तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से होते हैं ये 52 चमत्कारी फायदें, लेकिन नुकसान भी हो सकता है- जानें…

  • ताम्बे के बर्तन में रात को रखा गया सादा जल ही सुबह उठकर पीने से तन-मन की मलिनता मिट जाती है।

अमृतमपत्रिका, ग्वालियर मप्र

आयुर्वेद चंद्रोदय, चरक सहिंता, धन्वंतरि निघण्टु के अनुसार अकेला पानी भी प्रतिरक्षा तन्त्र को बहुत मजबूत कर देता है।

पानी पीने से शरीर के 100 से अधिक विकार मूत्र विसर्जन के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।

तांबे के पात्र का पानी….ताम्बे के बर्तन का पानी रक्त तथा अवयवों की शुद्धि के लिए अत्यंत फायदेमंद है इसे अप्रैल से सितम्बर (वर्षा ऋतु) तक पीना उपयोगी है।

सुन्दरता वृद्धि में सहायक….एक ग्रन्थ में बताया है कि जो लोग बहुत आराम से ताम्बे पात्र का पानी एक-एक घूंट करके पानी पीने की आदत बना लेते हैं,

उनके चेहरे पर निखार आता चला जाता है। सुन्दरता में वृद्धि होती है।

चमकदार त्वचा और जवां बने रहने हेतु पानी पीने के पहले 3 से 4 बार बहुत गहरी श्वांस लेकर धीरे-धीरे छोड़ना चाहिए, फिर पानी पिएं।

जल को सदैव सम्मान के साथ, अच्छे विचारों से, पवित्र भाव से पीना चाहिए।

पीसीओडी स्त्रीरोग एवं मासिक धर्म की समस्या से पाएं निजात- जिन स्त्रियों, महिलाओं, नवयौवनाओं को अक्सर माहवारी से सम्बंधित परेशानी या विकार हों,

उन्हें सुबह उठते ही बिना कुल्ला किये खाली पेट 2 से 3 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए।

पथरी से बचाव- पर्याप्त पानी पीने वालों को कभी पथरी की शिकायत नहीं होती। मूत्ररोग, मधुमेह विकार, उदर रोग उत्पन्न नहीं होते।

एसिडिटी हो शान्त-जब कभी पेट में गेसा बनती हो या अम्लपित (एसिडिटी) की दिक्कत हो अथवा बार-बार हिचकी आ रही हो, तो हर 2 या 3 मिनिट में

एक गिलास पानी को 15 से 20 मिनिट तक एक-एक घूंट करके पीते रहें।

एसिडिटी, हिचकी, पेट की जलन बेचैनी दूर हो जाती है।

प्राचीन काल के पुराने लोग किसी भी चीज का उपयोग जैसे का तैसा ही करते थे। जिस प्रकार प्रकृति ने हमें प्रदान किया है

भारत के लोग सीधे-सच्चे, भावुक होने के कारण किसी भी बात पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं।

ताम्बे के बर्तन में गर्म पानी पीने की यह परम्परा अभी 10–5 सालों से जानबूझकर शुरू करवाई गई है,

ताकि लोग अधिक से अधिक बीमार हों और अंग्रेजी चिकिसकों की शरण में जाकर अपनी जान-जायदाद बर्बाद कर सकें।

ध्यान रखें परमात्मा ने जैसा जो भी दिया है, उसे वैसा ही इस्तेमाल करें। यदि हमारे शरीर के लिए गर्म पानी लाभकारी होता, तो मां धरती हमें गर्म पानी ही देती।

उत्तराखंड, मनाली, हिमाचल के अनेक तीर्थों में गर्म पानी के कुंड, झरने हैं। वहां हमें इसकी जरूरत है, तो भोलेनाथ ने पहले ही व्यवस्था कर दी।

गूगल पर इतना भरमजाल बिना किसी सन्दर्भ ग्रन्थ-किताबों के फैला दिया है कि-जो भी इस पर विश्वास करेगा, उसका सर्वनाश हो जाएगा।

इन सब उल्टी-सीधे ज्ञान से चिकित्सा जगत को बेशुमार लाभ हो रहा है। यह एक ठगने वाली गैंग की तह काम करके पूरे स्वस्थ्य भारत को बीमार कर रहा है।

लोगों या लेखकों के जो मन में आ रहा है, वे बिना सोचे समझे लिखे जा रहे हैं।

■ क्यों पीना चाहिए सुबह सादा जल-आयुर्वेद के कुछ प्राचीन नियमों पर
गौर करें। हमारे पूर्वजों की भी यही
परम्परा थी, तभी सौ वर्ष जीते थे-

क्या करें तन्दरुस्त रहने के लिए खास जानकारी…आयुर्वेद के अनेक ग्रंथो में जल चिकित्सा का वर्णन आया है। इन ग्रंथों का अध्ययन करें..

◆ औषधि शास्त्र, ◆ रस रत्नाकर,

  1. ◆ शरीर शास्त्र, ◆ रक्ताभिसरण शास्त्र,
  2. रसेन्द्र मंगल, जल चिकित्सा,

कक्षपुटतंत्र एवं

आरोग्य मंजरी आदि
आयुर्वेदिक पुस्तकों में उल्लेख है कि-
सुबह जब व्यक्ति सोकर उठता है, तो
उसकी जठराग्नि अर्थात पेट की गर्मी
तेज रहती है, इसलिए उठकर सदैव
सादा पानी पीने से उदर तथा शरीर
की गर्माहट शान्त हो जाती है,
जिससे शरीर में कभी अकड़न-
जकड़न नहीं होती।

यह सदैव स्वस्थ्य रखने में मदद करेगा। इस बुक से त्रिदोष में किसकी अधिकता है यह भी जान सकते हैं।

सावधान रहें- गर्म पानी का सेवन ग्रन्थिशोथ पैदा कर सकता है…

थायरॉइड (ग्रन्थिशोथ)
जैसे वात रोग नहीं सताते। इसलिए सुबह उठते ही सादा जल पीना ही श्रेष्ठ रहता है।

मधुमेह से पीड़ित लोगों को सुबह सुबह कभी भी गर्म पानी नहीं पीना चाहिए, इससे पेट में खुश्की उत्पन्न होती है।

आयुर्वेद के अधिकांश ग्रंथों में लिखा है कि- प्रकृति ने हमें जैसा, जो दिया है, वही स्वास्थ्य के लिये लाभकारी है और जहां गर्म पानी की जरूरत है,

वहां परमात्मा ने गर्म पानी दिया है। जैसे-यमुनोत्री, बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा तथा रोशनपुर गुरुद्वारा आदि स्थानों पर प्राकृतिक गर्म पानी के कुंड हैं।

हिमाचल के मणि महेश शिवालय, पार्वती लेक, भृगु लेक में भी गर्म पानी का झरना है।

कुछ नियम जिन्हें सहजता सेवअपनाया जा सकता है–

भरपूर पानी पिएं। गर्मियों के दिनों में दिन भर में कम से कम 8 से 9 लीटर और सर्दी में 4 से 5 लीटर पानी शरीर के लिए जरूरी है।

झुर्रियों से बचावकर बुढापा रोकता है-ताम्बे के बर्तन का सादा जल और …

आयुर्वेद के जल चिकित्सा ग्रन्थ तथा वैद्य कल्पद्रुम में उल्लेख है कि कम उम्र में चेहरे पर जो झुर्रियां पड़ती हैं, उसकी वजह शरीर में पानी की कमी है।

जल का पर्याप्त मात्रा में उपयोग उम्ररोधी बताया गया है।

ताम्बे का जल पीने का तरीका…. पानी ऐसे पियें-जैसे खा रहे हों आयुर्वेद की एक सलाह है कि- भोजन ऐसे करें, जैसे पी रहे हों 

अर्थात खाने को बहुत चबा-चबाकर जब तक कि वह पानी की तरह तरल न हो जाये। धीरे-धीरे खाने से कभी मोटापा नहीं बढ़ता।

पानी को ऐसे पियें जैसे खा रहे हों। पानी को हमेशा धीरे-धीरे बैठकर ही पीना बहुत लाभकारी होता है।

खड़े होकर जल ग्रहण करने से घुटनों व जोड़ों में दर्द की शिकायत हो जाती है। यह पीड़ा बुढ़ापे में बहुत दुःख देती है। इसलिए पानी हमेशा बैठकर ही पीना चाहिए।

आयुर्वेद के नियम कुछ कठिन जरूर हैं पर भयंकर लाभदायक भी हैं। थोड़ा सा समय देकर आप शरीर के साथ-साथ बहुत सारी सम्पत्ति बचा सकते हैं।

दिमाग को तेज करता है- सोने का पानी…

सोने के बर्तन का पानी ब्रेन यानि दिमाग की सुप्त नाडियों को जागृत करने में चमत्कारी है। इसे अक्टूबर से मार्च (सर्दियों में) पीना चाहिए।

मिट्टी के घड़े का जल..अगर उदर में किसी तरह की जलन रहती हो, समय पर भूखह नहीं लगती, उन्हें हमेशा मिट्टी के पात्र, घड़ा, सुराही आदि का सादा जल सदैव पीते रहना चाहिए।

ताम्बे के पात्र में भूलकर भी न पिएं नीबू पानी अन्यथा हो सकता है भारी नुकसान…करेला और नीम चढ़ा वाली बात जब होती है

कि सुबह उठते ही ताम्बे के बर्तन में पानी को गर्म करके इसमें नीबू का रस मिलाकर लेते हैं।

लिवर कमजोर होना, पाचनतंत्र की खराबी, हर्निया, थायराइड की समस्या इसी वजह से बढ़ रही है।

सुबह उठते ही ताम्बे के बर्तन में किया गया गर्म या गुनगुना पानी पीने से जोड़ों का लुब्रिकेंट या चिकनाहट कम होने लगती है।

गर्म जल लेने से भविष्य में कमरदर्द, जोड़ों, पिंडलियों, का दर्द शुरू हो जाता है।

  1. लेमन वॉटर- तांबे के बर्तन में नींबू पानी पीना स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक साबित हो सकता है।
  2. लेमन में एसिड होता है जो तांबे के साथ मिलकर सेहत के लिए हानिकारक होता है।
  3. तांबे के गिलास में नींबू पानी पीते हैं, तो आपको गैस, पेट दर्द, उल्टी आदि की समस्या शुरू हो सकती है।
  4. ताम्बे के बर्तन में दूध पीना भी बहुत नुकसान दायक रहता है।
  5. ताम्बे के बर्तन में कभी दही नहीं जमाना चाहिए और ताम्बे की कटोरी में दही रखकर खाने से त्वचारोगों या स्किन डिसीज की समस्या पनपने लगती है।
  6. ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ सादा जल पीने से वात-पित्त-कफ कुपित नहीं होते। हमें केवल त्रिदोष रहित रहने का प्रयास करना चाहिए।
  7. वात-पित्त-कफ का संतुलन बनाये रखने के लिए आयुर्वेद लाइफ स्टायल किताब का अध्ययन व अमल करें।

 

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