त्वचारोगों के लक्षण, कारण, इलाज….

आयुर्वेद की असरदायक ओषधि, जो
चेहरे का रंग-जीने का ढंग बदल दे...
25 प्रकार के त्वचारोगों से निजात पाएं।
स्किन डिसीज त्वचा की वह अवस्था है,
जो परतदार, लाल त्वचा की पपड़ीदार
धब्बे के कारण होती है।
यह सफ़ेद तरह की पपड़ी से ढकी होती है।
ये धब्बा आमतौर पर तो आपकी कोहनी,
घुटने, खोपड़ी और पीठ के निचले हिस्से
पर दिखाई देते हैं, लेकिन आपके शरीर
पर कहीं भी दिखाई पड़ सकते हैं।
अधिकतर लोग केवल छोटे धब्बों से प्रभावित होते हैं।
त्वचा शरीर का सबसे बड़ा तंत्र है....
यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क में
होता है। इस वजह से हमारी स्किन सदैव
संक्रमित होती रहती है।
अमृतम द्वारा निर्मित
स्किन की माल्ट
को अपने भोजन
का अंग बनाकर खातें वक्त एक से
दो चम्मच 2 बार जरूर लेवें।
त्वचारोगों से सुरक्षा के लिए सुबह की
धूप में बैठकर स्किन की ऑयल पूरे
शरीर में लगाएं।
31 तरह की अंदरूनी या बाहरी 
स्किन डिसीज के लिए
स्किन की माल्ट और स्किन की माल्ट
यह अमृतम के बहुत विशेष उत्पाद हैं।
सफेद दाग, ल्युकोडर्मा यानि विटलिगो
आदि त्वचा विकारों को मिटाने वाली
खास आयुर्वेदिक दवा… दाद, खाज,
खुजली का बेहतरीन इलाज है।
त्वचारोग नाशक आयुर्वेदिक जड़ीबूटियां
आयुर्वेद की हजारों वर्ष
प्राचीन विश्वसनीय जड़ीबूटियों
जैसे-बाकुची, मजिंष्ठा, दारुहल्दी,
शुद्ध गंधक, नीम, करजं आदि हैं।
स्किन की ऑयल के फायदे...
अनेक असरकारी ओषधि द्रव्यों से निर्मित
स्किन की तेल SKin Key Oil
 एक प्रमाणित आयुर्वेदिक त्वचारोग
 नाशक तेल है। यह अनेक रक्तविकारों,
 को जड़ से मिटाता है।

स्किन की माल्ट 

■ स्किन की ऑयल 

तीनों दवाओं के उपयोग से
पित्त या शीत उभरना,
सूखी खुजली,
रांगो या गुप्तांग की खुजली,
सूखा एग्जिमा, खुजली के निशान,
दाग-धब्बे मिटाकर
यह त्वचा निखारता है।
यह सभी उम्र वालों के लिए गुणकारी है।
तत्काल लाभ के लिए स्किन की माल्ट
का 3 से 6 महीने तक लगातार सेवन करें।
यह शरीर के सभी रक्त दोषों को दूरकर
खून साफ करता है।
यह सब जीवन के लिए बहुत जरूरी है।
त्वचा के किसी भाग के असामान्य
अवस्था को हिंदी में  चर्मरोग और अंग्रेजी में डर्माटोसिस/dermatosis कहते हैं।
त्वचा शरीर का सबसे बड़ा तंत्र है। यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क में होता है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य तन्त्रों या अंगों के रोग जैसे बाबासीर आदि भी त्वचा के माध्यम से ही अभिव्यक्त होते हैं।
त्वचारोगों की जानकारी…
त्वचा शरीर का सबसे विस्तृत अंग है साथ
ही यह वह अंग है जो बाह्य जगत् के संपर्क (contact) में रहता है। यही कारण है कि
इसे अनेक वस्तुओं से हानि पहुँचती है।
इस नुकसान का प्रभाव शरीर के अंतरिक अवयवों पर नहीं पड़ता।
त्वचा के रोग विभिन्न प्रकार के होते हैं।
त्वचा सरलता से देखी जा सकती है।
इस कारण इसके रोग, चाहे चोट से हों
अथवा संक्रमण (infection) से हों,
रोगी का ध्यान अपनी ओर तुरंत
आकर्षित कर लेते हैं।
पैकिंग Skin key oil
100 ml ₹- 799/
स्किन की माल्ट
400 ग्राम ₹-1199/-
स्किन की ऑयल का फार्मूला
प्रत्येक 10 मिलीलीटर में…
Manjishtha 250 mg
Annatmool 150 mg
Bakchi    150 mg
Chameli 125 mg
Daruhaldi 125 mg
Khadira  125 mg
Chakramard 125 mg
Harad  100 mg
Baheda  70 mg
Amla    70 mg
Kali mirch  70 mg
Kapoor   70 mg
Suddha gandhak  50 mg
Neem  1 ml
Karanj 1 ml
Chalmogra oil 1 ml
Arand oil  5 ml
Narial oil  2 ml
Sugandhit drav etc
स्किन की माल्ट
में करौंदा मुरब्बा विशेष
कारगर ओषधि है। इसके अलावा
इसमें आंवला मुरब्बा, हरीतकी,
बाकुची चूर्ण, त्रिफला एक्सट्रेक्ट, बाकुची अर्क आदि का समिश्रण किया है, जो कब्जियत नहीं होने देता।
शरीर से पित्त को सन्तुलित कर
इम्युनिटी तेजी से बढ़ाता है।
स्किन की माल्ट  25-पच्चीस
चर्म रोगों का नाशक है…
【१】त्वचा की सड़न
【२】खाज-खुजली अर्थात स्कैबी
【३】सफेद दाग,
【४】त्वचा के संधिशोथ,
【५】अनेक तरह के चर्म रोग
【६】त्वचा का रूखापन
【७】त्वचाशोथ, खाज से सूजन
【८】घमौरी, चकत्ते
【९】दाद-ददोरे,
【१०】कुष्ट रोग
【११】फोड़ा-फुंसी
【१२】एड़ियों की बिवाई
【१३】छाजन
【१४】छाल रोग (सोरायसिस)
【१५】त्वचा का रंग बदलना।
【१६】छुआछूत रोग
【१७】वर्णहीन (albino)
【१८】सभी तरह की एलर्जी
【१९】ल्युकोडर्मा, विटलिगो
【२०】मौसम के दुष्प्रभाव से उत्पन्न
रक्तदोष या त्वचा रोग
【२१】बार-बार फोड़े-फुंसी होना
【२२】हाथ पैर की उँगलियाँ सूजन
【२३】कारबंकल (carbuncle) रोग
【२४】हरपीज़ लैबिऐलिस
 (herpes labialis) और
 【२५】प्रोजेनिटैलिस (progenitalis)
आदि त्वचारोगों को दूर करने में सक्षम है।
अमरीका में त्वचा रोग सम्बंधित
 ल्युकोडर्मा, विटलिगो,
 एवं पेशी कंकाली एवं
चर्म रोग राष्ट्रीय संस्थान के अनुसार
लगातार लिवर की कमजोरी, असंतुलित
त्रिदोष, अल्सर, गुस्सा शरीर पर बड़े-बड़े
ददोरे, दमा, त्वचा-रोग या पाचन से जुड़ी तकलीफों को बढ़ा सकता है, या फिर इन बीमारियों का कारण बन सकता है।
फाइब्रोमाइऎलजिया के मरीज़ों को
व्यायाम और त्वचारोग नाशक आयुर्वेदिक ओषधियों का सेवन भी करते रहें।
स्किन की माल्ट एवं स्किन की ऑयल
स्किन रक्षक  सबसे बड़ी दवा है।
त्वचा रोग या स्किन डिजीज के कारण
भारत देश में बदलते मौसम की वजह से
त्वचारोग बहुत होते हैं।
शरीर की पूर्ण सफाई न करने,
निरंतर नियम से स्नान न करने से
निर्धनता के कारण गंदा रहन सहन
बीमार पशुओं की त्वचा के स्पर्श से
लोग त्वचारोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
इन्हें छुआछूत रोग भी कह सकते हैं।
कुछ स्किन विकार एक दूसरे के छूने या
संसर्ग से लग जाते हैं।
जैसे कोरोना वायरस संक्रमण आदि।
 ऐसे रोगों में अधिकांश रूप से खाज (scabies), जूँ(pediculosis) और
 दाद (ringworm) इत्यादि कहलाते हैं।
 ठीक करने वालों का भ्रम…
 लोग यह सोचते हैं कि इन रोगों के
 जीवाणुओं को मारने के लिये तीव्र से
 तीव्र औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
 यह विचार निर्मूल एवं गलत है।
 ऐसा करने से त्वचा को बहुत हानि
 पहुँचती है। लोगों को इस बात का
 ज्ञान होना चाहिए कि वे सब रोग,
 जिनमें खुजली एक सामान्य उपसर्ग है,
 भिन्न भिन्न कारणों से होते हैं।
 अतः दाद, खाज-खुजली, एग्जिमा,
 मिटाने के लिये स्किन की माल्ट और
 स्किन की ऑयल दोनों आयुर्वेदिक दवाएँ
 बहुत लाभदायक है।
 त्वचारोग के पूरे निदान के लिये धैर्य से
 इलाज करने की आवश्यकता पड़ती है।
 स्किन की ऑयल को शरीर पर रात में
 लगाकर सोना चाहिए। यह तेल तीन बार
 लगाना कारगर सिद्ध होगा।
रक्तदोष भी वजह है-त्वचारोगों का…
 कुछ लोगों की त्वचा रूखी-सूखी
 किसी की तेलीय और मछली की त्वचा
 की भाँति होती है।
 कुछ मनुष्यों की यह जन्म भर ऐसी ही
 रहती है। ऐसे व्यक्ति साबुन का प्रयोग नहीं कर
 पाते। किसी तरह का साबुन सोड़ा लगाने
 से इन्हें एलर्जी होने लगती है।
  कुछ नर-नारियों की त्वचा, बाल और
  आँखों का स्वच्छ मंडल (cornea) श्वेत
  होता है। ऐसे व्यक्ति को सूरजमुखी, अथवा वर्णहीन (albino), कहते हैं।
ये वर्णहीन स्त्री-पुरुष को सूर्य की किरणें
अत्यंत हानिकारक होती हैं।
ये लोग धूप या घाम में ज्यादा देर तक
रुक नहीं पाते।
इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे
त्वचा रोगी को 6 से 10 महीने तक
स्किन की माल्ट एवं ऑयल का
उपयोग लाभकारी सिद्ध होगा।
मौसम का दुष्प्रभाव…
कुछ स्त्री-पुरुषों की स्किन अधिक भीगने
के कारण  पर त्वचा सिकुड़ने या छूटने
 लगती है।
ऐसे में त्वचा पर साबुन का बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार की त्वचा धोबी, घर में काम काज करनेवाले नौकर होटल के रसोइए तथा बरतन साफ करनेवाली महिलाओं की हो जाती है।
 हाथ पैर की त्वचा के साथ साथ उँगलियों
 और नाखून पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
त्वचा पर ठंड का भी बुरा प्रभाव पड़ता है, विशेषकर यदि ताप शून्य से नीचा हो।
अधिक शीत से त्वचा की कोमल (delicate) छोटी छोटी महीन रक्तवाहनी शिराएँ सिकुड़ने लगती हैं तथा त्वचा नीली पड़ जाती है, इन शिराओं में रक्त जम जाता है तथा अंग गलने
लग  जाता है। इस रोग को तुषाररोग (frost-bite) कहते हैं। इस का प्रभाव कान, नाक और हाथ पैर की उँगलियों पर पड़ता है।
इस तरह के त्वचा रोग की प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान उन  लोगों एवं सैनिकों के लिये अत्यंत आवश्यक है, जो पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं या सीमा की रक्षा करते हैं।
सर्दियों ज्यादा दुखदाई है त्वचारोग….
अधिक शीत के कारण कुछ लोगों के
हाथ पैर की उँगलियाँ सूज जाती हैं,
लाल पड़ जाती हैं और उनमें घाव भी हो जाते हैं। इस रोग से बचने के लिये पौष्टिक भोजन
के साथ स्किन की माल्ट नियमित
लेना चाहिए।
त्वचा पर रहने वाले जीवाणु/बैक्टिरिया…
चरम/त्वचा पर रहनेवाले जीवाणु अधिकतर अपने आप ही त्वचा के रोग का कारण हो
जाते हैं, जो फोड़े (boils), फुंसियों (furrunculosis) के रूप में प्रकट होता
है। इन सब चर्मरोग में विषाणु-जीवाणु
किसी छुपनेवाले स्थान, जैसे नाक,कान
बालों में छिपे रहते हैं।
यह कृमि-कीटाणु धीरे-धीरे देह में खून
 को गंदा करके त्वचारोगों के रूप में
 उभरने लगते हैं। इस स्थिति में अधिकांश
 रोगी कोई क्रीम या ट्यूब लगाजर बाहरी
 चिकित्सा कर कुछ समय के लिए
 निजात पा लेते हैं। परन्तु रक्त की
 स्वच्छता हेतु कोई ओषधि नहीं लेते।
 इस वजह से कुछ अंतराल के बाद
 अनेक असाध्य चर्म दोषों से त्वचा
 खराब हो जाती है।
 स्किन की माल्ट
 अंदर के गन्दे, दुष्ट-दूषित कीटाणुओं
 का सफाया करने में सहायक है।
 यह खून को कांच की तरह चमका
 देता है।
 डाइबिटीज का कारण भी है-चर्मरोग..
मधुमेह के जीवाणु अत्यधिक हानिकारक
होते हैं और कारबंकल (carbuncle) रोग
पैदा करते हैं, जिसकी चिकित्सा के लिए सुबह खाली पेट स्किन की कैप्सूल का सेवन करना चाहिए। ताकि जीवन को कोई हानि न हो।
इनके अतिरिक्त त्वचा के कुछ और रोग
भी हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म जीवाणुओं
द्वारा होते हैं। इनमें से एक रोग को गोखरू (wart or molluscum contagiosum) कहते हैं। यह छूत का रोग है।
इसी प्रकार का एक और रोग है, जिसे हरपीज़जॉस्टर (Herpeszoster) कहते हैं।
 इसको मकड़ी फलना
भी कहते हैं। इसमें शरीर पर जलन करने
वाले छाले पड़ जाते हैं और भयंकर दर्द होता हैं।
एक अन्य रोग हरपीज़ लैबिऐलिस
 (herpes labialis) और
 प्रोजेनिटैलिस (progenitalis) भी होता है। इनमें होंठ तथा शिश्न पर ज्वर आदि के बाद
छाले पड़ जाते हैं। अभी तक आयुर्वेद
के अलावा अन्य चिकित्सा पध्दति में
 इन चर्म रोगों के विषाणुओं (viruses)
 को नष्ट करने की कोई असरदार उपयुक्त
 औषधि ज्ञात नहीं हो सकी है।
 इस तरह की तकलीफों में भी
■  स्किन की माल्ट 
■  स्किन की ऑयल 
उपरोक्त तीनों ओषधियों का इस्तेमाल
बिना झिझक के तीन से 6 महीने तक
किया जा सकता है।
यह तीनो उत्पाद केवल ऑनलाइन ही मिलते हैं।
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