सावन मास में सतगुरु की सेवा और ध्यान….

अक्टूबर 2014 से साभार
अघोर विशेषांक के कुछ अंश…
प्रामाणिक और रहस्यमयी दुर्लभ
जानकारी पहली बार पढ़ेंगे।
।।काहू सौ न बैर भाव।। 
यही अवधूत-अघोरियों की विचारधारा है।
अवधूत-अघोरियों साधना-उपासना
के विचित्र तरीको  के बारे में जानने
के लिए उनकी शरण में रहकर सेवा
रहना जरूरी है।
अवधूत-अघोरियों का मुख्य सिद्धि सूत्र है – प्राणायाम और शिव की कठोर भक्ति…
ये शिव को ही सब कुछ मानते हैं।
अपने मस्तिष्क को शिंवलिंग स्वरूप
मानकर निरन्तर अजपा-जाप में
तल्लीन रहते हैं। इस हठ योग के
सहारे मस्तिष्क की नाड़ियों को इतना
ऊर्जावान बना लेते हैं कि अपनी
इच्छा शक्ति द्वारा किसी भी तरह
का केवल सोचने से गरीब की अमीर
और दरिद्र को दौलतमंद बना सकते हैं।
अजपा-जाप से हर श्वांस पर ध्यान.
अवधूत-अघोरी साधु श्वांस-प्रश्वांस की
प्रक्रिया में दक्ष होते है। दरअसल यह
साँस लेने और छोड़ने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इससे अवधूत-अघोरी
यन्त्ररूपी शरीर के एक-एक अंग-तन्त्र
को वश में करके केमिकल चेंज
कर किसी भी वस्तु या पदार्थ के प्रति
अपना नजरिया सम कर लेते हैं।
कहने को, तो श्वांस-प्रश्वांस की यह
क्रिया देखने-समझने में, तो बहुत सरल
लगती है, किंतु यह अत्यंत जटिल है।
अवधूत-अघोरी की पहचान....
जो घोर या कट्टर न हो। किसी वस्तु को
ग्रहण करने में इन्हें कोई घृणा नहीं होती,
चाहें वो मल-मूत्र, गन्दगी हो।
अवधूत परमहंस कहलाते हैं और
अघोरी सन्त शिव की कठोर साधना के फलस्वरूप अपनी इंद्रियों में रसायनिक परिवर्तन कर लेते हैं।
श्वेताश्वतरोउपनिषद (३-५)
में लिखा है कि महादेव के पंचमहाभूतों के प्रतीक 5 मुखों से एक मुख्य अघोर है। इसलिए अवधूत-अघोरियों को भगवान
शिव का रूप बताया गया है।
अघोर का अर्थ मंगलमयी, सबका
कल्याण करने वाला कहा गया है।
शिवरहस्योपनिषद में वर्णित एक
संस्कृत श्लोक के मुताबिक ब्रह्माण्ड
में सम्पूर्ण चराचर जीव-जगत का
भला इसी अघोरमुख द्वारा किया
जाता है। इसी अघोर मुख को 
शिव कहा गया है यानि शिव और
अघोर दोनों का अर्थ एक ही है-
सबका भला, सबका कल्याण,
सबका ध्यान, सबको ज्ञान।
तेरा मङ्गल, मेरा मंगल सबका 
मङ्गल होए रे…यही भाव सब
सन्ताप एवं अभाव मिटा देता है।
अवधूत कहते हैं-
4 अंगुलिया, एक अंगूठा 
जग रूठा, सत्य नाम है शंकर।
बीज में वृक्ष, वृक्ष में बूटा 
सब झूठा सच नाम है शंकर।।
पांच मुख वाले महादेव का एक मुहं
अघोर भी होने से ब्रह्मा-विष्णु-महेश
ने शिव का अघोर मन्त्र-
ॐ अघोरेभ्योऽथघोरेभ्यो 
घोर घोर तरेभ्यः!
सर्वेभ्य: सर्व सर्वेभ्यो 
नमस्तेऽस्तु रुद्र रूपेभ्यः!!
नई पीढ़ी के लिए इस श्लोक का
अंग्रेजी में भी अर्थ लिखा जा रहा है-
मीनिंग/अर्थ:-
oṃ aghorebhyo’tha ghorebhyo ghora ghora tarebhyaḥ
sarvebhyas sarva sarvebhyo namaste’stu rudra rūpebhyaḥ
My salutations to those who are not terrible, to those who are terrible, and to those who are both terrible and not terrible.
Everywhere and always I bow
to all Rudra forms.
सृष्टि में आदिकाल से आज तक
डिवॉन ने अघोर मन्त्र का कठिन
तप-जाप करके देवतुल्य
पद प्राप्त किया वहीं दैत्यों ने
शक्ति, तन्त्र-मन्त्र की सिद्धियां पाई।
अघोर मन्त्र का प्रभाव…
रावण रचित मन्त्रमहोदधि ग्रन्थ
और गुरुगोरखनाथ जी ने अघोर मन्त्र
की बहुत ही चमत्कारी महिमा बताई है।
कहा गया है कि-
अघोर मन्त्र का जप करने से करा-धरा,
जादू, टोना-टोटका, मारण-उच्चाटन, 
ज्वर, संक्रमण, वायरस तथा बार-बार 
होने वाली बीमारियों से 
स्थाई रूप से राहत मिलती है।
शिव के सिवाय कछु और न सुहात है
अवधूत-अघोरी मन  सीमा के पार है,
तभी तो वह अवधूत-अघोरी है।
ये मन एवं तन पर इनका पूर्ण अंकुश
लगा लेते हैं।
अघोरी का अर्थ है अपने आप पर
परम संतुलन।
@ विचारों का विनाश।
@ शातिर्पन का सत्यानाश
@ अवधूत-अघोरी शिव की हठसाधना
के लिए जाने जाते हैं।
जिद्दी होते हैं- अघोरी...
भगवान शिव के बाद दैत्यगुरु
शुक्राचार्य, दशानन रावण,
गुरु दत्तात्रेय और राजा भृतहरि
को भी अघोरी सम्प्रदाय का
माना जाता है।
अघोरियों की एक साधना के तहत
रूप बदलने की महारत हासिल
कर सकते हैं। परकाया प्रवेश यानि
कहीं पर भी बैठकर किसी के भी
मन की थाह ले सकते हैं।
अजब-गजब अघोरी…
अघोरी का कोई रूप नहीं होता,
ये किसी रूप में, किसी भी स्थान
पर, घने वन, जंगल में मिल सकते हैं।
कभी-कभी अघोरी सदगुरू के आदेश
का पालन करने हेतु भिक्षाटन के
लिए भी निकलते हैं।
अवधूत-अघोरियों को उनकी वेशभूषा
से नहीं टटोलना चाहिए। ये शिव के
अघोर रूप की साधना से सिद्धियां
प्राप्त करते हैं।
अघोरी ज्यादातर बहुत जिद्दी होते हैं
और जब वे अघोर पथ से अवधूत होने
का मार्ग प्राप्त करने लगते हैं, तो
अत्यधिक सरल, सहज स्वभाव के
बन जाते हैं।
देश में इन अवधूत सन्तो की संख्या
अनगिनत है। दतिया पीताम्बर पीठ
के स्वामीजी अंत में अवधूत हो चुके थे।
रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विशुध्हनानाद,
लाहिड़ीजी महाराज, महावतार बाबा
बनारस क्रीं कुंड के महान अघोर साधक
सन्त कीनाराम जी,
परमसंत श्री विश्वनाथ यति जी,
रायगढ़ अघोर आश्रम के कलयुगी अघोरी भगवान राम आदि
अनेक अवधूत-अघोरियों के
चर्चे-चमत्कार अभी भी काशी-बनारस
में पुराने लोगों की जुबान पर रहते हैं।
अवधूत-अघोरी अपने रहस्य किसी को
भी नहीं बताते।
इन्हें शिव के सहस्त्र नाम यानि १००८
नामों से शिंवलिंग पर कुछ भी वस्तु अर्पित करने में बहुत आननद आता है। यदि
अघोरी के पास कुछ भी
चढ़ाने को नहीं होता, तो ये अघोरी
कंकड़-पत्थर ही 1000  अर्पित कर देते हैं।सरल होने पर शिव से मिलवा देते हैं।
अघोरियों को भगवान शिव के ध्यान
और प्राणायाम में बहुत आनंद आता है।
जीवन का नित्य-नया आयाम-प्राणायाम
सिद्ध अघोरी बताते हैं –
प्राणायाम के परिणामों से व्यक्ति को
 दुःख,-दुर्भाव,अभाव,कष्ट,
 भय-भ्रम,चिन्ता,
 रोग-विकार, गरीबी आदि
का ध्यान नहीं रहता।
प्राणायाम की इस आदिकालीन इस
परम्परा को प्राचीन ज्ञान, आधुनिक विज्ञान
और मनोविज्ञान भी मानता है।
प्राणायाम के प्रताप से
परमसत्ता परमात्मा को पाने वाले
परमहँस योगिराज भोले के भक्त
“श्री श्री सुन्दरदास जी” ने
महादेव की भक्ति में मद-मस्त
होकर कहा है कि-
काहू सौ न रोष-तोष,
काहू सौ न राग द्वेष।
काहू सौ न बैर भाव,
काहू की न घात है।।
काहू सौ न बकबाद,
काहू सौ न विषाद।
काहू सौ न सँग न,
तो कोई पक्षपात है।।
काहू सौ न दुष्ट वैन,
काहू सौ न लेंन-देंन।
‘शिव’ को विचार कछु,
और न सुहात है”।।
अर्थात
हे भोलेनाथ,हे सदाशिव
नित्य प्राणायाम से मेरे
मन-मस्तिष्क में दूसरे के प्रति
कोई दुःख-संताप, राग-द्वेष,बैर-भाव
और विश्वाशघात करने की
भावना पूर्णतः नष्ट हो गई है।
अब किसी से ज्यादा बातचीत
अथवा वाद-विवाद,
मुँह वाद करने का
मन नहीं होता।
मुझे एकांत व तेरा साथ ही
अच्छा लगता है। न किसी के संग
रहना, न किसी का पक्षपात करने की
इच्छा होती है।
मेरे लिए दुष्ट या भले लोग
सब बराबर हैं।
मुझे तेरे के अलावा कुछ भी,
किसी से लेना-देना नहीं है ।
हे महादेव,
तुम्हीं मेरे लिए सब कुछ हो।
मुझे तुम्हारे अलावा कुछ भी
नहीं सुहाता। कोई और मेरे
मन को नहीं भाता।
5 जुलाई 2020 को गुरुपूर्णिमा है
गुरु के महत्व समझने के लिए
गुरुगीता नामक ग्रन्थ का अध्ययन
अवश्य करें
अघोरियों की गुरु दीक्षा, गुरु मंत्र,
साधना स्थल, देश के अघोर आश्रम
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