हे माँ..तुझे शत-शत नमन

भुवनेश्वरी सहिंता में कहा गया है-

यथा वेदों …..तद्वतसप्तशती स्मृता
वेद की तरह दुर्गा सप्तशती भी अनादि है अपौरुषेय है। मार्कंड़य पुराण के अंतर्गत होते हुए भी ऋषि मार्केंडेय इसके रचनाकार न होकर मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। उन्होंने अपने ध्यान-साधना में देवी के जिन रूपों और चरित्रों
का साक्षत्कार किया वही इसमें वर्णित है।
माँ शक्ति के सम्बंध में ऋग्वेद का वगृम्भणी
सूक्त जिसे देवी सूक्त कहा जाता है, इस बात का प्रमाण है।
सप्तशती का त्रयोदश अध्याय में इसका संकेत भी किया गया है-
स च वैश्यस्यपस्तेपे देवी सूक्तम परं जपन।
 
दुर्गापाठ के फायदे…
 
महाराज सुरथ ऋषि मेधा के समक्ष बहुत दुखी होकर निवेदन करते है
!दु:खाय यन्मे मनस: स्वचित्तायत्ततां बिना!
अर्थात- मेरा मन मेरे मुताबिक कार्य नहीं कर रहा है। यह मेरे अधीन नहीं है। मेरा मन मेरा होते हुए भी मेरी आज्ञा न मानकर मेरे दुःख का कारण बन रहा है।
यह सुनकर ऋषि मेधा भगवती की उपासना करने की सलाह देते हैं। माँ की साधना से
काम यानि सेक्स का तमाम हो जाता है।
क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर रुपी दैत्य अपने आप शान्त हो जाते हैं।
यह महामाया का ही प्रभाव है जिसने इस
सन्सार को चलाने के लिए सबको ममता के भवंर और मोह में डाल रखा है। यह भगवान विष्णु की योगमुद्रा है जिसकी वजह से जगत सम्मोहित हो रहा है।
माँ दुर्गा ही इस चराचर जगत को उत्पन्न करने वाली है। वही सन्सार के वन्ध और मोक्ष का कारण है। वह नित्य है सारा जगत भगवती का ही विस्तार है।
माँ जगदम्बे के बारे में बहुत सी लुप्त-अज्ञात
जानकारी के लिए अमृतम पत्रिका पढ़ते रहें।
            !!अमृतम!!
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