नजला,साइनस,जुकाम का शर्तिया इलाज मिल गया है।जाने साइनस के लक्षण और इलाज…….

साइनस एक तरह से सर्दी-जुकाम की समस्या है। ये विकार पुराना होने पर नाक की छिद्र नलिकाओं में सूजन आने लगती है।

आयुर्वेदिक शास्त्रों में इस नाक के रोग को प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है।

आयुर्वेद शास्त्र चरक, सुश्रुत सहिंता में भी साइनस या नजला यानी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय (एक्यूट साइनुसाइटिस) और पक्व प्रतिश्याय (क्रोनिक साइनुसाइटिस) दो प्रकार का बताया है। नवीन खोजों में भी साइनस दो प्रकार का खोजा है।

बचपन में जिन्हें दीर्घकालिक सर्दी-जुकाम, निमोनिया बना रहता है, तो भविष्य में साइनस आपको प्रभावित कर देता है।

साइनस, निमोनिया जैसी व्याधि का दुष्प्रभाव बच्चों व बुजुर्गों पर ज्यादा होता है। रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुआं बरदास्थ नहीं कर सकता।

साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गम्भीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गम्भीर संक्रमण हो सकता है।

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ह्रदय और श्वांस सम्बन्धी तकलीफों में एवं साइनस या प्रतिश्याय का सर्वश्रेष्ठ इलाज है-शंख वादन। अगर आप भयंकर रूप से साइनस की तकलीफ से परेशान हैं,

तो नित्य नियम से सुबह स्नान-ध्यान के बाद खाली पेट 2 से 5 मिनिट तक शंख बजाएं। मात्र 5 दिन में ही आपको 50 फीसदी आराम मिल जाएगा।

दरअसल फेफड़ों में पूरी तरह प्राणवायु न पहुंच पाने की वजह से हमारी श्वांस नलिकाओं में संक्रमण होने लगता है, जिससे क्षतिग्रस्त होकर साइनस जैसी समस्या पैदा करती हैं।

हालांकि ओषधि काढ़े या गर्म पानी की भाप लेने से भी तत्कालिक लाभ मिलता है।

भाप लेने के सात घरेलू तरीके और 13 उपयोगी आयुर्वेदिक ओषधियाँ

  1. नीलगिरी के तेल खोलते गर्म पानी में 3 से 5 मिलीलीटर डालकर आप भाप ले सकते हैं। यह नजला, साइनस या किसी भी तरह के फेफड़ों के संक्रमण को दूर करने में तत्काल मदद करता है।
  2. लेमन ग्रास, तुलसी तथा गेंदे के फूल को पानी में अच्छी तरह उबालकर, इसमें नमक मिलाकर भाप लेने से श्वांस नलिकाओं की सूजन मिटती है।
  3. नींबू या संतरे के छिलके कूटकर पानी में उबालकर भाप लेने से सिर का भारीपन दुर होता है।
  4. अदरक, अजवाइन, लहसुन पीसकर इसका काढ़ा पाइन से और भाप लेने से बहती नाक बंद होती है।
  5. दालचीनी, टी-ट्री ऑयल एवं नींबू रस-छिलका सहित उबालकर भाप लेने से शरीर का भारीपन मिटता है।
  6. लेमनग्रास तथानीम की पत्तियों को जल में खोलायें और भाप लेवें, तो कीटाणुओं का नाश होता है।
  7. एक लीटर गर्म पानी में 5 से 10 ग्राम ऑर्थोकी बाम डालकर भी भाप ले सकते हैं। इसमें उपरोक्त सभी औषधियों का मिश्रण है।

हमारे सिर में कई खोखले छिद्र (कैविटीज) श्वांस लेने में सहायक होने से ये मस्तिष्क को तरोताजा व हल्का रखते हैं।

इन नाक नलिकाओं या छिद्रों को साइनस या वायुविवर कहा जाता है। जब इन छिद्रों में किसी कारणवश गतिरोध पैदा होता है,

तब साइनस की समस्या उत्पन्न होती है। ये छिद्र कई कारणों से प्रभावित हो सकते हैं और बैक्टीरिया, फंगल व वायरल इसे गंभीर बना देते हैं।

साइनस रोग के लक्षण….

प्रदुषण न झेल पाना। थोड़ी सी ही दूषित हवा नाक में लगते ही छींके आना, सर्दी-बरसात के समय नाक बंद होना,

सिर में दर्द होना, आधाशीशी मस्तिष्क विकार, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से लगातार पानी गिरते रहना साइनस रोग के लक्षण हैं।

साइनस से पीड़ित लोगों को नाक और नाक के दोनों तरफ दर्द तथा तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है।

हरारत या हल्का बुखार, आंखों की पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है।

साइनस के मरीज की नाक और गले में कफ जमा रहता है। गले में खराब, वाणी में भारीपन, बार-बार ठसका आना आदि परेशानी बनी रहती है।

अपनी लाइफ स्टाइल या अव्यवस्थित जीवन शैली के चलते, ठीक ढंग से श्वांस न लेना,

ठंडा-गर्म एक साथ लेना तथा खाने-पीने में लापरवाही करने से साइनस रोग पनपने लगता है।

भोजन आराम से चबाकर खाएं। भोजन जल्दी खाना, खड़े होकर शीघ्रता से पानी पीना, खान-पान की अनियंत्रित

मात्रा व पौष्टिक तत्वों की कमी से पाचन तंत्र प्रभावित होता है, जो आगे चलकर साइनस की समस्या की जड़ बन सकता है।

लगातार हो जुकाम, तो देह का काम-तमाम…

जुकाम एक प्रकार का संक्रमण है। यह भी कोरोना की तरह किसी और के माध्यम से भी आपको चपेट में ले सकता है।

जिन लोगों को लगातार जुकाम होता है, उन्हें साइनस होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।

प्रतिश्याय या साइनस का सबसे सामान्य कारण जुकाम है, जिसकी वजह से नाक से निरंतर पानी या गंदा पदार्थ बहता रहता है।

हर बार नाक साफ करने बावजूद भी पुनः नाक में पानी आ जाता है और कुछ समय बाद नाक बंद हो जाती है और सांस लेने में दिक्कत होती है।

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प्रदूषण भी एक मूल वजह….धूल के कण, स्मॉग और दूषित वायु के कारण साइनस की समस्या बढ़ सकती है।

ये हानिकारक कण सीधे हमारी श्वास नली पर प्रहार करते हैं। इससे धीरे-धीरे जुकाम, नाक का बहना और दर्द आदि समस्या होती है।

पदम भूषण पाने वाले लोग भी प्रदूषण से नहीं बच सकते। साइनस की समस्या प्रदूषण के कारण भी हो सकती है।

ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले लोग इस बीमारी की चपेट में जल्दी आ सकते हैं।

अस्थमा सांस संबंधी असहनीय विकार है, जो फेफड़ों और श्वास नलियों को प्रभावित करती है।

अस्थमा पीड़ित को श्वांस लेने में बहुत दिक्कत होती है। ऐसे रोगियों को साइनस की समस्या होने के आसार बढ़ जाते हैं। उसे स्पेसर की आवश्यकता पड़ती है।

अर्जी से ठीक नहीं होगी-एलर्जी- बहुत से लोगों को बाहरी दूषित वायु के संपर्क में आते ही यह समस्या बढ़ जाती है।

इससे भी नाक संबंधी एलर्जी की शिकायत रहती है।

कुछ लोगों को मौसम के बदलते ही नाक संबंधी एलर्जी हो सकती है।

एलर्जी की वजह से सर्दियों के दर्द, आवाज में बदलाव, सिर में भारीपन या सिरदर्द आदि समस्या होने सामान्य लक्षण है।

साइनस इन्हीं लक्षणों के साथ दरवाजे पर दस्तक देता है।

साइनस रोग के कारण बढ़ सकती है -नाक की हड्डी बढ़ी हुई नाक हड्डी श्वास छिद्रों में अवरोध उत्पन्न कर सकती है।

नाक पर चोट लगने से नाक की हड्डी एक तरफ मुड़ जाती है, जिससे नाक का आकार टेढ़ा दिखाई देता है।

हड्डी का यह झुकाव नाक के छिद्र को प्रभावित करता है, जिससे साइनस की समस्या हो सकती है।

आयुर्वेद में साइनस से मुक्ति पाने हेतु कफनि:सारक छेदन (Expectorants, Apoplagmatics) ओषधियाँ लेने की सलाह दी गई है।

देखें भारत के महान आयुर्वेद मनीषियों ने संस्कृत के एक श्लोक का वर्णन किया है-

शिलष्टान् कफादिकान् दोषानुन्मूलयति यद्वलात्।

छेदनं तघथा क्षारा मरिचानि शिलाजतु।।

(शारंगधर सहिंता)

जो ओषधि श्वांसनलिका, फुफ्फुस यानि फेफड़ों तथा कण्ठादि में जमे, लगे कफ रूपी मल को बलपूर्वक बाहर निकल देती है,

उसे छेदन या कफनि:सारक कहते हैं। इन औषधियों से पुराने से पुराण नजला, जुकाम, साइनस जड़ से ठीक हो जाता है।

कफनि:सारक आयुर्वेदिक जड़ीबूटियां…

क्षार, कालीमिर्च, शुद्ध शिलाजीत, ताम्रभस्म युक्त माल्ट, सीरप, टेबलेट या कैप्सूल, सेंधा नमक, सादा नमक, जवाखार, नौसादर,

सज्जीखार, अडूसा, अरण्य, आक या अकौआ, बहेड़ा, कच्ची हल्दी, अम्बाहल्दी, काकडासिंघी, कायफल,

मुलेठी, देवदार, कटरी, बच, निर्गुन्डी, बोलबद्ध रस, शुद्ध मधु पंचामृत, वनफ़सा, लोहवान, कुचला, गंधक, लोंग,

छोटीपीपल, प्याज, रसोन-लहसुन, कपूर आदि यह औषधीय नजला को हमेशा के लिए उखाड़ फेंकती हैं।

एक चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि –लोजेन्ज माल्ट ..

आयुर्वेद के 5000 वर्ष प्राचीन इन्हीं ग्रन्थों के अनुसार अमृतम द्वारा लोजेन्ज माल्ट का निर्माण किया है।

अगर किसी को भी बच्चे, बुजुर्ग या स्त्री-पुरुष को काफी समय से साइनस, नजला, सर्दी, खांसी, जुकाम, कंठ या गले की खराबी,

अस्थमा या श्वांसनली की समस्या हो या संक्रमण हो अथवा श्वांस सम्बन्धी परेशानी हो, तो एक महीने लोजेन्ज माल्ट

दूध या जल से सुबह एक से दो चम्मच खाली पेट और रात को सोते समय सेवन करें।

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लोजेन्ज माल्ट में अनुलोमन द्रव्यों का समावेश है, जो कफ को ढ़ीलाकर दोष-मल विसर्जन द्वारा बाहर निकल देता है।

इसमें हरड़, आंवला मुरब्बा, गुलाब, मुलहठी, मुनक्के का मिश्रण है।

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