Hemkund Sahib

हेमकुण्ड साहिब के बारे में एक अत्यंत मार्मिक कथा। जिसे पढ़कर…..आँखे नम – तो हो ही जाएंगी

सदगुरु मैं तेरी पतंग, 
हवा बिच उड़ती जावां रे…..
 
¶¶-  सन 1930 में खोजा गया था…..
हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा
 
¶¶–  कैसे हुई खोज?
गुरुगोविन्द सिंह जी के पूर्व जन्म की
अचंभित हो जाएंगे, यह जानकर कि..         “गुरुगोविन्दसिंह जी” के परिवार के त्याग की
वजह से दुनिया के 108 गुरुद्वारे 300 साल पुराने हैं।
क्या आपको मालूम है……                                            ■ ! गुरु गोविंदसिंह जी ने पूर्व जन्म में भोलेनाथ “महाकाल” की कठोर तपस्या की थी
जाने..सिखों के महान तीर्थ हेमकुण्ड के बारे में-
■ क्या है... 
गुरु गोबिंदसिंह जी के पिछले जन्म का रहस्य?
■ अपनी आत्मकथा ‘बिचित्र नाटक
में लिखा है कि…
■ वे पूर्व जन्म में महाकाल और माँ कालिका 
के परम भक्त थे।
■ सन 1930 में सिख सोहन सिंह ने
खोजा था…हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा
■ सिख धर्म का यह तीर्थ उत्तराँचल के
चमोली जिले के बद्रीनाथ धाम मार्ग पर
सप्तपर्वतों में स्थित है।
■ हेमकुण्ड का अर्थ है बर्फीला अमृत सरोवर यानी
अमृतम तालाब। यह कुंड ४००×२०० गज लम्बा-चौड़ा है,
 जो चारों तरफ से हिमालय की 7 चोटियों से घिरा है।
वाहेगुरुजी का खालसा
वाहेगुरुजी की फतह….
गुरुग्रन्थ साहिब पढ़ने के शौकीन
सिख फौजी श्री सोहन सिंह के
हाथों अचानक गुरु गोबिंदसिंह रचित एक पुस्तक
हाथ लगी, जिसमें उन्होंने अपने पूर्व जन्म का उल्लेख
 किया था। ‘सिख सोहन सिंह’… उसे पढ़कर बहुत
विचलित व अधीर हो गये, तब उन्होंने ठाना कि
 इस स्थल की खोज करके ही रहूंगा।
सबके काज संवारे सदगुरू…..
खालसा पंथ के प्रवर्तक और

सिख धर्म के दशम गुरु श्री गोविंदसिंह

जी ने अपने काव्यात्मक ग्रन्थ
“विचित्र नाटक” में अपने पूर्व जन्म के
स्थल का हवाला देते हुए लिखा है…..
अब मैं अपनी कथा बखानू…
 
तप साधत जेही विधि मोहि जाना,
हेमकुण्ड पर्वत है जहाँ,
सप्तश्रृंग सोहत है वहाँ,
सप्तश्रृंग तेहि नाम कहाना,
पांडुराज जहाँ लोग कमावा,
तहँ हम अधिक तपस्या साधी,
“महाकाल” – ‘कालिका’ अघारी।”
भावार्थ
हिमालय पर्वत की सप्तश्रृंग चोटी पर 
स्थित एक हेमकुण्ड तीर्थ पर सात
मनोहारी चोटियों का मिलन होता है।
जहाँ पांडवों के पिता पांडुराज ने
महादेव का कठोर तप किया था,
वहीं मैने भी महाकाल 
और माँ कालिका भवानी
की तपस्या की! आराधना की।
“विचित्र नाटक” में ही गुरु गोविंदसिंह
जी ने आगे अपना अनुभव लिखा है कि…
महाकाल की कठिन आराधना करने
के पश्चात जब मैं और महाकाल एकाकार
हो गए, तब भोलेनाथ ने पृथ्वीलोक
पर जाकर कल्याणकारी धर्म बनाने
का आदेश दिया।
 
वाहेगुरू में आस्था है, तो
उलझनों में भी रास्ता है।
 
कैसे हुई तपस्या स्थली 
हेमकुण्ड साहिब” की खोज...
 
यह घटना सन 1930 की है।
गुरु गोबिंदसिंह द्वारा वर्णित स्थान
कहाँ हो सकता है? इतिहासकार
और सिख श्रद्धालु किसी निष्कर्ष
पर नहीं पहुंच पा रहे थे।
 
तुम दया करो मेरे साईं …..
टिहरी गढ़वाल, उत्तरखण्ड के रहने
वाले एक सिख फौजी सोहन सिंह
ने गुरु गोबिंदसिंह द्वारा रचित
‘विचित्र नाटक’ में बताये गए स्थान
को खोजने का निश्चय करके
घर से निकल गये।
श्री सोहन सिंह जी ने अनेक धर्मग्रंथों
का अध्ययन किया, बहुत से सिद्ध
साधु-संतों से मिले। उत्तराखंड
के कई चरवाहों, गड़रियों से गुरु गोविंदसिंह
द्वारा लिखी आत्मकथा के मुताबिक पूर्व जन्म
में लिखे स्थान की जानकारी ली।
 
विन वोलया सब किछ जानदा…
 
फौजी को विश्वास था कि एक दिन यह
स्थल मिलेगा जरूर। वाहेगुरू बोलता नहीं है
पर जानता सब कुछ है। फौजी चुप रहकर
बहुत समय तक हिमालय के जंगलों
में भूखे-प्यासे अकेले भटकते रहे, लेकिन
हिम्मत नहीं हारी और उनकी
नजर हमेशा हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं
में उन सात शिखरों को ढूंढती रहीं,
जिनका उल्लेख गुरु गोविंदसिंहजी
ने अपनी आत्मकथा विचित्र नाटक 
पोथी में किया था।
 
रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के..
 
घूमते-घूमते एक बार साधुओं के
काफिले के साथ सिख फौजी 
श्री सोहनसिंह जी पांडुकेश्वर नामक
शिवालय पर पहुंच गये। रात्रि में
एक चर्चा के दौरान कुछ सन्तों ने
बताया कि यह वही स्थल है, जहाँ
पांडवों के पिता…राजा पांडु ने
महाकाल यानि भोलेनाथ का 
घनघोर तप किया था।
क्यों आके रो रहा है-गोविंद की गली में,
हर दर्द की दवा है-गोविंद की गली में…..
 
सिख श्री सोहन सिंह की आंखों से
अश्रुधारा बह निकली….! वाहेगुरुजी का
स्मरण करते हुए, वह सोचने
लगे कि – इतने समय तक भटका-भटकाकर
हे महादेव, तूने, मुझे मेरे गुरु तीर्थ पर पहुंचाया।
सच्चे पातशाह से मिलवाया।
धर्म कार्य से भावुक होकर गिरे आंसू
प्रथ्वी का अमृत रुद्राभिषेक है। इससे
प्रथ्वी पवित्र होती है।
 
यकीन मुकद्दर पर नहीं, वाहेगुरू पर था...
 
उस स्थल पर पहुंचने के पश्चात,
उन्हें लगा कि… वर्षों की खोज के बाद
आज वे कामयाब हो गए, उनके चेहरे
पर रोनक आ गयी। 
साधुओं के सत्संग को छोड़कर वे, बाहर आकर 
देखने लगे कि… सप्तश्रृंग पर्वत
किस ओर है। किंतु बर्फीली घाटी में
शाम के वक्त चारों तरफ घना अंधकार होने से कुछ
नहीं सूझा। मन-मसोसकर वह पौ फटने यानि सुबह
 होने का इंतजार करने लगे।
तेरा नाम न जपया मैं अभागा…..
पूरी रात वाहेगुरुजी का याद करते हुए काटी।
उनकी आंखों में नींद का
नामोनिशान नहीं था।
सुबह जैसे ही अंधकार की काली चादर हटी, 
तो सोहनसिंह ने चारों दिशाओं में निगाह दौड़ाई। 
सात शिखरों का मिलन होते उन्हें कहीं नहीं दिख रहा था।
 बहुत खोजबीन के बाद उनकी नजर लोगों के
एक झुंड पर पड़ी, जो कतार बनाकर पहाड़ियों की
पगडंडी पर चला जा रहा था। सोहन सिंह ने
एक साधु से उन लोगों के बारे में जानना चाहा,
तो पता चला कि तीर्थयात्रियों
 का यह समूह “लोकपाल”
के दर्शनार्थ जा रहा है।
 
सोहन सिंहजी भी उनके साथ शामिल 
हो गए। लोकपाल पहुंचकर जब काफिला रुका,
 तो शाम हो चली थी।
अचानक…. उन्हें सात शिखरों का मिलन होते दिखा। 
आखिर लगा कि….उन्होंने
अपना लक्ष्य पूरा कर लिया।
बोले सो निहाल………
 
यात्री वहां स्नान कर रहे थे और सोहन सिंह जल 
में पड़ते सप्तश्रृंग के प्रतिबिम्ब को देखकर अभिभूत
 हो उठे। पता लगा कि.. यही लोकपाल तीर्थ…. 
वही हेमकुण्ड साहिब है, जिसकी चर्चा 
गुरु गोबिंदसिंह जी ने अपनी किताब में कई है। 
यही उनका पूर्व जन्म का साधना स्थल था।
 
उड़ीसा में भी है लोकपाल महादेव..
जगन्नाथपुरी धाम से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर
एक प्राचीन एवं स्वयम्भू शिंवलिंग है, जो हमेशा
जल में डूबा रहता है। इस शिंवलिंग का उल्लेख
स्कन्द पुराण के चतुर्थ भाग में लोकपाल के
नाम से वर्णित है। यहां पर दशानन रावण ने
शिवजी का घोर तप करके जलसिद्धि प्राप्त की थी।
यहीं रावण को शेषनाग के दर्शन हुए थे।
चलन चलो, चलन चलो..
चलो मार्ग गोबिंद!
कटें पाप-कटे पाप
कटे पाप, जपिये हर दिन
एकता का प्रतीक-पावन तीर्थ
उत्तराखंड बद्रीनाथ धाम से कुछ किलोमीटर
पहले ही लगभग 16000 फिट की ऊंचाई पर 
स्थित हेमकुण्ड साहिब को सिख धर्म की एकता 
का प्रतीक माना जाता है।
 
सिद्धियों की सम्पदा…..
 
प्राचीन ग्रंथ, हरिवंश पुराण एवं स्कन्द पुराण
 के केदारखंड में उल्लेख है कि लक्ष्मणजी ने
यहां दशानन रावण से शिवदर्शन ज्ञान
लेकर “लोकपाल महादेव” की तपस्या कर 
शेषनाग के दर्शन किये थे।
लक्ष्मण जी को बाल्मीकि रामायण में
शेषनाग का अवतार बताया है।
विद्वजन खोज करें, तो हो सकता है कि
रावण और लक्ष्मण का पूर्व जन्म का कोई
गहरा नाता – रिश्ता निकले।
वाहेगुरू तेरी जय हो…
 
करीब 8 महीने बर्फ की चादर में लिपटे
रहने वाले इस स्थल पर एक भव्य गुरुद्वारा
तारों यानि स्टार के आकार का बना हुआ है और 
पास में ही लक्ष्मण जी का मंदिर है।
यहाँ के देवता तथा रक्षक लोकपाल महादेव हैं।
कुछ उत्तराँचल वासी लक्ष्मण जी को यहाँ
लोकपाल कहते हैं। पुराणों में यह तीर्थ
लोकपाल के नाम से दर्ज है।
हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारा दो मंजिला है और इसका 
आकार कमल के उल्टे फूल की तरह लगता है। 
इस गुरुद्वारे का निर्माण सिख श्री सोहन सिंहजी 
ने किया था, जो बाद में महान 
सिख सन्त श्री सोहन सिंह के नाम से मशहूर हुए। 
 
बोले सो निहाल.  ..
इनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और वाहेगुरू के प्रति अटूट
 श्रद्धा और विश्वास एवं अथक प्रयासों को 
 “अमृतमपत्रिका परिवार” 
वाहेगुरू-वाहेगुरुजी का स्मरण करके,
बार-बार नमन और 
सादर प्रणाम करता है,.बोलो….
वाहेगुरुजी का खालसा
वाहेगुरुजी की फतह
सन्त श्री सोहन सिंह जी इस हेमकुण्ड साहिब
गुरुद्वारे के निर्माण के लिए पंजाब के सभी गाव में
घूमकर चंदा एकत्रित किया।
लेकिन उस छोटी सी रकम से कुछ होना नहीं था,
वे बहुत व्यथित होकर बैठे थे, कि…
अचानक उनकी मुलाकात अमृतसर के
भाई वीरसिंह जी से हुई। उन्होंने अपनी पूरी
 कथा-व्यथा सुनाई, तो वीरसिंह बहुत भावविभोर
 होकर इस पुनीत कार्य में अपना सब कुछ
अर्पित कर दिया और गुरुद्वारा बनकर तैयार हो गया।
मुझे तूने वाहेगुरू, सब कुछ दिया है।
तेरा शुक्रिया है…..तेरा शुक्रिया है।।
 
सन 1936 में एक 10×10 का एक कमरा तैयार हुआ
और उसमें गुरुग्रन्थ साहिब का पाठ शुरू हो गया।
सन 1937 में वहां पहले
प्रकाश दिवस मनाया।
बोले सो निहाल..शस्त्र श्री अकाल।
सिख इतिहास और हेमकुण्ड  साहिब से जुड़े
पौराणिक धर्म के जानकार डॉ तारासिंह जी ने
भी अपनी पुस्तक श्री हेमकुण्ड दर्शन में इस
तीर्थ की महिमा का विस्तार से वर्णन किया है।
गोविंद मार्ग सुहावा, चरणें…
गोबिंद मार्ग सुहावा..
जिस शिला पर पिछले जन्म में गुरु गोबिंदसिंह जी
 ने तप किया था वह शिला आज भी विद्यमान है।
.कैसे जाएं…..
ऋषिकेश से करीब 300 किलोमीटर है
मार्ग में गोबिंद घाट, देव प्रयाग, श्रीनगर, रूद्र प्रयाग
कर्ण प्रयाग, नन्द प्रयाग, जोशीमठ गोविंद धाम,
घांघरिया आदि पड़ाव हैं।
श्रीनगर, जोशीमठ गोविंद घाट में भी बहुत
सुन्दर गुरुद्वारे हैं जहां रुकने खाने की व्यवस्था है।
 गोविंदघाट से पैदल ही जाना पड़ता है।
चलो वाहेगुरुजी के सहारे
हेमकुण्ड साहिब गुरुद्वारे….
 
गोविंद धाम से एक रास्ता फूलों की घाटी को
जाता है, जो  4 किलोमीटर है,
 की तरफ मुड़ जाता है। दूसरा मार्ग हेमकुण्ड की
तरफ जाता है। जो 6 किलोमीटर करीब है।
आधे मार्ग की चढ़ाई के बाद निशान साहिब के
दर्शन होने लगते हैं।
यहां स्थित झील में हाथी पर्वत और
सप्तऋषि मलय श्रृंखलाओं से जल आता है।
झील से एक लघु जलधारा निकलती है,
जिसे हिमगंगा कहते हैं।
सूरज न बन पाओ, तो
बनके दीपक जलता चल...
हेमकुण्ड साहिब की भौगोलिक स्थिति
का पता लगाने वाले तारासिंह नरोत्तम 
पहले सिख विद्वान थे। 1884 कि आसपास प्रकाशित
तीरथ संग्रह नामक पुस्तक में
करीब 508 दुर्लभ गुरुद्वारा तीर्थो के बारे
में लिखा है।
गुरु मेरी पूजा, गुरु गोविंद 
गुरु मेरा परब्रह्म, गुरु भगवंता…
 
जिंदगी में एक अनुभव जरूर लिया, आप भी
लेकर देखें कि, जो लोग  कम उम्र में ही
गुरू को मानते हैं, वे जल्दी शुरू हो जाते हैं
अर्थात उनको जल्दी सफलता मिलने लगती है।
 तेरी लीला का न पाया कोई पार
 कि लीला तेरी तू ही जाने….वाहेगुरू…
 
अनजान लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि..
इन ५०८ सिद्ध गुरुद्वारों से गुरुगोविन्दसिंह जी
के परिवार का गहरा नाता है। यह वह गुरुद्वारे हैं,
जहां गुरु तेगबहादुर जी ने साधना की थी या 
 उनके पिता और उनके पुत्र श्री
गुरुगोविन्द सिंह जी ने तप किया या कमल चरण पड़े।
ये 508 गुरुद्वारे इन तपस्वी परिवार की देन हैं।
 
गुरु गालव की नगरी ग्वालियर मप्र का 
दाता बन्दीछोड़ गुरुद्वारा….
इनके बारे में बहुत विस्तार से जानकारी 
कभी अलग से दी जावेगी। फिलहाल
इतना समझ लें कि गुरु गोविंदसिंह जी ने
■ यहां भगवान सूर्य की उपासना कर तेज, ज्ञान
शक्ति अर्जित की थी।
■ गुरुद्वारे के नजदीक बने तालाब पर कभी
सूर्य मंदिर था।
■ इस गुरुद्वारे से गुरुजी ने बहुत से राजाओं को
कारागृह से मुक्त कराया था।
जब भी हिम्मत हारें, तो जाएं गुरुद्वारे....
बचपन से ही दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारे की कारसेवा का
अनेकों बार मौका मिला। बहुत अदभुत शान्ति स्थल है।
बहुत बुरे वक्त में इनसे प्रेरित होकर सिखधर्म
से जुड़ा। मुझे हमेशा परम आनंद का अहसास हुआ।
जीवन में अनेकों बार वाहेगुरू के दर्शन, 
मार्गदर्शन और
बर्तन साफ कर सभी अड़चन दूर करने
 का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अपने भारत के लगभग 110 के करीब
गुरुद्वारों पर माथा टेककर सदैव भोलेबाबा और
वाहेगुरुजी का ध्यान-स्मरण
इस भाव और विश्वास के साथ करता रहता हूँ..कि-
वाहेगुरु पर लगा दे
अबकी बार लगा दे…..
इन सब गुरुद्वारे की जानकारी कभी
 
पर ऑनलाइन मिलती रहेगी।
चाहिए थोड़ा साथ– थोड़ा प्यार चाहिए
रोज-रोज-  मौज करते हुए, मस्त-मलंग
रहकर, जीवन में जो भी खोज हो सकी, वही हमने
इस ब्लॉग में लिखा है...फिर भी त्रुटिवश
कुछ अंश रह गए हों, या कोई भूल हो गई
हो, तो अमृतम पत्रिका परिवार क्षमाप्रार्थी है।
चलो भोलेबाबा के द्वारे
सारे कष्ट मिटेंगे तुम्हारे…
 
अमृतम पत्रिका के पिछले लेखों में उत्तराखंड
के बद्रीनाथ धाम, रुद्रप्रयाग का
कार्तिकेया मन्दिर, नागतीर्थ
एवं शिवधाम के बारे में बहुत
बड़ा ब्लॉग लिखा है। मैनें अपने जीवनकाल
में उत्तराखंड की 15 बार से अधिक
यात्रा करके यहां के चप्पे-चप्पे, गली, पर्वत मन्दिरों
के देशन किये। यह सब जानकारी
पर उपलब्ध है।
मेरा मुझमें कुछ नहीं
जो कुछ है सो तेरा...
 
यही भाव व्यक्ति के अभाव मिटा देता है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल वाहेगुरू जी
का ही प्रभाव है। वही आपके ताव (क्रोध)
को कम करके स्वभाव बदल देता है।
डूबती नाव पार लगाकर, सब तनाव
मिटाता है।
वाहेगुरू के प्रति समर्पण से मन-मस्तिष्क
का दर्पण साफ हो जाता है। फिर, 24
घण्टे सत्संग का घर्षण हमारी आत्मा में
होता रहता है, जिसे हम अजपा जाप कहते हैैं।
वाहेगुरू जी की कृपा से
कृपण से कृपण यानि गरीब से गरीब 
व्यक्ति भी करोड़ों का कारोबार करने लगता है।
पारब्रह्म परमेश्वर शिव है, 
हर कोई जाने रे!
वाहेगुरू सबका भाग्य-विधाता, 
सब कोई माने रे!!
 
शिव दर्शन की ललक और वाहेगुरुजी की झलक
देखने के लिए बहुत पापड़ बेलना पड़ते हैं।
पहाड़ो, गुफाओं , कंदराओं में शिव का वास
होने से यह जगत का खास है। भोलेबाबा
को पाना तो मुश्किल है ही, पर ठिकाना यानि
शिंवलिंग ढूढना भी कम परेशानी भरा
 नहीं है।
जोशीमठ पट बन्द होने के पश्चात
भगवान बद्रीविशाल 6 माह यही
निवास करते हैं। यही से 3 या 4
Km की ऊंचाई पर ओली नामक
स्थान है, जो आइस स्केटिंग के लिए
दुनिया में जाना जाता है।
जोशीमठ से करीब 5 या 6 किलोमीटर
दूर विष्णुप्रयाग है।
पांडुकेश्वर तीर्थ यहां से लगभग 10 या 11 km होगा।
 यहां कभी एक स्वयम्भू शिवालय हुआ करता था।
पांडवों के पिता पांडुराज ने यहां भोलेनाथ की उपासना
की थी। गुरुगोविंद सिंह जी ने इस बात का जिक्र किया है।
पांडुकेश्वर में वहीँ योगबद्री या ध्यान बद्री
योग बदरेश्वर का मंदिर है।
इसी जगह से एक मार्ग फूलों की घाटी,
लोकपाल एवं हेमकुण्ड साहिब के लिए गया है।
जोशीमठ से श्री हेमकुण्ड साहिब
करीब 25 किलोमीटर होगा।
रामायण के बहुत मूल पत्र श्री काकभुशुण्डि,
लोकपाल सरोवर भी यहीं हैं।
ये जग सारा नींद से हारा, मोहे नींद न आई
लिखने के शौकीन थे गुरु गोविंदसिंह जी..
 
 इनकी लिखी रचनाएं छोटी-छोटी
पोथियों में संकलित थी। देहत्याग यानि
मुस्लिमों द्वारा हत्या के बाद
इनकी धर्म पत्नी माँ सुन्दरी के आदेश पर
भाई मणि सिंह
खालसा आदि ने सबको
एकत्रित कर एक जिल्द यानि एक
मोटी किताब बना दिया, जिसे दशम ग्रन्थ
कहते हैं।
【】जपुजी साहिब या जाप साहिब
【】रूद्र अवतार
【】बचित्र या विचित्र नाटक
【】अकाल उत्पत्ति
【】चंडी वार
चंडी चरित्र दो भागों में है
【】ज्ञान परबोद्ध यह सब दशम ग्रन्थ में दर्ज हैं।
 गुरु गोविंदसिंह जी ने वेद-पुराण, कुरान, भाष्य,
उपनिषद, धर्मग्रंथ, और शास्त्रों का बारीकी से
अध्ययन किया। गुरुमत विचारधारा से बहुत प्रभावित थे।
एक अदभुत सिद्ध गुरुद्वारा पोंटा साहिब, 
जहां माँ गंगा ने चरण पखारे
देहरादून से चंडीगढ़ के बीच एक बहुत ही
शांतप्रिय गुरुद्वारा है, जहां एक बार ध्यानमग्न
होकर बैठ जाओ, तो 2-4 घण्टे कब व्यतीत हो गए,
पता नहीं चलता।
गुरुगोविंद सिंह जी ने इसी गुरुद्वारे से अपना
सम्पादन, रचना या लेखन कार्य आरम्भ किया था।
पूर्व गुरुमत विचारधारा वाले सदगुरूओं
की वाणी का निचोड़ जाप साहिब या जपुजी साहिब
वाणी में ढालकर निरंकार के अनेक नाम लिखे।
अकाल पुरख की सताती में वाणी लिखी।
साहिबा मेरे साहिबा
जाने कोण पीर पराई….
 
परम आनंद धाम
आनंदपुर साहिब पंजाब के रूपनगर
जिले का एक इतिहासिक शहर है।
लिखी आनंदपुर साहिब गुरुद्वारे का
जीर्णोद्वार गुरुगोविंद सिंह जी के पिताश्री नवम
सिखगुरु तेगबहादुर जी
द्वारा सन १६६४ में किया था।
गुरु गोविंदसिंह जी यहां पर 28 वर्षों तक रहे।
● खालसपंथ का श्रीगणेश इसी गुरुद्वारे से हुआ था। 
● पंज प्यारा की उपाधि भी यहीं दी थी
● अपनी आत्मकथा विचित्र नाटक पोथी के
कुछ अंश भी यहीं लिखे थे।
● अपनी आत्मा के गुरुओं की वंशावली का
ज्ञान गुरु गोविंदसिंह जी को यहीं हुआ था।
● माँ चंडी के आदिशक्ति रूप में दर्शन किये।
● मार्कण्डेय पुराण का अध्ययन कर, इसे
आधार बनाकर चंडी चरित्र नामक 4 रचनाओं को रचा,
जो दशम ग्रन्थ में दर्ज हैं।
● ब्रह्मा-विष्णु-महेश इन त्रिदेवों की कथा भी यहीं लिखी।
5 जनवरी 1666 में पवित्र गुरुद्वारा
श्री पटना साहिब गुरुद्वारे में जन्मे दशम 
गुरु श्री गुरुगोविन्द सिंह जी। अपने पिता श्री
गुरु तेगबहादुर सिंह के देह त्याग उपरांत 
11 नवम्बर 1675 मात्र 9 वर्ष की उम्र में
वे सिखों के दशवे गुरु बने।
 
सीस कटा सकते है केश नहीं….
 
गुरू तेग़ बहादुर जी का
जन्म ०१-०४-१६२१
को हुआ।
कश्मीरी ब्राह्मणों एवं हिंदुओं की बहू-बेटियों
के साथ बलात्कार, उन्हें जबरदस्ती
मुसलमान बनाने का विरोध करने
तथा मुस्लिम धर्म नहीं अपनाने के कारण
 २४-११-१६७५ को
कट्टर मुस्लिम ओरेंगजेब के आदेश पर
दिल्ली के चांदनी चौक पर काज़ी ने
फतवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने
उनका शीश काट डाला।
यह एक प्रकार से उनकी बहुत निर्मम
हत्या थी। हमें अपने सदगुरू का स्मरण करते
हुए, इस क़ौम से सदैव दूरी बनाए रखना
चाहिए अन्यथा उनकी आत्मा को अत्यंत
कष्ट रहेगा। यह दिल की बात है,
दिल्लगी की नहीं।
यह स्थान दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा था 
और उनका अंतिम संस्कार आनंदपुर साहिब
 गुरुद्वारा में किया गया।
अपने पिता के इस बलिदान की
चर्चा गुरुगोविन्द सिंह जी ने बिचित्र नाटक
ग्रन्थ में इस प्रकार की है….
तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ 
कीनो बडो कलू महि साका॥
साधन हेति इती जिनि करी॥ 
सीसु दीया परु सी न उचरी॥
धरम हेत साका जिनि कीआ॥ 
सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ 
        (दशम ग्रन्थ से साभार)
अपने पहले सदगुरू श्री नानकदेव जी के
बताए रास्ते पर जीवन भर  चलते हुए
उनके द्वारा लिखे ११५ पद्य गरूग्रंथ साहिब
की गुरुवाणी में सम्मिलित हैं।
पिता श्री गुरु हरगोविंद सिंह ने इनके
बचपन का नाम त्यागमल रखा था,
किन्तु इनकी वीरता से खुश होकर
बाद में इनका नाम बदलकर
तेगबहादुर कर दिया। इसका अर्थ है
“तलवार के धनी” । इन्होंने
लगातार 20-,22 साल तक
 ‘बाबा बकाला‘ नामक स्थान पर 
अपने गुरु की कठिन साधना की।

गुरु तेगबहादुर जी की बहुत सी 
महत्वपूर्ण रचनाएं गुरुग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं
खालसा पंथ की स्थापना…
सन 1699 में हुई, जो सिखों का महापर्व है।
सदगुरू गोविंदसिंह जी ने कहा है-
 
 डरे सो मरे या परे..
अर्थात….
डरा हुआ भयभीत आदमी या
तो डर जाता है अथवा मर जाता है,
या फिर परे- यानि बिस्तर
पर पड़ जाता है।
गुरु गोविंदसिंह जी का मानना था कि
जैसे-जैसे मनुष्य ईश्वर से विमुख यानि
दूर होता जाता है,
वैसे-वैसे उसके जीवन में 
डर, भय-भ्रम, शंका,
चिन्ता, तनाव, अवसाद (डिप्रेशन) रोग, 
परेशानी, पैसे की कमी, गरीबी आने लगती है।
ऐसे लोग भयभीत, डरे हुए और 
अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
गुरुजी का आदेश था कि किसी भी 
मनुष्य को कभी डराना चाहिए और 
नाहीं किसी से डरने की जरूरत है।
नहीं तो बीमार हो जाओगे।
अपनी गुरुवाणी में लिखा है कि…
भै काहू को देत नहि, 
नहि भय मानत आन।
 गुरुजी बचपन से ही शिवभक्त थे।
सहज,सरल, भावुक, भक्ति-भाव वाले
कर्मयोगी थे।
शिवभक्त परिवार-
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि
गुरुगोविन्द जी के पिता गुरु तेगबहादुर जी
परम शिव भक्त थे। काशी-बनारस में
बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के समीप ही
गुरु तेग बहादुर के नाम से एक प्राचीन
गुरुद्वारा है। इस गुरुद्वारे में एक जलकुंड
है, जिसमें माँ गंगा स्वयं प्रकट हैं।
ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेगबहादुर जी
प्रतिदिन सुबह 4 बजे काशी विश्वनाथ
शिंवलिंग पर इसी गंगाजल से
रुद्राभिषेक करते थे।
इस गुरुद्वारे में गुरुगोविन्द सिंह जी
के बचपन की बहुत सी सामग्री
जैसे- बाल्यकाल की पोशाक चोला, खड़ाऊं,
चरणपादुका यानि जूते, आदि शामिल हैं।
यहां सिख समुदाय के अमूल्य दस्तावेज संग्रहित हैं।
बनारस में यह गुरुद्वारा बड़ी संगत, नीचीबाग के
 नाम से प्रसिद्ध है।
सन 1600 में भाई कल्याण जी के घर
के गर्भगृह में गुरु तेगबहादुर जी ने 7 महीने 13 दिन
तक महादेव का कठोर तप किया था।
ये वही तपःस्थली गुरुद्वारा है।
कैसे हुई गुरुद्वारे में प्रकट गंगा…..
 
मानो तो गंगा माँ हूँ
न मानो तो बहता पानी…
ग्रहण का दिन था। गुरु गोविंदसिंह जी
वहीं तपस्थान पर
स्नान करने लगे, तो भाई कल्याण जी
ने निवेदन किया कि…
आज तो ग्रहण है, चलो….
गंगास्नान कर आते हैं, तब गुरुजी ने
कहा- घर में रखी इस शिला को हटाओ,
माँ यहीं आ जायेगी। वह स्थान आज भी है।

रोग-बीमारी दूर करने के लिए आज भी

श्रद्धालुजन इस जल को अपने घर ले

जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि सम्पूर्ण काशी

का जल श्मशान होने की वजह से

अपवित्र है, किन्तु गुरुद्वारे का जल

पवित्र और पूज्यनीय है।

चलो हेमकुण्ड गुरुद्वारे……

गोविंद घाट से घांघरिया तक कि चढ़ाई
13 किलोमीटर और इसके ऊपर 6 km की
खड़ी चढ़ाई  बहुत परेशानी भरी है, लेकिन
वाहेगुरू-वाहेगुरू जपते हुए यह सफर 
बहुत आसान हो जाता है।

बूटियों का भंडार है यहां-
जटामांसी जो दिमाग की बेहतरीन ओषधि है।
 कुटकी लिवर की दवा। ब्रह्मकमल,  भूतकेश,
सालम पंजासालम मिश्री इत्यादि बहुत
आसानी से उपलब्ध है।
सतनाम सतनाम सतनाम जी !
वाहेगुरू वाहेगुरू वाहेगुरुजी !!

भारत की धरती पर गुरु और
गुरुद्वारों का अम्बार है।

जितने सिद्ध यहां के सद्गुरु हैं, उतने ही

हमारे वाहेगुरूजी की तपस्या और त्याग एवं

मानवता के कल्याण के कारण पवित्र गुरुद्वारे हैं।

【1】स्वर्णमंदिर अमृतसर

   पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर एवं दरवार साहिब के

 नाम से दुनिया में प्रसिद्ध यह गुरुद्वारा हरमिन्दर साहिब

गुरुद्वारे के नाम से जाना जाता है।

पांचवे सिख गुरु श्री अर्जनदेव जी ने इसकी

आधारशिला रखी थी।

【2】 बंगला साहिब गुरुद्वारा


यह जयपुुुर के राजा जयसिंग का बंगला

जयसिंहपुरा पैलेस के नाम प्रसिद्ध था।

इसी वजह से इसे बंगला साहिब गुरुद्वारा

कहते हैं। आठवें गुरु हरकिशन सिंह जी अपनी

सिद्धियों से अभिमंत्रित जल से लोगों की

बीमारियां ठीक कर देते थे। एक बार वे यहां रुके, तो

वहाँ हैजा आदि फेल गया था, तब गुरुजी ने

जल द्वारा इलाज किया। बाद में इस बंगले को

जयपुर नरेश ने गुरुद्वारे को दान दे दिया था।

आज भी रोगी इस पवित्र तीर्थ का जल पीकर

निरोग हो जाते हैं। यह आजमाया हुआ है।

 गुरुतेगबहादुर जी के बलिदान से बंगला साहिब

 का भी गहरा सम्बन्ध है।

【3】फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा।                                                                     पंजाब के फतेहगढ़ जिले में स्थित है।

सन१७०४ में गुरुगोविन्द सिंह जी के

दो पुत्र श्री फतेहसिंह और जोरावर सिंग

को इस गुरुद्वारे की दीवाल में कट्टरपंथी मुस्लिमों

ने जिंदा चुनवा दिया था।

 【4】पांच तख्तो में एक हुजूर साहिब गुरुद्वारा

यह महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में

गोदावरी तट पर बसा है।

यह गुरुद्वारा सचखंड कहलाता  है।

गुरु गोविंदसिंह की अंतिम अरदास यहीं हुई थी।

मस्लिम आताताइयों ने उनकी इसी जगह धोखे से

हत्या कर दी थी।

गुरुनानक देव जी ने जहां शिव की तपस्या की थी

वह स्थान नान्देड़ से कुछ ही दूरी पर ओढ़ा नागनाथ

के नाम से गुफा में स्थित ज्योतिर्लिंग बि यहीं है।

ऐसा बताते हैं कि वे मन्दिर की तरफ पैर करके लेटे

थे, तो कुछ लोगों ने मना किया, तब गुरुनानक जी ने

जिस् तरफ भी पैर किये, मन्दिर का मुख वहीं हो गया।

यह शिंवलिंग विशेष रूप से दर्शनीय है, क्योंकि

ये बालू के शिंवलिंग हैं। सुबह से रात तक पूजा-अभिषेक

होते-होते छोटे हो जाते हैं….पुनः सुबह जब पट

खुलते हैं, तो वैसे ही मिलते हैं। शिवजी यहां

हरिहर रूप में विराजित हैं।

यहां आसपास बहुत से शिंवलिंग हैं। जैसे-

परली वैद्यनाथ, पिरनाथ, बिल्वेश्वर, गणेशगुफ़ा,

नागपर्वत, नन्दीशिला आदि।

【5】पावंटा साहिब गुरुद्वारा

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित

पावंटा साहिब गुरुद्वारा  इसे लोग पोंटा साहिब के नाम

 से भी जानते हैं।गुरुगोबिंद सिंह जी द्वारा लिखी

 किताब दसम ग्रंथ के कुछ अंश तथा उपयोग

की कलम और अपने समय के हथियार और

गुरुद्वारे में श्री दस्तर स्थान मौजूद है।

【6】दमदमा साहिब यानि आराम स्थल

पंजाब के बठिंडा से 28 किमी दूर दक्षिण-पूर्व

के तलवंडी सबो गांव में स्थित गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब

 सिखों के पांच तख्तों में से एक है।

मुसलमानों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बाद

गुरु गोबिंद सिंह जी यहां आकर रुके थे।

यह तीर्थ सिख धर्म के श्रद्धालुओं के लिए

गुरु की काशी कहलाता है।

【7】आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा

गुरु तेगबहादुर जी द्वारा निर्मित

पंजाब के रुपनगर जिले का यह भाग पवित्र

 शहर के तौर पर जाना जाता है। तख्त श्री केशवगढ़

 साहिब आनंदपुर साहिब का मुख्य गुरुद्वारा और

 प्रमुख आकर्षण है।

【8】ग्वालियर का गुरुद्वारा दाता बन्दीछोड़ 

गुरु गोविंदसिंह जी ने अपने तपोबल से कारागृह में बंदी

64 करीब राजाओं को मुक्त कराया था। ऊंची

पहाड़ियों में ग्वालियर किले पर बसा यह गुरुद्वारा

आत्मिक शांति के लिए अदभुत है।

【10】कुल्लू हिमाचल का नानकदेव गुरुद्वारा

कुल्लू से मनाली मोड़ मार्ग में शहर के बीचोंबीच

तिराहे पर, पुल के पास स्थित यह अनोखा धाम दर्शनीय है।

【11】मणिकरण गुरुद्वारा

कुल्लू  का वैदिक नाम कुलान्तपीठ है।

मान्यता है कि जिनके कुल का अंत होने वाला हो,

वे लोग कुल्लू के 108 तीर्थों का दर्शन करें, तो

उनका वंश चल सकता है। ऋषि व्यास ने

ऐसा वरदान दिया था।

 श्रीनारायनहारी गुरुद्वारा

कुल्लू शहर से लगभग 45 या 48 किलोमीटर दूर

नागिन जैसे  एकल मार्ग में कुछ तिब्बती

बस्तियों के नजारे देखते हुए, बहुत आनंदपूर्वक जा

 जा सकते हैं। इस गुरुद्वारे का प्रमुख आकर्षण

कृत्रिम गुफा है, जो इस गुरुद्वारे के पास बनाई गई है.

यहां सालाना हजारों लोग मन की शांति के लिए आते है।

संत नारायण हरि इस स्थान पर 1940 में आया करते थे,

इसलिए उनकी स्मृति में इसे बनाया गया था।

महादेव की माया

मणिकरण में भोलेनाथ का एक

प्राचीन स्वयम्भू शिंवलिंग भी है। यहां पर गर्म पानी

के कुण्ड यानी चश्मे बहुत प्रसिद्ध है। त्वचारोग,

पुराना गठिया एवं केन्सर जैसे रोग इसके स्नान

 से ठीक होते हैं।

【12】तख्तश्री पटना साहिब “जन्मतीर्थ”

बिहार के पटना स्थित यह तीर्थ गुरु गोविंदसिंहजी

का जन्म स्थल है। यहीं उनका जन्म हुआ था।

 पटना साहिब गुरुद्वारे को तख्त श्री हरमिंदरजी भी

कहा जाता है। यहां गुरु गोबिंद सिंहजी की कृपाण,

लोहे की चोटी चकरी, बघनख खंजर,

कमर कसा आदि रखें गए हैं।

बुरहानपुर की बड़ी संगत, छोटी संगत गुरुद्वारा…

कभी वैदिक नाम ब्रह्माण्डपुर था। 

अब इसे बुरहानपुर कहते हैं। 

ताजमहल की प्रेरक मुमताज बेगम की

मृत्यु यहीं हुई थी, वह मस्जिद अभी भी है।

अश्वथामा का शिव साधना स्थल असिर गढ़ का

रहस्यमयी किला कठिन घाटी पर यहीं है।

बहुत से तीर्थ है यहां, लेकिन इस स्थान के

पवित्र होने का सबसे बड़ा कारण है- दोनो गुरुद्वारे

सुनहरी बीड़ साहिब गुरुद्वारा…

इसे बड़ी संगत भी कहते हैं।

गुरुगोविन्दसिंह जी इस स्थान पर सन 1708

में आकर 6 महीने करीब रुके थे।

सुनहरी बीड़ साहब यानि गुरुग्रन्थ साहिब पर उनके

स्वर्ण हस्ताक्षर हैं। ग्रन्थ पर सतनाम श्रीवाहेगुरु जी

लिखा था, जिनके दर्शन का सौभाग्य प्रकाश

उत्सव के समय सबको मिलता है। सन 1765

में निर्मित इस गुरुद्वारे में गुरुजी से साक्षात्कार

हो सकता है…यदि ध्यान-मग्न होकर बैठे, तो।

यहीं से फिर, वे नान्देड़ गए और वहां उनकी हत्या कर दी।

छोटी संगत गुरुद्वारा…

बुरहानपुर शहर से लगभग 5 किलोमीटर एकांत वन

में छोटी संगत गुरुद्वारा है, जहां गुरु गोविंदसिंह

जी सबसे पहले 9 दिन रुके थे। यह छोटा सा

गुरुद्वारा आंखों में आंसू लाने पर मजबर

कर देता है, क्योंकि इतनी तप की ऊर्जा है कि

मन बहुत पवित्र और शान्त हो जाता है।

जाने..कौन हैं सिखों के 10 गुरु-

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

प्रथम गुरु…गुरु गुरुनानक देव 

इन्होंने ही सिख धर्म की नींव रखी। 

【२】गुरु अंगद देव

【३】गुरु अमरदास

 【४】गुरु रामदास

【५】गुरु अर्जुन देव या अर्जन देव

【६】गुरु हरगोबिंद सिंह (गुरु गोविंदसिंह के बाबा)

【७】गुरु हर राय

【८】गुरु हरकिशन सिंह

【९】गुरु तेग बहादुर सिंह

दशमें गुरु – गुरुगोविन्दसिंह जी

सिखों के पवित्र ग्रंथ “गुरु ग्रंथ साहिब” 

में सभी धर्म के सिद्ध सन्तों की वाणी है….

इस पवित्र गुरूग्रंथ में 1430 पृष्ठ हैं और 

सभी सिख गुरुओं के शब्द 31 रागों में संग्रहित हैं। 

श्रीगुरु ग्रंथ साहिब की शुरूआत 

एक ओंकार” शब्द से होती है। इस पुस्तक में

 ना केवल सिख गुरुओं की वाणी है बल्कि

 इसमें विभिन्न हिन्दू संतो और मुस्लिम पीर 

आदि के वचनों को भी संग्रहित किया गया है। 

श्री गुरुग्रन्थ साहिब में...

■ भगत कबीर दास जी के २२४ दोहे हैं, जो सबसे अधिक हैं।

■  भगत भीखन जी के…. 2

 ■ नामदेव के….. 61

 ■ सूरदास जी का …..एक

■ संत रविदास के…. 40 

 ■ भगत परमानन्द जी का… 1

 ■ भगत त्रिलोचन जी के…. 4

 ■ भगत सैण जी का…..1

 ■ फरीद जी के ……4

 ■ पीपाजी का…. 1

 ■ भगत बैणी जी…… 3

 ■ भगत सधना जी ……1

 ■ भगत धंना जी के….. 3

 ■ रामानन्द का…..1

 ■ भगत जयदेव जी के…..2

 ■ गुरु अर्जन देव के……3  (कुल योग दोहे…..352

इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा गया है।

वाहेगुरुजी का खालसा….

श्री गुरुनानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी

 तक गुरुगद्दी शारीरिक रूप में रही ,क्योंकि इन                        सभी सदगुरुओं  ने पंचमहाभूतों यानि पाँच भौतिक शरीर को धारण करके

मानवता का कल्याण किया।

गुरुगोविन्द सिंह जी ने कठोर निर्देश दिया था…

अंतिम समय गुरुजी ने सिखों को आदेश दिया था कि..

कभी भी किसी भी सिख को किसी से भी डरने या

भयभीत होने की जरूरत नहीं है। 

दशमें गुरु जी ने देह त्याग करने से पहले सारी सिख

कौम को आदेश दिया कि आज से आपके 

अगले गुरु ‘श्री गुरु ग्रंथ साहेब‘ हैं। 

इसके अलावा सिख कुछ न माने

 सिख सिर्फ गुरु ग्रंथ साहेब जी को ही अपना गुरु मानेगा।

उन्हीं के आगे शीश झुकाएगा और

जो उनकी बाणी को पढ़ेगा-सुनेगा, वही

मेरे दर्शन एवं मेरी कृपा का अधिकारी होगा।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने आदेश दिया कि...

 ★ सिख कौम किसी भी शरीर के आगे,

★ मूर्ति के आगे या फिर

★ कब्र के आगे माथा नहीं झुकाएँगे।

सिखों का एक ही गुरु होगा और वो है श्री गुरु ग्रंथ साहेब

प्रत्येक सिख परिवार को प्रातः 4 से 5 बजे 

श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी की अरदास (प्रार्थना)

करने से कभी दुःख-तकलीफ, परेशानी और

गरीबी नहीं आती।

सिख का मतलब से सीखना..

सिखधर्म के लोगों को रोज कुछ न कुछ नया सीखना

जरूरी है।  प्रत्येक सिख बच्चे का नामकरण

संस्कार यानि नाम का पहला अक्षर गुरु ग्रंथ साहेब जी

की बाणी के पहले अक्षर से ही लिया जावे।

काम पर निकलने से पहले हर सिख

गुरु ग्रंथ साहेब जी के आगे अरदास करके ही जावे।

सिख धर्म के दसवें गुरु ने यह घोषणा की थी कि …

आगे से कोई भी देहधारी सिख गुरु नहीं होगा।

सिख धर्म में ग्रंथ ही गुरु है….

सिखों के गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहिब दरबार

 साहिब का मुख्य हिस्सा होती है। इस पवित्र 

किताब को एक दरबार साहिब में एक 

मंडप या मंच पर आकर्षक रंग के कपड़ों में रखा जाता है।

सिख धर्म की मूल धार्मिक पुस्तकें

गुरु ग्रंथ साहिब, जनम सखी, आदि ग्रंथ, दसम ग्रंथ

एक ग्रन्थआदिग्रन्थ सिख संप्रदाय का प्रमुख धर्मग्रन्थ है। 

इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ भी कहते हैं। 

अभी बहुत सी जानकारी अधूरी रह गई, भविष्य में 

दी जावेंगी। इस लेख में पवित्र आत्मा से पूरी

कोशिश की है कि..हमारे पाठकों को यह

लेख पसंद आये। इस ब्लॉग को लिखने, खोजने,

अध्ययन आदि में समय भी बहुत व्यतीत हुआ है।

यदि आप लोगों को यह लेख में माफिक लगे, तो

लाइक , शेयर करने और करवाने में जरूर सहयोग

करें, ताकि यह दुर्लभ जानकारी सभी तक पहुंच सके।

राज्य करेगा खालसा…

यह गुरुगोविन्द सिंह का वचन है कभी

खाली नहीं जाएगा। सिखधर्म का जो त्याग

और मानव सेवा है, वह अन्य किसी भी धर्म में 

इतनी निस्वार्थ नहीं है।

हमें भी विश्वाश है कि दुनिया में केवल यही एक

सही धर्म बचेगा। लोग अब धर्म के नाम पर

लूटामारी से बहुत दुखी हो गए हैं।

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Comments

5 responses to “हेमकुण्ड साहिब के बारे में एक अत्यंत मार्मिक कथा। जिसे पढ़कर…..आँखे नम – तो हो ही जाएंगी”

  1. Dr preeti arora avatar
    Dr preeti arora

    Brilliant. Write up…..Thank you soo much for sharing…It’s soo precious a d we don’t know our culture..

  2. Rajesh Kamboj avatar
    Rajesh Kamboj

    Nice knowldge sir thanks

    1. rahul.kasera.864@gmail.com avatar

      Welcome Sir.
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  3. shighrapatan avatar

    बहत अच्छी कहनाइ है

    1. rahul.kasera.864@gmail.com avatar

      Thank you…
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