जाने इंसान का धर्म क्या है? जिन्दगी जीने के लिए जरूरी हैं-चार पुरुषार्थ। सर्वप्रथम धर्म के बारे में समझे !

आपको मालूम है कि-

इंसान का पहला पुरुषार्थ क्या है- पार्ट -1 【भाग-1】

भगवान विष्णु ने जब सृष्टि रचना कि, तो मानव जाति के सुखी और सम्पन्न जीवन हेतु कुछ नियम-धर्म स्थापित किये थे। जिसमें धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष इन चतुर्थ पुरुषार्थ के विषय में वेद-पुराण, ग्रंथो में इनका विस्तृत वर्णन है।

सुखमय जीवन के लिए शास्त्रों में

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

इन चार सिद्धान्तों का उल्लेख है।

कहा गया है कि इन नियमों का अनुसरण

करने वाला व्यक्ति कभी दुःखी या परेशान नहीं होता।

सबसे पहले हम इस पार्ट – 1【 भाग-एक】

में धर्म के बारे बताया जा रहा है।

जानिए धर्म क्या है? –

वैदिक ग्रन्थों में निर्देश दिया है कि
व्यक्ति को सबसे पहले
धर्म को धारण करना चाहिए।
यतोsभ्युदय निश्रेयस सिद्ध:स धर्म:“,
◆ धर्म-ग्रंथानुसार आवश्यक कर्म , दान , दया
परोपकार धर्म के मार्ग पर चलना आदि धर्म है।
◆ गीता में `धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे` …..इसलिए कहा गया।
◆ श्रीरामचरितमानस मानस में तुलसीदास

ने लिखा है कि —
◆`धर्मधुरीन  धर्म गति जानी`
अर्थात – धर्म को मानने , पालने वाला धर्म की गति , लाभ को जानकर कोई भी व्यक्ति सुखी-सपंन्न रह सकता है।

◆ सुकर्म , सदाचार , दान-पुण्य , सत्कर्म ,
शिक्षा ग्रहण करना ,शिक्षित होना , व्यसन, कुसंगति, दुर्भावना आदि गलत आदतों से दूर रहना धर्म है।

शास्त्रों का निर्देश है कि-

◆ सही उम्र में विवाह करना धर्म है।
◆ माता-पिता और परिवार की देखभाल करना तथा जिम्मेदारी निभाना धर्म है।
◆ समय पर जागना , खाना , काम-धंधा , रोजगार-व्यापार करना और समय पर सोना आदि  शरीर का धर्म है।

◆ अपने धर्म , देश व समाज की रक्षा करना धर्म है।

नियम-धर्म अपनाने से प्राणी सदैव स्वस्थ व प्रसन्न रह सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह बहुत आवश्यक है।
संसार के लिए यही धर्म है। विद्वानों के विचार हैं-

जिसे धारण किया जा सके, वही धर्म है

 गुरुजन धर्म का अर्थ धारण करना बताते हैं।

धर्म को कर्म प्रधान माना है। 

किसी भी वस्तु का गुण उसका धर्म है।

जल का गुण है– बहना, प्यास बुझाना।

रोशनी, ऊष्मा, प्रकाश देकर अपने 

सम्पर्क में आयी वस्तु को जलाना अग्नि का धर्म है।

वायु का धर्म – प्राणियों को जीवित रखना है।

 प्रथ्वी का धर्म – सम्पूर्ण जीव-,जगत का

भरण-पोषण करना है।

सूर्य का धर्म – सबको प्रकाश देना है।

आकाश का धर्म – ऊर्जा, आत्मबल देना है।

गुरुओं का धर्म  -सही मार्गदर्शन देना है।

बच्चों का पालन करना प्रत्येक माता-पिता का धर्म है।

ऋग्वेद में धर्म शब्द का उल्लेख बहुत कम आया है। कुछ जानकर कहते हैं कि-धर्म शब्द का उपयोग सबसे

पहले अशोक महान ने किया था, उसके बाद ही

धर्मशास्त्र लिखने की परम्परा का प्रादुर्भाव हुआ।

इसके पहले उपनिषद, ब्राह्मण ग्रन्थ और

भाष्य आदि लिखने का प्रचलन था।

संसार का सबसे प्राचीन सनातन धर्म यानि हिन्दू धर्म है।

सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, फ़ारसी आदि

को धर्म न मानकर एक समुदाय माना गया है।

यह एक सम्प्रदाय है। एक प्रकार से किसी के

द्वारा बताई गई परम्परा मानने वालों का समूह है,

जो अपने विचारों के अनुसार जीवन यापन करते हैं।

धर्म हमेशा व्यक्ति को अच्छाई के मार्ग पर ले जाता है, 

जिसमें मानव जाति का कल्याण छुपा होता है।

केनोपनिषद नामक एक ग्रन्थ में लिखा है कि…

हमारी पूजा, भक्ति, उपासना के द्वारा तन-मन के तत्व प्राणशक्ति से जागृत या चेष्टावान कर जो हमें

ऊर्जा से लबालब कर दे वह ईश्वर है।

धर्म का सार-आधार उपनिषद हैं,

जो लगभग 200 के करीब हैं।

उपनिषदों का सार एवं निचोड़ ब्रह्मसूत्र हैं।

श्रीमद्भागवत गीता वेदों का केंद्र तथाब्रह्मसूत्र

का सम्पूर्ण सारः है।

 ब्रह्म को परमपिता परमात्मा और भगवान शिव 

कहा गया है। सभी यरह की स्मृतियां ग्रन्थ हमारे

सनातन धर्म की सम्पत्ति है।

सूत्र, उपवेद में धर्म के भेद भरे पडें हैं।

हिन्दू धर्म में करोड़ों विशाल प्राचीन ग्रंथों

का भंडार भरा पड़ा है,

जो धर्म के साथ-साथ पूर्णतः वैज्ञानिक भी हैं।

इन सबका आधार चारों वेद ही हैं।

बाल्मीक कृत रामायण,

तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस मानस,

महाभारत आदि ऐतिहासिक किन्तु धर्म

का सत्य मार्गदर्शन देने वाली पुस्तकें हैं।

धर्म सम्बन्धी सभी विवाद निपटने हेतु ऋषि व्यास

ने एक श्लोक लिखा है कि जब कभी भी वेदों तथा

दूसरे शास्त्रों में विरोड या वाद-विवाद की बात आये,

तो अंतिम न्याय के रूप में वेद में लिखी बात ही मान्य होगी।

श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधों यंत्र दृश्यते

तत्र श्रोत प्रमाणन्तु ……...आदि

अभी धर्म के बारे में शेष है।

अगले लेखों में सिखों का महातीर्थ

हेमकुण्ड साहिब के बारे में होश उड़ा देने वाली

जानकारी पढ़े

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