अवधूत-अघोरियों की गुरु परम्परा….

गुरु पूर्णिमा पर जाने अघोरियों की
खास 60 दुर्लभ बातें….
गुरुपूर्णिमा का मतलब है-गुरु-पूर्ण+मां!
अघोरी अपने गुरु को माँ के बराबर
मानकर सम्मान देते हैं।
माँ के महत्व को समझकर
ज्योतिष-पञ्चाङ्ग में पूर्णिमा तिथि
का निर्माण किया होगा।
कैसे बने पैसे वाला…
पूर्णिमा तिथि की रात्रि में माँ के मन्दिर
में 5 दीपक देशी घी के जलाने से
दरिद्रता-गरीबी दूर होकर धन-धान्य,
सम्पदा की वृद्धि होने लगती है।
शिवावतार प्रमे शिव उपासक
आदिशंकराचार्य जी ने अपने ग्रन्थ
सौन्दर्यलहरी में ऐसा वर्णन किया है।
माँ की महिमा को जानकर,
महाशक्ति होने के कारण जगत-जननी
आदिशक्ति महाकाली, महालक्षमी
को महादेव ने तीन लोक की मालकिन
बनाया होगा।
सदगुरू ही सत्य का सच्चा सहारा….
बृहदारण्यकोपनिषद् १/३/२८ में 
वर्णित संस्कृत श्लोक से जाने-
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्माअमृतम गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ 
अर्थात-
हे सदगुरू! हमें अंधकार से प्रकाश 
अर्थात असत्य से सत्य की तरफ ले चलो! 
हमें जन्म-मृत्यु के झंझट और कष्ट-क्लेश से 
मुक्ति दिलाकर ईश्वर की शरण में ले चलो!
“अमृतम पत्रिका” परिवार का भी यही
उदघोष है। 
 
अंधकार का हथियार गुरु..  
अज्ञान, अविद्या, अहंकार बहुत ताकतवर 
होते है, किन्तु ब्रम्हाविद्या उससे कई गुना 
शक्तिशाली है। गुरूकृपा से हमें भी ऐसी 
ब्रम्हविद्या सुलभ हो, जो हमारी अज्ञानता 
को नष्ट कर दें। हमारे मन-मस्तिष्क और
जीवन में ऐसा प्रकाश हो जाये कि सारा 
अंधकार दूर हो जाय। 
 
जाने अवधूत – अघोरियों की वे 60/साठ
जानकारियां, जो अभी तक लोग नहीं जानते….
【१】अघोरपंथ के प्रवर्त्तक-प्रणेता
स्वयं अघोरनाथ भगवान शिव माने जाते हैं।
【२】शिवपुराण, शिवोपनिषद आदि में कहा गया है कि भगवान शिव ने अपने 5 मुखों में एक को अघोरमुख कहकर स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था।
 【३】श्वेताश्वतरोपनिषद ३/५ केे अनुसार
रुद्र की मूर्ति को अघोरमुख, अघोरा
तथा मंगलमयी कहा गया है।
【४】 अघोर मुख यह शिवजी के पांच मुखों में से एक है।
【५】रुद्राष्टाध्यायी का अघोर मंत्र भी प्रसिद्ध है।
अवधूत-अघोरियों के लिए कहते हैं कि-वह परम
शिव भक्त होते हैं।
शिव ही साधे सब मिले, 
सब साधे सब जाएं।
【६】अघोरी अपने मन, मनोभाव भटकाने
वाली विचारधारा से तटस्थ रहना
पसंद नहीं करते हैं।
【७】अघोरी लोग भोलेनाथ की भक्ति में लीन
होकर खुद को भौतिक सन्सार और समाज से
एकदम अलग कर लेते हैं।
【८】अघोरी अक्सर गाते हैं-
भोले पर लगा दे, 
अबकी बार लगा दे।
हम हैं तेरी शरणा,
【९】खोजी ग्रन्थों के अनुसार
अघोरियों का इतिहास करीब
1000 वर्ष पुराना हैं।
【१०】अघोर शब्द की उत्पत्ति रहस्य….
अघोर पन्थ के मतानुसार अघोर शब्द
 मूलतः दो शब्दों ‘‘ और ‘घोर‘ से मिल
कर बना है जिसका अर्थ है, जो कि घोर न हो,
कट्टर न हो, जिद्दी, क्रोधी, गुस्सेल न हो! अर्थात
अघोर यानि सहज और सरल हो।
【११】प्रत्येक मानव जन्मजात शिशु रूप
में अघोर अर्थात सहज-सरल होता है।
【१२】हर बालक छोटी उम्र में शिव का
अघोर रूप होता है।
【१३】बच्चा जैसे-जैसे बड़ा और समझदार
होता जाता है, वैसे-वैसे वह अंतर करना सीख
जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां
और असहजताएं उसे घेरती जाती हैं।
घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति
यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता।
【१४】कहने का आशय यही है कि एक अबोध
बालक अघोरी स्वरूप ही होता है।
【१५】अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज
और मूल रूप में आ सकते हैं
और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही
मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
【१६】वाराणसी में क्रींकुण्ड अघोर सम्प्रदाय
का प्रमुख केंद्र है।
【१७】अघोरियों के तीर्थ, आश्रम..
बनारस, रायगढ़, राजनांदगांव, डभरा 36 गढ़,
उड़ीसा के कोरापुट, जयपुर के जंगल,
उड़िया में महानदी के विशाल पाट पर
स्थित हूमा या हुमा शिवालय और बिहार
के चंपारण, शिखरजी पर्वत के आसपास क्षेत्रों
 में अधोरियों की भरमार है।
【१८】अघोरियों का रूप सामान्य से काफी
 अलग होता है इसलिए बहुत से लोग उन्हें देखकर
भयभीत भी हो जाते हैं।
【१९】अघोरी अपनी योग-साधना और
शिवभक्ति से अवधूत परमहंस बन
जाते हैं।
【२०】शिव के त्रिशूल पर टिकी काशी
के अतिरिक्त गुजरात के जूनागढ़ का
गिरनार पर्वत भी अघोर सम्प्रदाय का
एक महत्वपूर्ण स्थान है।
【२१】गुजरात के जूनागढ़ को सन्यासी
साधुजन अवधूत भगवान दत्तात्रेय के
तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।
【२२】अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी
अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है।
【२३】अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव
का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय
के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव
इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी
ने अवतार लिया था।
【२४】अघोर पंथ के कुछ अनुयायी गुरु गोरखनाथ
द्वारा प्रवर्तित मानते हैं तथा
पहले से प्रचलित बतलाते हैं
【२५】अघोर पन्थ की तीन शाखाएँ हैं-
(१) औघर या औघड़
(२) सरभंगी तथा
(३) घुरे नामों से प्रसिद्ध हैं जिनमें
से पहली में कल्लूसिंह वा कालूराम हुए,
जो बाबा किनाराम के गुरु थे।
【२६】काशी-बनारस में अघोरियों की आदि
 तप:स्थली मानी जाती है।
【२७】उज्जैन के विक्रम घाट पर अक्सर
कुछ अघोरी साधना करते मिल जाते हैं।
【२८】उज्जैन के विक्रम घाट पर कुछ प्राचीन
 सिद्ध अघोरियों की समाधियां शिंवलिंग रूप में स्थापित हैं।
【२९】महाकाल मंदिर के पिछवाड़े में 4 अघोरियों की समाधि शिंवलिंग रूप में हैं,
【३०】रावण रचित शिव तांडव नृत्य यह विश्व
प्रसिद्ध है। यह  विनाश से संबंधित नृत्य माना जाता है।
क्योंकि शिव इस तांडव को अपने अघोर रौद्र रूप में करते हैं।
【३१】अवधूत-अघोरपंथ के प्रमुख प्रचारक मोतीनाथ हुए जिनके विषय में अभी तक अधिक पता नहीं चल सका है। 
【३२】अघोरियों का संबंध शैव मत के पाशुपत के
अतिरिक्त कालामुख संप्रदाय के साथ भी जोड़ते हैं।
【३३】अघोर दर्शन और मरघट साधना….
∆ अघोर साधनाएं मुख्यतः मुक्तिधाम, श्मशान घाटों
और निर्जन स्थानों पर की जाती है।
∆ शव साधना एक विशेष साधना प्रक्रिया
है, जो केवल गुरु के आदेश पर किसी
विशेष तिथि, दीपावली की रात्रि में अथवा
चंद्रग्रहण या सूर्य ग्रहण काल में की जाती है,
जिसके द्वारा स्वयं ही शिव मानकर
खुद के अस्तित्व का विभिन्न चरणों की
प्रतीकात्मक रूप में अनुभव करते हैं।
∆ अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता
अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान
होते हैं।
【३४】कुछ-कुछ अघोर संप्रदाय के साधक
समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं
【३५】सिद्ध अघोरी नरमुंड पात्र में भोजन
आदि ग्रहण करते हैं।
【३६】श्मशान साधना में मृतात्मा की चिता राख
या  भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन
पकाना इत्यादि अघोरियों के सामान्य कार्य हैं।
【३७】कुछ अघोरी शिव के भैरव रूप में साधना
करते हैं। वह मांस-मदिरा भी लेते हैं।
【३८】शिवजी के सरल साधक
शिव को उनके भैरव रूप में प्रसन्न कर उनसे शक्तियां
 प्राप्त करने के लिए अघोरी अलग-अलग तरह से
साधनाएं करते हैं।
【३९】अघोरी द्वारा की जाने वाली ये साधनाएं
भी सामान्य नहीं होतीं क्योंकि इन साधनाओं का
समय, स्थान और विधियां कुछ अलग होती हैं।
【४०】अघोरियों का निराला स्वरूप
अघोरियों से भयभीत होने का कारण केवल उनका
 स्वरूप ही नहीं बल्कि उनकी जीवनशैली ही कुछ
 ऐसी होती है, जो समाज में जिज्ञासा ओर
 डर-भय, दूरी भी पैदा करती है।
【४१】जलती हुई चिताएं....
श्मशान में जलती हुई चिता से या कब्रिस्तान में
 दफन शव को निकालकर उसे कच्चा या पकाकर
खाना तांत्रिक अघोरपंथ साधना की एक शाखा है।
【४२】शमशान में तंत्र क्रिया करने वाले इन
साधुओं को तांत्रिक अघोरी बाबा कहते हैं।
 【४३】घोर अघोरी भैरव की साधना तब करते हैं,
जब पूरी दुनिया सो चुकी होती है।
【४४】श्मशान में तांत्रिक पूजा…
बनारस में हरिश्चंद घाट पर स्थित
श्मशानेश्वर शिवालय पर अनेक अघोरियों
का साधना स्थल है।
【४५】मप्र के श्योपुर जिले के अंतर्गत केनाल के
किनारे ढोंढर-रघुनाथपुर से आगे
पचनदा यानि 5 नदियों के संगम पर रामेश्वरम
शिवालय तीर्थ, जो कि घनघोर जंगल में बसा है।
 यहां हमेशा तांत्रिक अघोरी मिल जाते हैं।
विशेष तीज-त्योहारों पर ये शव-साधना से
श्मशान सिद्धि करते हैं। रामेश्वरम का यह
तीर्थ दिन में भी बहुत डरावना लगता है।
【४६】तन्त्र के ज्ञाता अघोरी रात के अंधेरे में
श्मशान के भीतर बैठकर कंकालों और जलती
हुई चिताओं के सामने अघोरी साधना कर अपने
आराध्य को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
【४६】बाबा कीनाराम के समय अघोर अनुयायियों
में सभी जाति के लोग तथा  मुसलमान भी थे।
【४७】सन्सार में अघोर भक्तों, अनुयायियों की 
संख्या बेशुमार बताई जाती है।
【४८】विलियम क्रुक ने अपनी पुस्तक दि अघोरा में  अघोरपंथ के सर्वप्रथम प्रचलित होने का स्थान राजपुताने के आबू पर्वत को बतलाया है।  
【४९】अघोरियों के अनेक स्थान जैसे-बिहार, उड़ीसा, मेघालय, उत्तरांचल, असम नेपाल, गुजरात एवं समरकंद
आदि घने वन में हैं।
【५०】अघोरी अपनी कठोर हठी शिवसाधना
द्वारा भाव-विभाव, भेदभाव एवं घृणा को खत्म कर लेते हैं।
【५१】अपने को ‘अघोरी’ और औघड़’ 
बतलाने वाले साधु अधिकांशत: शवसाधना करना, 
मुर्दे का मांस खाना, उसकी खोपड़ी में मदिरा पान 
करना तथा घिनौनी वस्तुओं का व्यवहार करना आदि 
में संग्लन देखे जा सकते हैं। 
 【५२】घोर अघोरियों का संबंध गुरु दत्तात्रेय के साथ भी जोड़कर उन्हें कापालिक भी कहा जाता है।
 【५३】कपालिक परम्परा में मानव खोपड़ी के खप्पर में  मदिरा आदि सेवन किया जाता है
【५४】कुछ कपालिक हमेशा अपने पास मदकलश रखकर साधनारत रहते हैं।
【५५】अघोरी कुछ बातों में उन बेकनफटे जोगी 
औघड़ों से भी मिलते-जुलते हैं,  जो गुरु मछन्दरनाथ 
नाथपंथ के प्रारंभिक साधकों में गिने जाते हैं। हालांकि
अघोर पंथ के साथ इनका कोई भी संबंध नहीं है।
【५६】अघोरियों में निर्वाणी और गृहस्थ दोनों ही होते हैं।
【५७】अघोरी की वेशभूषा में भी सादे अथवा रंगीन कपड़े होने का कोई कड़ा नियम नहीं है।
【५८】अघोरियों के सिर पर जटा, गले में स्फटिक
 की माला तथा कमर में घाँघरा और हाथ में त्रिशूल रहता है जिससे दर्शकों को भय लगता है।
【५९】आजकलअघोर पन्थ की ‘घुरे’ नाम की
शाखा के प्रचार क्षेत्र का पता नहीं चलता किंतु
 ‘सरभंगी’ शाखा का अस्तित्व विशेषकर चंपारन
जिले में दीखता है जहाँ पर भिनकराम, टेकमनराम,
भीखनराम, सदानंद बाबा एवं बालखंड बाबा जैसे
 अनेक अघोरी आचार्य हो चुके हैं।
 
【६०】कई अघोरियों की रचनाएँ प्रचुर मात्रा 
में उपलब्ध हैं, लेकिन आम आदमी इनसे अपरिचित है। 
 
अघोरी साधुओं के बारे में अभी कुछ बताना बाकी है। 
आश्चर्यजनक जानकारी के लिए 
 
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