्कन्द पुराण
ज्योतिष के चमत्कारी उपाय, ग्रह-नक्षत्रों
को प्रसन्न करने वाले मन्त्र, पूर्व जन्म
के दोषों की शान्ति, कालसर्प-पितृदोष का निवारण इस ग्रंथ स्कन्द पुराण में समाहित हैं।
हस्त रेखा के बारे में-
स्कन्द पुराण में सामुद्रिक शास्त्र के बारे
में बहुत ही रहस्यमयी तत्व छिपे हुए हैं।
सामुद्रिक शास्त्र के रचयिता
मोरगन स्वामी परम् गुरु भक्त कहलाते हैं।
समुद्र इनके गुरु है, इन्होंने अपने गुरु
ऋषि समुद्र से ही सामुद्रिक शास्त्र
यानि हस्त रेखा विज्ञान के बारे में
ज्ञान प्राप्त किया था, इसलिए इसे सामुद्रिक शास्त्र कहा जाता है।
भगवान कार्तिकेय के गुरु-
ये परम् गुरु भक्त होने के कारण जहाँ भी
समुद्र या महासागर स्थित हैं, कार्तिकेय
के विशाल मंदिर अधिकांश वहीं मिलते हैं।
भोलेनाथ के पुत्र है-मंगल
यह भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र खएँ जाते हैं,
इनके 6 मुख हैं। इन 6 मुखों के दक्षिण भारत
में अलग-अलग महा
विशाल मन्दिर हैं। यह शरीर में रक्त के कारक हैं। मङ्गल के कुपित होने से ही कैंसर रोग
उत्पन्न होता है।
केंसर का कारक- मङ्गल
ज्योतिष ग्रंथों की मान्यता है कि, जो लोग
जीवन में किसी का मङ्गल नहीं करते, साथ ही
अमंगल भी करते हैं, तो ऐसे जातक
मङ्गल दोष एवं कर्कट रोग यानि कैंसर
से पीड़ित होते हैं।

दुनिया में जहां पर भी भगवान कार्तिकेय

मङ्गल स्वामी के मंदिर हैं वहां अपार संवृद्धि है।

भारत में तमिल लोगों के यह कुल देवता हैं।

तमिलनाडु राज्य के रक्षक के रूप में इन्हें राजा की उपाधि प्राप्त है। तमिल के अधिकांश कार्तिकेय मंदिरों की देखभाल पर सरकार अरबों रुपए खर्च करती है। वार्षिक बजट में इनका धर्मादा कोष अलग से निश्चित रहता है।

भगवान कार्तिकेय के विभिन्न नाम

संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार

कार्तिकेय के निम्न नाम हैं:

कुमार कार्तिकेय,  महासेन,शरजन्मा, षडानन,

पार्वतीनन्दन, स्कन्द, सेनानी, देवताओं के सेनापति, अग्निभू, प्रथ्वीपुत्र, मंगलनाथ, गुह, बाहुलेय, तारकजित्, विशाख, शिखिवाहन, शक्तिश्वर, कुमार, क्रौंचदारण तथा कार्तिकेय डोटी नेपाल में

भगवान कार्तिकेय को मोहन्याल कहते है।

मंगलदोष दूर करने वाला मन्त्र

ऊं शारवाना-भावाया नमः
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मनः काँता कार्तिकेया नमोस्तुते:
ॐ सुब्रहमणयाया नमः 

अपने शत्रुओं के नाश के लिए इस मंत्र का मंगलवार को 9 दीपक अमृतम “राहुकी तेल” के जलाकरऊपर लिखे मन्त्र का 9 माला जाप करना चाहिए।

सभी तरह के ताप, दुखों और कष्टों का दूर

या कम करने के लिए भगवान

कार्तिकेय का गायत्री मंत्र निम्नलिखित है: –

ओम तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि 

तन्नो स्कन्दा प्रचोद् यात:

दक्षिण भारतीय तत्काल प्रभावी मङ्गल मंत्र 

दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्रों का जाप किया जाता है:

हरे मुरूगा हरे मुरूगा शिवा कुमारा हरो हरा
हरे कंधा हारे कंधा हारे कंधा हरो हरा
हरे षण्मुखा हारे षण्मुखा हारे षणमुखा हरो हरा
हरे वेला हरे वेला हारे वेला हरो हरा
हरे मुरूगा हरे मुरूगा ऊं मुरूगा हरो हरा

भगवान कार्तिकेय सर्वसुख शांति-शक्ति के देवता हैं। यही मंगलनाथ औऱ मंगल ग्रह के स्वामी, प्रथ्वीपुत्र भी हैं। भवन-भूमि इन्ही की कृपा से प्राप्त होती है।
संसार-सृष्टि में सबसे ज्यादा अमंगल कारक दोष इन्ही की देन हैं।
अचानक हानि, दुर्घटना,
कर्जा, कष्ट-क्लेश, 
क्रोध, सम्पत्ति नाश, विवाद,
पुलिस से पीड़ित 
अविवाहित जीवन
तलाक, पति-पत्नी, 
बच्चों में अनबन 
आदि जीवन के हरेक सुख भगवान मोरगन स्वामी
(कार्तिकेय) ही क्षीण या खत्म करते हैं  
जब कभी सृष्टि के देव-दानव पीड़ित-परेशान होते हैं, तो इनसे ही प्रार्थना कर
power पाते हैं-
कार्तिकेया महातेजा
आदित्यवर-दर्पित:।
शाँति करोतु मे नित्यं 
बलं, सौख्यं, च तेजसा।।
अतः power और पैसा इन दो
ही ग्रहों की कृपा से पा सकते हैं ।
इतनी संक्षिप्त जानकारी इस लेख
में देना बहुत जरुरी था, ताकि लोग
भय-भ्रम, तनाव, क्रोध
से मुक्ति पा सके।
हालांकि अमृतम
मानसिक शांति हेतु चमत्कारिक दवा है ।
लगातार 30 दिन के निरन्तर सेवन से
तन-मन के ज्ञात-अज्ञात अनेक विकार
स्वतः ही स्वाहा हो जाते हैं।
मन को प्रसन्न रख तन की तपन
दूर करने में चमत्कारिक है।
धर्म के बहुत से अनसुलझे
 रहस्यों को जानने के लिए
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Comments

One response to “क्यों चुना मोदीजी ने यह दिन…. 5 अप्रैल 2020 रविवार को दीपक जलाने का क्या रहस्य है और इससे भारत को क्या फायदा होगा…..०००”

  1. Gunjan Sharma avatar

    All the products of Amrutam are very good.

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