क्या सुंदरता की कोई परिभाषा भी है?

आयुर्वेद और अध्यात्म का मानना है कि खूबसूरती तप-योग, साधना करने के साथ-साथ सरल-सहज, निर्विकार, निर्विवाद, निर्विचार, निर्विकल्प और निरोग होने से बढ़ती है।

सुंदरता मन की भी होती है और तन की भी। यदि अंदर से पवित्रता आ जाये, तो मुखमण्डल अपने आप चमकने लगता है।

कहा भी है-तेरा साईं तुझमें है। वही सबसे सुंदर है।

घूंघट के पट खोलते ही पिया मिल जाते हैं। फिर किसी सुंदरता की जरूरत नहीं पड़ती।

मीरा ने कोई सौंदर्य सामग्री का उपयोग नहीं किया था, अपितु जहर पिया तब, भी सुंदर हो गई।

बाहरी सुंदरता का ज्यादा महत्व नहीं है। केवल पैसे की बर्बादी है।

कभी कुंभ के मेले में जाकर देखें, तो ऐसे-ऐसे साधु आते हैं कि उनके चेहरे को एक टक नहीं देख सकते। अंदर की शुद्धि से जो सुंदरता आती है वह किसी भी उबटन या दवा से नहीं आ सकती।

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मन को इतना पवित्र बाना लें कि कोई भी विकार या नकारात्मकता हमें छू भी न सके।

देवी भागवत में अनेकों ऐसे मन्त्रो का उल्लेख है जिसके जाप से खूबसूरती पायी जा सकती है।

जैसे—

!!या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता!!

के जाप से शरीर को शक्तिशाली बना सकते हैं।

अर्गल स्त्रोत का यह मन्त्र चमत्कारी है

स्तुवद्भ्योभक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधि नाशिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

सुंदरता की व्याख्या या परिभक्ष इतनी सरल या सहज नहीं हैं। सुंदर बनने के लिए सबसे जरूरी चीज है अभ्यास। नियम-धर्म, तप-उपवास। खुद को तपाकर ही आप खुदा बन सकते हो।

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