आयूर्वेदाचार्य महर्षि चरक ने ५००० हजार साल पहले ही खोज लिए थे 88 प्रकार के वातविकार- अमृतम के इस ब्लॉग में अर्थ सहित जानिए.. ८८-वात रोगों के नाम-काम-

वायु ही समस्त चराचर जीव-जगत
को चलायमान रखती है।
फुर्ती-स्फूर्ति देना, बोलना, सुनना एवं
जीवन को जीवन्त बनाये रखना
वायु का ही कार्य है।
वायु या वात के दूषित, अंसतुलित
होने से अनेकों वातव्याधि, उदररोगों  
से घिरकर बर्बाद हो जाता है।
बिगड़ा वात, बात-बात पर गुस्सा,
भय-भ्रम, चिन्ता, तनाव, कर्महीनता,
कामहीनता (सेक्सुअल वीकनेस), 
महिलाओं में मोनोपॉज, मासिक धर्म
आदि समस्याओं को जन्म देता है।
खतरनाक वात-विकार कैसे, 
कितने प्रकार के होते हैं……
शरीर में वायु और आकाश तत्व की
कमी हो जाए तथा वात-पित्त-कफ का संतुलन बिगड़ जाए, तो वात….व्यक्ति
की हालत और हालात खराब कर देता है।
वात ८८ तरह के होते हैं। वात के बारे में
यह बात बहुत कम लोगों को ज्ञात है।
वात को कैसे मारे लात….
सन्दर्भ ग्रन्थ-पुस्तकों के नाम
आयुर्वेद की किताबों जैसे-
● द्रव्यगुण विज्ञान
● भेषजरत्नावली
● चरक एवं सुश्रुत सहिंता
● अगस्त्य सहिंता
● सप्तऋषि नाड़ी सहिंता
● काय चिकित्सा आदि में
संस्कृत भाषा में दर्दे-दिल,
दर्दे-कमर बीमारियों के नाम लिखे हैं!
जोड़ों में दर्द, रीढ़ की हड्डी या 
कमरदर्द एवं सूजन के अलावा 
वात विकार से उत्पन्न मुख्य ८८ तरह
की बीमारियों का वर्णन इस ब्लॉग में
बताया जा रहा है।
वात बिगाड़े हालत और हालात….
【१】वात कटक– इस वात रोग में
पावँ के जोड़ा की गांठों में वायु की
अधिकता से हड्डियों में असहनीय
दर्द होता है।
【२】वातगण्ड– वात व्याधि से उत्पन्न
गलगण्ड, जिसमें गले की नसें कड़क
होकर काली या लाल पड़ जाती हैं
और कठोर होकर पक जाती हैं।
【३】वातगुल्म– यह वााा रोग
पेट में कुपित वायु के कारण होता है।
गुल्मरोग में शरीर की किसी भी नस
में गांठ के आकार की सूजन उभर
आती है।
गुल्म के अन्य अर्थ…
शास्त्रों एवं संस्कृत शब्दकोश में
!- ईख यानी गन्ने को भी गुल्म बताया है।
!!- राजाओं की सेना का एक समुदाय
जिसमें 9 हाथी, 9 रथ, 27 घोड़े, 
45 पैदल सेना होती है, जिसे
गुल्म सेना कहते हैं।
यह गुल्म सेना के वार करने का तरीका
ऐसा होता है कि- दुश्मन सेना के शरीर में सूजन होकर गांठे पड़ जाती हैं।
घर में करें-इलाज…
(!) सेंधा नमक, काली मिर्च मुनक्का, 
बताशे में डालकर खाएं।
(!!)  गोंद युक्त बिस्वार के लड्डू खाएं
【४】वातनाड़ी– उदर में लगातार
वायुविकार दूषित या कुपित अथवा
गैस्ट्रिक प्रॉब्लम से वह नासूर, जो
दांतों की जड़ों में होता है।
इस वातरोग में मरीज का खाना-पीना,
चबाना मुश्किल हो जाता है। ढंग से
सो भी नहीं पाता।
अतः इस खतरनाक रोग से मुक्ति के
लिए 3 महीने  तक 1 से 2 चम्मच
अमृतम द्वारा निर्मित
(!) डेंटकी माल्ट (DENTKEY Malt)
का दो बार सेवन करें और 
(!!) आयुर्वेदक डेंटकी दंतमंजन
सुबह शाम दांतों में लगाकर 5 मिनिट
बाद कुल्ला कर ब्रश से साफ करें।
【५】वातपर्यय– यह सबसे खतरनाक
वातरोग है। आलस्य, चिन्ता, तनाव,
थकान से उत्पन्न यह बीमारी शरीर में
भयंकर ऐंठन, गले के पीछे सूजन,
भय, चिन्ता होकर ग्रंथशोथ अर्थात
थायराइड जैसी गम्भीर बीमारी जड़
जड़ पकड़ कर तन की हड्डियों को
गलाने लगती है।
वातपर्यय वात-व्याधि की वजह से
शरीर में सुस्ती, आलस्य, चिड़चिड़ा 
स्वभाव, क्रोध आदि बना रहता है।
इस महावात रोग से मुक्ति के लिए 
5 से 6 महीने तक 
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
ORTHOKEY GOLD Malt 
के संग अमृतम टेबलेट रोज 3
लेना हितकारी है। 
 
https://www.amrutam.co.in/weakbones-orthokeygoldcapsulesandmalt/
 
【६】मनः ग्रंथिवात- यह मानसिक
वात रोग है। इस रोग में मस्तिष्क की
नाड़ियों में वात की वृद्धि हो जाती है।
नई शोध में इसे ओसीडी यानि
(ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसॉर्डर)
बताया जा रहा है।
ओसीडी मनोविकार के लक्षण….
Ocd की बीमारी को wHO ने दुनिया
की 10 खतरनाक बीमारियों में से एक
माना है।
ओसीडी यह एक ऐसा मनोरोग है
जिसमें आपके न चाहने पर भी
आपके दिमाग में अजीबोगरीब
विचार आते रहते हैं।
@ हमेशा फालतू के  ख्याल आना।
@ ऐसा करने से ऐसा वैसा या
उलटा-सीधा न हो जाये।
@ लोग मेरे बारे में क्या सोचते होंगे।
@ कहीं मैने कुछ गलत तो नहीं बोल दिया।
@ आप एक ही चीज को बार बार छूते,
गिनते हैं अथवा
@ एक ही कार्य को बार-बार करते हैं
जैसे कि हाथों को बार-बार हाथ या
दीवार को धोना इत्यादि।
@ हर बार एक ही काम करने की आदत।
@ कोई चीज पकड़कर चलना।
@ गिरने, मरने एवं दुर्घटना-एक्सीडेंट
 का भय सताना
@ घर से बाहर निकलने का डर।
@ गन्दे, नकारात्मक विचारों का आगमन।
@ खुद को नुकसान पहुंचाने की आदत।
@ खुद को शर्मिंदा महसूस करना।
@ हर बात को दिल पर ले जाना।
@ खुद को कमजोर, गरीब मानना।
इनका दिमाग औरों से तेज होता है
क्यों कि ये दिमाग की बीमारी से
रोज लड़ते है।
मनः ग्रंथिवात ओसीडी OCD से
पीड़ित रोगी की इस रोग में
आंखे जाने, ह्रदय रोगलकवा,
मधुमेह, थायराइड तथा केंसर आदि
असाध्य रोग होने का खतरा बना रहता है।
ओसीडी मानसिक रोग का इलाज…
यदि कोई नर-नारी इस बीमारी की
गिरफ्त में आ चुका है, तो एक बार,
विश्वास के साथ 5 महीने यह आयुर्वेदिक
चिकित्सा अवश्य करें-
(!) अमृतम ब्रेन की गोल्ड माल्ट
BRAIN KEY GOLD Malt
1 से 2 चम्मच दूध या जल के साथ
सुबह खाली पेट और शाम को भोजन
पूर्व सेवन कराएं। साथ में 2 गोली
(!!) ब्रेन की गोल्ड टेबलेट भी लेवें।
(!!!) ऑर्थोकी गोल्ड केप्सूल
ORTHOKEY GOLD Capsule 
1-1 केप्सूल दूध या पानी से दिन में
दो बार 5 महीने तक नियमित लेवें
【७】वातरक्त– एक प्रकार का रक्तदोष
या खून की खराबी जो कुपथ्य तथा
अयोग्य आहार से उत्पन्न होता है।
वातरक्त दोष के कारण देह की
सभी रक्तनाड़ियाँ वायु एवं वात की
वजह से दूषित, संक्रमित हो जाती हैं।
वातरक्त रोग होने पर पूरा शरीर
दर्द से कराह उठता है।
【८】वातरोहिणी- इस वात व्याधि
में जिव्हा, जीभ के चारो तरफ कांटे जैसे
माँस उभरने लगता है। मुख स्वादहीन
हो जाता है। कहना-पीना नहीं सुहाता।
चरक सहिंता के अनुसार वातरोहिणी
वात रोग मुहँ के कैंसर की प्रथम सीढ़ी
या शरुआत है।
घरेलू उपाय
वातरोहिणी से पीड़ित मरीज को
मुनक्का, अमरूद, कालीमिर्च,
अमृतम गुलकन्द, सौफ, मिश्री तथा
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट का अधिक
सेवन करना लाभकारी रहता है।
【९】वाताण्ड– अंडकोष
 एक वात रोग। इस रोग में उदर
तथा गुप्तांगों में वात की
वृद्धि होने से अंडकोषों में
पानी भर जाता है।
आयुर्वेदिक उपाय....
बी फेराल गोल्ड माल्ट 3 माह लेवें।
【१०】वातोदर– पेट में हमेेेशा दर्द बने
रहना। भोजन न पचना, भूख न लगना,
असहनशीलता, क्रोध, बेचैनी यह वातोदर
वात-व्याधि के कारण उत्पन्न होते हैं।
आयुर्वेदिक औषधि...
(!) कीलिव माल्ट 2 से 3 चम्मच रोज
दिन में 2 या 3 बार, 4 महीने तक लें।
https://amrutampatrika.com/kabjkishikayat/
(!!) अमृतम टेबलेट सादे जल से लेवें।
【११】वातुल वात रोग- 
यह दिमाग में वात प्रकोप के कारण होता। वात प्रधान रोगी, जिसकी बुद्धि ठिकाने
पर रहती, वह वातुल वात कहलाता है।
【१२】वातोलम्बन
एक प्रकार का सन्निपात ज्वर, जो
बार-बार ठण्ड देकर आता है, जिस
कारण पर शरीर कंपकपाने लगता है।
स्थाई चिकित्सा…
(!) आयुष की काढ़ा
(!!) फ्लूकी माल्ट
(!!!) लोजेन्ज
https://amrutampatrika.com/kufvikar/
 
(!v) अमृतम च्यवनप्राश
https://www.amrutam.co.in/chawanprash/
【१३】वात प्रकोप
उदर, मस्तिष्क, फुसफुस सहित
सम्पूर्ण देह में अपवित्र वायु या
वात बढ़ने से मधुमेह (डाइबिटीज),
कर्कट रोग (कैंसर) जैसे असाध्य
बीमारियां होने लगती हैं।
【१४】पादशूल- पैरों में दर्द होना।
【१५】पादसुप्तता- पैरों का सुन्न होना।
【१६】 पाश्र्वमर्द- पीठ वाले हिस्से में मर्दन के समान पीड़ा होना।
【१७】पिडिकोद्वेषटन- पैर की पिंडलियों में सूजन, पीड़ा, एंठन जैसा दर्द।
【१८】एकांगघात- इसमें मासंपेशीयां
शिथिल होकर देह अधमरी हो जाती है।
【१९】एकांतवात- इसमें रोगी एकांत में बैठना पसंद करता है, जिससे नाड़िया है।
【२०】उच्चैश्रुति- सुनाई न देना।
कम या ऊंचा सुनना। बहरापन
【२१】उदरावेष्ट- पेट में एंठन बनी रहना।
【२२】उदावर्त -पेट की गैस ऊपर की और आना। अम्लपित्त होना।
【२३】उरुसाद-टखनों में दर्द या गांठ होना
【२४】उरुप्रदेश में अवसाद यानी शिथिलता का अनुभव होना।
【२५】उरुस्तंभ- जानू की हड्डी का जकड़ना। यदि कोई भी दर्दनाशक
मलहम या तेल मलने से दर्द में वृद्धि
होने लगे, तो समझो कि उरुस्तंभ वात
रोग होता है अन्यथा नहीं।
【२६】ओष्ठभेद : होंठो में सूजन दर्द।
【२७】कंठोध्वंस : गला बैठ जाना, दर्द।
【२८】कर्णमूल : कान की जड़ में
दर्द (कान के पीछे वाला हिस्सा कंठ
से कुछ पूर्व का भाग तक ) कनफेड़
रोग इसी में होता है।
【२९】कषायास्यता- मुहं कड़वा होना।
【३०】 कुब्जता- कूबड़ का होना।
【३१】केशभूमिस्फुट- बालों की जड़ों में विकृति होना। गंजापन, बालों की जड़ें कमजोर होना, झड़ना, टूटना।
आयुर्वेदक चिकित्सा-
https://amrutampatrika.com/22jadibootiforhaircare/
(!) कुन्तल केयर हर्बल स्पा हेम्पयुक्त
 http://amrutam.co.in/14reasonsforhairfall/
(!!) कुन्तल केयर हर्बल हेयर ऑयल
【३२】खंजता या पांगुल्य -लंगड़ापन आने का भाव, पैरों में लंगड़ापन आना।
【३३】गुदभ्रंश– गुदा बाहर निकलना।
【३४】गुदा शूल– गुदा प्रदेश में दर्द।
【३५】 गुल्फ ग्रह– एड़ी के आसपास सात
हड्डियो के समूह को गुल्फ प्रदेश कहते है।
गुल्फ प्रदेश का जकड़ जाना!
【३६】ग्रध्रसि– अर्थात सायटिका
(ग्रध्रसि नाड़ी ) इसमें कमर
के कूल्हे की हड्डी में होकर पैर तक एक
नाड़ी में सुई की चुभन जैसा दर्द होता है।
जिसे सायटिका का दर्द कहा जाता है।
【३७】ग्रीवास्तम्भ– गर्दन का जकड़ जाना। घुमाने में तकलीफ होना।
【३८】घ्राणनाश– गंध का ज्ञान ना होना।
【३९】 चित्त अस्थिरता– चित्त स्थिर न रहना। मन मेंं घबराहट होना।
【४०】आमाधिक जीर्ण वात
दर्द यदि लम्बे अंतराल तक रहे,
तो पाचनतंत्र क्रियाहीन हो जाता है।
【४१】अस्थि व्रण– शरीर में लगातार दर्द
होने से हड्डियाँ खोखली होने लगती हैं।
【४२】ग्रंथिशोथ– थायराइड इसमें रक्तसंचार में अवरोध उत्पन्न होकर
रस-रक्त नाड़ियों सूजन आने लगती है।
【४३】जानुभेद– घुटनों के ऊपर वाली हड्डी। ये दोनों पैरों पर 1-1 होती है। इसमें टूटने जैसा दर्द होता रहता है।
【४४】तम: या तमदोष– झुंझलाहट होना।
【४५】तिमिर वात– आंखो में धुंधलापन।
कम दिखाई देना।
【४६】 त्रकग्रह– पृष्ठ ग्रह-पीठ व
नीचे तक बैठक वाली स्थान की हड्डी त्रिकास्थी (तीन हड्डियों)में दर्द रहना
【४७】दंडक वात– शरीर में वात
वृद्धि से पूरे शरीर की मांसपेशियां
डंडे की तरह स्थिर हो जाती है। इसे दंडापतानक कहते है।
【४८】 दन्त भेद– दांतों में तीव्र पीड़ा।
【४९】दन्तशैथिल्य वात– दांतों की जड़े कमजोर होने से दांतो का का हिलना।
दिल बैठने जैसा महसूस होना।
【५०】नखभेद– नाखूनो का टूटना।
【५१】नेत्रशूल– आंखो में दर्द होना।
【५२】पादभ्रंश– पैरों पर नियंत्रण ना
होने से गिर जाना।
【५३】बहरापनवात- कान से सुनाई न देना या बहुत कम सुनाई देना।
 【५४】बाक्संग– आवाज़ बंद होना।
 【५५】बाहूशोष वात– भुजा से
अंगुली तक मासपेशियों में दर्द, एंठन
व जकड़न। हाथ ऊपर ना उठ पाना।
【५७】भ्रूव्य दास– भौंहों का टेढ़ा होना।
【५८】मंथा स्तम्भ– गर्दन के पीछे
लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में
जकड़न व पीड़ा।
【५९】 मुखशोष– मुहं का सूखना।
【६०】मूकत्व- गूंगापन / बोल न पाना।
【६१】ललाट भेद– आँखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा या दर्द रहना।
【६२】शुक्रक्षय से वात रोग– अर्थात वीर्य
की कमी या सूखने से शरीर में दर्द होना।
【६३】वक्ष:स्तोद– छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा।
【६४】आक्षेपक वात- मस्तिष्क में वातनाड़ी दूषित होंने से मिर्गी जैसे झटके आते हैं, जिससे व्यक्ति हाथ पैरों को जमीन पर पीटकर बार-बार उठाने लगता है।
【६५】वक्षोपरोध वात– वक्ष:स्थल की
गतिया यानी फुफ्फुस व हृदय गति में रूकावट का अनुभव।
【६६】वत्रम संकोच– नेत्र में सूजन
एवं पलकें सिकुड़ जाती है जिससे आंखे
खोलने में परेशानी होने लगती है।
【६७】वात-व्याधि– शरीर में गांठें उत्पन्न करने वाला एक खतरनाक रोग, जिसे गठियावात भी कहते हैं।
 【६८】जानु विश्लेश– जानू की संधियों का शिथिल हो जाना।
【६९】वृषणोत्क्षेप– अंडकोश में सूजन।
अंडग्रंथियो का ऊपर चढ़ जाना।
【७०】सर्वांगवात– सम्पूर्ण देह, हड्डियों में खिंचाव, अकड़न, भयंकर दर्द बना रहना, चल न पाना।
【७१】शंखभेद– कनपटी में दर्द। शरीर का काला होना। शरीर का रंग लाल होना।
【७२】शरीर में परुषिता- शिथिलता आना। शरीर में रूक्षता रूखापन।
【७३】शिरशूल– सिरदर्द।
【७४】शेफ स्तं- मुत्रेंद्रियो में जकड़ाहट।
【७५】श्रोणिभेद– कूल्हे वाली हड्डी में
 तोड़ने जैसा दर्द।
 【७६】सर्वांगघात– यह जन्मजात
 मस्तिष्क का रोग है।
 【७७】हनुभेद– ठोड़ी में पीड़ा।
 【७८】हिक्का- हिचकी।
 हृदद्रव- हृदय में द्रवता अर्थात शीघ्रता
 से गति का होना। । ।
【७९】अनिद्रा– अर्थात नींद न आना।
【८०】अक्षि व्युदास– नेत्रों का टेढ़ा होना।
【८१】अक्षिभेद– आँखों में दर्द।
【८२】अतिप्रलाप– बिना बात के निरर्थक बोलना।
【८३】अरसज्ञता– भोजन में स्वाद न आना
अथवा रस का ज्ञान ना होना।
【८४】अर्दित अर्थात मुंह का लकवा।
【८५】अशब्द श्रवण– विना आवाज या ध्वनि ना होते हुए भी शब्द सुनाई पड़ना।
【८६】मुकत्व– बोलने में दिक्कत, हकलापन। वायु तत्व बोलने में सहायक है।
वायु की कमी या दूषित होने से हमारी वाणी
में मिठास का अभाव हो जाता है।
【८७】वत्रम स्तंभ– आंखों की पलकें ऊपर-नीचे नहीं होना पाना।
【८८】वात खुड्डता– पैर व जांघ की
संधियो यानि जोड़ों में वात जन्य वेदना
का होना, पिंडली वाली दो हड्डियां,
घुटनों के नीचे वाली दो हड्डियों (जंघास्थि और अनुजंघास्थि ) टखने से एड़ी तक के हिस्से के जोड़ो में दर्द और लंगड़ापन।
महर्षि सुश्रुत, महर्षि अगस्त्य ने अगस्त्य सहिंता में  और श्रृंगी ऋषि ने 
स्नायुओं की विकृति-
अर्धांग वात- आधे शरीर में दर्द रहना।
वामनत्व– उल्टी जैसा मन होना।
 विडभेद– मल स्थान के आसपास
तोड़ने जैसी पीड़ा।
विपादिका त्वचा वात
हाथ-पैर, बिबाईं फटना।
 विषाद्र- दुखी रहना।
भ्रम- चक्कर आना।
आदि को वात विकार से उत्पन्न
बीमारियां बताई हैं।
रीढ़ की हड्डी या कमरदर्द
कंधे हिलाने पर दर्द होना अर्थात
फ्रोज़न शोल्डर, से पीड़ित हैं, तो
ये आयुर्वेदिक सप्लीमेंट
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट और केप्सूल
दोनों को 3 से 5 महीने तक नियमित
लेते रहें। यह 88 तरह के वात रोगों
को दूर करने में मददगार है।
 कृपया ध्यान रखें…
शरीर में अकड़न होने पकड़
कमजोर हो जाती है।
दर्द हमारे जीवन जीने की क्षमता
छीन लेता है।
आयुर्वेद में बताए गए तमाम
नियम आज वैज्ञानिक प्रयोगों
द्वारा सिद्ध कर लिए गए हैं,
जिससे पश्चिमी देशों में भी
आयुर्वेद धीरे-धीरे अपनी जगह
बना रहा दर्द आपको चेतावनी
देता है कि शरीर में  कुछ सही
नहीं है। मन अनफिट अनुभव करता है।
दर्द की सबसे खराब स्थिति और
विस्तारित बीमारी में यह दर्द जटिल
अनुभूति है जो अलग-अलग रोगियों
में भिन्न होती है! यहां तक कि जो समान चोटों या बीमारियों को प्रकट करते हैं।
आखिरकार, दर्द के प्रति हमारी व्यक्तिगत संवेदनशीलता जीन, अनुभूति, मनोदशा, हमारे पर्यावरण और प्रारंभिक जीवन के अनुभवों की जटिल बातचीत द्वारा नियंत्रित होती है।
छपका सहयोग जरूरी है-
वात की बीमारी कोई भी हो,
दर्द से दुखी लोगों की देखभाल करने
वालों के लिए चुनौती है।
आखिरकार परिवार, दोस्तों और
स्वास्थ्य की  जिन्हें शारीरिक और
साथ ही दर्द के भावनात्मक परिणामों
से पीड़ित व्यक्ति को
अमृतम द्वारा निर्मित
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट एवं 
ऑर्थोकी गोल्ड केप्सूल
ऑर्थो की पेन ऑयल
का समर्थन करना चाहिए।
चेहरे को चमकाने के लिए क्लिक करें-
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आत्मनिर्भर बनने के फायदे जाने
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पित्त दोष से देह की रक्षा करें
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