क्या कोई छठा तत्व है? यदि हाँ, तो क्या है?

ध्यान-धैर्य-धर्म के 23 सूत्र और फायदे—

छठा तत्व स्वयम इंसान है, जो अपनी साधना-उपासना से पांचों तत्वों को अपने वश में कर सकता है। वेदों में लिखा है-

!!यत् पिंडे-तत् ब्रह्माण्डे!!

अर्थात सृष्टि/ब्रह्मांड में जो भी कुछ है, वह सब हमारे अंदर भी है। अपने मन-मस्तिष्क की शक्तियों को अपने अंदर ही समेट कर परमहंस बन सकते हैं।

धैर्यपूर्वक ध्यान देंवें—

सर्जन ओर विसर्जन में थोड़ा सा फर्क है। यदि हम शिव में अपना विसर्जन कर दें, तो छठी इन्द्रिय जागृत हो सकती है। अन्यथा सर्जन देह का इतना बुरा हाल बना देता है कि खाल भी बदबू देने लगती है। सारा माल भी हिल्ले लगकर व्यक्ति काल के गाल में समा जाता है।

स्वयं को शिव में समाहित-समर्पित करें—

दक्षिणी स्कन्ध सहिंता शास्त्र के मुताबिक—शिवपुत्र भगवान कार्तिकेय और तन्त्र की शक्ति माँ कामाख्या यह दोनों छह मुख के इसीलिए हैं कि इन्होंने शिव की उपासना से पांचों तत्वों को जागृत कर अपने अंदर समाहित कर लिया था।

लंकेश्वर नामक ग्रन्थ एवं “शिवतांडव रहस्य” के अनुसार रावण के 10 मुखों का रहस्य दसों इंद्रियों को जागृत करना बताया है। परम् शिव भक्त श्री दशानन ने भी छठे तत्व को पाकर शक्ति-सिद्धियों से संसार रचा।

आप नीचे लिखी किताबों को पढ़े-

●~ मनीषी की लोकयात्रा

●~ ईशादि नौ उपनिषद

●~ यतार्थ गीता

●~ तत्वज्ञान

●~ कुंडलिनी जागरण

●~ सौंदर्य लहरी

●~ स्वामी कथासार

●~ प्रतीक शास्त्र

●~ तांडव रहस्य

●~ मन्त्र और मातृकाओं का रहस्य

●~ ईश्वरोउपनिषद

●~ शिवतन्त्र

●~ अग्नि पुराण

●~ गरुड़ पुराण

●~ मन्त्रमहोदधि

●~ स्कंदपुराण

●~ हिमालय के योगी

●~ हिमालय दर्शन

●~ कालसर्प विशेषांक

●~ अमृतमपत्रिका

आदि पुस्तकों का अध्ययन कर बहुत कुछ रहस्य जान सकते हैं।

हमारे जीवन में सबसे बड़ी समस्या है। मन की चंचलता। भटकाव या भटकन, जो हमें अपने से ऊपर नहीं उठने देता कभी विचार करें कि-

हमें अपने नेत्रों या आज्ञाचक्र से केवल दो इंच ऊपर उठकर हम स्वयम ही शिव हो सकते हैं। लेकिन हरेक मनुष्य यहां से 16 इंच नीचे आसानी से गिर जाता है, परन्तु 84 योनियों में भटककर भी 2 इंच ऊपर सहस्रार को नहीं खोल पाता। यह कुंडलिनी जागरण का अत्यंत गुप्त रहस्य है, जो गुरुजनों से प्राप्त हो सकता है। यह मेरे मात्र विचार हैं।

मैं इस योग्य भी नहीं हूं कि इस विषय पर ज्यादा ज्ञान दे सकूं।

धयान की शुन्यगति में जाकर आदि शंकराचार्य ने लिखा है-

!!शिवोsहम-शिवोsहम्!!

मैं स्वयं ही शिव हूँ। वैसे भी हमारा मस्तिष्क शिवलिंग का ही आकार है। यहीं पर मन का स्थान है, जो तन को चलाता है।

कहते हैं कि-

शिव ही बाहर, शिव ही अंदर!

शिव की रचना सात समंदर!!

मानव जीवन में रुकावट कहाँ और कैसे है?…

इसे हम ऐसे समझने की कोशिश करते हैं—

मानव शरीर का दृढ़तम अंग है -सिर!

सिर में लचीलापन नहीं है और यह वही है, जो कभी झुकता नहीं है। जहां हम समझते हैं कि हमने सिर झुका दिया, सचमुच हम एक गलत परिभाषा में लेते हैं… झुकती है गर्दन।

किसी ने सही लिखा है-

झुकते वही है, जिनमें जान होती है।

अकड़ना, तो मुर्दों की शान होती है।।

गर्दन शरीर के अन्य अंगों की तरह ही एक अवयव है। गर्दन के ऊपर स्थित है सिर और यही है, जो न झुकता है और न इसका अहंकार नष्ट होता है।

चिंतन और चेतना के बीज-मंत्रों का हमारा सिर ही केंद्र-बिंदु है। कभी चिन्ताओं की श्रृंखलाओं को निर्मित कर वायु की तरह भटकाता है तथा सोच के अनन्त-असंख्य द्वारों को एक साथ इस तरह खोलता रहता है कि मनुष्य की समूची क्रियाशीलता उसी तरह संचालित होने लगती है।

सिर ही सदैव भटकाता रहता है। भटकन हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। भटकना, अटकना, सबसे लटकना मनुष्य की प्रवृति है। भटकन की कोई एक निश्चित दिशा नहीं होती। वह परम्पराओं से साक्षी होकर उनका मित्र बनता है, तो वहीं परम्पराओं को तोड़ने के लिए कृत-संकल्पित हो जाता है और विनाश के बादल बनाने लगता है।

सारा संसार भटकन के अधीन है। भटकन और परिवर्तन एक क्रम है, जो जीवन के समस्त पहलुओं में रचा-बसा है।

हम भटकन को न अपनी मुट्ठियों में कैद कर सकते हैं और ना हैं उसे पतंग की तरह उड़ाकर खेलने का मजा ले सकते हैं।

भटकाव-भटकन से मुक्ति के 23 उपाय—

वेद-उपवेद, उपनिषद, सिद्धसन्तों की वाणी से प्रकट प्रवचन के कुछ जीवन सार पालने का प्रयास करके सुखी रह सकते हैं…..

【१】ध्यान में स्थिर होना ही सिद्धि को पा लेना है। सिद्धि अर्थात आकांक्षा, इच्छा एवं अभिलाषा की पूर्ति और जरा-जन्म, मृत्यु-व्याधि से मुक्ति।

【२】ध्यान में अथाह क्षमता है, क्योंकि ध्यान एकाक्षी होता है।

【३】ध्यान के एकाक्षी होने का प्रमें श्रीकृष्ण की बांसुरी की रागात्मकता में मिलता है।

【४】दिन हो या अंधेरी रात बांसुरी के स्वर सभी में स्याही पोत देते हैं।

【५】ध्यान के क्षण ने ही गौतम बुद्ध से प्रासाद-राजमहल छीन लिए। भगवान महावीर से भोक्ता पड़ छूट गए।

【६】ध्यान ही काव्य को जन्म देता है और कबीर, रविदासजी जैसे अक्खड़, अनपढ़ को ज्ञान की स्वर्ण कसौटी दे जाता है।

【७】भक्त रैदास जूते सीते थे। जूता सीना ध्यान के बिना सम्भव नहीं है।

【८】ध्यान उस अमरवृक्ष के नीचे लेकर खड़ा देता है, जहां कुछ मांगना नहीं पड़ता।

【९】ध्यान से जिज्ञासाओं के द्वार खुलकर सार्थक हो जाते हैं।

【१०】आत्मा आकाश का भी आकाश है, प्रकाश का भी प्रकाश और प्रकाश से भी परे है। आत्मा चराचर जगत का आधार है। आत्मा ही ब्रह्म है, ब्रह्म ही आत्मा है। यह महान ग्रन्थ “ईशादि नौ उपनिषद” का वचन है।

【११】ऊंचे पहाड़ों पर जैसे तन-,मन को शांति का आभास होता है, वैसे ही विचारों को उच्च श्रेणी का बनाने से आत्मा को महान होने का आभास होने लगता है।

【१२】आग और इच्छाएं समान हैं। आग में जितना घी डालो, उतना ही धधकती है। अतः संसार की सभी भौतिक वस्तुएं हमारी प्यास बुझाने के लिए नाकाफी रहती हैं।

【१३】विनाशी और अनित्य वस्तुओं के लिए हमें अपने कर्तव्यों, विचारों और वचनों को व्यर्थ में नहीं गवानां चाहिए।

【१४】भगवान शिव में आस्था की प्रतिध्वनि व्यर्थ के कम्पनों, उलझनों से बचा लेती है।

【१५】शिव में समर्पण विश्वास है। बाबा विश्वनाथ में ही आस्था की प्रतिध्वनि समाहित है।

【१६】संगमरमर के घर में और संसार में रहकर भोग… भोगा जा सकता है, लेकिन ईश्वर का संग योग-ध्यान से ही सम्भव है।

【१७】सुख की इच्छा का त्याग कराने लिए ही कुछ समय के लिए दुःख आता ही है।

【१८】क्या करेंगे…? यह निर्धारित नहीं है,

एक दिन मरेंगे यह निश्चित है।

【१९】भटकन से मुक्ति का एक मात्र साधन है- शिव की साधना-साथ ही ध्यान।

【२०】ध्यान में भटकन नहीं है। ध्यान से अहंकार, अंधकार कोसों दूर भागता है। अतः सृष्टि पुंनसत्व का सुंदर वन है। इस सुंदरवन को अपना ध्यानाधार बनाइये।

【२१】धैर्य से ध्यान करें, फिर- ध्यान से धैर्य उपजेगा। धैर्य और ध्यान की पूंजी ही सर्वश्रेष्ठ धन है।

【२२】धैर्य-ध्यान और धर्म की मजबूत जमीन से उछल मनुष्य धरती के लोगों को मुट्ठी में भर सकता है।

【२३】यही ध्यान है, जिससे अदना-सा आदमी स्वामी, सन्यासी, सूफी, सन्त, चिंतक, विचारक बन जाता है।

ध्यान के लिए पहली शर्त है स्वस्थ्य रहना।

आप आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल अंग्रेजी किताब को पढ़कर ताउम्र खुश, तन्दरुस्त जी सकते हैं-

अन्त में अन्तर्मन से आग्रह—

कठोर अभ्यास के द्वारा महादेव को मन में बसाकर हम महान आत्मा बन सकते हैं, तभी पांचों तत्व आपके आदेश का पालन करने लगेंगे। उस दिन आप खुद ही छठा तत्व का अनुभव होगा।

निवेदन

★★★ ॐ ★★★

!!हर शब्द अमॄतम!!

सत्य की हमेशा विजय होती है-

असत्य की नहीं। सदा सत्य का साथ निभाना उचित है। यह उपनिषदों की हुंकार है-

!!सत्यमेव जयते नानृतम!!

■ मस्तिष्क हो या पत्थर कभी बदलता या पिघलता नहीं है।

■~ मौका ओर धोखा देने वाले जीवन बदल देते हैं।

■~ शिव साधना में सब्र चाहिए, लेकिन सब्र…. सबमें नहीं होता।

■~ जरा, होले-होले चलो मोरे सजना….

ये है, तो एक बहुत पुराना गीत का अंतरा-

लेकिन इसमें

जीवन का सार–जीवन के पार

का रहस्य छुपा हुआ है:-

■~ संस्कृत का एक श्लोक है…..

अविलंबेन संसिद्धो

मान्त्रिकैराप्यते यशः!

विलम्बे कर्मबाहुल्यमं

विख्याप्याSवाप्यते धनम् !!

-सुभाषितरत्नाकर ग्रन्थ से साभार…

इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है-

तन्त्र-मन्त्र-यंत्र यानि तांत्रिक-मान्त्रिक

या चमत्कार दिखाने वाले लोग जिन्हें

तांत्रिक या जादूगर भी कह सकते हैं।

यह अपने ऊंटपटांग हरकतों या हथकंडों

से या फिर अपने जादू के प्रदर्शन को शीघ्र

ही संपन्न कर यश-कीर्ति, प्रसन्नता-सम्पन्नता प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु इनकी यह सफलता स्थायी या स्थिर नहीं होती।

■~ इसके विपरीत कर्मठ, ईमानदार और

सच्चा इंसान (स्त्री-पुरुष) सतत परिश्रम,

कड़ी मेहनत करने के बाद ही प्रसिद्धि

तथा धन प्राप्त करने में सफल हो पाते

हैं और अंत तक चलते हैं।

इसलिए सफलता पाने के लिए

जल्दबाजी न करें।

निवेदन- यह विषय बहुत ही विस्तारित है। हजारों पृष्ठ में भी इसकी व्याख्या असम्भव है। कुछ भी आपका सवाल बेहतरीन और उम्दा है।

आपको सादर शिवाय नमः

कुछ और विचार भी हैं-

तोड़ना सहज है, जोड़ना असम्भव है। जिस दिन जोड़ने की ताकत आ गयी— सिद्धि का वह श्रेष्ठतम वरदान बन जाता है।

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