आयुर्वेद के अनुसार सिरदर्द और अनेक बीमारियों की वजह क्या है?..

सिरदर्द, नसों में धीमा रक्त संचार और दिमागी मांसपेशियां कमजोर हों,
तो योगा करने के बाद सीधी नाक से गहरी-गहरी श्वांस नाभि तक ले जाकर सीधी नाक से ही शनै-शनै ही छोड़े।
ऐसा दिनभर में 200 से 300 बार दोहराएं आपकी दिमागी तकलीफ 100 फीसदी मिट जाएगी।
  • शरीर में प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की पूर्ति होने से आप सदैव स्वस्थ्य-प्रसन्न रह सकते हैं। जाने कैसे?..
  • सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी का रहस्य क्या है?
  • क्या ज्यादा श्वांस छोड़ने से उम्र बढ़ती है?
  • शेषनाग क्यों अमर हैं? आदि अनेक रोचक रहस्यमयी ज्ञान के लिए पूरा जबाब धैर्यपूर्वक पढ़े।
  • क्यों होता है सिरदर्द एवं देह विकार?

शरीर को पूरी तरह ऑक्सीजन न मिलने से बढ़ रहीं है बीमारियां…

वर्तमान में सारी बीमारियों का कर्ण शरीर में पूर्ण प्राणवायु नहीं पहुंच पाने से शरीर की कोशिकाएं शिथिल कमजोर होने लगती है।

तब, तन-मन एवं अन्तर्मन का सर्वनाश हो जाता है

और हम डॉक्टर के यहां चक्कर लगाकर रोग मिटाते नहीं, उससे ज्यादा अपनाते हैं।

आयुर्वेदिक शास्त्र चरक सहिंता, भारत भैषज्य रत्नाकर आदि कहते हैं

कि- सन्सार स्वांसों का खेल हैजब तक श्वासा, तब तक आशा!

श्वांस के सहारे स्वस्थ्य रखने वाला यह ज्ञान-विज्ञान युक्त ब्लॉग तन-मन को स्वस्थ्य-तन्दरुस्त बनाकर बल-बुद्धि में वृद्धि करेगा।

इस लेख का आधार श्वांस है।

आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि..श्वास लेने का तरीका सही हो,

तो व्यक्ति बिना रोग के 100 साल से ज्यादा जीवित रह सकता है।

महादेव का महादान….सदाशिव ने सारे जीव-जगत को श्वास दी है, उम्र नहीं।

श्वान यानी कुत्ता और सियार मुख से सांस लेता है, इसलिए वह 12 से 15 वर्ष तक जीता है।

इसी तरह शिवजी ने सम्पूर्ण जीव-जगत की खाने-पीने की व्यवस्था पृरी की लेकिन तिजोरी भरने की जिम्मेदारी कभही नहीं ली।
गुरु गोरखनाथ के ग्रन्थ में भी आया है-

बारह बरस लौं कूकर जीवै,
अरु तेरह लौं जिये सियार।
बरस अठारह क्षत्रिय जीवै
आगे जीवन को धिक्कार।

अर्थात-कुत्ता बारह तथा सियार 13 वर्ष तक जीवित रहता है।

क्षत्रिय जाति का मनुष्य यदि बात का धनी, लंगोटी का पक्का और रक्षा करने वाला हो,

तो 18 वर्ष की आयु भी उसके लिए पर्याप्त है।
कछुआ, मेंढक सांस साधने के कारण 300 से 400 साल तक जीते हैं।

इस लेख में श्वास-प्रश्वास द्वारा यानि श्वांस लेना और छोड़ना के ततरीकों को जानकर स्वस्थ्य रहने के ज्ञान को समझेंगे…
!कायानगरमध्ये तु मारुत: क्षितिपालक:!
अर्थात- देहरूपी नगर में प्राणवायु राजा के समान है।

वायु ग्रहण करने का नाम नि:श्वास और वायु के परित्याग करने का नाम प्रश्वास है।
मनुष्य जो अंदर लेता है, उसे श्वास कहते हैं। छोड़ने वाली प्रश्वास कहलाती है।

अघोरपंथ में प्राणवायु नि:श्वास–प्रश्वास इन दो नामों से पुकारा जाता है।

प्रत्येक जीव के जन्म से मृत्यु के अंतिम क्षण तक निरंतर श्वास-प्रश्वास की क्रिया होती रहती है

और यह नि:श्वास नासिका के दोनों छिद्रों से एक ही समय, एक साथ समान रूप से नहीं चला करता, कभी बाएं और कभी दाहिने नासिका से चलता है।

कभी-कभी एकाध घड़ी तक एक ही समय दोनों नाकों से समान भाव से श्वास प्रवाहित होता है।
पवनविजवस्वरोदय में लिखा है कि–
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्॥

अर्थात-हरेक को यह जानना जरूरी है कि- अभ्यास योग से ही चित्त की शुद्धि होती है। चंचल चित्त को चिन्ता रहित बनाकर ईश्वर में लगा सकता है,

जहाँ परमसुख का अनुभव होने पर सिद्ध पुरुष बनने की सम्भावना बढ़ जाती है।

श्वास-प्रश्वास के अभ्यास के द्वारा स्वस्थ्य रहा जा सकता है- कहा गया कि- करतकरत अभ्यास के उन्मत होए सुजान

साँसों का सामंजस्य….
हमारी दायीं तरफ (राइट साइड) की नासिका सूर्य नाड़ी है

और बाएं तरफ यानि लेफ्ट साइड की नाक छिद्र, चन्द्र नाड़ी है।

यह हमारे शरीर में एक संग्रहित उर्जा है,
जो शरीर को सम बनाये रखता है।

यदि दोनों नाड़ी में कोई भी व्यवधान हो जाय, तो शरीर में बहुत से रोगों आगमन होने लगता है।

सूर्य-चन्द्र दोनों नाड़ी जब एक साथ सामान्य रहे, तो तन-मन में किसी प्रकार की परेशानी नहीं रहेगी।

ये जीवन है, इस जीवन का श्वास ही है रंग-रूप हैं।

जीवन सांस से चल रहा है। श्वास की डोर टूटते ही शिव स्वरूप शरीर पल में शव बन जाता है।
स्वर विज्ञान के अनुसार सांस में स्वास्थ्य का खज़ाना छुपा है!

दोनों छिद्र में आती-जाती श्वास स्वर कहलाता है।

बाएं नासिका में चन्द्र स्वर और दायीं नासिका में सूर्य स्वर बहता है।

चन्द्र स्वर में इड़ा नाड़ी होती है, यह स्वर शीतल प्रकृति का होता है।

जब सांस केवल लेफ्ट साइड से आता-जाता है, तब मस्तिष्क में ठंडक प्रदान करता है।

यह स्वर हमारे दाएं मस्तिष्क को सक्रीय बनाता है।

जब उल्टी तरफ की नाक से ज्यादा सांस चलती है, तो शरीर की सभी नाड़ियाँ शिथिल होने लगती है।

कफ प्रकृति वाले की बाएं तरफ की नाक अधिक चलने से उन्हें सर्दी-खांसी, जुकाम, निमोनिया एवं एलर्जी की शिकायत होने लगती है।

शरीर निढाल सा होकर आलस्य से भर जाता है।

दाएं तरफ के सूर्य स्वर में पिंगला नाड़ी होती है यह स्वर गर्म प्रकृति का होता है।
जब श्वास दायें अर्थात सीधी तरफ की नासिक से ज्यादा आता-जाता है, तब शरीर में गर्मी आती है।

यह स्वर बाएं मस्तिष्क को सक्रिय बनता है, लेकिन यह मन-मस्तिष्क को ऊष्मा, गर्मी दायक भी होता है,

जिससे तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, अशांति, आशंका, नींद न आना, चिन्ता जैसी आधि-व्याधि शरीर में आबाद होने लगती है।

इसलिए हमेशा अपनी सांस पर देने की बात श्रीमद्भागवत गीता के छठवें अध्याय में कही गई है।

महर्षि पतञ्जलि ने कहा कि मनुष्य की एक-एक सांस मूल्यवान है, इसे व्यर्थ नहीं गवानां चाहिए।
ऋषि अगस्त सहिंता के अनुसार
जब रोग गले के ऊपर हिस्से यानी गला, नाक, कान, चक्षु और मन-मस्तिष्क में हों, तो चन्द्र स्वर चल रहा है-ऐसा जाने।

इसकी चिकित्सा है कि- बाईं नाक को बन्द कर केवल सीधी नाक से शनै:-शनैः श्वास लेकर…..सीधी नासिका से ही छोड़े।

तन को तन्दरुस्त करने का तरीका
इसी प्रकार गले से निचले भाग वाले पूरे शरीर में रोग होने का कारण सीधी तरफ की नाक से सांस का आवागमन ठीक ढंग से नहीं हो रहा

अर्थात व्यक्ति की दाईं ओर की नासिक बन्द है।

अतः ऐसा अनुभव होने पर सीधी नासिका बन्द कर 50 से 100 बार लेफ्ट साइड की नाक से ही श्वांस धीरे-धीरे लेफ्ट
से छोड़ना चाहिए।
सांस की संगत से जीवन की रंगत बदल जाती है…
श्वास-प्रश्वास यदि लय-ताल से चले, तो मलिन मनुष्य भी परमहंस की उपाधि पा सकता है।

नीतिशास्त्र में वर्णन है-
संगत ही गुन होत है, संगत से गुण जाहि

अवधूत की संगत से व्यक्ति भभूतधारी बन कर बिना तिलक के राजा हो सकता है।

संगति सुमति पावही-परे कुमत के धंध।

एक जगह लिखा है-
संगम करहि- तलाब तलाई।
अर्थात-ऐसे संगम स्नान का क्या फायदा, जब सहवास का एहसास न छूटे।
प्रेम-प्रसंग, मेल-मिलाप, विषय-भोग छूटता नहीं है, तब कहना ही पड़ता है-
अजब संगदिल है, करूँ क्या खुदा

जीवन के हर छोटे-बड़े कार्यों की सफलता के लिए इस श्वास या स्वर विज्ञान का अत्यंत महत्व है।

स्वर विज्ञान रहस्य के राज है कि-
करोड़ 92 चलती है-उम्र भर की स्वांस।
विधाता ने मनुष्य को वानबे करोड़ सांस के साथ जन्म दिया, इसे जैसे चाहो खर्च करो।

अघोरियों की एक सूक्ति बहुत प्रसिद्ध है-
बैठत बारह, चलत अट्ठारह, सोवत में छत्तीस।

भोग करें, तो चौसठ टूटें क्या करें जगदीश।

मतलब सीधा सा है कि- एक मिनिट बैठने से 12, चलने से 18, सोने से 36 और सेक्स करने से 64 सांसों
का खर्चा होता है।

उच्च स्तर के साधु-सन्त कहतें हैं-
छोटो एवं नकारात्मक सोचने से 128 तथा द्वेष-दुर्भावना रखने से 1 मिनिट में 256 स्वांसों का क्षरण होता है।

अध्याय:४०; यजुर्वेद ऋचा २ में कहा है-
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं् समा:!!
भावार्थ- इस सन्सार में स्वस्थ्य रहते हुए १०० साल
तक शुभ कर्मों को निश्चयपूर्वक करता हुआ
जीने की इच्छा कर।

अत: शिवभक्त मनुष्यों को चाहिए कि-
भत्वा कर्माणि सीव्यति। (निरुक्त ३-१)
अर्थात:-हर विषय पर विचार कर कर्म करे, पाप से बचे, काली कमाई न करे।

ज्यादा आपाधापी करने से शुभ और अशुभ कर्मों का ज्ञान नहीं रहता। कर्मों की गति तेज होने के कारण
अशुभ कर्मों के होने की संभावना अधिक रहती है।

अघोरी सन्त कीनारामजी का मत है-
मुश्किल से यह नर तन पाया,
बिन शुभ कर्म किये व्यर्थ गंवाया।

दोनों नासिकाओं में बराबर सांस चलने
से ऊर्जा मस्तिष्क के मध्य भाग में बहने लगती है।

इससे एक तीसरी नाड़ी चलने लगती है जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते है।
यह आध्यात्मिक दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण होती है। यह मध्य नाड़ी चक्रों में बहती ऊर्जा को उर्ध्वगामी कराती है।
यह स्वर कुछ समय लगभग 2 से 5 मिनट के लिए ही होता है।

जब यह स्वर चलता है, तब व्यक्ति में हल्कापन व मन की शांति का अनुभव होने लगता है।

योग-प्राणायाम करने और ध्यान में बैठने से तथा पर्वतों पर भ्रमण करने से सुषुम्ना ज्यादा चलती है।

ऐसे ही किसी महापुरुष के सामने आने या मंदिर और धार्मिक स्थान में जाते ही सुषुम्ना नाड़ी खुल जाती है जिससे इंसान को परमशांति का अनुभव होता है।

स्वर विज्ञान का यह शास्त्र सिद्धि प्रदाता है। ज्योतिष या स्वास्थ्य का ज्ञान और कल्याण यानि भला करने का भाव स्वतः ही अंदर प्रकट होने लग जाता है।

सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने से मनुष्य का शातिर पन, स्वार्थ घटने लगता है।

ऐसे लोग स्वार्थी न रहकर सन्सार के सारथी एवं परमार्थी बन जाते हैं।

पुराने समय में तन और मन की चिकित्सा भी श्वास/स्वर विज्ञान के अनुसार की जाती थी।

इसी स्वर को व्यवस्थित करने के लिए प्राणायाम किया जाता है, ताकि इन स्वरों में ठीक प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होकर शरीर स्वस्थ बना रहे।

आयुर्वेद और योगशास्त्र कहता है कि स्वर
के असामान्य होने, गड़बड़ाने से बहुत सी व्याधियां उत्पन्न होती हैं और प्राणायाम द्वारा इन्हीं स्वरों को पुनः व्यवस्थित करके रोग को ठीक किया जा सकता है।

संगीत के सात स्वर और शरीर के दो स्वर समझ आ जाएं, तो इंसान लम्बी उम्र जीता है।

किस स्वर के चलने पर क्या करे और क्या न करें, स्वर शास्त्र बताता है।

जैसे बाएं नासिका से स्वर के चलने पर सौम्य तथा स्थिर कर्म करने चाहिए

और सीधी नासिका से स्वर के चलने पर शारीरिक परिश्रम के कार्य अधिक करना फायदेमन्द होता है, इससे थकान नहीं होती।
जब कभी सौभाग्य से सुषुम्ना नाडी चले, तब !! नमःशिवाय!! का जाप ध्यान, भक्ति, स्वाध्याय में रहना चाहिए

क्योंकि सुषुम्ना के चलने पर अन्य कोई और कार्य सिद्ध नहीं होता।

दिन में सभी को ऊर्जा की जरूरत रहती है, इसलिए दिन के समय सूर्य नाड़ी चलना हितकारी। है।

रात्रि में मानसिक शान्ति के लिए रात के समय चन्द्रमा नाड़ी यानि लेफ्ट तरफ की नाक से सांस का आना-जाना उचित रहता है।

ज्योतिष नाड़ी सहिंता में उल्लेख है कि-
आप जिस व्यक्ति से बात कर रहे हो, उसी नासारन्ध्र की तरफ उस व्यक्ति को रखकर बात करें, तो कार्य सिद्ध होता है।

विदेश यात्रा पर जाना हो, तो चन्द्र नाड़ी और अपने देश में कहीं जाना हो,

तो सूर्य नाड़ी में प्रवास प्रारम्भ करें। घर से निकलने के समय जो स्वर चल रहा हो यदि वही पैर पहले बाहर निकालें तो कार्य पूर्ण होता है।

दाए स्वर में भोजन करें और बाए स्वर में
जल पीये, तो पुरुषार्थ में बढोत्तरी होती है।
इस प्रकार आयुर्वेद, ज्योतिष एवं स्वर नाड़ी विज्ञान अनेक ज्ञान देता है।

यह स्वर विज्ञान इतना वैज्ञानिक था कि- पूर्वकाल में हमारे पूर्वज इन बातों का विशेष ख्याल रखते थे।

सूर्यभेदन प्राणायाम क्या है…
प्रातः उठते ही या फ्रेश होने के बाद और रात्रि में कम से कम 50 से 100 बार लेफ्ट वाली नाक बन्द करके केवल सीधी नाक से ही धीरे-धीरे सांस लेकर सीधी नाक से ही छोड़े।

इस नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होने लगती है।

उदर, ह्रदय, गुर्दे एवं फेफड़ों के विकार मिटने लगते हैं।

ठण्ड के मौसम में सूर्यभेदन प्राणायाम का अभ्यास करने से गले की खराबी, बार-बार होने वाली सर्दी-जुकाम, कफ संबंधी रोग तथा नजला-निमोनिया से राहत मिलती है।

दमा-अस्थमा, खाँसी, साइनस, फेफड़े या लंग्स, हृदय और बवासीर के लिए यह प्राणायाम अत्यंत लाभप्रद रहता है।

सूर्यभेदन के अभ्यास से आत्मविश्वास बढ़ता है।

घबराहट, एंजायटी, बेचैनी, भय-भ्रम मिटकर, मन शांत रहता है तथा मस्तिष्क से तंद्रा दूर होती है।

यह सकारात्मक विचारों का संचार करने में सहयोगी है।

विशेषकर यह उन पूरुषों को बेशुमार लाभकारी है।

जिनकी सेक्स शक्ति खत्म हो चुकी हो। इससे सेक्स ऊर्जा को सही आयाम मिलता है।

और भी अनेक फायदे हैं-सूर्यभेदन के
कोलेस्ट्रोल शरीर की ज़रूरत है। कोलेस्ट्रॉल एक केमिकल कंपाउंड होता है

जिसकी जरूरत सेल के निर्माण और हॉर्मोंस के लिए होती है। इसके बढ़ जाने पर शरीर को हानि की सम्भावना रहती है।

ह्रदय रोग, ह्रदय घात और पेरिफ्रेरल आर्टरी डिज़िज़ का खतरा हमेशा दिमाग में बना रहता है।

ह्रदय तक प्राणवायु नहीं पहुंचने के कारण
शरीर में कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि से रक्तनलिकाएँ सूक्ष्म होती जाती हैं,

जिससे हृदय संस्थान पर रक्त प्रवाह (ब्लड सर्कुलेशन) ठीक से नहीं हो पाता।

सूर्यभेदन ह्रदय रोग कारगर उपाय है।
महिलाओं के तन-मन की मलिनता मिटाता है-सूर्यभेदन का प्रयोग….

नाग-शेषनाग और सांप का रहस्य…
सांप के फन नहीं होता, वे जहरीले नहीं होते, इनकी गति धीमी होती है।

जबकि नाग हमेशा फनधारी जहरीला
होता है। सबसे लंबे समय तक श्वांसों को रोकने के कारण नागों की उम्र का आज तक आंकलन नहीं हो पाया।

आदि अनन्त और अमर हैं-शेषनाग

शेषनाग की आयु कितनी हैं-वेदपुरण बता नहीं सके।

एक भ्रम यह भी मस्तिष्क में से निकाल देंवें कि नाग इच्छाधारी होते हैं।

सच्चाई यह है कि- नागितन ही इच्छाधारी तथा नाग मणिधारी होते हैं।

इस विषय पर विस्तार से पूरा लेख क्योरा पर नाग-सर्प में क्या अंतर है? इस नाम से पूर्व में लिखा जा चुका है।
इच्छाधारी नागिन और मणिधारी नाग….
सांस पर सालों तक अंकुश रखते हैं, उनकी उम्र
अज्ञात है। ऐसा मानते हैं कि जब सम्पूर्ण सृष्टि प्रलय में प्राणान्त हो जाती है,

तो अन्त में केवल इच्छाधारी नागिन तथा मणिधारी नाग ही बचते हैं। शायद इसी
वजह से नाग को शेषनाग भी कहा जाता है।

इनका अन्त न होने के कारण इन्हें अनन्त नाग, वासुकी नाग के नाम से सन्सार पूजा करता है।

नाग, पितृदोष की शान्ति-अनंतमूल से कैसे करें…
कड़वे दिन या श्राद्ध पक्ष के एक दिन पहले अनन्त चतुर्दशी को भोलेनाथ के रक्षक अनंत नाग की पूजा का विधान असंख्य आदिकाली से चला आ रहा है।

अग्नि एवं लिंग पुराण में उल्लेख है कि-मृत्यु पश्चात हमारे पूर्वजों,

पितरों की रक्षा अनन्त ही करते हैं।
एक ते अनन्त-अन्त.…
कालसर्प-पितृदोष से मुक्ति के लिए तथा शनि, राहु–केतु की कृपा पाने और अथाह सुख-सम्पन्नता,

सफलता की प्राप्ति हेतु इन्हें इस दिन अमॄतम अनंतमूल बूटी की माला बनाकर अवश्य अर्पित करना चाहिए।

मांगलिक दोष नाशक उपाय…
जिन जातकों की कुण्डली/पत्रिका में
मङ्गल ग्रह नीच राशि कर्क में स्थित हो, उन्हें 9 मंगलवार शिंवलिंग पर अनंतमूल की माला पहनाकर अमॄतम राहु की तेल का..

एक दीपक जलाना चाहिए और अपने गले में भी 9 मनकों की माला पहनने से मनोबल में वृद्धि होती है।

मानसिक शान्ति का अनुभव होने लगता है।
मुझसे जितना अधिक से अधिक हो सका और सही-सटीक खोज जा सका, वैसा ही इस लेख में प्रस्तुत है।

शेष, तो वो शेषनाग जाने, जिस पर धरती टिकी है।

मेरी समझ में बस इतना ही आया कि-
तेरी लीला का न-पाया कोई पार
कि, लीला तेरी तू ही जाने।

कृपया बुरा न माने–
यह सब खोज का विषय है। यदि कथा-वाचकों को कभी तन्हाई में…..कमाई
और जम्हाई (मस्ती,आलस्य) से फुर्सत मिले, तो इस विषय पर भी शोध कर सकते हैं।

क्योंकि राम-राम रटाकर भक्तों को इतना आराम करवा दिया है कि-उनका जीना हराम हो चुका है।

वैसे तो कबीरदास लिख गए हैं कि-
कलयुग खोटा है, जग अंधा है।
इसमें कोई किसी की बात नहीं मानेगा। बल्कि बेरी हो जाएगा, चाहे कितने भलेबकी बात क्यों न हो।

इसलिए एक दोहावली में कहा-
कलि खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय।
चाहे कहूँ सत्य आईना, जो जग बेरी होय।।

फिर भी सोना, सच्चा, साधु, सज्जन जीवन में कई बार टूटते हैं और जुड़ते हैं।

हरेक सनातन धर्मी का फर्ज है…
सोता साधु जगाइए, करें शिवनाम का निरन्तर जाप।

यह तीनों सोते भले, साकित, सिंह और सांप।।
(साकित का आशय अधर्मी, पापी से है)

क्यों पढ़ना चाहिए?- वेद-पुराण धर्म ग्रंथ…
वेद-पुराण और सदगुरुओं का मानना है कि हमारे द्वारा कहे गए 1-1 अक्षर-ब्रह्माण्ड में गुंजायमान हैं।

मन्त्र या शब्दों के वश में हैं-शिव
अनजाने में या गलती से भूलचूक में भी लिया गया महादेव का नाम मनुष्यों को कष्ट से पार लगाता है।
हर शब्द अमॄतम क्यों? धर्म की ऐसी धारणा है कि-शब्द ही ब्रह्म या परमसत्ता है।

सृष्टि में हर चीज और जीव का अंत है, लेकिन अक्षर और शिव आदि अनन्त हैं।

रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि मरा-मरा जपते राम के धाम पहुंचे।

ऐसे बहुत से किस्से धार्मिक कथाओं
में भरे पड़े हैं।

आध्यात्मिक या धार्मिक किताबें पढ़ने से मनोविकार नष्ट होते हैं। स्वास्थ्य ठीक रहता है।

रोज अमॄतम ब्लॉग पढ़े, तो आपको सदाशिव का आशीष मिलेगा ही क्योंकि भगवान् का नाम अग्नि के सामान हैं।

शास्त्रमत वचन है कि- यदि आप अग्नि को अनजाने में, गलती से भी छुएंगे,

तो आपका हाथ जलेगा! उसी प्रकार से यदि आप अनजाने में, भूल से भी ईश्वर का नाम लेंगे या धार्मिक ग्रंथ या लेख पढ़ेंगे, तो निश्चित ही यह प्रयास मन को शान्ति प्रदान करेगा।
अनेक स्त्रियों को पीसीओडी अर्थात सफेद पानी जाना, श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया की शिकायत बनी रहती है।

इस स्त्रीरोग में योनि मार्ग से सफेद, चिपचिपा गाढ़ा स्राव होता रहता है, जिससे उनमें सेक्स के प्रति अरुचि होती जाती है।

अपने शरीर के सभी अंग को साफ, स्वच्छ रखने से व्हाइट डिस्चार्ज की इस समस्या से बचाव हो सकता है।

लेकिन यदि इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही हो, तो एक हफ्ते सूर्यभेदन प्रक्रिया अपनाकर देखें।

आयुर्वेद में पीसीओडी रोग की सर्वश्रेष्ठ ओषधि अमॄतम का नारी सौन्दर्य माल्ट भी अत्यन्त असरकारी है।

इसे 3 महीने लगातार दूध के साथ सेवन करके देखें।

सदैव स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपाय भी अपनाते रहें…
■ एक आंवला मुरब्बा, अमॄतम गुलकन्द सुबह शाम अवश्य लेवें।

आवलां मुरब्बा एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण शरीर की अतिसूक्ष्म सुप्त नाड़ियों को
क्रयाशील बनाता है और गुलकन्द पित्त विकारों को शान्त करती है।
■■ भोजन में अकेले टमाटर का सलाद में कालीमिर्च, सेंधा नमक मिलाकर लेवें।

यह पेट के कृमियों का नाश कर कफा नहीं बनने देता।
■■■ अमॄतम स्फटिका भस्म यह जीवाणु नाशक महिलाओं के लिए अमृत ओषधि है।

इसे घर पर भी निर्मित कर सकते हैं।
स्फटिका यानि फिटकरी को तवे पर फुलाएं एवं पीसकर रख लें।

इसे सादे जल में मिलाकर सुबह शाम योनि को धोएं।
■■■■ मुलेठी, अमॄतम सितोपलादि चूर्ण, गुड़ 20-20 ग्राम, सेंधा नमक तथा अमॄतम टंकण भस्म
5-5 ग्राम, कालीमिर्च 2 ग्राम मिलाकर 72 गोली बनाएं। सुबह शाम इसे सादे जल से तीन महीने तक उपभोग करें।

इस घरेलू इलाज से फेफड़े और गले का संक्रमण कम होता है। कफ गलकर निकल जाता है।
88 तरह के वातरोगों एवं थायराइड
अर्थात ग्रंथिशोथ से मुक्ति पाने के लिए
अमॄतम ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
अमॄतम ऑर्थोकी गोल्ड केप्सूल
का सेवन करें।
कब्ज हो बेहिसाब, तो पेट साफ की दवा,
आईबीएस जैसे गृहणी रोग लिवर को खराब कर सकते हैं-इसका इलाज और
बालों को बलशाली कैसे बनाएं आदि अनेक बीमारियों के बारे में
जानने हेतु अमॄतम पत्रिका
अब ऑनलाइन पढ़ें।
http://www.amrutam.co.in
http://www.amrutampatrika.com
आप इस लिंक को अपने इष्ट-मित्र, रिश्तेदारों को गूगल, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प, इत्यादि से शेयर कर सकते हैं,

ताकि हमारी महान भारत की परम्परा को जानकर सभी स्वस्थ्य-सुखी रह सकें।
सूर्य के बारे में अभी बहुत सी दुर्लभ ज्ञान शेष है। इसकी जानकारी आगामी ब्लॉगों में दी जावेगी।
और अन्त में अमॄतम अक्षर…
स्वास्थ्य को लेकर कबीर ने लिखा कि-
तंदरुस्ती के लिए पुराने योग-नियम अपनाने चाहिए-
लीक पुरानी जो तजें,
कायर, कुटिल, कपूत।
लीक पुरानी पर ही रहें,
शातिर, सिंह सपूत।।

सन्सार सांस से गतिमान है। जब तक
जीव की श्वास है, तब तक ही उसकी आस है। कहतें भी हैं कि-

आशा से आसमान टिका है।

इसलिए बाबा विश्वनाथ पर विश्वास सदैव टिकाएं रखें क्योंकि निराशा ‘नरक’ का द्वार है।

अमॄतम पत्रिका के इस लेख में ऐसी जानकारी दी जा रहीं हैं,

जो सबको स्वस्थ्य-सुखी, सम्पन्न-,प्रसन्न बनाये

रखने में सहायक है।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *