भोलेनाथ ही राहु हैं। यह रुद्र रूप में
विनाश, संहार कर्ता हैं और शिव रूप
में करुणामयी होकर जगत का कल्याण
कर सुख-सम्पनता देते हैं-
जरूर सरसरी निगाह डाले एक बार
इस ब्लॉग में पड़ेंगे सब कुछ पहली दफ़ह
■ राहु-शनि का षष्टाष्टक
विश्व-विनाश के योग बना रहा है।
■ ज्योतिष के आईने में कोरोना।
■ राहु के रहस्य
■ राहु की रासलीला
■ राहु से रुकावट
◆ राहु के रास्ते
■ राहु से रोग आदि
ज्योतिष, आयुर्वेद और अघ्यात्म के
अनेक ग्रन्थों से ढूढ़ा गया यह लेख
स्वस्थ्य-सुखी एवं समृद्ध जीवन के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
8000 शब्दों का यह ब्लॉग पढ़कर आप आश्चर्य से भर जाएंगे
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कोरोना वायरस जैसा संक्रमण ●●●
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© योगरत्नाकर,
© रसराज महोदधि,
© तन्त्र महोदधि,
© अर्क प्रकाश आदि में अनेक तरह के संक्रमण के विषय में लिखा है-
आयुर्वेद ग्रन्थ में एक श्लोक का वर्णन है,
जो आज के कोरोना वायरस से मेल
खाता है- कोरोना के लक्षण….
मृत्युश्च तस्मिन् बहु पिच्छिलित्वात्त्।
शीतस्य जन्तो: परित: सरत्वात।।
स्वेदो ललाटे….गृहं स मृत्य:
अर्थात-
रोगी का शरीर ठंडा और
चिपचिपा हो, ललाट पर चिपकना
ठंडा पसीना, (Cold & clemmy) perspiration
आ रहा हो तथा श्वास कंठ में, तो चलती
हो पर वक्ष यानि फेफड़ों तक न पहुंचती
हो। सात दिन से लगातार सूखी खांसी,
जुकाम सर्दी हो।
ऐसा व्यक्ति संक्रमित हो जाता है।
अतः इसे छूने से दूसरे व्यक्ति को भी
संक्रमण हो सकता है। यदि ऊपर लिखे
सभी लक्षण मिलते हैं, तो ऐसा संक्रमित
मनुष्य किसी भी पल “यमालय” को
जाने वाला है-यानि तत्काल मौत के
मुख में जा सकता है।
वह ज्यादा घण्टे भी नहीं जी सकता।
वर्तमान में फैले कोरोना वायरस के
भी यही लक्षण या सिम्टम्स हैं।
आयुर्वेद में भी है-
संक्रमण से सुफड़ा-साफ का उल्लेख…
हजारों वर्ष पहले महर्षि चरक ने
लिखा है कि-
!!देहेन्द्रिय मनस्तापी
सर्व रोगाग्रजो बली!!
भावार्थ-
देह, इन्द्रिय एवं मन में
भारी संताप का प्रादुर्भाव होने लगे,
आत्मविश्वास कमजोर होने लगे,
अवसाद यानि डिप्रेशन रहता हो,
तो समझ लेना पृथ्वी किसी भयंकर
संक्रमण की चपेट में आ जाएगी।
“हरिवंश पुराण” – में संक्रमण का स्वरूप
नियमानुसार बताया है-
!!दक्षापमान संक्रुद्ध:
रुद्रनि: श्वास सम्भव:!!
अर्थात-
यह रौद्र यानि सूर्य द्वारा प्रकोपित
महाभयानक व्याधि उत्पन्न होगी, जिससे आधा सन्सार नियति के नियमों
और संस्कृति-संस्कारों, प्राचीन परम्पराओं
को अपनाने पर मजबूर हो जाएगा।
!!संक्रमनस्तु पूजनैवार्वाsपि सहसैवोपशाम्यति!!
अर्थात –
यत: संक्रमण या किसी तरह के
खतरनाक वायरस देव कोपजन्य व्याधि है।
इससे विकार-व्याधि, वायरस से बचाव
हेतु ?सूर्य की किरणों? के सामने बैठे।
सूर्य का ध्यान, सूर्य नमस्कार करें।
?”अग्नि पुराण” एवं भविष्य पुराण
में संक्रमण से सुरक्षा तथा
शांति के लिए सूर्य देवर्चना, पूजा
का विधान बताया है।
इसलिए किसी भी तरह
के संक्रमण में शिव या सूर्य उपासना
करने से सहसा दूर हो जाता है।
हर दर्द की दवा है-गोविन्द की गली में
राजा भर्तृहरी रचित “नीतिशतक“
में उल्लेख है कि- धन कमाना जरूरी है, लेकिन शिव भजन से अधिक
शक्ति, ऊर्जा किसी में भी नहीं है।
प्रथमे वयसि नाधीते,
द्वितीये नार्जितं धनम्।
तृतीये न तपः तप्तम्
चतुर्थे किम् करिष्यति।।
अर्थात-उम्र के प्रथम 25 वर्ष में यदि अध्ययन नहीं किया, द्वितीय 25 से 50 के मध्य में धन अर्जित नहीं किया! तृतीय 50 से 75 वर्ष के बीच मे यदि तप नहीं किया तो चतुर्थ में चतुरता दिखाने से कुछ नहीं होगा।
?धन्वंतरि सहिंता में
संक्रमण के लक्षण बताए हैं-
!!स्वेदारोध: संताप: सर्वाग्रहणं तथा।
युगपद् यत्र रोगे च स ज्वरो व्यपदिश्यते!!
अर्थात-
जिस बीमारी में ?स्वेदवह
(शरीर से पसीना निकलना) स्त्रोतों का
प्रायः अवरोध हो जावे, सारे अंग में
अकड़न महसूस हो और संताप यानि
देहताप (अंदर गर्माहट बाहर जुकाम)
तथा ?मनस्ताप (भय-भ्रम, डर)
उत्पन्न हो जाये।
सर्दी-जुकाम, सर्दी-सूखी खांसी
निरंतर बनी रहे, तो मनुष्य किसी
संक्रमण से पीड़ित हो रहा है।
ऐसे लोगों का जीवन क्षण भंगुर होता है।
? मनस्ताप की अर्थ–
बीमारी जांचने का कोई थर्मा मीटर नहीं निर्मित हुआ है।
? स्वेदवह क्या है-
!!दोषवहानि च स्रोतांसि सर्वशरीरचराण्येव!!
– च. वि. 5/3 पर आचार्य चक्रपाणि
स्वेदवह, दोषवह, अम्बुवह स्रोतों में अधिष्ठित समानवायु के द्वारा ‘रसरक्त’ को हृदय की ओर लाया जाता है।
?ज्योतिष में कोरोना….
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक भी
यह समय संक्रमण काल है-
जब शनि-राहु षष्टाष्टक योग बनते हैं, तो दुनिया महामारी फैलने लगती है। यह योग
सितंबर 2020 तक करोड़ों लोगों के लिए जान का खतरा पैदा कर सकता है।
राहु से आठवें शनि जीव-जगत के लिए
मृत्यु के कारक होते हैं।
शनि से राहु गोचर में छठवें स्थान
पर होने से छठे भाव का असर दिखाते हैं।
ज्योतिष ग्रँथन में छठवा स्थान रोग, बीमारी, कर्ज, प्राकृतिक आपदाएं, संक्रमण से परेशानी आदि का कारक है और
आठवा भाव या स्थान मारक स्थान है। राहु अभी आद्रा नक्षत्र में है, जिसके अधिपति स्वयं महादेव हैं। इसलिए
!!भावहीँ मेट सकें त्रिपुरारी!!
इस कोरोना वायरस से बचने हेतु केवल
भोलेनाथ के मन्त्र
!!ॐ नमःशिवाय!!
या अघोर मन्त्र …
★★★ॐ★★★
अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो
घोर घोर तरेभ्यः!
सर्वेभ्य: सर्व सर्वेभ्यो
नमस्तेऽस्तु रुद्र रूपेभ्यः!!
अर्थ-
हे औघड़दानी महाकाल! कल्याणेश्वर- श्मशान के रखैया – तन्त्र-मन्त्र, काम्य क्रियाओं में लीन, भयँकर भयानक, रौद्र
और सौम्य रूप में रहने वाले, सब संक्रमण
के नाशक तथा सर्वत्र व्यापक ऐसे अघोर
रूप भगवान शिव को प्रणाम है।
उपरोक्त मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करें। यह पंचाक्षर मन्त्र पंचमहाभूतों/पंचतत्व
यानि अग्नि, जल वायु, आकाश और
पृथ्वी को पावनता प्रदान करेगा।
विश्व की रक्षा मात्र इसी मन्त्र से
सम्भव है और अघोर मन्त्र रोग-विकार,
मानसिक अशांति, अवसाद मिटाने में चमत्कारी है।
रोज राहुकाल का विशेष ध्यान रखें-
मन की प्रसन्नता के लिए यह अदभुत
प्रयोग है, इसे एक माह आजमा कर देखें।
प्रतिदिन निश्चित समय में पड़ने वाले
राहुकाल में भूलकर भी अन्न-जल
ग्रहण न करें, ना हीं सोने या विश्राम की चेष्टा करें। यह वक्त शिव साधना-उपासना
का है। आपकी यह भक्ति भविष्य में
देश की रक्षा करेगी। यह पूर्ण विश्वास है।
भविष्य की जानकारी देने वाला
भविष्य पुराण, शव को शिव बनाने
वाला शिव पुराण, स्कंदपुराण,
अग्नि पुराण, रहस्योउपनिषद,
ईश्वरोउपनिषद, श्रीमद्भागवत तथा वेदों में ऐसे श्लोकों का उल्लेख है- जिसका अर्थ है कि- कलयुग में ऐसी भारी व्याधि, वायरस/संक्रमण उत्पन्न होंगे कि-
मनुष्य का पल में प्रलय हो जाएगा। इस संक्रमित काल में एक-दूसरे को छूने मात्र से मनुष्य तत्काल संक्रमित होकर, छुआछूत से मर जायेगा। रोगों को ठीक करने का मौका नहीं मिलेगा।
ज्योतिष या एस्ट्रोलॉजी में कोरोना
वायरस का कारण है-राहु….
आकाश मंडल में 27 नक्षत्रों में से आर्द्रा छठवां नक्षत्र है। यह राहु का नक्षत्र है व मिथुन राशि में आता है।
आद्रा का अर्थ....
आर्द्रा का अर्थ गीला अथवा पानी से भीगा है, जिसे भाग्य भी कहते है। यह शुभ राजसिक स्त्री नक्षत्र है।
संस्कृत में आर्द्र कहते हैं- (अर्द+रक्) =गीला, नमीदार, सीला, हरा, रसीला, ताजा, मृदु, कोमल।
माँ कामाख्या की कृपा...
वर्ष में एक बार जून महीने में सूर्य जब
आर्द्रा नक्षत्र पर होता है, तब पृथ्वी रजस्वला
मासिक धर्म से होती है, जिसे आर्तव या अम्बोबची कहते है। असम के माँ कामाख्या मन्दिर में यह अम्बोबाची
पर्व 5 दिन तक मनाया जाता है। इस समय पट बन्द रहते हैं।
राहु की जाति…..
राहु शूद्र जाति के होने के बाद भी शुभ होने
पर व्यक्ति को शून्य से शिखर पर पहुंचा देते हैं।
मिथुन राशि का आद्रा नक्षत्र की योनि श्वान (कुत्ता), अन्य योनि वैर वानर, गण मनुष्य,
नाड़ी अन्त्य है। वायु तत्व तथा यह उत्तर दिशा का स्वामी है।
विशेष- आद्रा नक्षत्र में जन्मे अधिकांश
मनुष्य सर्दी-खांसी, जुकाम, न्युमोनिया, गले की खराबी, गले में सूजन आदि बीमारियों से घिरे रहते हैं। राहु कालान्तर सहिंता में इससे मुक्ति के मन्त्र और उपायों का वर्णन है।
रूद्र यानि राहु जो विनाश, संहार के कारक हैं।
राहु की रासलीला...
ब्रह्माण्ड में रहस्यमयी रोग-व्याधि,
संक्रमण, क्लेश, क्रोध, दयाहीनता,
भयानक महामारी,
मार-काट, दुःख और अत्याचार या उत्पीड़न, बीमारियों की शक्ल में भयंकरता या कोलाहल का डराव आदि भय उत्पन्न करते हैं।
शिव का अर्थ होता है–
कल्याण करने वाला ईश्वर।
लेकिन जब ये रूद्र रूप धारण करते हैं, तो सृष्टि को बर्बाद कर देते हैं रूद्र इनका क्रोधित अवतार है।
भगवान शिव का ही रूद्र रूप राहु है, जो संहार करने वाले एवं विनाशकारी हैं। यह
ऋग्वेदिक देवता है जो वायु या तूफान और शिकार, संहार के द्योतक है। ऋग्वेद, शिवपुराण आदि में शक्तियो मे महा शक्तिशाली देवता के रूप मे रूद्र की स्तुति की गई है।
वेदों में राहु (रुद्र)•••
रूद्र के बारे मे तीन ऋचा और लगभग 75 रुद्र श्लोक सन्दर्भ ऋग्वेद मे है। यजुर्वेद मे भी शिव की स्तुति में श्री रुद्रम स्त्रोत्र रूद्र को समर्पित है।
राहु के रास्ते....
राहु की कठोरता, रोग दाता, गलत
कार्यों से धन की वृद्धि और विद्रोही स्वर, भयंकर क्रोध राहु की मुख्य पहचान है। – (प्राचीन ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ग्रन्थ)
अन्य मान्यताओं के मुताबिक
आर्द्रा से सम्बन्धित हिंदू मिथक बृहस्पति की दूसरी पत्नी तराका के साथ है। तराका एक असुर है जिसे महादेव द्वारा अखंडनीयता का वरदान मिला हुआ है। सिंहका या धुमेश्वरी राहु की मां है।
राहु का रुतबा….
यह कई तारों का समूह न होकर केवल
एक तारा है। यह आकाश में मणि या
हीरे के समान दिखता है।
आद्रा के अधिपति महादेव और रुद्र…
आद्रा नक्षत्र देवता रूद्र (शिव) संहार,
संक्रमण/वायरस,आंधी और विनाश के स्वामी, शरीर में स्नायु तंत्र, फेफड़ों के नियंत्रक एवं श्वसन नली के रक्षक हैं। यह शिव (जगत कल्याणकारी) का दूसरा रूप राहु ही है, जो जगत विनाशकारी है।
अथर्ववेद सूक्त-25 के अनुसार-
अधराञ्च प्रहिणोमि नमः कृत्वा तक्मने!
मकम्भरस्य मुष्टि हा पुनरेतु महावृषान्!!
अर्थात-
कलयुग में रूद्र यानि राहु के प्रकोप से कोई-कोई संक्रमण/वायरस बड़ा भयानक विकार होगा। यह शक्तिशाली देश और पुष्ट मनुष्य को भी मुट्ठियों से मारने वाला सिद्ध होगा।
यह वायरस पृथ्वी में अति नमी, गीलेपन के कारण, अति वर्षा या सर्वाधिक
जल भरे देशों में हर साल, बार-बार आएगा।
आगे का भविष्य पूरा साल रहेगा ठंडा-—
वर्तमान में राहु यानि भगवान शिव
अपने ही नक्षत्र आद्रा में विराजमान हैं,
इसलिए सितंबर तक गर्म क्षेत्रों में भी
नमी या ठंडक रहेगी।
क्यों हो रहा है ऐसा–
सितम्बर 2020 में राहु वृषभ राशि
में वक्री गति से गोचर करते हुए राशि परिवर्तन करेंगे। यह धर्म की राशि है।
अतः नारद सहिंता ज्योतिष ग्रन्थ
के अनुसार जब राहु धर्म की राशि में आने वाले होते हैं, तब पहले से ही
सन्सार को धर्म, संस्कृति, पुरानी
परम्पराओं से मनुष्यों को जोड़ने पर
मजबूर कर देते हैं।
सुखी-स्वस्थ्य रहने और रूद्र राहु की कृपा पाने के लिए कुछ उपाय करके देखें-
यह समय एक प्रकार से सूर्य ग्रहण का है।
यह सूर्य ग्रहण लगभग अगस्त या सितंबर 2020 तक चलेगा। इसलिए नियम-धर्म और पुरानी संस्कृति को अपनाने का संकल्प लेवें। रोज नहाने से पहले पूरे शरीर में खुशबूदार तेल लगाकर स्नान करें।
●बिना स्नान के अन्न-बिस्कुट आदि न लेवें।
तरल पदार्थ कुछ भी ले सकते हैं।
●11 रुद्रों की शान्ति प्रसन्नता हेतु 11 माला
!!ॐ नमःशिवाय!! पंचाक्षर मन्त्र याा
अघोर मन्त्र की जाप करें।
●रात्रि में एक दीपक अपने पूर्वजों के लिए जरूर जलाएं।
जो लोग श्री हनुमानजी को अपना इष्ट
मानते हैं, वे 40 बार जपें…
जय जय जय हनुमान गुंसाई।
कृपा करो गुरुदेव की नाईं।।
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