यह धार्मिक संप्रदाय जैन धर्म(Jainism) की क्षमावाणी परंपरा है।
आज संवत्सरी पर्व या पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन देश-दुनिया के प्राणियों को “मिच्छामी दुक्कड़म” कहकर पूर्व में हुई भूलवश गलतियों के फलस्वरूप मिच्छामी दुक्कड़म” एक सामुदायिक तरीके से व्यक्तिगत माफी की औपचारिकता है।
यह मानवीय करुणा को बढाने का एक माध्यम है। इसमें एक संपूर्ण समुदाय शामिल है, एक संपूर्ण समाज। माफी वास्तव में एक सबसे महत्वपूर्ण मानव मूल्य है।
मिच्छामि दुक्कड़म” प्राकृत भाषा से आया है और निम्नलिखित श्लोक का हिस्सा है –
“खामेमि सव्वा जीवे, सव्वे जीवा खमंतु में।
मित्ति मे सव्वभूतेसु वैरं मज्झा न केनाई।
“मिच्छामि दुक्कड़म|”
इसका सीधा संस्कृत अनुवाद होगा –
क्षमामि सर्वजीवाणं, सर्वे जीवा क्षमन्तु मे।
मित्रत्वं सर्वभूतेषु, न वैरं मम केनचित (केनापि) मिथ्यामि दुष्कृतं।
इसका अर्थ है मैं सब जीव-जगत को क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें। मेरी मित्रता सब से है, वैर किसी से नहीं। मैंने कुछ ग़लत किया है तो माफ़ करें।
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