Badrinath

यहाँ एक बार के दर्शन से गरीबी हो जाती है दूर। लक्ष्मीपति बद्रीनाथ के रहस्य जानकर आप हैरान हो जाएंगे। पार्ट-1

हारे का सहारा हरिधाम है -बद्रीनाथ पार्ट-1
ब्रहाण्ड के एक मात्र देवता बद्रीनाथ, जो आदमी को अथाह धन-सम्पदा के मालिक बना देते हैं।
श्रीमद्भागवत पुराण के एक श्लोक
अनुसार सिद्ध क्षेत्र बद्रिकाश्रम में भगवान बद्री सभी जीवित
मनुष्यों की घोर गरीबी, दुःख दूर करने और जीव-जगत का
 उद्धार करने के लिए नर तथा नारायण के रूप में अनंत काल से तपस्या में लीन हैं।
वादा किया है, तो निभाना पड़ेगा-
भोलेनाथ ने वरदान स्वरूप सुदर्शन चक्र देकर वचन लिया था कि, जो भी कोई बद्रीनाथ में आकर
तुम्हारा दर्शन या स्मरण करे, तो तत्काल उसके कष्ट दूर कर  मनोकामना पूरी करके,उसकी गरीबी मिटा देना।
इस लेख में बद्रीनाथ के बारे में 100 से अधिक बिंदुवार, सिलसिलेवार सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है, जिसे आज तक शायद किसी ने नहीं पढ़ी होगी।
◆ बद्रीनाथ सृष्टि का दूसरा वैकुण्ठ धाम है। विष्णुजी का पहला वैकुण्ठ क्षीरसागर है।
◆ जीवन में एक बार यहाँ की यात्रा क्यों करना चाहिए।
◆ जोशीमठ के नृसिंग भगवान का एक बाजू बहुत पतली है, जिस दिन यह टूटकर गिर जाएगी, उस दिन नर-नारायन पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीविशाल वहाँ से लुप्त होकर, फिर भविष्य बद्री में प्रकट होंगे। नृसिंग मंदिर से बद्रीनाथ का गहरा नाता है।
नीचे दिए गए हेडिंग को आगे विस्तार से पढ़े
◆1  अनाथों के नाथ बद्रीनाथ-
◆2  बद्रीनाथ में ६ महीने करते हैं- पूजा
◆3  पण्डों की पंचायत
◆4  बद्रीनाथ नाम क्यों पड़ा
◆5  महाभारत में भी बद्रीनाथ का उल्लेख है।
◆6  कभी शिव की भूमि थी बद्रीनाथ
◆7  हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुःख विधि हाथ
◆8  कलयुग में आदि शंकराचार्य ने खोजा था बद्रीनाथ तीर्थ
◆9  मानसिक अशांति एवं डिप्रेशन दूर करें
◆10 जाने बद्रीनाथ/बद्रीनारायण के रहस्य
◆11  बदरी का अर्थ है बेर  और इसके रहस्यमयी चमत्कार
◆12  भयंकर गरीबी, दुख-दर्द मिटाता है बेर-
◆13  महाशिवरात्रि पर क्यों चढ़ाते हैं बेर फल
◆14  बद्रीनाथ में ही भगवान विष्णु को शिव की तपस्या के फलस्वरूप सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था।
◆15  कहाँ मिलते हैं ब्रह्नकमल- इसकी कहानी
◆16  पितृपक्ष से क्या सम्बन्ध- है ब्रह्मकमल का
◆17  ब्रह्मकमल का महत्व- इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि दानवीर कर्ण ने इसे खोजा था।
◆18  भगवान शिव ने, जब वरदान मांगने को कहा, तो विष्णु जी रो पड़े
◆19 अस्त्र-शस्त्र में अन्तर क्या है जानिए-
◆20  सुदर्शन चक्र की विशेषता एव रहस्य
◆21  सुदर्शन चक्र धारी विष्णुजी
◆22  केवल अस्त्र लोटता, शस्त्र कभी लौटकर नहीं आता
◆23  जानिए– दुनिया का एक मात्र ऐसा अदभुत अस्त्र जिसे आज तक बड़े से बड़े वैज्ञानिक नहीं बना पाए 
◆24  सृष्टि का एकमात्र रहस्यमयी अस्त्र, इच्छाधारीचक्र 
और उसका आकार एवं कहाँ स्थित रहता है चक्र-
◆25  तर्जनी उँगली से फेंका जाता है – सुदर्शन चक्र-
◆26 राधा-कृष्ण हैं शिव-पार्वती का अवतार
◆27  मैं क्या जानू, गुरु – तेरा गोरख धन्धा
◆28  श्रीनाथ द्वारा में होती है सुदर्शन पूजा
◆29 अदभुत है सुदर्शन कवच के चमत्कार
◆30 अट्ठारह पुराणों की रचना व्यास जी ने यहीं की थी-
◆31 पितरों की प्रसन्नता के लिए पिण्डदान
◆32 श्री विष्णु की स्वयं प्रकट आठ प्रतिमाएं
◆33 केरल का गुरुवायुर तीर्थ –ഗുരുവായൂർ मलयालम
◆34 विश्व का सबसे धनाढ्य मन्दिर तिरुपति बालाजी 
◆35 चमत्कारी है श्रीरंगम विष्णु मंदिर त्रिचनापल्ली
◆36 जम्बुकेश्वर जलतत्व शिंवलिंग
◆37 रहस्यमयी पदमनाभ मन्दिर केरल 
◆38 बद्रीनाथ के अगले-बगल बहुत सिद्ध स्थान हैं
◆39 चार और भी बद्री हैं – उत्तरांचल में
◆40 यह भगवान शिव का गणित है- इसे पढ़ना बहुत जरूरी 
◆41  केरल के रावल करते हैं बद्रीनाथ की पूजा
◆42 जो नमः शिवाय जपता-दुःख जन्म-जन्म का कटता
◆43 चार धाम और चार मठ के रहस्य
◆44 वसुधारा या वसुन्धरा फॉल का उलझा रहस्य
◆45 वेद व्यास गुफा” या “गणेश गुफा
◆46 मङ्गल दोष निवारक तप्तकुण्ड में हमेशा रहता है गर्म पानी
इस तरह की बहुत सी जानकारी और रहस्य इस ब्लॉग में लिखे गए हैं, जिसे आज तक किसी ने कहीं भी पढ़ा नहीं होगा। बद्रीनाथ की यह जानकारी जानकर आप रोमांचित हो जाएंगे।
सिद्ध पीठ केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में रोमांचित करने वाली सत्य कहानियां अगले ब्लॉग में दी जाएंगी।
 
बहुत सी खोज पहली बार पढ़े जैसे-
{{}} आयुर्वेद के द्वारा कैसे रहें स्वस्थ्य
{{}} सर्प-पितृदोष, दुर्भाग्य, गरीबी, दुःख, तकलीफ, रोग बीमारी कैसे मिटायें तथा क्या है  {{}} अमरकथा का रहस्य-यह समझने के लिए 
www.amrutampatrika.com की वेबसाइट पर पिछले ब्लॉग देखें।  
रोंगटे खड़ी कर देने वाली एक अनसुनी कथा

बद्रीनाथ के रहस्य जानकर आप हैरान हो जाएंगे। बहुत कम लोग जानते है कि- भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र यहीं मिला था, तबसे इन्हें कमलनयन भी कहते है।

इस लेख में रहस्योउपनिषद ग्रन्थ से जाने बहुत से अचंभित करने वाली जानकारी। केदार नाथ के विषय में अगले ब्लॉग में दिया जाएगा। अमरनाथ गुफा में स्वतः ही निर्मित हिम शिंवलिंग के अद्भुत दुर्लभ रहस्य अमृतम की वेबसाइट पर उपलब्ध है। अमरनाथ यात्राऔर अमरकथा की पूरी कहानी पढ़ने के लिए www.amrutampatrika.com सर्च करें।

अनाथों के नाथ बद्रीनाथ-
लघु चार धामों में से एक शिव की भूमि में स्थित बद्रीनाथ का यह पवित्र श्रीहरि धाम (विष्णु तीर्थ) ऋषिकेश से लगभग 214 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा की तरफ, सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब से कुछ ही दूरी पर है। फूलों की घाटी में बसे इस क्षेत्र में हमेशा पूरे वर्ष ठण्ड का मौसम रहता है।

बद्रीनाथ में ६ महीने करते हैं- पूजा

स्वयम्भू बद्रीनाथ में ६ महीने
मनुष्य और ६ महीने देवता पूजा इत्यादि करते है। बद्रीनाथ मन्दिर में वर्षों से एक अखण्ड दीप जल रहा है, जो पट बन्द होने के बाद भी प्रज्वलित रहता है।

बताते हैं कि इस समय देवता गण पूजा करते हैं। मन्दिर के जब पट खुलते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि अभी-अभी कोई पूजा करके गया है। पुष्प, तुलसी की माला सब ताज़ी होते हैं। यह सृष्टि में गरीबी दूर करने वाला भगवान विष्णु का रहस्यमयी और अनोखा धाम है। यहां भगवान श्री विष्णु साक्षात वास करते हैं।

पुरानी कहावत है:

सन्त-महात्माओं का कहना है कि

 जो जाऐ बद्री के द्वार,

वो ना आये ओदरी नार “

अर्थात जो व्यक्ति जीवन में केवल एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता। यानि उसे पुुनः माँ के गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब साफ है कि दर्शन करने वाले यात्री के जीवन से गरीबी दूर हो जाती है। सर्व सुख, सम्पन्नता आने लगती है और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। ऐसा पुराणों का वचन है।

स्कन्द पुराण में इस स्थान का वर्णन
इस तरह लिखा है:
बहुनि सन्ति तीर्थानी दिव्य भूमि रसातले।
बद्री सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यतिः॥ 

अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी तथा नर्क तीनों ही जगह अनेकों तीर्थ स्थान हैं, लेकिन शिवभूमि में स्थित बदरीनाथ जैसा कोई तीर्थ न कभी था, और न ही कभी होगा।
कभी शिव की भूमि थी बद्रीनाथ
स्कन्द पुराण के केदारखण्ड, विष्णुपुराण, ईश्वरोउपनिषद, शिवरहस्य, तथा अन्य धार्मिक ग्रंथो के अनुसार यह भूमि (स्थान) भगवान शिव भूमि या केदारनाथ भूमि के रूप में व्यवस्थित थी। एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु अपने ध्यानयोग, शिवसाधना के लिए एक प्राकृतिक ऊर्जावान स्थान खोज रहे थे, तब उन्हें अलकनंदा नदी के किनारे यह शिवभूमि क्षेत्र बहुत पसंद आया और उसी स्थान पर वे ध्यान लगाकर बैठ गए।

पण्डों की पंचायत-

बद्रीनाथ के कुछ पण्डे यह भी बताते हैं कि शिवभूमि में आकर विष्णुजी ने बालक का रूप धारण किया और रोने लगे, तभी भ्रमण करते हुए श्रीहरि के रोदन गान सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस अदभुत बालक के पास पहुंचे और उस बालक से पूछा? कि तुम क्यों विलाप कर रहे हो, तो बालक ने ध्यान-साधना करने के लिए शिववन यानि शिवभूमि केदार खण्ड वरदान स्वरूप यह सिद्ध तीर्थ प्राप्त कर लिया।यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात है।

बद्रीनाथ धाम का नाम बद्रीनाथ क्यों पड़ा –

धर्म की धारा अनंत है और किससे-कहानी भी। भगवान विष्णु के नाम और काम अनेक हैं। एक कथा यह भी है कि लक्ष्मी-विष्णु में किसी बात को लेकर विवाद हो गया, तो वे किसी शिवभूमि में जहाँ बेर वन था। वहां आकर तपस्या करने लगे। यह वही तीर्थ है। लक्ष्मी जी जब खोजते हुए इस जगह आईं, तब इस स्थान को बद्रीनाथ धाम दिया।

गरुणपुराण के अनुसार कभी यह तीर्थ शिवक्षेत्र, शिववन, शिव तपोवन के नाम से प्रसिद्ध था। भगवान शिव इस स्थान को छोड़कर केदारनाथ जा बसे, लेकिन यह स्थान आज भी शिवभूमि कहलाता है। ऐसा अन्य पुराणों में भी वर्णन है।

महाभारत में भी बद्रीनाथ का उल्लेख है। 

अन्यत्र मरणामुक्ति: स्वधर्म विधिपूर्वकात। 

बदरीदर्शनादेव मुक्ति: पुंसाम करे स्थिता॥

अर्थात अन्य तीर्थों में, तो स्वधर्म का विधिपूर्वक पालन करते हुए मृत्यु होने से मनुष्य की मुक्ति होती है, किन्तु बद्री विशाल के दर्शन मात्र से ही मुक्ति यानि धन-सम्पदा उसके हाथ में आ जाती है।

श्री बदर्याश्रमं पुण्यं यत्र यत्र स्थित: स्मरेत। 

स याति वैष्णवम स्थानं पुनरावृत्ति वर्जित:॥ (वराहपुराण)

अर्थात मनुष्य कहीं से भी बद्री आश्रम का स्मरण करता रहे, तो वह पुनरावृत्तिवर्जित वैष्णव धाम को प्राप्त होता है। दरिद्रता का नाश हो जाता है। सम्पन्नता प्राप्त कर पुनर्जन्म नहीं लेता।

विशेष– कहीं-कहीं उपनिषदों में मुक्ति का आशय गरीबी से छुटकारा बताया गया है। कठोपनिषद में लिखा है कि- बद्रीनारायण दुःख-दरिद्रता मिटाने वाले देवता हैं। मुक्ति का अधिकार केवल भगवान शिव के पास है। श्रीरामचरितमानस  में सन्त तुलसीदास का वचन सत्य है, उन्होंने लिखा है-

हानि-लाभ, जीवन-मरण, सुख-दुःख विधि हाथ 

गुरु गोरखनाथ  ने अपनी गोरखवाणी में शिव को विधि कहा है। अग्नितत्व शिंवलिंग तिरुअन्नामलय दक्षिण भारत के महान शिवसन्त  महर्षि रमण के अनुसार

शिव ही विधाता, शिव ही विधान!

शिव ही ज्ञानी, शिव ही ज्ञान !!

अर्थात आदि और अंत-अनंत शिव ही है।

जाने बद्रीनाथ/बद्रीनारायण के रहस्य

द्रीनाथ में ही शिंवलिंग पर विष्णुजी ने 1008 ब्रह्नकमल पुष्प अर्पित कर पाया था सुदर्शन चक्र-

बद्रीनाथ के पास सतोपंथ क्षेत्र में रहने वाले
एक सिद्ध साधु श्री विशालहरी के मुताबिक-
जिस स्थान पर आज बद्रीविशाल विराजमान हैं, उस जगह कभी बेर बराबर १०८ स्वयम्भू शिंवलिंग स्थापित थे, जो आज लुप्त होकर जमीन के अन्दर धसक गए। आज यहीं पर बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित है।

आदि शंकराचार्य ने खोजा था बद्रीनाथ तीर्थ-

आदि शंकराचार्य ने इस स्थान की खोज की थी, जब वे इस जगह शिव दर्शन के लिए आये थे। बद्रीनाथ में ही उन्हें स्वप्न आया कि तुम्हारे इष्ट महादेव अब केदारनाथ में विराजमान हैं। मेरी प्रतिमा नारदकुण्ड में हजारों वर्षों से पड़ी है। इसे खएँ स्थापित करवाओ। सपने में ही भगवान बद्रीनाथ ने वरदान दिया कि जो भी कोई भक्त इस स्थान पर मेरे परम् आराध्य भगवान शिव के पंचाक्षर मन्त्र ॐ नमः शिवाय या नमः शिवाय च नमः शिवाय की 5 माला जाप करेगा, उसकी गरीबी हमेशा के लिए दूर हो जााएगी।

मानसिक अशांति एवं डिप्रेशन दूर करें

सूर्योपनिषद एक प्राचीन ग्रंथ के अनुसार जो कोई भी भक्त, यात्री इस स्थान पर 5 दीपक अमृतम राहु की तेल के जला, प्रज्जलित कर 5 माला ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय का जप करता है उसका आत्मबल बढ़ जाता है।उपरोक्त मन्त्र के जपने से मानसिक अशान्ति, डिप्रेशन से परेशान, व्यक्ति की पीड़ा जीवन भर के लिए दूर हो जाती है।

बद्रीनाथ में श्रीहरि विष्णुजी ने अपने नयन अर्पित कर, वे कमलनयन के नाम से जगत में विख्यात हुए-
विष्णु पुराण, शिवपुराण, हरिवंश पुराण तथा रहस्योउपनिषद आदि धर्मिक ग्रंथों में यह कथा आती है कि – उत्तर दिशा में अलकनन्दा गंगा के किनारे इस शिवभूमि में असंख्य बेर के वृक्ष थे।

बदरी का अर्थ है बेर  और इसके रहस्यमयी चमत्कार

बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल मे यहाँ  बेर फल के बहुत ज्यादा वृक्ष हुआ करते थे, इसलिए इस जगह का नाम बद्रीवन पड़ गया। इसका एक प्राचीन नाम वृंदावन अर्थात तुलसी वन भी है,
क्योंकि यहाँ पर जालन्धर की पत्नी वृन्दा ने भगवान शिव का घोर तप किया था। बद्रीनाथ में आज भी मन्दिर के पिछले भाग में दुर्लभ तुलसी के पौधे हैं, जिसकी माला रोज बद्री विशाल को पहनाई जाती है। यहां सात प्रकार की तुलसी उत्पन्न होती हैं।

भयंकर गरीबी, दुख-दर्द मिटाता है बेर-

आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश निघण्टु में बेर का एक बद्री भी बताया है। बेर शरीर की गर्मी एवं पित्त का नाश करता है। 11 मासशिवरात्री और एक महाशिवरात्रि की रात को 12 बजे से 3 बजे के बीच भगवान शिव के 1008 हजार नाम यानी शिव सहस्त्र नामावली द्वारा एक-एक नाम से 1008 बेरअर्पित करने से तीन जन्मों की गरीबी दूर हो जाती है। स्कन्द पुराण के ग्रहनक्षत्र शान्ति खण्ड में ऐसा उल्लेख मिलता है।

महाशिवरात्रि पर क्यों चढ़ाते हैं बेर फल–

महाशिवरात्रि के दिन शिवमंदिरों में बेर चढ़ाने की परपंरा का यही रहस्य है। गर्मी का आरम्भ महाशिवरात्रि के दिन से शुरू हो जाता है। गर्मी के प्रकोप से पित्त की वृद्धि होती है, जो शरीर में अनेक विकारों का कारण बनता है। इस दिन बेर शिंवलिंग पर अर्पित करने से बहुत सी नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। पूरे वर्ष पित्तदोष शान्त रहता है। 

 बद्रीनाथ में ही भगवान विष्णु को शिव की तपस्या के
फलस्वरूप सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था।

बद्रीनाथ वही स्थान है, जहाँ विष्णु जी ने
भोलेनाथ के दर्शन पाने के लिए इसी
शिवभूमि में तपस्या की थी। लेकिन जब
नीलकंठ ने उन्हें दर्शन नहीं दिए, तो उन्होंने
१००८ शिव नामावली द्वारा ब्रह्मकमल पुष्प अर्पित करने लगे, किन्तु अंत में एक फूल कम पड़ गया, तब विष्णुजी अपनी आंख निकालकर अर्पित करने लगे, तभी भोलेनाथ नीलकंठ वहाँ प्रकट हुए और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान माँगने को कहा!  वरदान में क्या मिला, आगे पढ़ें

कहाँ मिलते हैं ब्रह्नकमल-
ब्रह्मकमल की कहानी-
केदारनाथ से करीब 3 किलोमीटर पर्वतीय
क्षेत्र में ब्रह्मकमल एवं वासुकी ताल नामक तीर्थ और सिखों पवित्र गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब
में अगस्त-सितम्बर-अक्टूबर
महीने में ब्रह्मकमल खिलते है। यह सफेद रंग का
बहुत मुलायम रेशम के कपड़े से भी ज्यादा झीना होता है।

इसमें बहुत सी पंखुड़ियां होती है। यह वर्ष में एक बार तथा कभी-कभी 14 साल में एक बार सिर्फ रात में खिलता है और सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है।
ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊंचाई पर
बर्फीले स्थान में पाया जाता है।
पितृपक्ष में विशेष महत्व-
परम् शिव उपासक एवं केदारनाथ समिति के मुख्य
और फ्रंटियर हाउस के स्वामी श्रीनिवास पोस्ती जी
हर रोज केदारनाथ से ऊपर ब्रह्मकमल तीर्थ तथा वासुकी ताल के दर्शन करने जाते हैं। आज तक इन्होंने कई सिद्ध साधुओं के दर्शन किये हैं।
मुझे भी इनके साथ 2-3 बार जाने का सौभाग्य
मिला। श्री पोस्तीजी की कृपा से अनेकों सन्तों के दर्शन किये हैं। इनके द्वारा दिया गया ब्रह्मकमल
पुष्प आज भी हमारे पास सुरक्षित है। यह बहुत ही
भाग्योदय कारक चमत्कारी फूल है।

ब्रह्मकमल का महत्व- इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि दानवीर कर्ण ने इसे खोजा था

केदारनाथ शिंवलिंग पर हर साल ब्रह्मकमल
पुष्प शिवसहस्त्र नामावली द्वारा 1008 फूल
अर्पित करने की परम्परा वर्षों से चली आ रही है।
इसकी शुरुआत महाभारत काल में दानवीर राजा कर्ण ने की थी। इसी वजह से कर्ण को कभी धन की तंगी नहीं होती थी।ऐसी मान्यता है कि-ब्रह्मकमल शिवजी को अर्पित करने से घोर गरीबी मिट जाती है। केदारनाथ की गुफा में रहने वाले सिद्ध साधु इसे केदारनाथ को अर्पित कर अनेक लक्ष्मीतन्त्र सिद्धियों के स्वामी बन जाते हैं। इसकी बनावट, खूबसूरती एवं दैवीय गुणो के कारण ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी है।

भगवान शिव ने, जब वरदान मांगने को कहा, 

तो विष्णु जी रो पड़े-

श्रीहरि ने अश्रुधारा लाते हुए शिव से निवेदन किया कि यह तपस्या मैंने आपके दर्शन हेतु निष्काम भाव से थी, मुझे कुछ नहीं चाहिए, तब भोलेनाथ ने उन्हें सुदर्शन चक्र देकर कहा, यह एक ऐसा अस्त्र है, जिसे सन्सार में दुबारा कोई नहीं बना पायेगा। इसे जगत के कल्याण के लिए आपको दे रहा हूँ, कभी जरूरत पड़ने पर इसका उपयोग करें।

अस्त्र-शस्त्र में अन्तर क्या है जानिए-

आज की नई पीढ़ी को यह मालूम नहीं है कि अस्त्र और शस्त्र में क्या अन्तर होता है।
अस्त्र सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों में अनूठा और अनोखा होता है। अस्त्र की रचना हमेशा भोलेनाथ ही कर सकते हैं। यह अधिकार सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों में अन्य किसी देवी-देवता या वैज्ञानिकों को भी नहीं है। अस्त्र सदैव मन की इच्छाशक्ति से संचालित होता है।

सुदर्शन चक्र की विशेषता एव रहस्य

  सुदर्शन चक्र एक ऐसा अस्त्र है, जो दुश्मन पर वार करके पुनः लौट आता है। इसी कारण इसे अस्त्र कहते हैं। इस चक्र में 108 दाँतेदार किनारों से अग्नि, आकाश, वायु, जल, प्रथ्वी यानी पंचतत्व निकलते रहते हैं।

सुदर्शन चक्रधारी विष्णु

सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के शक्तिशाली अस्त्र का नाम है। यह सृष्टि में सबसे शक्तिशाली दिव्य हथियारों में से एक है, जो केवल अन्याय एवं बुराइयों को नष्ट करने में सक्षम है। यह सदैव भगवान विष्णु की सीधे हाथ की कनिकष्ठा उंगली पर ही रहता है।

शस्त्र कभी लौटकर नहीं आता

शस्त्र वार करने के बाद कभी लौटकर नहीं आते।
दुनिया में शस्त्रों का अम्बार है, लेकिन आज तक केवल सुदर्शन चक्र ही एक ऐसा अस्त्र है, जो आक्रमण करके पुनः लौट आता है 

जानिए– दुनिया का एक मात्र ऐसा अदभुत अस्त्र जिसे आज तक बड़े से बड़े वैज्ञानिक नहीं बना पाए 
सुदर्शन चक्र का अर्थ एवं उसके चमत्कार

सु ± दर्शन की संधि से बना है-सुदर्शन शब्द। सुदर्शन का अर्थ है, जिसका दर्शन ‘सु’ अर्थात शुभदायक है । चक्र शब्द ‘चृः’ (चलन) एवं ‘कृः’ (करना) की संधि से बना है; इसीलिए चक्र अर्थात जो चलायमान है । सर्व हथियार-आयुधों या अस्त्रों में यही एक अस्त्र जो निरंतर गतिमान रहता है

सृष्टि का एकमात्र रहस्यमय अस्त्र,  इच्छाधारीचक्र और उसका आकार

यह मन की गति एवं शक्ति से चलता है। सुदर्शन चक्र का आकार में इतना छोटा हो जाता है कि बेल के पत्ते की नोक पर सिमट जाए तथा इतना बडा भी हो जाता है, कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को व्याप ले।

कब, किसने कहाँ और कैसे किया था प्रयोग

बहुत आश्चर्य की बात है कि इस चक्र के आविष्कारक भोलेनाथ ने आज तक कभी इसका उपयोग नहीं किया। भगवान विष्णु ने इसका बहुत बार प्रयोग किया। श्रीकृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत उठाया था, तो पर्वत के नीचे आधार के लिए श्री सुदर्शनचक्र को रख दिया था। जैसे हम कभी कोई भारी वस्तु उठाते समय छोटा से पत्थर, लोहे का टुकड़ा या लकड़ी फसा देते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में बताया है कि-

श्रीकृष्ण जी ने शिशुपाल को डराने के लिए
सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया था। ऐसा श्रीमद्भागवत, पदमपुराण 
आदि में उल्लेख है। युद्ध में किसी को मारने या अन्य लड़ाई के लिए में प्रयोग न करके महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने जयद्रथ को मरवाने बाबत कृत्रिम सूर्यास्त करने के लिए भी सुदर्शन का इस्तेमाल किया।

कहाँ स्थित रहता है चक्र-

सुदर्शन चक्र किसी हथियार स्थान या आयुध स्टोर में नहीं रखा जाता। यह हमेशा भगवान विष्णु की सबसे छोटी उंगली पर ही रहता है तथा सदैव चलायमान या गतिमान रहता है। कभी स्थिर नहीं रहता। यह कनिष्ठिका पर (छोटी उंगली पर) होता है; क्यों कि यह उंगली जल तत्व की होती है। यह चक्र अग्नि, ऊर्जा का स्त्रोत है, इसलिए इसे जल और ठण्डक की विशेष आवश्यकता है।

तर्जनी उँगली से क्यों फेंका जाता है – सुदर्शन चक्र

 परंतु चक्र फेंकते समय भगवान विष्णु तर्जनी यानि अंगूठे के बगल वाली उंगली का इस्तेमाल करते हैं। तर्जनी उंगली अग्नितत्व की प्रतीक है। अग्नि या हिंसा के सभी कार्य इसी उंगली द्वारा किये जाते हैं जैसे- बंदूक, रिवाल्वर चलना, माचिस जलाना। तर्जनी उंगली किसी को दिखाने पर तुरन्त झगड़ा हो जाता है। पेड़ सुख जाते हैं।  अवधूत-अघोरी तर्जनी और अगूंठे दोनो को जोड़ने से ज्ञान मुद्रा नामक सिद्धि प्राप्त करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण उसे तर्जनी से ही फेंकते हैं।

राधा-कृष्ण हैं शिव-पार्वती का अवतार

अगले लेखों में करेंगे शंका समाधान

आपको मालूम नहीं होगा लेकिन दुर्गा शप्तशती के अनुसार श्रीकृष्ण जी मां भगवती का अवतार हैं और राधा शिव का अवतार हैं। राहु का एक लाखों वर्ष पुराना मन्दिर है, जहाँ राहु देव स्त्री रूप में विराजमान है। जानने के लिए पढ़ते रहें- अमृतम पत्रिका।

शिव के द्वारा निर्मित चक्र पर है सबको फक्र

यह चक्र भगवान शिव की संहारक शक्ति से युक्त बहुत ही घातक अस्त्र है। परमाणु शक्ति या बम की गोपनीयता आज तक सन्सार में किसी को भी मालूम नहीं है। पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र अष्टधातु- सुवर्ण यानी सोना, रजत (चांदी) और लोह के मिश्रण से बना हुआ एक अस्त्र है। इस चक्र में नो प्रकार के रत्न भी जुड़े हुए हैं। सुदर्शन चक्र जब हवा में घूमता है, तो उसमे से कई प्रकार के अग्निबाण निकलने लगते हैं, जिसे आज के युग में मिसाइल कहा जा सकता है। इस कारण इस चक्र की मारक क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती थी।

सृष्टि का सर्वप्रथम अविष्कार है-सुदर्शन चक्र

सुदर्शन चक्र सतयुग के समय का पहला और आज का एक बहुत ही आधुनिक अस्त्र है। इसकी विशेष बात यह भी है कि यह चक्र प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चल सकता है। आज के युग का कोई भी आधुनिक रडार भी इसे पकड नहीं सकता।

जब दुर्बासा ऋषि पर छोड़ा चक्र

विष्णु पुराण के अनुसार अपने प्रिय भक्त राजा अंबरीष को दुर्वासा मुनि  ने क्रोधवश बिना किसी वजह से शाप दिया,
तो भगवान श्रीविष्णु ने उन पर एक बार केवल भयभीत करने हेतु सुदर्शनचक्र छोडा था।

मैं क्या जानू, गुरु – तेरा गोरख धन्धा

गोरखनाथ द्वारा प्रचलित नाथ संप्रदाय के गोरखवाणी नामक एवं हठयोग साधना ग्रंथ में लिखा है कि एक बार गोरक्षनाथ ने सुदर्शन चक्र को रोका था। गोरख पंथ यह भारत का एक धार्मिक पंथ है। इसके आराध्य शिव हैं प्राय: इन्हे भगवान शिव का वंशज भी कहा जाता है। यह हठ योग की साधना पद्धती पर आधारित पंथ है।
वर्तमान में गुरु आदित्यनाथ योगी जी इस पंथ के मठाधीश हैं और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं।

श्रीनाथ द्वारा में होती है सुदर्शन पूजा
राजस्थान के विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथ द्वारा मन्दिर
में पितरों की कृपा पाने तथा केतु की प्रसन्नता हेतु सुदर्शन पूजा की परम्परा है। मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालुओं द्वारा मन्दिर के ऊपर लगे ध्वज पर रोजाना इत्र-पुष्प आदि अर्पित किया जाता है। इस सम्प्रदाय द्वारा रचित एक सुदर्शन कवच भी है।जिसे गुरु वल्लभाचार्य जी ने खोजा था।

दुःख-दरिद्रा नाशक अदभुत है सुदर्शन कवच-

केतु ग्रह एवं घोर पापों की शान्ति तथा अनेकों तरह के कष्टों से अपने भक्तों को मुक्ति दिलाने के लिए जगतगुरु श्री वल्लभाचार्य जी ने इस सुदर्शन कवच को खोजा था। रहस्योउपनिषदकठोउपनिषदभविष्य पुराण और स्कन्द पुराण के गृह दुःख निवारण अध्याय में भी इस तरह के बहुत से कवचों की जानकारी है।

विनियोग क्या होता है

धन वृद्धि, कष्ट मुक्ति तथा जीवन सुरक्षा के लिए अनेक प्रकार के कवच का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में मिलता है

तन्त्रसारःमन्त्रमहोदधि तथा  तन्त्र-मन्त्र शास्त्रों में बताया है कि- शिवकवचकालितन्त्र कवचश्रीगणेश कवचसूर्य कवच, काली कवच एव दुर्गा कवच आदि मन्त्र विद्या के अनुसार मन्त्र विनियोग के पांच अंग हैं– ऋषि, छन्द, देवता, बीज और तत्व। इन 5 अंगों के कारण ही किसी भी मन्त्र में शक्ति समाहित हो पाती है। ऋषि से तात्पर्य है कि जिस गुरु ने इस कवच को सिद्ध कर उसमें देवताओं का आव्हान कर, बीज को निरूपित कर, उसके तत्व को जाग्रत करके बीजमंत्रों की शक्ति को उसी में कीलित, समहितकर पारंगत हो गए हों।

सुदर्शन कवच का विनियोग-

सुदर्शनकवचमालामन्त्रस्य । श्रीलक्ष्मीनृसिंहः परमात्मा देवता । मम सर्वकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः 

प्रलयकालमहाज्वालाघोर-वीर-सुदर्शन-नारसिंहाय ॐ महाचक्रराजाय महाबलाय

यह  सुदर्शन कवच बहुत बड़ा है बस कुछ अंश प्रस्तुत हैं। जिसे जरूरत हो वह  ईमेल करके मंगवा सकता है

यह संक्षेप में विनियोग मन्त्र है। इसका जाप करने से पहले हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना की पूर्ति प्राप्ति के लिए कवच के देवता को निर्देश देना या निवेदन करना विनियोग कहलाता है। विनियोग, न्यास, शापविमोचन आदि की जानकारी आगे कभी विस्तार से दी जावेगी। एक प्रकार से ताले में बन्द किसी चीज को खोलना विनियोग कहलाता है। कोई भी सिद्ध मन्त्र  पासवर्ड  डालकर लॉक कर दिया गया है। यह दुरुपयोग से बचाने के लिए ऋषियों ने ऐसा किया था। आज की नई पीढ़ी को इसकी वैज्ञानिकता समझना जरूरी है।

द्वापरयुग में नर-नारायण ने खोजा बद्रीनाथ

विष्णु पुराण, गरुण पुराण, रहस्योउपनिषद ग्रन्थ में इस क्षेत्र से संबंधित एक अन्य कथा है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए- नर तथा नारायण, जिन्होंने धर्म के विस्तार हेतु कई वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की थी।

अपनी ध्यान साधना के लिए एक ऊर्जावान क्षेत्र की तलाश में वे वृद्ध यानि बूढ़ा बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों में बहुत समय तक घूमते रहे। अंततः उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी का चश्मा अर्थात कुण्ड मिला। इस घने वन में रहकर तप किया। बाद में यह स्थान बद्री विशाल नाम से विख्यात हुआ। नर-नारायण ने ही अगले जन्म में क्रमशः अर्जुन तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।

18 पुराणों की रचना व्यास जी ने यहीं की थी-

महाऋषि व्यास ने बद्रीनाथ मन्दिर से कुछ ही दूरी पर, जो व्यास गुफा के नाम से विख्यात है। सभी 18 पुराण और चार वेदों का साहित्यिक संस्कृत से कुछ सरल संस्कृत में, श्लोक के रूप में इसी गुफा में किया था। प्रमाण है कि गुरु व्यास जी बोलते गए और श्री गणेश जी लिखते गए। यहां दोनो की मूर्तियां भी स्थापित है। जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने इस जगह को खोजा था। सरस्वती नदी का उदगम स्थल भी यहीं हैं।

पितरों की प्रसन्नता के लिए पिण्डदान

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शेषनाग भोलेनाथ के कुलदेवता हैं। श्रीनागराज मंदिर केरल के अलप्पुझा जिले के हरीपद गांव में मन्नारशालानामक तीर्थ में शेषनाग मन्दिर स्थित है। बद्रीनाथ में भगवान शिव जी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी

तमिल ग्रन्थ नाच्चियार तिरूमोलि तथा

तोल्काप्पियम में ऐसा उल्लेख मिलता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण और गरुड़ पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने ब्रह्मा जी के असत्य बोलने पर एक सिर काट दिया, तब उन्हें पितृ दोष लगा था, तो वह हमेशा अशांत एव बेचैन रहने लगे, तब उनके सदगुरु श्री शेषनाग ने सलाह दी कि बद्रीनाथ तीर्थ पर ब्रह्म कपाल पर जाकर पितृदोष की शान्ति का उपाय करें।

पाण्डवों ने भी पितरों का पिण्डदान किया था

श्रीमद्भागवत में लिखा है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं।

श्री विष्णु की स्वयं प्रकट आठ प्रतिमाएं

【1】बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के धन देने वाले देवता श्रीहरि के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी शालिग्राम मूर्ति है। जिसे कलयुग के प्रथम जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। मन्दिर के आसपास के क्षेत्र को पद्म पुराण में आध्यात्मिक निधियों से परिपूर्ण कहा गया है।

【2】मथुरा के द्वारकाधीश – जगत तीर्थ मथुरा में द्वारकाधीश की प्रतिमा भी स्वयम्भू है। यह प्रतिमा पारख जी के बाड़ा, दौलतगंज, ग्वालियर मप्र, में कुए की खुदाई के दौरान मिली थी।

【3】केरल का गुरुवायुर तीर्थ – 

 ഗുരുവായൂർ मलयालम में यह गुरुवयुनकेरे के नाम से प्रसिद्ध है। केरल के त्रिसूर शहर से उत्तर-पश्चिम में समुद्र के किनारे लगभग 30 km दूर है। गुरुवायुर मन्दिर तिरुच्चूर रेलवे स्टेशन से 35 km है। यहाँ से अयप्पा स्वामी सबरीमाला मन्दिर लगभग 239 km है।

भगवान शिव ने ही गुरु और वायुदेव के नाम  पर इस क्षेत्र का नाम गुरुवायूर रख दिया। शिवपुराण में लिखा है कि, जब जन्मपत्री में गुरु और राहु ग्रह खराब हों, तो गुरुवायुर मन्दिर पर जाकर दीपदान करना शुभकारी रहता है।

【4】विश्व का सबसे धनाढ्य मन्दिर तिरुपति बालाजी 

यह देश-दुनिया के कई उद्योगपति, व्यापारियों के पार्टनर हैं। इस तीर्थ को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि दी- बाबा हथियाराम ने। यह बनारस के रहने वाले परम् शिव उपासक थे। इनकी मठ परम्परा में इस समय सद्गगुरु हठयोगी श्री श्री भवानी नंदन यति जी गद्दी के मठाधीश हैं। वर्तमान में इनके बहुत से मठ हैं। यहीं से 35 km दूरी पर स्वयम्भू वायुतत्व शिवालय श्रीकालहस्ती है। राहु और कालसर्प की शान्ति हेतु यह सिद्ध क्षेत्र है।

【5】चमत्कारी है श्रीरंगम विष्णु मंदिर त्रिचनापल्ली या त्रिचीतमिलनाडु श्रीरंगनाथ, तिरुवरंगम

திருவரங்கம் तमिल अन्य नाम भी हैं। कावेरी के तट पर तीन पवित्र रंगनाथ मंदिर हैं। यह मन्दिर 4 km परिधि में फेला है।

 जम्बुकेश्वर जलतत्व शिंवलिंग

दुनिया का मात्र स्वयम्भू जलतत्व शिवालय जम्बुकेश्वर के नाम से यहीं पर स्थापित है। यहांं करीब 27 स्वयम्भू मन्दिर हैं, जो लाखों वर्ष पुराने हैं

【6】रहस्यमयी पदमनाभ मन्दिर केरल  

तिरुअनंतपुरम में समुद्र किनारे स्थित यह अनोखा विष्णुधाम है। प्रथ्वी पर सबसे पहले विष्णु जी की प्रतिमा यहीं मिली थी। यहां अनंत नाग ने तपस्या की थी। मन्दिर के साथ तहखानों में अटूट खजाना भरा पड़ा है, जो विशेष नाग मंत्रों द्वारा कीलित है। सातवां द्वार जिस दिन भी किसी जिद के कारण खोला गया, तो सन्सार में प्रलय आ जायेगी। यह आखिरी गेट गरुण मन्त्र विद्या के द्वारा ही खुल सकता है।

【7】जगन्नाथपुरी की कहानी और रहस्य आगे कभी अलग से किसी ब्लॉग में लिखे जाएंगे। इतना जरूर ध्यान रखें कि जब भी जगन्नाथपुरी जाएं, तो यहां से 4 से 5 km की दूरी पर लोकनाथ शिंवलिंग के दर्शन जरूर करें।

【8】द्वारकाधीश मन्दिर  गुजरात  के रहस्य

यहाँ भगवान श्रीकृष्ण वृद्धावस्था में विराजमान हैं। यह सात पुरियों में एक पुरी है।  यहाँ निष्पाप कुण्ड में पितरों की शांति हेतु पिण्डदान अवश्य करें। यह कुंड गोमती नदी के 9 घाटों में से एक है।

 चार और भी बद्री हैं – उत्तरांचल में

इसके अलावा गया बिहार का विष्णु पाद मन्दिर, राजिम 36 गढ़ का राजीव लोचन मन्दिर, ललितपुर उप्र का दशाहवतार विष्णु मंदिर,अंकोरवाट का विष्णु मंदिर आदि विश्व प्रसिद्ध हैं। यह तीर्थ भगवान विष्णु को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से एक है। श्रीहरि विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य पावन तीर्थों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को “पंच-बद्री” के रूप में जाना जाता है।

केरल के रावल करते हैं बद्रीनाथ की पूजा

 आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि बद्रीनाथ, केदारनाथ मन्दिर  भले ही उत्तर भारत में स्थित है, लेकिन इसकी पूजा-अर्चना आदि देखभाल केरल के विद्वान पंडित करते हैं। जिन्हें रावल के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं।

आदि शंकराचार्य के साथ आये थे ये पुजारी

उत्तराखंड यात्रा के दौरान आदि शंकराचार्य के साथ जितने भी ब्राह्मण शिष्य थे, उनमें से कुछ लोगों को यहाँ पूजा की जिम्मेदारी सौंपी थी। आज भी उन्हीं रावल के वंशज इस बद्रीविशाल की सेवा कर रहे हैं। आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी इसकी महिमा का वर्णन है।सन्त पेरियालवार द्वारा लिखे ७ स्तोत्र, तथा तिरुमंगई आलवार द्वारा लिखे १३ स्तोत्र इसी मन्दिर को समर्पित हैं।

चार धाम और चार मठ के रहस्य

 बद्रीनाथ सहित केदारनाथ, गंगोत्री, जमुङोत्री ये चारों लघु धाम कहे जाते हैं। स्कन्द पुराण के तीर्थ खंड में इन चारों को मिलाकर एक ही धाम माना गया है। हिन्दू धर्म में चार मठों का उल्लेख है। जहां-जहां मठ स्थापित हैं, उन्हीं तीर्थो को पवित्र धाम कहते हैं।

सनातन धर्म के चार मठ कहाँ-कहाँ हैं-जाने

 आदि शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। इन मठों के पास जो ओरचीं सिद्ध तीर्थ या मन्दिर थे, वही धाम कहलाये। इन सदगुरुओं के मठ के नजदीक चार परिचारक मन्दिर भी हैं। ये मन्दिर हैं:

१ —  उत्तर में बद्रीनाथ में स्थित बद्रीनाथ मन्दिर, 

२ —  पूर्व में उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मन्दिर, 

३ — पश्चिम में गुजरात के द्वारकापीठ में स्थित द्वारकाधीश मन्दिर, 

४ — और दक्षिण में कर्नाटक के शृंगेरी में स्थित श्री शारदा पीठम शृंगेरी।

परंपरागत रूप से, यह तीर्थयात्रा पूर्वी छोर पर स्थित पुरी से शुरू होती है, और फिर दक्षिणावर्त (घडी की दिशा में) आगे बढ़ती है।

जगतगुरू का निर्देश है कि- धन की कामना वाले विष्णु की और मुक्ति की इच्छा वाले शिव की उपासना करें —

पुरानी विचारधारा के आधार पर हिंदू धर्म मुख्यतः दो संप्रदायों, अर्थात् शैवों अर्थात भगवान शिव के उपासक और वैष्णवों यानि भगवान विष्णु के उपासक, में विभाजित हैं। आदि शंकराचार्य का बहुत स्पष्ट निर्देश है कि –  विष्णु-शिव दोनों के अधिकार अलग हैं। आपको धन पाने की लालसा है, तो पहले श्रीहरि की शरण में जाओ, लेकिन स्मरण रखों तुम्हारा अंतिम प्रयास मुक्ति होना चाहिए।

यह भगवान शिव का गणित है- इसे पढ़ना बहुत जरूरी है

मुक्तिकोउपनिषद में भगवान शिव ने देवताओं को बताया है कि पहले सांसारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए, जो भी प्राणी आपसे जो मांगें, उसके कर्मानुसार पूर्ति करो। जो स्वस्थ्य तन दे सकते हैं, वह स्वास्थ्य प्रदान करें, जो तेज दे सकते हैं, वे तेज, आत्मबल देवें और जो धन-सम्पदा दे सकते हैं, वे सम्पत्ति प्रदान करें। सभी देवी-देवता अपना कार्य ईमानदारी पूर्वक निर्वाह करें, किन्तु अंत में मुक्ति के लिए शिव यानी मेरे पास भेजने हेतु प्रेरित करे। अन्यथा राहु-केतु एवं शनि भयंकर भ्रम-भय फैलाकर मानव जीवन को नरक बना देंगे। राहु-केतु को कंगाल करने में पल भी नहीं लगते। शिव का अर्थ है – कल्याण अर्थात प्राणियों को जो दो, उनमें कल्याण की भावना होना अति आवश्यक है।

बद्रीनाथ के अगले-बगल बहुत सिद्ध स्थान हैं

■ ब्रह्म कपाल – :पितरों के पिण्डदान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए यहां एक प्राकृतिक समतल चबूतरा स्थित है। जहां हिंदू लोग पुजारियों की सहायता से अपने पूर्वजों के लिए बलि चढ़ाते हैं।

जो नमः शिवाय जपता-दुःख जन्म-जन्म का कटता

बद्रीनाथ में रहने वाले तपस्वी साधक बताते हैं कि इस स्थान पर मिट्टी के शिंवलिंग बनाकर रुद्राभिषेक करवाना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं हो, तो पंचाक्षर मन्त्र !! ॐ नमः शिवाय !! की 11 रुद्रों की प्रसन्नता के लिए 11 माला जपना चाहिए।

 शेषनेत्र – :द्रविड़ के अति प्राचीन शास्त्रों में कहीं-कहीं बताया है कि, जब महादेव ने इस स्थान पर पिण्डदान किया था, तब स्वयं शेषनाग ने वेदमन्त्र पढ़कर अनुष्ठान पूर्ण कराया था। इस शिलाखंड में शेषनाग की आकृति है, जिसमें उनके नेत्र स्पष्ट दिखते हैं।

■ चरणपादुका“: यहां भगवान श्रीहरि बद्रीविशाल के चरणों के निशान उत्कीर्ण हैंजानकर साधु यहां सफेद पुष्प अर्पित करते हैं।

 ■ माता मूर्ति मन्दिर:- ऐसा कहा जाता है कि जब विष्णु जी ने ज्ञान वृद्धि हेतु काली का ध्यान लगाया, तो माँ महाकाली ने उनको दर्शन दिए थे। वर्तमान में इन्हें भगवान बद्री की माता मानकर पूजते हैं। इनके आगे 5 दीपक अमृतम राहुकी तेल के जलाकर बुद्धि वृद्धि की प्रार्थना करना चाहिए। अन्य मान्यता अनुसार बद्रीविशाल का नैवेद्य इन्ही के निर्देशन में निर्मित होता है, ताकि प्रसाद या भोजन में कोई त्रुटि न रह जाये या फिर कोई कुछ मिला न दे।

क्षमता से अधिक होती है- माँ की ममता

पृथ्वी पर माँ गंगा नदी के अवतरण की ख़ुशी में माता मूर्ति का मेला मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान बद्रीनाथ की माता की पूजा कर मूर्ति पर चन्दन का लेप लगाया जाता है। दूसरे दिन भक्तों को निर्मल्य दर्शन के दौरान प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यह चन्दन विशेष भाग्योदय दायक होता है।

■ वेद व्यास गुफा” या “गणेश गुफा

इसकी जानकारी ऊपर दी जा चुकी है।

विशेष बात बस इतनी है कि यहाँ एक इच्छाधारी नागिन और मणिधारी नाग का लाखों साल पुराना नागों का जोड़ा रहता है। नाग जोड़े का उल्लेख गरूड़ पुराण, विष्णुपुराण में भी आया है। किसी-किसी सन्यासी को इनके दर्शन भी हुए हैं। यहाँ वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था

 वसुधारा या वसुन्धरा फॉल का उलझा रहस्य

जहाँ पापी के ऊपर नहीं गिरता पानी

 बद्रीनाथ से ८/९  km दूर वसु धारा नामक झरना है, जहाँ अष्ट-वसुओं ने महादेव की कठिन तपस्या की थी। जीवन व किस्मत बदलने वाले अष्टवसुओं की जानकारी आगे किसी लेख में दी जावेगी।

दुर्लभ और शास्त्रमत सच्ची जानकारी के लिए सर्च करें

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कहा जाता है कि वसुधारा झरने की बोच्छारे पापी, बेईमान ओर चरित्रहीन व्यक्तियों के ऊपर नहीं गिरती हैं।

■ सतोपंथ या सत्यपथ

यहाँ अनेकों सिद्ध साधुओं के दर्शन का सौभाग्य मिलता है, जो सैकड़ों वर्षों से शिव की साधना में तल्लीन हैं। इसे स्वर्गारोहण क्षेत्र भी कहा जाता है। शिवभक्त रावण द्वारा स्वर्ग जाने के लिए जो सीढ़ियों के निर्माण किया था, वे आज भी अधूरी बनी पड़ी है। राजा युधिष्ठिर सहित पांचों पांडव इसी जीने द्वारा स्वर्ग हेतु प्रस्थान किये थे। केवल युधिष्ठिर ही सदेह यानी शरीर सहित स्वर्ग पहुँचे।

■ नीलकंठ पर्वत या गढ़वाल क्वीन – बद्रीनाथ से नजर आने वाला अदभुत नजारा हैै- हिम से ढका ऊंचा शिखर नीलकंठ, जो ‘गढ़वाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है।

बद्रीनाथ मन्दिर भगवन विष्णु को समर्पित पांच संबंधित मन्दिरों में से एक है, जिन्हें पंच बद्री के रूप में एक साथ पूजा जाता है।[45] ये पांच मन्दिर हैं – बद्रीनाथ में स्थित बद्री-विशाल (बद्रीनाथ मन्दिर), पांडुकेश्वर में स्थित योगध्यान-बद्री, ज्योतिर्मठ से १७ किमी (१०.६ मील) दूर सुबेन में स्थित भविष्य-बद्री, ज्योतिर्मठ से ७ किमी (४.३ मील) दूर अणिमठ में स्थित वृद्ध-बद्री और कर्णप्रयाग से १७ किमी (१०.६ मील) दूर रानीखेत रोड पर स्थित आदि बद्री। इन पांच मन्दिरों के साथ जब दो अन्य मन्दिरों को भी जोड़ा जाता है, तो इन सात मन्दिरों को संयुक्त रूप से सप्त-बद्री कहा जाता है। सप्त बद्री में इन पांच मन्दिरों के अतिरिक्त कल्पेश्वर के निकट स्थित ध्यान-बद्री तथा ज्योतिर्मठ-तपोवन के समीप स्थित अर्ध-बद्री भी शामिल हैं। ज्योतिर्मठ के नृसिंह बद्री को भी कभी कभी पंच-बद्री (योगध्यान बद्री के स्थान पर) या सप्त-बद्री (अर्ध बद्री के स्थान पर) में स्थान दिया जाता है। उत्तराखण्ड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माने जाते हैं।[46

मङ्गल दोष निवारक तप्तकुण्ड में हमेशा रहता है गर्म पानी

मन्दिर के सामने ठीक नीचे तप्त कुण्ड नामक गर्म कुण्ड या चश्मा है। सल्फर युक्त पानी के इस चश्मे में चमत्कारिक औषधीय गुण हैं। तीर्थयात्री मन्दिर में जाने से पहले इस चश्मे में स्नान करने थकान मिट जाती है। मंगलदोष से पीड़ित जातकों को इस तप्तकुण्ड में स्नान करने से आत्मबल बढ़ता है।

चश्मा का करिश्मा

तप्तकुण्ड में हमेशा खोलता हुआ पानी रहता है, किन्तु एक बार कुंड में उतरने के बाद सब सामान्य हो जाता है। इस कुंड का सालाना तापमान ५५ डिग्री सेल्सियस (११३ डिग्री फ़ारेनहाइट) होता है, जबकि बाहरी तापमान आमतौर पर पूरे वर्ष १७ डिग्री सेल्सियस (६३ डिग्री फ़ारेनहाइट) से भी नीचे रहता है। एक बार तप्त कुण्ड का तापमान १३० डिग्री सेल्सियस तक भी दर्ज किया जा चुका है। मन्दिर में पानी के दो तालाब भी हैं, जिन्हें क्रमशः नारद कुण्ड और सूर्य कुण्ड कहा जाता है।

बद्रीनाथ की पूजा और भोजन व्यवस्था

● वनतुलसी की माला, ● चने की कच्ची दाल, ● गिरी का गोला और ● मिश्री आदि का प्रसाद नहीं, केवल नैवेद्य चढ़ाया जाता है। भक्तों को आम तौर पर भोग के रूप में मिश्री तथा तुलसी की शुष्क पत्तियां प्रदान की जाती हैं। कभी-कभी सौभाग्य वश पंचामृत भी मिल जाता है। घर लाने हेतु बांस की टोकरी में भी मिल जाता है।

भ्रम मिटाये यह जानना बहुत आवश्यक है

 नैवेद्य, प्रसाद ऒर भोग में अन्तर क्या है – जाने

नैवेद्य वह होता है, जिसे ईश्वर को अर्पित किया जाता है। प्रसाद उसे कहते हैं, जो अर्पित या चढ़ाने के बाद बचता है और भोग का अर्थहै, भोगना यानि जो बचा हुआ प्रसाद को भक्तगण भोग करते हैं यानी खाते हैं। इसलिए धर्मसूत्र ग्रन्थ में बताया है कि भगवान को चढ़ाने वाली वस्तु को कभी प्रसाद या भोग कहकर सम्बोधित न करें, इससे ईश्वर का अपमान होता है।  मन अशांत और धन की हानि होकर बरकत खत्म हो जाती है।

दीपावली की दोज को बन्द हो जाते हैं  कपाट

 मन्दिर के अधिकारियों तथा तीर्थयात्रियों की उपस्थिति में मुख्य पुजारी रावल द्वारा विशेष पूजा-अर्चना करके पट बन्द करते समय उस दिन एक अखण्ड दीपक में छह माह के लिए पर्याप्त घी भरकर अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है।बद्रीनाथ मन्दिर के कपाट दीवाली के बाद भाई दोज के दिन या एक दो दिन बाद शुभ महूर्त में सर्दी के मौसम में मन्दिर के कपाट बन्द हो जाते हैं।

बद्रीविशाल का ट्रांसफर-

 बद्रीनाथ की मूर्ति को मन्दिर से ६४ किमी दूर स्थित ज्योतिर्मठ के नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है। लगभग छह महीनों तक बन्द रहने के बाद अप्रैल-मई के महीने में अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुरामजी के प्राकट्य उत्सव पर कपाट खोल दिये जाते हैं। इस दिन बहुत से तीर्थयात्री अखण्ड ज्योति को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं।

रुकने की व्यवस्था

यहाँ काशी मठ, जीयर मठ (आंध्र मठ), उडुपी श्री कृष्ण मठऔर मंथ्रालयम श्री राघवेंद्र स्वामी मठ जैसे बहुत से प्रमुख मठ संस्थानों की शाखाएं और अतिथि विश्राम गृह हैं।

चलो बाबा के द्वारे-कष्ट मिटेंगे तुम्हारे

बद्रीनाथ जाने के लिए किसी भी मार्ग से जाएं, कर्णप्रयाग पहुंचना जरूरी है।

चार तरफ से रास्ता है। 【1】हल्द्वानी रानीखेत से,

【2】कोटद्वार (यहाँ हनुमान जी का सिद्ध स्थल है) होकर

【3】पौड़ी (गढ़वाल) से ओर

【4】हरिद्वार होकर देवप्रयाग से। ये चारों रास्ते कर्णप्रयाग में मिल जाते है। राष्ट्रीय राजमार्ग ७ बद्रीनाथ से होकर गुजरता है। यह राजमार्ग पंजाब के फाजिल्का नगर से शुरू होकर भटिण्डा और पटियाला से होता हुआ हरियाणा के पंचकुला, हिमाचल प्रदेश के पोंटासाहिब गुरुद्वारा यह बहुत ही अदभुत गुरुद्वारा है। यहाँ माँ गंगा गुरु के चरण पखारने स्वयं आई थी।

 उत्तराखण्ड के देहरादून, ऋषिकेश, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग नंदप्रयाग open, चमोली तथा जोशीमठ इत्यादि नगरों से होते हुए बद्रीनाथ पहुँचता है, और यहां से आगे बढ़ते हुए भारत-चीन सीमा पर स्थित ग्राम माणा गांव में पहुंचकर समाप्त हो जाता है।

केदारनाथ से बद्रीनाथ कैसे जाएं

प्राचीन परंपरा और शंकराचार्य केअनुसार  सबसे पहले पाप मुक्ति, ग्रह-दोष निवारण के लिए केदारनाथ के दर्शन जरूरी हैं। फिर बद्रीनाथ जाना चाहिए। गुरुजन बतलाते हैं कि जब तक पाप-शाप विमोचन नही होता, तब तक धन की प्राप्ति असम्भव है। केदार नाथ से बर्फीली पहाड़ियों से होते हुए बद्रीनाथ की दूरी महज 12 या 13 किलोमीटर है।

कभी-कभी भगवान भी भूख से तड़फ जाते हैं- 

एक सत्य वाक्या यह भी है कि आज से लगभग ६0/७० वर्ष पहले बद्रीनाथ एव केदार नाथ दोनों के रावल एक ही थे। बद्रीनाथ से नैवेद्य लेकर पहले केदारबाबा को अर्पित किया जाता था, फिर बद्रीनाथ को अर्पित करते थे। एक दिन केदारनाथ से लौटते समय रावल पुजारी को चक्कर आने से बेहोश गया।

कहते हैं कि वहीं सपने में बद्रीनाथ के दर्शन हुए और बद्रीविशाल ने पुजारी से कहा? – रोज-रोज बिलम्ब होने से  तुम्हारे कारण मुझे रोज भूखा रहना पड़ता है। दूसरे दिन जब रावल पुनः उसी मार्ग से केदारनाथ गया, तो रास्ता भटक गया। लौटकर आने के बाद केदारनाथ में अलग रावल की व्यवस्था की गई। जब से दोनों मंदिरों में प्रथक पुजारी हैं।

केदारनाथ की ओर से भी गौरीकुंड से गुप्तकाशी, चोक्ता (चोटवा), गोपेश्वर और जोशीमठ होते हुए सड़क मार्ग को लगभग २२१ किमी की दूरी तय कर बद्रीनाथ मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है।

शाम को 6 बजे रोक देते हैं ट्रैफिक जोशीमठ में

आज से करीब 50-60 वर्ष पहले हरिद्वार से इस यात्रा में महीनों लग जाते थे, किन्तु रोड अच्छा होने से 1 या 2 दिन में ही बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं। शाम 6 बजे के बाद जोशीमठ से बद्रीनाथ का मार्ग बंद कर दिया जाता है। फिर सुबह 7 बजे मार्ग खोल दिया जाता है।

 जोशीमठ से बद्रीनाथ की दूरी लगभग ५० किलोमीटर है। यहाँ से १२ किलोमीटर की दूरी पर विष्णुप्रयाग है, जहाँ अलकनंदा और धौलीगंगानदियों का संगम होता है। विष्णुप्रयाग से लगभग १० किमी दूर गोविन्दघाट है, जहाँ से एक रास्ता सीधा बद्रीनाथ को जाता है, और दूसरा घांघरिया होते हुए फूलों की घाटी एवं हेमकुंट साहिब को जाता है। गोविन्दघाट से मात्र ३ किमी की दूरी पर पांडुकेश्वर है। पांडुकेश्वर से १० किमी आगे हनुमानचट्टी, और वहां से ११ किमी की दूरी पर स्थित है बद्रीनाथ।

राजा की जन्मपत्री देखकर खोलते हैं कपाट

हर साल बसंत पंचमी के अवसर पर राज-पुरोहितों और महाराज मनुज्येंद्र शाह की जन्म कुंडली देखकर बद्रीनाथ मंदिर के पट खोलने का मुहूर्त निकाला जाता है

भगवान बद्री विशाल के महाभिषेक के लिए तिलों का तेल
तिलों का तेल सबसे शुद्ध माना जाता है, इसी कारण तिलों को पारंपरिक तरीके से सिलबट्टे और ओखली में पीसकर नरेंद्रनगर स्थित राजमहल में सुहागिनों द्वारा तिलों से तेल पिरोया जाता है। तेल को चांदी के कलश में रखकर बद्रीनाथ का  तैलाभिषेक करने और चढ़ाने ले जाया जाता है। डीमरी पंचायत और बदरीनाथ धाम के रावल यानी पुजारी  के अलावा कोई छू भी नहीं सकता।

 बद्रीनाथ के सन्त के बारे में अगले ब्लॉग पार्ट -2 में बताया जाएगा दुनिया में बहुत से रहस्य छुपे पड़े हैं जिन्हें जानने की ललक हो तो सर्च करें

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