शिवतांडव स्तोत्र में सुख-समृद्धि, सम्पन्नता-सफलता और स्वास्थ्य के रहस्यमय सूत्र हैं –

शिवतांडव स्तोत्र भाग एक/पार्ट-1
इसके पाठ से होते हैं चमत्कारी लाभ ….
इस लेख में शिवतांडव स्तोत्र से होने वाले फायदे के बारे में बताया जा रहा है। शिवतांडव स्तोत्र बहुत बड़ा होने के कारण पूरा नहीं दिया जा रहा है।
इस लिंक को क्लिक कर आप पूरा पढ़ सकते हैं-
ताण्डव शब्द का अर्थ क्या है एवं उत्पत्ति
तांडव शब्द ‘तंदुल’ से बना है,
जिसका अर्थ है- उछलना।
तांडव नृत्य करते वक्त  ऊर्जा और शक्ति के साथ उछलना होता है, ताकि तन-मन और दिमाग शक्तिशाली हो जाता है।
संस्कृत: भाषा में लिखा गया शिवताण्डवस्तोत्रम् महान विद्वान एवं
परम शिवभक्त, शिवशिष्य, दशानन लंकाधिपति रावण द्वारा विरचित भगवान शिव को प्रसन्न करने  के लिए इसकी रचना की थी।
शिव-तांडव स्तोत्रं के अंत में दी गई फल-श्रुति इस प्रकार है…
पूजाऽवसानसमये दश वक्त्रगीतं,
य: शम्भूपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्यस्थिरां सदैव रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां,
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भू:।।
अर्थात- पूजावसानसमये  (अवसान-प्रदोषकाल के वक्त)
जो कोई भी व्यक्ति प्रतिदिन सन्ध्या के अवसान और प्रदोष बेला के आरम्भ में यानि सूर्यास्त के समय जो भी इस शिवतांडव का पाठ करेगा या गायेगा, उसे महादेव शंकर..
शिव कल्याणेश्वर उसे
घोड़ा-हाथी, पालकी, अश्वयुक्त स्वर्ण रथ यानि ७ घोड़ों से चलने वाली सोने की सवारी, हाथी, महालक्ष्मी , स्थाई अथाह धन-सम्पदा, बड़ा साम्राज्य और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं
अवसान का अर्थ है-
सूर्य का समाप्ति काल।
जिस समय शाम को सन्ध्या का अवसान यानि अंत होकर रात होने वाली हो और प्रदोष-प्रदोषो रजनीमुखम का आरम्भ होता है, उस समय ही भगवान शिव का नृत्य-नर्तन करते समय इस स्तोत्र को श्री दशानन रावण ने विभिन्न सम्पन्नता, योग्यता पाने के लिए इसे गाया था।
 शिवतांडव के एक श्लोक में आया है…
 विलोललोललोचनाललामभाललग्नक:
मन्त्र का अर्थ है कि…..
हे भोलेनाथ! मैं विलोललोललोचन
अर्थात पुलक के कारण छलकते हुए आंसुओं से डबडबाई आंखों के
साथ दोनों हाथ जोड़कर …
मस्तक से लगाता हुआ, ईश्वर मुद्रा में
शिवतांडव  स्तोत्र मन्त्र  का  उच्चारण करता हुआ  मै कब सुखी हो पाऊंगा।
मेरी अथाह मनोकामनाएं, इच्छाएं
कब तक पूर्ण हो सकेंगी।
यह अर्थ बहुत ही भावुक करने वाला भावपूर्ण  और सुन्दर है।
 पुलक का मतलब है
 हर्ष, भय आदि  मनोविकारों की प्रबलता में रोंगटे खड़े होना, रोमांच। कामना, वासना।
शिवतांडव स्तोत्र के पाठ का 
फल और सार-
इस सम्पूर्ण स्तोत्र का जो भी व्यक्ति सूर्यास्त के बाद एवं रात्रि आने से पहले यानि शाम को 5.45 से  7.15  के मध्य।
शास्त्रमतानुसार प्रदोषकाल में प्रतिदिन कैलास में नृत्य करते हैं।
इस सर्वश्रेष्ठ स्तोत्र का जो मनुष्य नित्य प्रदोषकाल में  भगवान शिवजी का  ध्यान- स्मरण करते हुए
 
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् 
इस सर्वोत्तम शिवतांडव स्तोत्र का नित्य प्रति मुक्त कंठ से उच्चारण  के साथ गाता है अथवा बोल-बोलकर पाठ  करता  है,
वह सदैव सुखी-सम्पन्न रहता है।
उसे भरपूर सन्तति-सुख मिलता है।
ऐसे मनुष्य की गुरु रूप शिव में अथवा शिव रूप गुरु में  शीघ्र भक्ति होती है अन्यथा वह अनेक जन्मों तक भटकता रहता है, उसकी कोई गति नहीं होती।
  शिवतांडव रहस्य के लेखक
महाज्ञानी श्री गंगाराम शास्त्री के अनुसार भोलेनाथ का चिंतन मनुष्य को अत्यंत मुग्ध और आकर्षित करने वाला है।
शिवतांडव के गायन से  जिसके पास फूटी कोढ़ी भी नहीं है वह करोड़पति बन जाता है।
एक विशेष रोचक रहस्यमयी जानकारी
प्रथ्वी पर  शिवतांडव स्तोत्र का प्रथम गायन चिदम्बरम के नटराज मन्दिर में हुआ था।  इस स्थान पर प्रदोषकाल में शिवजी ने नृत्य किया और श्री रावण ने गायन किया था। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि
पंचतत्वों में प्रथम आकाश तत्व स्वयम्भू शिंवलिंग नटराज मन्दिर में स्थित है। 
बाकी चार तत्व अग्नि, वायु, जल और प्रथ्वी तत्व स्वयम्भू शिवलिंगों की जानकारी जानने के लिए
अमृतम पत्रिका  के पुराने लेखों का अध्ययन करें।
शिवतांडव के एक छंद का अर्थ यह भी है कि-
शिवकल्यानेश्वर स्वयं में आनन्दमय शिंवलिंग है। यह कभी विश्व का कल्याण करेंगे। शिव सदा से नर्तन-निरत हैं।
विष का, बुराई का, द्वेष-दुर्भावना तथा दुःख का महाकाल पर कोई प्रभाव नहीं है।
शिव के समक्ष सब नतमस्तक….
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्!
बड़े-बड़े  गले में लिपटे फनधारी  विषैले नाग,भुजंग-गुंडा यहां अपनी कुटिलता त्यागकर आभूषण बन जाते हैं। विष कण्ठहार बन जाता है। अपनी समग्रता में इस आनंद की अनुभूति ही शिवत्व है।
विश्वनाथ- विश्वसृष्टा के, विश्व-संचालक के  और ब्रह्माण्ड के इस सूत्रधार के उस  लय पर… उस ताल पर … उस सम-विषम पर.. आत्म विस्मृत नहीं- आत्मविभोर होकर जीवन संगीत के स्वर मिला देना, पगों की थिरकन मिला देना ही शिवभक्ति का तदाकार होना है, एकाकार होना है।
मङ्गलमय होना है। कल्याणेश्वर होना है।
दशानन रावण के प्रति द्वेष न रखें...
शिवतांडव स्तोत्र के रचयिता
दैत्य-दीपक श्री रावण बहुत बड़े वैज्ञानिक थे, इनके रहस्य कभी अमृतम पत्रिका
के रावण विशेषांक में दिए जावेंगे।
शिवः सङ्कल्प मस्तु
अब देर किस बात की है
जीवन में सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष और शिवसाधना अति आवश्यक है। युवा पीढ़ी के लोग उन्नति की कामना, इच्छा पूर्ति के लिए कैसे भी करके इस शिवतांडव स्त्रोत्र का 48 दिन प्रदोषकाल में शाम के समय जाप करें और जिंदगी को जिंदादिल बनाकर जियें। मेरा अनुभव है इस पाठ से निश्चित ही बहुत विशाल सफलता मिलती है।
फिर आप खुद ही कह उठोगे-
भोलेनाथ की दया से सब काम हो रहा है-
जितना बन सका, इस स्तोत्र की व्याख्या
अच्छे से अच्छे तरीके से करने की कोशिश की है। इस भावना के साथ कि….
मैं अति दुर्बल, मैं मतिहीना
जो कछु कीना, शम्भू कीना।
वैसे शिव-तांडव रहस्य की रावण रचित इस श्लोक की आज तक कोई व्याख्या नहीं कर पाया।
यह भी पांच बाते जरूर जाने….
किस समय और किन परिस्थितियों
में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना फायदेमंद होता है?
【1】जब स्वास्थ्य की समस्याओं का कोई समाधान न निकल पा रहा हो।
【2】जब तंत्र-मंत्र, मारण, जादू-टोने या शत्रु बाधा परेशान करे।
【3】जब परिवार में आर्थिक या रोजगार की समस्याएं हों।
【4】जब जीवन में कोई विशेष उपलब्धि धन-सम्पदा प्राप्त करना हो।
【5】जब किसी भी ग्रह की कोई बुरी दशा चल रही हो। शनि की साढ़ेसाती, महादशा या राहु की महादशा हो
पढ़े – अमृतम पत्रिका
आगे शिवतांडव पार्ट -2 देखें।

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