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अमॄतम पत्रिका
का यह लेखप्राचीन पुस्तकों, ग्रन्थ-पुराणों
एवं ज्योतिष शास्त्रों से संग्रहित
किया गया है-
नये-नये वायरस संक्रमण।
चीन में खतरनाक वायरस।
कोरोना वायरस।
Corona virus|china virus
क्यों फैल रही हैं- कोरोना वायरस
जैसी ये खतरनाक बीमारियां-
आयुर्वेद के अगदतंत्र में इस तरह
के मृत्यु दायक, मौत के मुख में
तुरन्त पहुंचाने वाली बीमारी या
संक्रमण/वायरस को विष/विषैला/ विषाणु आदि विकार बताया है।
नारी, ब्रह्मचारी और जो लोग मांसाहारी
हैं हैं उन पर कम असरकारी है-
कोरोना वायरस
आयुर्वेद बचाता है-सभी जानलेवा
संक्रमण/वायरस से। सुरक्षा हेतु-
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50000 वर्ष पुराने ग्रंथों में इस तरह की
विष व्याधि “पल में प्रलय” यानी क्षण में छिन्न करने वाली बताई गई है।
सूर्य का प्रकोप है-“कोरोना वायरस“
कोरोना वायरस भी कुछ इसी तरह की बीमारी या विष संक्रमण है।
क्या कहते हैं-वेद-पुराण….
जन्म एक सृजन है तो मृत्यु एक प्रलय…
हिन्दू पुराणों में प्रलय के चार प्रकार
बताए गए हैं-
【1】नित्य,
【2】नैमित्तिक,
【3】द्विपार्थ और
【4】प्राकृत।
सृष्टि में निर्माण और विनाश की यह
प्रक्रिया निरंतर चलायेमान है।
इस मायारूपी ब्रह्माण्ड में
पल-प्रतिपल प्रलय होती रहती है…
किंतु जब महाप्रलय या सन्सार का महाविनाश होने वाला होता है, तब
प्रकृति संक्रमण या वायरस से लबालब
हो जाती है। सन्सार में ऐसे रोग फैलने
लगते हैं, जो पल में प्राणी के प्राण हरण
कर लेते हैं।
कोरोना वायरस जैसे संक्रमणों का
उल्लेख भी है-प्राचीन उपनिषदों में…..
श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंध में कलयुग में धर्म-अधर्म, रोग-निरोग के
अंतर्गत महर्षि व्यास के पुत्र त्रिकालदर्शी ‘श्रीशुकदेवजी‘- परीक्षितजी से कहते हैं, जैसे-जैसे-
घोर कलयुग आता जाएगा, त्यों त्यों
भयंकर व्याधि पैदा होंगी। कृमियों, कीड़े-मकोड़ों की तरह मनुष्य मरेगा।
भविष्य पुराण में उल्लेख है कि-
भगवान सूर्य के प्रति श्रद्धावान न होने
से लोग अनेकों विकारों से पीड़ित होंगे।
जो सूर्य को प्रणाम नहीं करेगा,
सूर्य की धूप नहीं लेगा।
भगवान भास्कर के दर्शन नहीं करेगा,
सूर्य को जल नहीं देगा।
ऐसे इंसान किसी न किसी संक्रमण
या वायरस से मरेंगे।
सूर्य के बराबर
सृष्टि में अन्य कोई चिकित्सक नहीं है।
प्रातः सूर्य देव की किरणें सर्वश्रेष्ठ दवा है।
सूर्य की कृपा से ही सदैव स्वस्थ्य रहा
जा सकता है।
ऋग्वेद (नारदीयसूक्त)
10-129 के अनुसार
जो जन्मा है वह मरेगा- महादेव को
छोड़कर पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य,
पितर और देवताओं की आयु
नियुक्त है, उसी तरह समूचे ब्रह्मांड की
भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चंद्र सभी
की एक निश्चित आयु है।
आयु के इस चक्र को समझने वाले
समझते हैं कि- प्रलय क्या है।
प्रलय भी जन्म और मृत्यु और पुन:
जन्म की एक प्रक्रिया है।
कलयुग का दुष्प्रभाव…..
उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, ईमानदारी, सच्चाई पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।
आयुर्वेद का वायरस/विष विज्ञान…
विष विज्ञान को आयुर्वेद में अगदतंत्र
कहा गया है। गद का अर्थ रोग,
संक्रमण/वायरस तथा विष होता है
अर्थात् कोई भी विजातीय पदार्थ जो
शरीर के बाह्य या आभ्यांतरिक संपर्क
में आने पर शरीर को हानि पहुँचाता है,
उसे गद या विष कहते हैं।
वायरस रूपी विष के विभिन्न नाम-
अरबी में इसे जहर तथा आंग्ल भाषा में पॉइजन (Poison) तथा टॉक्सिन
(Toxin) कहा जाता है।
शरीर में जैसे-जैसे प्रतिरक्षा प्रणाली
कमजोर यानि इम्युनिटी पॉवर घटता
चला जाता है, तो वह विकारों से
संक्रमित होने लगता है, जिससे
किसी भी तरह की बीमारी या
वायरस तन को जकड़ लेते हैं।
समय की मार-
कभी-कभी कोई ऐसा अनिष्टकारी समय होता है जिसमें प्राणिज, खनिज अथवा
जीव-जंतुओं से उत्पन्न होनेवाला या
फैलने वाला संक्रमण (जान्तव) किसी
भी प्रकार के विष प्रयुक्त होने पर वह
रोगी के लिये मृत्युकारक अथवा
मरणासन्न स्थिति उत्पन्न करने
वाला होता है।
नक्षत्रों को नमन-
इसी प्रकार किसी अश्विनी नक्षत्र में जन्मे
हुए व्यक्ति पर कुचला का हानिकर प्रभाव न्यूनतम होगा क्योंकि कुचला अश्विनी
नक्षत्र का वृक्ष है।
अमॄतम आयुर्वेदिक शास्त्रों में इसे
फेफड़ों की खराबी, सूर्य नाड़ी बाधक संक्रमण बताया है।
कोरोना वायरस के बहुत से लक्षण निमोनिया, सर्दी-खांसी, जुकाम,
श्वांस लेने में तकलीफ, गले में लगातार
खरास आदि से सम्बंधित है। यह सब
परेशानी सूर्य स्नान के अभाव में होती हैं।
योग-रत्नाकर के एक मन्त्र अनुसार-
औषधं मंगलं मंत्रो,
हयन्याश्च विविधा: क्रिया।
यस्यायुस्तस्य सिध्यन्ति न
सिध्यन्ति गतायुषि।।
अर्थात …..औषध, अनुष्ठान, मंत्र-यंत्र,
तंत्रादि उसी रोगी के लिये सिद्ध होते हैं,
जो नियम-धर्म से चलते हैं एवं जिसकी
आयु शेष होती है। जिसकी आयु शेष
नहीं है; उसके लिए इन क्रियाओं से कोई सफलता की आशा नहीं की जा सकती।
स्वास्थ्य है, तो सौ साथ हैं–
स्वस्थ्य व्यक्ति के साथ 100 साथी
सदैव रहते हैं। हमें केवल स्वास्थ्य
को यानि शरीर को संभालना है।
शेष सब ईश्वर पर छोड़ देवें-
शिव तो जाने को भी दे,
अनजाने को भी दे।
सारे जहां को दे, वो तुझको भी देगा।
बाबा विश्वनाथ पर यह विश्वास, व्यक्ति
को विकार रहितं बना सकता है।
विश्वास ही विश्व की शक्ति है-
संस्कृत का स्वस्थ्य सूत्र है-
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं
दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं
स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥
अर्थात…
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल
और सुख की प्राप्ति होती है।
निरोगी होना परम भाग्य है और
स्वास्थ्य से ही सन्सार अन्य सभी
कार्य सिद्ध हो सकते हैं॥
रोगों की रासलीला का रहस्य....
पाप कर्मों का प्रारब्ध मानव को
दु:ख रोग तथा कष्ट प्रदान करता है।
ज्योतिषशास्त्र में जन्म कुंडली, लग्न कुंडली, चन्द्र कुंडली, सूर्य कुंडली, वर्ष कुंडली, प्रश्न कुंडली, गोचर तथा सामूहिक शास्त्र की विधाएँ व्यक्ति के प्रारब्ध अर्थात पूर्व
जन्म के कर्मों का विचार करती हैं।
पत्रिका में किसी भी व्यक्ति के पूर्व
जन्म का विचार पंचम भाव से किया
जाता है।
धर्म शास्त्र कहते हैं-
जब तक जातक के पुण्य-पाप सम
नहीं होते, तब तक अच्छा स्वास्थ्य
और समृद्धि सम्भव नहीं है।
लग्न, पंचम एवं नवम यह तीनों भाव या हाउस त्रिकोण कहलाते हैं। किसी
भी कुंडली के यह मूल ऊर्जावान
स्थान है। ज्योतिष रहस्योउपनिषद
में लक्ष्मी का प्रतीक भी तरीकों
बताया है।
जन्मपत्रिका के छठवें भाव से जातक
का भविष्य के सुख-दु:ख का आंकलन किया जा सकता है। चिकित्सा ज्योतिष में इन्हीं विधाओं के सहारे रोग निर्णय करते हैं तथा उसके आधार पर उसके ज्योतिषीय कारण को दूर करने के उपाय भी किये जाते हैं। इसलिए चिकित्सा ज्योतिष को ज्योतिष
द्वारा रोग निदान की विद्या भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे मेडिकल ऐस्ट्रॉलॉजी कहते हैं।
चिकित्सा ज्योतिष में प्राचीन समय में
सभी पीयूषपाणि आयुर्वेदीय चिकित्सक ज्योतिषशास्त्र के ज्ञाता होते थे और वे
किसी भी गम्भीर रोग की चिकित्सा से
पूर्व ज्योतिष के आधार पर रोगी के
आयुष्य तथा साध्यासाध्यता का विचार
किया करते थे।
कलयुग में कलदार की धार….
संस्कृत साहित्य में कलयुग के
चिकित्सको के बारे में पहले ही चेता
दिया था कि-
भविष्य में चिकित्सक मरीजों के रोग
मिटाने के लिए चिंतन न करके, रोगियों
में चिन्ता का भाव उत्पन्न कर देंगे।
आयुर्वेद में भी वैद्यों की प्रशंसा
तथा निन्दा दोनों के बारे में लिखा है-
प्रशंसा में ; उन्हें “पीयुषपाणि” अर्थात
हाथ मे अमृत लिये हुए जीवनदाता
कहा गया है और निन्दा में
‘यमराज‘ का भाई तक
लिख दिया। दोनों परिस्थितियों में अतिशयोक्ति का उपयोग किया गया है। अतः इस सुभाषित को तदनुसार अपने अनुभव के आधार पर लेना चाहिये |
–सुभाषितरत्नाकर के मुताबिक
प्रवर्तनार्थमारम्भे मध्ये त्वौषधहेतवे |
बहुमानार्थमन्ते च जिहीर्षन्ति चिकित्सकाः |
श्लोक का अर्थ – चिकित्सक (डाक्टर) प्रारम्भ में अपने प्रचार हेतु और फिर
दवाओं की बिक्री तथा आत्मसम्मान
के लिये अच्छा इलाज करते हैं और अन्तत: बीमार व्यक्तियों को लूटने की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं।
सब कर्मों का फल है…..
कर्मज व्याधि-विकार क्या है…..
आयुर्वेदिक निघण्टु तथा श्रीमद्भागवत
गीता के मुताबिक कर्मज व्याधियां हमारे कर्म-कुकर्मों के कारण उत्पन्न होती हैं।
ग्रह सुख-दु:ख, रोग, कष्ट, सम्पत्ति,
विपत्ति का कारण नहीं होते। इन
फलों की प्राप्ति का कारण तो मनुष्य के शुभाशुभ कर्म ही होते हैं। मनुष्य ने जो कुशल या अकुशल कर्म पूर्व-जन्मों में
किये होते हैं, जन्म कुंडली में ग्रह उन्हीं
के अनुसार, राशियों एवं भावों में विभिन्न स्थितियों में बैठकर भावीफल की
सूचना देते हैं।
जिस व्याधि का निर्णय चिकित्सकों द्वारा शास्त्रोक्त विधि से किया जाकर चिकित्सा
की जावे फिर भी वह व्याधि शान्त न हो,
तब उसे कर्मज व्याधि जाननी चाहिये। उसकी चिकित्सा भेषज के साथ
अनुष्ठानों, मंत्र, तंत्रादि द्वारा करना
लाभकारी होता है।
कष्टदायक असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए
चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं।
■ प्रातः सूर्योदय के समय की धूप लेवें
■ काया की तेलं मालिश कर स्नान करें।
■ नीम के जल से स्नान करें
■ कालीमिर्च, लालमिर्च खाने की मात्रा
बढ़ाएं, इससे रक्त साफ होगा जिससे
संक्रमण का भय नहीं होगा।
■ सुबह नाश्ते में मीठा दही लेवें।
■ सूर्य को जल देवें।
■ बिना स्नान के अन्न ग्रहण न करें।
■ शिंवलिंग पर दूध अर्पित करें।
■ घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
■ घर में हवन करें।
■ ॐ नमःशिवाय मन्त्र का जाप करें
■ नॉनवेज भोजन न लेवें।
अभी तक देखा गया है जिस जगह
माँस का सेवन अधिक हो रहा है
वहीं ज्यादा फेल रहा है।
और भी सावधानी-समझदारी बरतें-
■ नियमित रूप से हाथ धोना,
■ खाँसने और छींकने पर मुंह और
नाक को ढंकना,
■ मांस और अंडे को अच्छी तरह से
पकाना शामिल है।
■ खांसी और छींकने जैसी सांस
की बीमारी के लक्षण दिखाने वाले
किसी के भी निकट संपर्क से बचें।
■ सुबह और शाम नहाने की आदत डालें।
कोरोना की खोज–
डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन)
ने इस वायरस को 2019-एनकोवी
नाम दिया है यह अध्ययन पत्रिका
मेडिकल वाइरोलॉजी में प्रकाशित
हुआ है।
इस शोध में कोरोना वायरस से हाल
ही में फैले निमोनिया की उत्पत्ति के
बारे में जानकारी दी गई है।
यह वायरस चीन के वुहान शहर में
दिसंबर 2019 में फैलना शुरू हुआ
और अब इटली, इंडिया, जर्मनी,
हांगकांग, सिंगापुर, थाईलैंड तथा
जापान तक फैलकर हजारों लोगों
की जान ले रहा है।
कुछ करो-ना, कोरोना के लिए….
कोरोना वायरस (Corona Virus)
एक RNA वायरस है। विश्व स्वास्थ्य
संघटन ने खोजा कि- यह वायरस
जानवरों से इंसान में फैला है।
कोरोना संक्रमण का असर एक व्यक्ति
के दूसरे व्यक्ति को छूने, छींकने या
खांसने से फैल सकता है।
कोरोना वायरस (सीओवी) वायरस
का एक बड़ा परिवार है जो सामान्य
सर्दी से लेकर गंभीर बीमारियों
जैसे मध्य पूर्व रेस्पिरेटरी सिंड्रोम
(MERS-CoV) और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS-CoV) को
जन्म देता है।
कोरोनावायरस (nCoV) एक नया
संक्रमण है, जो आज से पहले मनुष्यों
में पहचाना नहीं गया है।
सांपों में रहने की आशंका
2019-एनकोवी का विस्तृत आनुवांशिक विश्लेषण करके और इसकी विभिन्न भौगोलिक स्थानों के अलग-अलग कोरोनावायरस से तुलना करके अध्ययन में यह पाया गया कि यह नया वायरस चमगादड़ों में कोवी के मेल से पैदा हुआ है. शोधकर्ताओं ने और विश्लेषण करने पर पाया कि 2019-एनकोवी के मनुष्यों तक फैलने से पहले सांपों में रहने की संभावना है.
सार्स ले चुका है 8400 लोगों की जान
शोधकर्ताओं ने कहा, ”हमारे शोध में पता चला कि 2019-एनकोवी के लिए सबसे संभावित वन्यजीव सांप है.” यह नया वायरस उस वायरस के जैसा है जिसने 2003 में सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) फैलाया था. सार्स नाम के इस वायरस ने 8,422 लोगों को अपनी चपेट में लिया था और इससे 900 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
वायरस के एक अन्य आनुवांशिक विश्लेषण में भी पाया गया कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चमगादड़ या सांपों से होने की संभावना है।
बीजिंग के चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा प्रायोजित यह अध्ययन पत्रिका साइंस चाइना लाइफ साइंस में प्रकाशित हुआ है।
कोरोनावायरस ज़ूनोटिक हैं–
जिसका अर्थ है कि- इसके संक्रमण
जानवरों और लोगों के बीच संचारित
होते हैं। विस्तृत जांच में पाया गया कि SARS-CoV को केवेट बिल्लियों से
मनुष्यों और MERS-CoV से ड्रोमेडरी
ऊंटों से मनुष्यों तक पहुँचाया गया।
इसकी वजह से कई ज्ञात-अज्ञात
कोरोना संक्रमण Cd
रस उन जानवरों में घूम रहे हैं
जिन्होंने अभी तक मनुष्यों को
संक्रमित नहीं किया है।
कोरोना संक्रमण के सामान्य संकेतों में
सांस/श्वसन संबंधी लक्षण, बुखार, खांसी, और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलों में, संक्रमण से निमोनिया, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम,
गुर्दे की विफलता और यहां तक कि
तत्काल मृत्यु भी हो सकती है।
कोरोनावायरस (Coronavirus)
कई वायरस (विषाणु) प्रकारों का
एक समूह है जो स्तनधारियों और
पक्षियों में रोग के कारक होते हैं।
यह आरएनए वायरस होते हैं।
मानवों में यह श्वास तंत्र संक्रमण
के कारण होते हैं, जो अधिकांश रूप
से मध्यम गहनता के लेकिन कभी-कभी जानलेवा होते हैं। गाय और सूअर में यह अतिसार और मुर्गियों में यह ऊपरी श्वास तंत्र के रोग के कारण बनते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या
वायररोधी (antiviral) अभी
उपलब्ध नहीं है।
कोरोना या अन्य किसी भी तरह के
मारक संक्रमण से बचने हेतु और
उपचार के लिए प्राणी की अपने प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करा जाता है।
आने वाले समय में जिन लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्युनिटी
पॉवर मजबूत होगा,
उन्हें भविष्य में कोई भी खतरनाक
रोग नहीं हो सकेगा।
एंटी-बायोटिक दवाएँ केवल कोशिकाओं
पर काम करती है, इसलिये वे वायरस
मिटाने में नाकाम है- कोरोना वायरस से
सुरक्षा आयुर्वेद से ही सम्भव है।
फ्लू की माल्ट खाएं-वायरस भगाएं..
अमॄतम की अदभुत कारगर ओषधि
www.amrutampatrika.com
आयुर्वेद के अलावा अन्य चिकित्सा में इस तरह के रोगलक्षणों (जैसे कि निर्जलीकरण या डीहाइड्रेशन, ज्वर, आदि) का उपचार केमिकल युक्त दवाओं द्वारा करा जाता है, ताकि संक्रमण से लड़ते हुए शरीर की शक्ति बनी रहे। हाल ही में WHO ने इसका नाम COVID-19 रखा।
कोरोना वायरस का स्थाई हल और
इलाज, चिकित्सा, हर्बल मेडिसिन
या आयुर्वेदिक दवा जानने के लिए नीचे क्लिक करें।
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सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा आयुर्वेद अपनाएं
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