ग्रन्थिशोथ को आज की भाषा में थायराइड कहा जाता है। साइटिका, लकवा, कमरदर्द, जोड़ो में दर्द, सूजन, भारीपन, आधाशीशी का दर्द आदि ८८ तरह के वात रोग अयुर्वेदिक किताबों में मिलते हैं।
जाने दवाओं के बारे में-
∆~दशमूल क्वाथ, ∆~निर्गुन्डी, ∆~एरण्डमूल, ∆~मोरंगा, ∆~अमृतम ∆~अश्वगंधा चूर्ण,
∆~वृहत वात चिंतामणि रस, ∆~योगेंद्र रस स्वर्णयुक्त, ∆~अजमोद, ∆~अजवायन
∆~रास्नादी काढ़ा, ∆~अमृतम त्रिकटु चूर्ण,
∆~सोंठ, ∆~हरड़ मुरब्बा, ∆~अमृतम शतावरी चूर्ण, ∆~ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट, ∆~ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल, ∆~ऑर्थोकी पैन ऑयल, ∆~अमृतम च्यवनप्राश आदि 88 प्रकार की आयुर्वेदिक दवाएं वात विकारों में कारगर हैं।
जिन्हें 3 से 6 महीने नियमित लगातार लेवें, तभी यह अस्ररदायक होती हैं। यह ओषधियाँ जड़मूल से आर्थराइटिस की परेशानियों से मुक्त करने में सक्षम हैं।
सभी तरह के दर्द यानि वात-विकार और थायराइड अर्थात ग्रन्थिशोथ से पीड़ित वात रोगियों की पहचान, आदतें….
■ जिन लोगों के शरीर में वात की
अधिकता या वात-विकार सबसे
प्रबल होता है, वे हर-नारी पतले,
हल्के, फुर्तीले होते हैं।
■ वात प्रकृति वाले व्यक्ति की त्वचा
रूखी-सूखी फटी सी होती है।
■ वात के मरीज अक्सर बेचैन रहते हैं।
■ वात पीड़ित की भूख बदलती रहती है।
■ वात रोगी ज़्यादा आसानी से बार-बार
बीमार पड़ जाते हैं।
■ वात से प्रभावित लोगों का अक्सर
■ पेट खराब रहता है।
■ पेट साफ नहीं रहता।
■ हमेशा कब्ज़ बहुत होता है।
■ उदर में गैस बहुत बनती है, पर बाहर
नहीं निकलती या Pass नहीं होती।
■ ह्रदय तेजी से धड़कता है।
■ थायराइड रोगी की देह में सूजन होती है।
■ शरीर ढुलमुल हो जाता है।
■ कम्पन्न, डर बना रहता है।
वात रोगियों का खानपान, आदतें…
@ ऐसे लोग गर्म खाना पसन्द करते हैं
और ठण्डी चीज़ें सख्त नापसन्द करते हैं।
@ सर्दियों में इन्हें ठंड बहुत सताती है।
थायराइड रोगी हमेशा गर्म ऊनी कपड़े पहनना पसन्द करते हैं।
@ थायराइड रोगियों में त्वचा की ऊपरी शिराएँ काफी प्रबल होती है।
@ शरीर का मॉंसल भाग भी मुलायम होने की जगह सख्त होता है।
वात के असन्तुलन से होता है-
थायराइड अर्थात ग्रंथिशोथ, इससे
महिलाओं को ज्यादा दिक्कत है।
कैसे निर्मित होता है-थायराइड वातरोग…
पृथ्वी और पानी मिल कर कफ बनाते हैं।
तेज से पित्त बनता है। वायु और आकाश
से वात-विकार उत्पन्न होने लगता है।
थायराइड के 13 लक्षण और पहचान…
【1】हाइपरथायरायडिज्म होने पर
शरीर में सूजन सी रहती है।
【2】हमेशा आलस्य बना रहता है।
【3】चक्कर से आते हैं।
【4】कभी-कभी किसी का वजन
बहुत तीव्र गति से घटने लगता है।
【5】ज्यादा गर्मी या सर्दी लगती है।
गर्मी/सर्दी अधिक झेल नहीं पाती।
【6】ठीक से गहरी नींद न आना।
【7】प्यास ज्यादा और बार-बार लगना।
【8】अत्यधिक पसीना आना।
【9】हाथ -पैर कांपना।
【10】दिल तेजी से धड़कना।
【11】भूख एवं रक्त की कमी होना।
【12】कमजोरी, चिंता, तनाव और
अनिद्रा शामिल हैं.
【13】सुस्ती, थकान, कब्ज,
【14】धीमी हृदय गति,
【15】ठंड, सूखी त्वचा,
【16】बालों में रूखापन, झड़ना, टूटना
【17】अनियमित मासिकचक्र और इन्फर्टिलिटी के लक्षण भी दिखाई देते हैं।
【18】थायराइड किसी भी उम्र की महिलाओं को कभी भी हो सकता है।
वात विकार से पीड़ित रोगी में इन में से
कोई न कोई लक्षण जरूर मिलता है।
जैसे –
★~ दिनों-दिन वजन घटना,
★~ त्वचा या हाथ पैर का क्षरण होना,
★~ क्रोध, चिड़चिड़ापन के दौरे पड़ना,
★~ रोगों में अचानक वृद्धि होते जाना और
★~ बीमारियों का बढ़ते जाना या बिगड़ना
★~ शरीर में भारीपन होना
★~ समय पर नींद न आना एवं
★~ पूरे बदन में दर्द सा बने रहना।
कैसे बढ़ता है-थायराइड….
कड़वे चरपरे, कसैले पदार्थ वायु को
बढ़ाने वाले हैं जैसे नीम, करेला आदि।
मीठे, खट्टे, नमकीन रस, कफ को बढ़ाते हैं।
वे ही रस वायु को शान्त भी करते हैं।
वात-ग्रीष्म ऋतु में संचित होता है।
वर्षा ऋतु में कुपित रहता है और
शरद ऋतु में शान्त रहता है।
किस आयु में ज्यादा सताता है-
थायराइड/,ग्रंथिशोथ वात रोग–
वृद्धावस्था में वात का प्रकोप अधिक
होता है। इसी प्रकार दिन के प्रथम प्रहर
में वात का प्रकोप ज्यादा होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
के एक सर्वे के अनुसार पुरुषों की
तुलना में महिलाओं में थायराइड यानि ग्रंथिशोथ विकार दस गुना अधिक होता है।
हमारे इम्युन सिस्टम को ठीक रखने
में सबसे बड़ी बाधा है-वात-पित्त-कफ
का असन्तुलन अर्थात देह में त्रिदोष।
किसी भी बीमारी से युद्ध के दौरान
हमारे शरीर का इम्युन सिस्टम प्रतिपिंड
यानि एंटीबॉडीज बनाता है। चिकित्सा
विज्ञान की भाषा में इसे आईजी (iG)
इम्युनोग्लोबुलिन (immunoglobulins),
कहते हैं। वैट-पित्त-कफ का संतुलन
अर्थात बेलेंस होने से यही प्रतिपिंड
हमें रोगों से बचाता है।
क्या होता है त्रिदोष –
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ ‘त्रिदोष-सिद्धांत’
के अनुसार शरीर में जब वात, पित्त और
कफ संतुलित या सम अवस्था (बेलेंस)
में होते हैं, तब शरीर का अंग-अंग,
मन-मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। इसके
विपरीत जब ये तीनो प्रकुपित होकर असन्तुलित या विषम हो जाते हैं, तो
तन अस्वस्थ होने लग जाता है। आयुर्वेद में “वात-पित्त-कफ” तीनों में समरसता न होना या विषमता होना ही त्रिदोष कहलाता है। इसके दूषित होने से भूत-भविष्य-वर्तमान अर्थात ‘त्रिकाल’ तक अधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक यानि त्रिशूल-त्रिपात, द्रवित, पीड़ित कर शरीर स्वाहा कर देते हैं।
【1】ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
【2】ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल (स्वर्ण भस्म युक्त)
【3】ऑर्थोकी पेन ऑयल
त्रिदोष तथा वातनाशक ओषधि है।
तीनों ही आयुर्वेदिक ओषधियाँ यदि 3 महीने नियमित सेवन करें, तो 88 तरह के वात-विकार, जोड़ों एवं कमर का दर्द और ग्रन्थिशोथ/थायराइड को जड़ से दूर करने में सहायक है। आयुर्वेद की यह अदभुत असरकारी ओषधि का फार्मूला
●”योग रत्नाकर ग्रन्थ”
● भावप्रकाश, ● आयुर्वेद सार संग्रह,
● रस-तंत्रसार, ● भेषजयरत्नाकर
● चरक सहिंता, ● द्रव्यगुण विज्ञान
आदि 5000 वर्ष पुरानी वात उपचार
ग्रँथों से लिया गया है।
अधिक जानकारी के लिए
और
अमृतम पत्रिका गुग्गल पर सर्च करें।
कोरोना से बचने का सर्वश्रेष्ठ इलाज है बेहतरीन
रोगप्रतिरोधक क्षमता।
■ इम्युनिटी बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक
ओषधियाँ, क्वाथ, काढा जैसे-
●~अमृतम आयुष की क्वाथ,
●~ अमृतम फ्लूकी माल्ट
●~ अमृतम लोजेन्ज माल्ट
●~ अमृतम च्यवनप्राश
●~ त्रिकटु चूर्ण
●~ कीलिव स्ट्रांग सिरप
आदि दवाएं आपके स्वास्थ्य और
जीवनीय शक्ति वृद्धि में सहायक होंगीं
इन दवाओं को ऑनलाइन ऑर्डर कर मंगवा
सकते हैं।
अमृतम ओषधियों की पर्सनल केयर,
हेल्थकेयर तथा स्वास्थ्य वर्द्धक 91 तरह
के उत्पादों से सम्बधित रेंज जानने के लिए
www.amrutam.co.in
पर सर्च करें।
अमृतम पत्रिका पर कोरोना के बारे में सम्पूर्ण
विवरण उपलब्ध है। 3100 से अधिक ब्लॉग
पढ़ने के लिए नीचे लिंक क्लिक कर देखें-
www.amrutam.co.in
कोरोना का कोई इलाज है क्या? जाने
https://amrutampatrika.com/is-
आयुर्वेद की पहचान…
https://amrutampatrika.com/
जड़ीबूटियों के बारे में जाने..
https://amrutampatrika.com/
Leave a Reply