काम-वासना के अन्य पहलू :—–

कामेच्छा क्या है? यह जानना जरूरी है।

कामेच्छा तथा यौन समागम की इच्छा में अन्तर है ।

कामेच्छा से अभिप्राय उस तरह की इच्छा से नहीं है जो अन्य भौतिक पदार्थों के प्रति आपके मन में जागृत होती है।

सांसारिक इच्छाओं से यह बिलकुल अलग है ।

सांसारिक संदर्भ में गिनी जाने वाली तो ‘यौन-समागम की इच्छा ही है।

उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी कामेच्छा के बारे में तरह-तरह की कल्पनाएँ कर सकता है,

जैसे जिसके साथ वह अपनी कामेच्छा पूरी करे वह साथी कैसा हो,अपने साथी के साथ विशेष प्रकार के यौन-संबंध रखने

तथा विशिष्ट परिस्थितियों में मिलने की इच्छा आदि।

इसी तरह की अन्य अनेक कल्पनाएँ जिनका अन्त नहीं है ।

परन्तु कामेच्छा इन सबसे अलग हम सबको महसूस होने वाली एक अत्यन्त जटिल मानसिक व दैहिक संवेदनशीलता है

जिसका संबंध हमारे अस्तित्व से है तथा जो व्यक्ति के अन्दर एक विवश कर देने वाली शक्ति उत्पन्न करती है।

यह शक्ति इस दृश्य-जगत की विद्यमानता के मूल में भी स्थित है।

यौन-समागम की इच्छा तथा कामेच्छा के बीच अन्तर का विश्लेषण करना इस दृष्टि से भी आवश्यक है।

कि अनेक लोग अपनी काम-ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग यौन समागम की इच्छा तथा उससे संबंधित कल्पनाओं तथा गतिविधियों में नष्ट कर देते हैं।

वे अपने काम जीवन के बारे में तरह-तरह से सोचते-विचारते रहते हैं,

परन्तु जब काम-वासना की तुष्टि के लिए वास्तविक समागम का अवसर सामने आता है,

जो पूरी तरह प्राकृलिक क्रिया है, तो वे अन्दर से एक प्रकार की रुकावट का अनुभव करते हैं।

अपने-आपको मानसिक व शारीरिक रूप से व्यक्त नहीं कर पाते।

अत: काम-ऊर्जा में वृद्धि करने के लिए यह आवश्यक है कि काम-संबंधी इच्छाओं पर नियंत्रण रखा जाए।

संसार तरह-तरह के आकर्षणों से भरा पड़ा है।

परन्तु हमें व्यवहार में ही नहीं, कल्पना के क्षेत्र

में भी अपनी सीमा पहचान लेनी चाहिए।

संसार में एक-से-एक सुन्दर और सुगठित शरीर वाली स्त्रियों और पुरुष है

जो आपके साथी से कहीं अधिक सुन्दर और आकर्षक हैं।

कामातुरता को अभिव्यक्त करने के अनेक अप्राकृतिक ढंग भी हैं।

हमें अपने पर इस प्रकार नियंत्रण करना सीखना चाहिए कि वह काम-ऊर्जा को नष्ट करने वाली गतिविधियों में न करना पड़े।

इससे काम संबंधी अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन हो जाती है

जैसे रति-स्रावों में कमी आ जाना, स्तम्भन शक्ति का क्षीण हो जाना,

काम-शक्ति का घट जाना तथा संतान उत्पन करने की शक्ति न रहना आदि।

शरीर, मन और काम-वासना :—

आयुर्वेदिक ऋषि इस तथ्य को अच्छी तरह समझते थे कि काम-वासना और काम-ऊर्जा का निवास मन और शरीर दोनों में होता है।

कभी-कभी एक हृष्ट-पुष्ट पुरुष भी यौन-समागम ठीक ढंग से नहीं कर पाता।

इसके कई कारण हो सकते हैं।

जैसे भय, आत्मविश्वास की कमी, दुख, स्त्रियों के दोष देख लेना,

स्त्रियों के साथ रमण करने का ज्ञान न होना,

दृढ़ता अथवा रुचि की कमी।

काम-क्षमता, काम-वासना पर निर्भर करती है

और काम-वासना शरीर व मन के आत्मविश्वास की शक्ति पर निर्भर करती है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण काम-वासना,

कामावेग तथा काम-अभिव्यक्ति के लिए शरीर और मन का शक्तिशाली होना आवश्यक है।

अतः मानसिक शक्ति बढ़ाने का आरम्भ शरीर से ही करना पड़ता है।

अपनी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का अभ्यास करना तथा समय, मौसम, सामाजिक परिवर्तनों का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है,

इसे समझना । अर्थात् अपनी प्रकृति को जानना ।

दूसरा कदम है प्राणायाम अथवा श्वसन संबंधी योग-क्रियाओं

के माध्यम से ब्रह्मांडीय गति से तादात्म्य स्थापित करना सीखना।

तीसरा कदम है ध्यान एकाग्र करने का अभ्यास करना (जिसे आजकल के लोग अंग्रेजी में Meditation कहते हैं।

इन अभ्यासों के अलावा मन की शक्ति मानवीय गुणों जैसे दया, विनम्रता,

धैर्य, संतोष, अनासक्ति, लालच व क्रोध की कमी आदि पर निर्भर करती है।

ये गुण हमें मानसिक व चारित्रिक शक्ति देते हैं तथा चेहरे एक विशिष्ट आकर्षण तथा दिव्य आभा प्रदान करते हैं ।

चाहत तथा काम-आकर्षण के लिए भी ये गुण आवश्यक तथा वांछित हैं।

वैदिक साहित्य में यह बताया गया है कि योगी के चेहरे पर दिव्य आभा, और काम-आकर्षण की शक्ति आ जाती है।

जब वह मित्रता, अहिंसा आदि गुणों से युक्त होता है।

यद्यपि संसारी मनुष्यों की तुलना योगियों व साधुओं से नहीं की जा सकती।

यह उदाहरण यह बात समझाने के लिए दिया गया है

कि मानसिक तथा चारित्रिक बल से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार और चेहरे पर आकर्षण आ जाते हैं।

दो मनुष्यों में कभी भी पूरी तरह समानता नहीं होती।

जुड़वाँ बच्चों को भी माँ अलग-अलगपहचान लेती है।

जैसे मनुष्यों के बाह्य रूपों में अन्तर होता है,

वैसे ही उनके व्यक्तित्वों तथा काम-वासना में भी अन्तर होता है।

काम-ऊर्जा के अबाध प्रवाह के लिए यह आवश्यक है

कि व्यक्ति अपने साथी में पूरी रुचि व आस्था रखता हो,

उसे अच्छी तरह समझता हो, उसके प्रति सहनशील व निःस्वार्थ हो।

अपने साथी के रुझान व रुचियों से पूरी तरह बेखबर होकर अपनी मर्दानगी झाड़ने

(शक्ति प्रदर्शित करने) का विचार बिलकुल गैर-व्यावहारिक है।

आपकी क्रिया की साथी पर क्या प्रतिक्रिया हो रही है इसका पूरा ध्यान रखना पुरुष की जिम्मेदारी है।

काम-शक्ति तथा काम-ऊर्जा बढ़ाने के लिए धैर्य एवं सहनशीलता का होना आवश्यक है।

ये गुण अपने साथी के प्रतिवहोने के साथ-साथ पूरे सामाजिक एवं व्यावहारिक सोच में होने चाहिए।

प्राय: यह देखने में आता है कि अपनी वर्तमान कठिनाइयों के लिए कुछ लोग दूसरों को दोषी ठहराते हैं।

वे अपनी पूरी शक्ति अपनी वर्तमान स्थिति को ठीक करने में लगाने के स्थान पर दूसरों को कोसने में खर्च करते हैं।

जैसे अपनी काम संबंधी समस्याओं के लिए बचपन, माता-पिता अथवा जीवन की अन्य परिस्थितियों को दोषी ठहराते हैं,

जो हो चुका है उसके लिए दूसरों को दोष देना व्यर्थ है, क्योंकि जो

घटनाएँ हो चुकी हैं, उन्हें फिर से उन्हीं परिस्थितियों में होने से रोकना असम्भव है।

दोष देने अथवा कोसने के स्थान पर सहन कर लेना चाहिए,

और अपनी ऊर्जा की बिगड़ी हुई स्थिति को ठीक करने में लगाना चाहिए।

इसलिए पुरानी बातें भूल जाओ, दूसरों को क्षमा करो और रचनात्मक कार्य में लग जाओ ।

अतीत से केवल शिक्षा ली जा सकती है, उसे फिर से जिया नहीं जा सकता।

सदैव अपनी वर्तमान कठिनाइयों और समस्याओं को सुधारने की विधियों और साधनों के बारे में सोचिए।

अपनी आज की स्थिति में सुधार कीजिए। अतीत में जो हो चुका है उसे आप नष्ट नहीं कर सकते।

वर्तमान कार्य में सुधार करके अतीत की क्षति को पूरा कर सकते हैं, साथ ही बेहतर भविष्य के लिए तैयार कर सकते हैं।

यदि आपको काम संबंधी कठिनाइयाँ महसूस होती हैं तो उस चुनौती को स्वीकार कीजिए तथा उन्हें दृढ़तापूर्वक दूर कर डालिए।

अपनी इच्छाशक्ति और ऊर्जा को इस काम में लगाइए।

आप अपनी समस्याओं के उद्गम बिन्दु का पता लगाएँ यह बात तो ठीक है, परन्तु दूसरों को दोष दें यह अनुचित है ।

उदाहरण के लिए, यदि आप यह जान जाते हैं कि आपकी अमुक कमी का कारण बचपन की कोई घटना है,

तो अपने-आपसे कहिए- “ठीक, अब मुझे पता लग गया कि समस्या कहाँ से पैदा हुई है।

अब मैं इससे मुक्ति पाने के लिए अपना ध्यान केन्द्रित करता/करती हूँ।

अतीत में घटी दुखद घटना का साया मेरा पीछा नहीं कर सकता ।

मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि मैं अतीत की परेशानी से मुक्ति पाऊँगा पाऊँगी ।

मैं ऐसा करने के लिए अपनी समूची इच्छा- शक्ति तथा ताकत का प्रयोग करूंगा/करूंगी।”

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