भगवान शिव का तृतीय नेत्र हमारा आज्ञा चक्र है…
कुंडलिनी का यह छटा चक्र है..
यही सृष्टि की बाहरी और आंतरिक शक्तियां समाहित हैं..
पिंकी नोक के बराबर यह आज्ञा चक्र मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास से संबंधित है..
स्थल तथा सूक्ष्म जगत की विभिन्न हलचलो के साथ इसी केंद्र के माध्यम से संपर्क साधा जा सकता है ..
मानवतर सूक्ष्म प्राणियों से प्रेत आत्मा एवं भूतों के साथ संबंध बनाने का केंद्र तथा बहीरंग और अंतरंग जीवन के बीच की कड़ी यही है..
इसे तृतीय नेत्र कहा जाता है ईश्वरीय प्रकाश को उत्पन्न करने तथा ग्रहण करने का कार्य यहीं से होता है..
वैज्ञानिकों ने खोज करके इसे पीनियल ग्रंथि कहां है यह तृतीय हमारे दोनों नेत्रों के मध्य में हैं
हमारा शरीर स्वयं में संपूर्ण विज्ञानम और ज्ञानमय है ..
सृष्टि में विज्ञान का सारा आविष्कार केंद्र बिंदु हमारा शरीर ही है इसमें ऐसे यंत्र प्रणाली स्थापित है..
जो केवल खुशबूदार वस्तुओं को ग्रहण करती है दूषित और बदबू वाली वायु को तिरस्कार करती है
जैसे यदि कपूर धूपबत्ती या चंदन इत्र की खुशबू से हमारा पूरा शरीर मन हल्का हो जाता है ..
हम सांसों से इसकी खुशबू अंदर तक ग्रहण करना चाहते हैं..
और करते भी हैं इससे हमारा मन प्रफुल्लित होता है ..
जबकि बदबू युक्त वायु या दुर्गंध मल आदि की बदबू से मन खिन्न हो जाता है ..तीसरा नेत्र
हम ठीक से सांस भी नहीं ले पाते उल्टी करने की इच्छा होती है ..
हमारे शरीर के अवयव और तंत्र प्रणाली अवस्थित हो जाति हैं..
इससे लगता है कि हमारे शरीर में प्योरीफाइड फिल्टर स्थापित है ..
जो दुर्गंध या दूषित वातावरण को अंदर आने से रोकते हैं
वायुमंडल के दूषित होने का मुख्य कारण है ..
प्रदूषण वातावरण प्रदूषित ना हो इसके लिए आयुर्वेद में दोष नाशक औषधियां उपलब्ध है ..
वात पित कफ के विषम होते ही हमारा पेट खराब होता है..
और संसार में रोग का मुख्य कारण पेट की खराबी ही है..
पेट खराब होने कब्जियत होने से गैस आव पेचिश की समस्या उत्पन्न होती है ..
पेट की खराबी से गूदा से दूषित गैस आसपास के लोगों का मन तो खराब करती है..
वातावरण भी दूषित हो कर वायुमंडल अशुद्ध कर देता है..
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