देवी मां का शक्ति सिंहासन…

अमृतम मासिक पत्रिका यात्रा संस्मरण से उदगार।

ईश्वर के प्रति अटूट आस्था के चलते महादेव  ने 25000 से ज्यादा स्वयंभू शिवलिंगों और कराएं। अपनी यात्रा डायरी के पन्नों से लिए गए अनेक दुर्लभ एवम रहस्यमई मंदिरों की जानकारी amrutam.co.in या amrutampatrika.com पर पढ़ सकते हैं।
भारत के बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किलोमीटर दूर गोपालगंज से 5 KM मजमाया दुर्गा की स्वयंभू प्रतिमा के बारे में देश के कम ही लोग जानते हैं।  दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां दुर्गा मानव  शरीर की रक्षक है। अधिक जानने के लिए पिछले लेख पढ़ें।
यह ब्लॉग मां दुर्गा के अलावा देवी स्वरूप स्त्री को समर्पित है और महिलाएं इस समय सोमरोग  से सर्वाधिक पीड़ित होने से चिंताग्रस्त हैं।  नीचे लिंक क्लिक कर 5000 वर्ष पुराने स्त्रीरोग से मुक्ति के उपाय बताए हैं…
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मां दुर्गा का मंदिर थाम्बे एक आस्था का केंद्र…
थावें शब्द का अर्थ होता है ठांव छांव।
इसका एक अर्थ यह भी होता है — ठहरना या रुकना।
देवी पुराण के अनुसार यहां आकर देवी  मां दुर्गा ठहर गयी थीं। इसीलिए इस स्थान  का नाम थावें है।
थावें में मां दुर्गा देवी का स्थान चारों तरफ  घने जंगलों से घिरा एक रमणीय स्थल है।
इसकी रमणीयता को स्वच्छ जल से भरा  तालाब तथा घने लंबे पेड़ और बढ़ा देते हैं।
यह जागृत शक्तिपीठ है।
मां थावें की दुर्गा
लगभग दो हजार वर्ष पहले चेरिवंश का  राजा मनन सिंह राज्य करता था राजा  मां काली का अनन्य भक्त था, पर उसे  अपने राजा होने का बहुत अहंकार हो गया।
जिसकी वजह से राज्य में प्रजा दःखी होकर  भूख तथा गरीबी की वजह से परेशान होने लगी। चारों ओर हाहाकार था।
एक तो प्रकृति का प्रकोप दूसरे राजा का  अत्याचार और अन्याय इतना कि व्यापार-धंधे  में आय या पैदावार हो या न हो लेकिन  ‘कर’ यानि टैक्स दो।
मां दुर्गा रूप में हरिजन के घर जन्मी….
कहा जाता है कि एक हरिजन जाति की  बिन – ब्याही बालिका के गर्भ से मां ने  अपनी शक्ति-रूपी रहस्य – एक बालक (रहषू भगत, जिनकी प्रतिमा यहां है)  को जन्म दिया। यह बालक समय आने  पर जनता की मदद करेगा, ऐसा उस  बालिका को बताया गया।
मां की असीम कृपा से बालक का पालन-पोषण  होता गया। यह बालक मां का प्रचंड भक्त हुआ। समय-चक्र चलता रहा। बालक युवावस्था को  प्राप्त हुआ। उधर दिन-प्रतिदिन राजा का व्यवहार और क्रूर होता गया।
 जनता त्राहि-त्राहि करने लगी।
 अंततः जनता ने अपने दुःख से उबरने के लिए भगत रहषू की शरण ली। ऐसे में देवी मां के अनन्य सेवक भगत रहषू ने मां का स्मरण किया। देवी प्रकट हुई।  देवी ने पूछा, ‘बता, तू किस तरह से जनता की सेवा करना चाहता है।’
‘भूखे को क्या चाहिए, मां! बस, भरपेट भोजन।’
देवी मां ने कहा, ‘जा ऐसा ही होगा। तू रोज घास काटकर लाना और खलिहान लगाना।’
भगत रहषू ने ऐसा ही किया।
 रात्रि बेला में मां काली सात बाघों के साथ  आयी और रहषू भगत को सात नागों से  सात बाघों को एक-दूसरे से जोड़ मेह में
देवरी बांधा तथा आठवें नाग को चाबुक जैसा इस्तेमाल किया – और घासों पर देवरी करवायी।
सुबह देखा तो ढेर सारा चावल।
रहषू ने सारा चावल कर जनता में बांट दिया।
अब तो हर रोज ही ऐसा होने लगा । लोगों को  भरपेट चावल मिलने लगा और वे भगत की  जय जयकार करने लगे । यह बात राजा के  कानों तक पहुंची। राजा ने भगत रहषू को
पकड़ कर दरबार में हाजिर करने का आदेश दिया।
राजा के दरबारी ने उन्हें पकड़कर दरबार में हाजिर किया गया। राजा ने पूछा, ‘जो मैं सुन रहा हूं क्या वह सच है?

भगत ने स्वीकारा कि यह सच है तथा साथ  ही राजा को धिक्कारा भी कि ‘अपनी नीयत अब भी साफ कर लो राजन् ! वरना,  कहीं के नहीं रहोगे।’ राजा ने उनकी बात पर ध्यान न देते हुए कहा, ‘यदि तुम सच में देवी मां के भक्त हो और मां की कृपा से रोज देवरी करवाते हो, तो मुझे मां के दर्शन कराओ। नहीं तो, तुम जैसे पाखंडी का सर कलम कराते मुझे देर न लगेगी।’
चमत्कार भगत का ….
भगत रहषू प्रजा का भला सोच तथा राजा का अहंकार दूर करने के लिए तत्काल वहीं आसन लगाकर बैठ गये। अपनी दोनों आंख बंद कर
!!ॐ काली ॐ काली ऊं काली!!
का उच्चारण करते ही उन्होंने अपनी  दिव्य-दृष्टि से मां का दर्शन किया और  फिर राजा को समझाया कि
‘राजन्, देवी के दर्शन की जिद छोड़ो।
वैसे, मां कामख्या से चल दी हैं और अब  कलकत्ता में कालीघाट पर भक्तों को दर्शन  दे रही हैं। अभी भी वे वापस लौट सकती हैं।
भगत रहषू का यह कथन राजा को झूठा लगा।
राजा ने समझा कि पाखंड कर रहा है।
रहषू भगत ने फिर ध्यान लगाया तथा कहा,  ‘राजन् अब भी मान जाओ।  मां पटना पहुंच चुकी हैं और पाटन देवी  का रूप धर जनता को वरदान दे रही हैं।  कहो तो वहीं से वापस लौटने की उनसे  प्रार्थना कर दूं?’  पर राजा पर तो दर्शन की जिद सवार थी।  राजा ने कहा, ‘तुम अपना काम करो।  मुझे तो देवी के दर्शन करने ही हैं। रहषू भगत फिर ध्यान लगाकर बैठ गये  तथा कहा, ‘देवी पटना और छपरा के बीच  अमी नामक स्थान पर अंबिका भवानी के  रूप में दर्शन दे रही हैं। कहो तो अभी भी वहीं से विदा कर दूं।’  पर राजा के कहने पर उन्होंने फिर ध्यान  लगाया और कहा, ‘बस, अब देवी यहां से  कुछ कोस दूर हैं, घोड़े पर सवार हैं और  ‘महाकाल रात्रि’ का रूप धारण कर चुकी हैं।  वहां से वह आंधी-तूफान की तरह चलकर  आएगी तथा तुम्हारे राज्य और तेरे वंश का नाश कर देंगी।

अब भी मान जाओ और देवी से माफी मांग लो। पर राजा पर तो दर्शन की जिद सवार थी।
 अतः भगत रहषू ने फिर ‘ऊँ काली’ का  सात बार उच्चारण किया। सातवां उच्चारण करते ही मां काली महाकाल का रूप धारण कर आंधी-तूफान की तरह घनघोर बारिश लिये
हुए, बादलों की गर्जना तर्जना के साथ थावे आ पहुंची।
फिर क्या था?
देखते-देखते सारा महल ओलों से दरबारी तथा  उनके हाथी-घोड़े मरने लगे। तहस-नहस होने लगा।
क्षणभर पश्चात् ही मां काली ने भगत रहषू का मस्तक फाड़कर जैसे ही अपने दाहिने हाथ का कंगन निकाला राजा-रानी और उसके परिजन वहीं तड़पते हुए ढेर हो गये!
तब मां पूर्ण रूप से प्रकट हो सिंहासन पर बैठ गयीं।
यही स्थान तांबे के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कभी बिहार की यात्रा कोई करे, तो थावे को देखना न भूले।

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