वायरस से बर्बादी का बड़ा कारण है-चटोरापन। बेजुबान पशु-पक्षियों का रोना ही-कोरोना या कीड़ों का रोना है-

कबीर दास जी ने लिखा है…
दुर्बल को न सताइये, 
जा की मोटी हाय।
बिना जीव की श्वास से, 
लोह भसम हो जाय।। 
इसका अर्थ सभी को मालूम होगा।
विश्व में फैली इस महामारी 
कोरोना वायरस के बारे में जाने
कुछ नई बातें-पहली बार….
ए न्यू अप्रोच नामक एक शोधकीय
पुस्तक में लिखा है कि-
वर्तमान में फैले कोरोना वायरस
के पीछे आइंस्टीन पैन वेव्ज
(इपीडबल्यू) या
नकारात्मक तरंग यानी बेजुबाँन
मूक पशुओं की चीत्कार, हाय
(नोरीप्शन वेव्ज)
बड़ा कारण हो सकता है।
डा. मदन मोहन बजाजडा. इब्राहीम  और डा. विजयराजसिंह ने बीस तक
तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा है कि-
अहिंसा परमोधर्मा….
अर्थात अहिंसा और करुणा से बड़ा
कोई धर्म नही है।
इस धरती पर आप केवल उन्हीं को मार सकते हैं, जिसे अपने पैदा किया हो।
कोई भी जीव, पशु-पक्षी की हिंसा कर जितना ज्यादा कत्ल किया जायेगा।
दुनिया में ही अधिक प्राकृतिक आपदाएं आएंगी।
रोग-विकार, व्याधि, बीमारियां, वायरस
विश्व को तबाह कर देंगे।
भूकंप, जलजले आएंगे और सृष्टि का सञ्चालन तथा संतुलन बिगड़ेगा।
नेपाल का आंखों देखा हाल...
कुछ वर्ष पहले नेपाल में जो विध्वंसक भूकम्प आया था उसका कारण
आइंस्टीन पैन वेव्ज” थी जो वहाँ पाँच साल में एक बार लगने वाले ‘गधीमाई
के मेले में पाँच लाख से अधिक
पशु-पक्षियों की एक साथ बलि चढ़ाई गई। इस हत्या से उत्पन्न पशुओं की
चीत्कार, घबराहट,थरथराहट और
डर भय  से उत्पन्न हुई थी।
दिनों-दिन पूरे विश्व में बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति सन्सार में सभी तरह के संक्रमण, वायरस नये-नये रोग-विकार, प्राकृतिक आपदाएं, सुनामी भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है।
शोध की सच्चाई से साफ हुआ कि
एक कत्लखाने से जिसमें औसतन पचास जानवरों को मारा जाता है 1040 मेगावाट ऊर्जा फेंकने वाली इपीडब्लू पैदा होती है।
जीवों के जंग की तरंग
दुनिया के शाकाहारी वैज्ञानिकों ने इन तरंगों
की खोज की, तो पता लगा, जब कत्लखानों
में जब पशु-पक्षी काटे जाते हैं, तो उनकी
अव्यक्त कराह, चिल्लाहट, मजबूरी,
फरफराहट, तड़प के माहौल में भय और
चिंता की लहरें उत्पन्न करती है या
इस तरह समझे कि प्रकृति
माँ अन्नपूर्णा” अपनी संतानों
एवं जीव-जगत की असहनीय
तकलीफ,पीड़ा से विचलित हो जाती है।
शोध में पता लगा कि
प्रकृति यानि धरती माता जब ज्यादा
दुःखी अथवा क्षुब्ध होती है, तो मनुष्य
आपस में भी लड़ने भिड़ने लगते हैं,
तब दुष्परिणाम स्वरूप दुनिया में
अशान्ति का वातावरण बनने लगता है
और विभिन्न देश-प्रदेशों
 में दंगे होने लगते हैं।
■ मांसाहार-मतलब मन-से-हार….
धर्म शास्त्र और आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थों
में उल्लेख है कि-मांस खाने से मन कमजोर हो जाता है। मन की मजबूती
तथा डिप्रेशन से बचने हेतु शास्त्र
शाकाहारी भोजन की सलाह देते हैं।
 जब सारथी ही स्वार्थी बन गए
सम्पूर्ण विश्व में लगभग 50 लाख छोटे
बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन 50 करोड़
से भी अधिक पशुओं की बलि दी जाती है, जिससे 50 लाख करोड़ मेगावाट की
मारक क्षमता वाली शोक
तरंगे या इपीडव्लू पैदा होती है।
■ बड़ी मार दातार की....
रिसर्च में बताया कि-
महादेव-महाकाली या
कुदरत कोई हथियार या डंडा लेकर,
तो इन कराह युक्त तंरगों के गुनाहगार
लोगों को रोज-रोज सजा या दंड देने नहीं निकलती।
परमात्मा की एक ठंडी सांस भी
धरती पर रहने वालों को कंपकंपा देने के लिए काफी है।
जैसा खाओगे अन्न-वैसा होगा मन••••
अध्यात्म के आधुनिक विज्ञान ने
एक अध्ययन में पाया कि-
मरते समय जानवर हो या इन्सान अगर उसको बेरहमी या क्रूरता से मारा जाता
है, तो बहुत हाय-,तौबा मचाता है।
किसी भी जीव का शरीर के कटने और जलने से तंत्रिका-तंत्र से जो सन्देश रीढ़ के नर्व फाइबरों से होता हुआ मस्तिष्क तक जाता है उस संकेत यानि सिग्नल की तरंगों को हम पीड़ा के रूप में अनुभव करते है। जब वे तरंगे एक साथ विपुल मात्रा में यानि पशु, पक्षियों के वध से उत्पन्न होती है तो पृथ्वी के अंदर एकत्र हो जाती है।
इनकी मूक कराह, दर्द प्रथ्वी की व्यवस्था को चौपट करता रहता है।
पापियों की पीड़ा दायक प्रक्रिया….
जानवरों को जब कटा जाता है तो उन्हें बहुत दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है फिर इनके शरीर के
ऊपर ७० डिग्री सेंट्रीगेड गर्म पानी की बौछार डाली जाती है उससे शरीर फूलना शुरु हो जाता है, तब गाय-भैंस तड़पकर चिल्लाने लगते हैं तब जीवित स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकठ्ठा किया जाता है | फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है, एक एक अंग अलग से निकला जाता है।
कत्ल करते समय उसके शरीर से निकलने वाली जो चीख पुकार है उसकी बाइब्रेसन में जो नकारात्मक तरंग (नेगेटिव वेव्स) निकलते हैं,
वे सम्पूर्ण सृष्टि के पूरे वातावरण को
बुरी तरह से झकझोर देता है और उससे मानव जीवन प्रभावित होता है।
लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
इन्हीं सब क्रूरता,कुकर्मों के चलते
पूरी दुनिया में पाप, अत्याचार और
हाहाकार बढ़ रहा है।
अच्छा भाव, समय स्वभाव तथा करुणा 
त्यागने के कारण ही कोरोना का संक्रमण फेल रहा है।
श्लोक भी है-
अकृतेष्वेव कार्येषु मृत्युर्वै संप्रकर्षति।
युवैव धर्मशीलः स्यादनिमित्तं हि जीवितम।।
भारतीय मान्यता, तो यह है कि-
करुणा से भरे भाव-स्वभाव होने से सारे
अभाव मिट जाते हैं। ताव (क्रोध) से तनाव
पैदा होता है, जिससे रोगप्रतिरोधक क्षमता
घटती जाती है।
जिओ और जीने दो...
बस इतना ध्यान रखें कि-हमें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी 
का यह उदघोष सन्सार में शान्ति, सहजता
लेन में सहायक है।
वक्त का हर शह गुलाम….
कबीर जीवन कुछ नहीं,
खिन खारा खिन मीठ।
कलहि अलहजा मारिया,
आज मसाना ठीठ।।
कबीरदास की माने, तो यह जीवन कुछ नहीं है, पल भर में खारा है और पल भर में मीठा है। जो वीर योद्धा कल युद्धभूमि में मार रहा था, वह आज वह शमशान में मरा पड़ा है।
रहीम कहते हैं-
बिगरी बात बने नहीं, 
लाख करो किन कोय। 
रहिमन फाटे दूध को, 
मथे न माखन होय।।
प्रकृति में अब नव निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। दूध फट चुका है, इसलिए मख्खन
निकलने की उम्मीद व्यर्थ है।
अमॄतम परिवार
करवद्ध आग्रह करता है-
शाकाहार अपनाकर,
सृष्टि को सहज बनाओ!
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10 responses to “वायरस से बर्बादी का बड़ा कारण है-चटोरापन। बेजुबान पशु-पक्षियों का रोना ही-कोरोना या कीड़ों का रोना है-”

  1. Meera Sharma avatar
    Meera Sharma

    वाकई काफी चिंता की बात है और बहुत डराने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं इंसान के अपने किए कृत्य इस आपदा के रूप में सामने आए हैं शाकाहारी है एकमात्र उपचार यह संदेश जन-जन तक पहुंचाना और उन्हें मनाना बहुत जरूरी हो गया है

  2. RISHIPAL GOLA avatar
    RISHIPAL GOLA

    Well said. +ve and -ve vibration affects human life. Killing the animals will destroy all human. Thanks for your post.

  3. Rakesh avatar
    Rakesh

    Absolutely correct views about pure veg meal and the quote ‘ Ann jesa Mann’ describes everything.

  4. Satendra Sharma avatar
    Satendra Sharma

    Really a very good Thought

  5. Rajeev Shankar avatar
    Rajeev Shankar

    शत प्रतिशत सत्य,,, अगर तरंगों का वैज्ञानिक आधार और प्रभाव है तो बेजुबान के चित्कार तरंगों का भी निश्चित प्रभाव होगा,,, बेजुबान यदि आपके स्नेहिल हाथों के स्पर्श से दूध बढ़ा सकती है, तो हिंसक हाथों का स्पर्श प्राकृतिक आपदा भी खड़ी कर सकती है, प्राकृतिक संतुलन बर्बाद कर सकती, जो कोरोना का आधार हो सकता है,।।।

  6. […]  डॉ ब्रायन ने बहुत भावुक होकर कहा है कि- हमें प्राकृतिक प्रदत्त परम्पराओं को शीघ्रता से समझना होगा अन्यथा दुनिया के अधिकांश लोग गरीबी रेखा से भी नीचे जाकर खाने को मोहताज हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने बताया कि– भविष्य में हमें केमिकल युक्त दवाओं को लेने से बचना चाहिए। किसी भी तरह की खांसी अथवा छोटी-मोटी तकलीफों को ठीक करने के लिए के लिए घरेलू मसालों, आयुर्वेदिक ओषधियों को लेने की सलाह दी है। फिलहाल अभी आगे की खोज जारी है। कोरोना संक्रमण से बचाने में भारत की चिकित्सा पध्दति आयुर्वेद के नियमों को अपनाने की शुरुआत होना चाहिए। इसे पूर्णतः हानिरहित उपाय इलाज बताया है। आयुर्वेद के वैज्ञानिक ब्लॉग पढ़ने के लिए लिंक क्लिक करें- http://www.amrutam.co.in http://www.amrutampatrika.com नीचे दी गई लिंक के सभी लेख विशेष ज्ञानवर्द्धक हैं। क्लिक कर पढ़े  https://amrutampatrika.com/omamrutam/ https://amrutampatrika.com/indiafightscovid19/ https://amrutampatrika.com/virus-2/ […]

  7. […] ढककर रखें। इन पशुओं का दर्द भी देखें https://amrutampatrika.com/virus-2/ 【२】जिन्हें सर्दी या फ्लू जैसे लक्षण […]

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