ईश्वर, अल्लाह, GOD की शरण में रहने के लिए आचरण और पर्यावरण की शुद्धि-पवित्रता जरूरी है।….

 ★★★★★★

मनुष्य का हर चरण पर्यावरण बचाने 

उठे, ऐसी भावना सभी में जागृत हो..

05 जून “पर्यावरण दिवस”
की अन्तर्मन से शुभकामनाएं —

!!हर पल आपके साथ हैं हम!!

दुनिया के लोग और सरकारें

विषैले रसायनों, केमिकल युक्त

खाद से हरियाली लाने को ही

हरित क्रान्ति मान बैठे हैं।
हम खेतों में कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण अर्थात
पेस्टीसाइड न डाले अन्यथा एक दिन प्रकृति को दिल का दौरा पड़ जाएगा।

समाधान-इलाज, प्रयास करें...
हमारी नकारात्मक सोच, द्वेष-दुर्भावना,
किसी की बुराई, गन्दे विचारों से भी
पर्यावरण दूषित होता है। अतः अच्छा
सकरात्मक सोचे। सबका भला करें।
हम भोजन में वही उपयोग करें, जो हमारे आसपास उपलब्ध हो, उगता हो।
रिक्त भूमि में गिलोय, शतावरी, मधुमालिनी की बेल और मेढों पर पेड़ों को लगाएं।
गिलोय की बेल बरसात के दिनों में
वृक्षों का श्रृंगार करती है। हरे-भरे वृक्ष जिंदगी हरी-भरी कर देते हैं।

श्री हरि, हर हर महादेव हों या महाकाली ये हरियाली में ही निवास करते हैं।

युवाओं से विनम्र आग्रह-
पेड़-पौधे धरा का आभूषण है।
ये धरती के वस्त्र हैं और सम्पूर्ण
जीव-जगत के लिए स्वस्थ्य रहने की
ढाल है। वृक्ष पर्यावरण तथा मौसम को
हमारे लिए जीने का जरिया बनाते हैं।
इसलिए युवा वर्ग भी ब्रा पर कम वृक्ष पर
ज्यादा ध्यान दे

प्रेमपत्र की जगह बेलपत्र का उपयोग जीवन की दिशा-दशा बदल सकता है।
खाली जमीन में पेड़ लगाएं, जो
भविष्य में वृक्षरोपण रोजगार का बहुत बड़ा हब या साधन बन सकता है। 

आयुर्वेदिक ओषधियाँ भी तन-मन, अन्तर्मन
और अन्तरात्मा की रक्षक हैं। अतः पर्यावरण
सृष्टि का आवरण और आकर्षण है। हमें हेल्दी, बने रहने तथा इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हर हाल में पर्यावरण को सुगन्धित रखना चाहिए।
अमृतम परिवार भी आयुर्वेद की आधुनिक
चिकित्सा पध्दति के साथ आपके संग प्रयासरत है।

प्रकृति-पर्यावरण को पवित्र-पावन-पुनीत बनाये रखने वाले प्राचीन सन्दर्भ ग्रन्थ….
¥ यजुर्वेद २३/५२
¥ यजुर्वेद ३६/१७
¥ यजुर्वेद ३१/४
¥ ऋग्वेद १०/९०/६
¥ ऋग्वेद १०/११
¥ अथर्ववेद १/३३
¥ मत्स्य पुराण १८७/४३
¥ भविष्य पुराण खण्ड-२
¥ स्कन्ध पुराण भाग-६
¥ शतपथ ब्राह्मण ५-३/५-१७
¥ श्रीमद्भागवद्गीता ३/११/१४
¥ बृहदारण्यकोपनिषद ६/४/१
¥ वनस्पतिम् शमितारम्, यजुर्वेद २८/१०
¥ स्वामी विशुध्दानन्दजी परमहँस

¥ महर्षि रमण

¥ हरमिन्दर सिंह बेदी

पर्यावरण का शाब्दिक और सात्विक अर्थ....भी समझें

मनुष्यों, जीवधारियों और वनस्पतियों के
चारों तरफ तथा धरती पर उपलब्ध भूमि, जल, वायु, पेड़ पौधे एवं जीव जन्तुओ का समूह जो हमारे चारो जो आवरण है-वह पर्यावरण कहा जाता है। यह जैविक और अजैविक अवयवों का समिश्रण है।

अंग्रेजी में एनवायरनमेंट (Environment) शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच के environ से हुई बताते हैं।

पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है-
पर्य+आवरण’। पर्य का अर्थ है-
चारों दिशाओं में  तथा ‘आवरण’ का अर्थ है
वह वस्तु जिससे किसी वस्तु आदि को आच्छादित किया जाए या ढंका हुआ अर्थात्‌ किसी भी वस्तु या प्राणी को जो भी वस्तु चारों ओर से ढंके हुए है वह उसका पर्यावरण कहलाता है।
अरण्य’ का अर्थ है-
वन, जंगल,  हराभरा एकांत स्थान।
पुराने समय के प्रकृति प्रेमी पर्यावरणविदों
महर्षियों ने अरण्य को रण से मुक्त या शान्ति
क्षेत्र घोषित किया होगा, जिससे पेड़-पौधे, ओषधि, वनस्पतियों को युद्ध की विभीषिका से नष्ट होने से बचाया जा सके।
अवध भाषा में राधेश्याम कथावाचक द्वारा आठ काण्ड तथा २५ भागों में
रचित राधेश्याम रामायण के अनुसार
रावण परिवार के असुर खर एवं दूषण
ने प्रदूषण बचाने के लिए महान प्रयास
किया था।

जब परमसत्ता भी प्रदूषण से प्रताड़ित हुई…तो हुुुआ महासागर मंथन

शास्त्रों में समुद्र मन्थन की प्रक्रिया होने का
कारण भी प्रदूषण बताया है।
वैदिक काल में
देवताओं और दैत्यों द्वारा प्रकृति का निर्दयतापूर्वक दोहन किया, तब पूरी सृष्टि
दुषित, विषैली होने लगी, तो पर्यावरण के प्रदूषित होने की समस्या उपस्थित हुई,
तब सदाशिव के निर्देश पर महाअसुर राहु
ने समुद्र मन्थन की रूपरेखा तैयार की।

मन्थन के फलस्वरूप 14 रत्नों में सर्वप्रथम हलाहल विष प्राप्त हुआ था।

पर्यावरण तपस्वियों का तप
सूर्य उपासक परमहंस स्वामी विशुध्दानन्दजी
ने अपने ध्यान योग से खोजकर विश्व के  वैज्ञानिकों को बताया था कि समुद्र से निकला विष जहरीली फास्जीन गैस थी। ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए भगवान शिव ने प्रदूषण रूपी हलाहल पी लिया था अन्यथा सन्सार का सर्वनाश निश्चित था। सम्भवत: यह भी हो सकता है कि महादेव ने प्रथ्वी को प्रदूषित करने वाले स्त्रोतों को नष्ट कर पर्यावरण बचाया होगा।
पर्यावरण के  7 प्रकार....
【1】क्षोभमण्डल
【2】समतापमण्डल
【3】मानव निर्मित पर्यावरण …
【4】सामाजिक पर्यावरण …
【5】स्थलमण्डल
【6】जलमण्डल
【7】वायुमण्डल
इसकी चर्चा अगले किसी लेख में
विस्तार से करेंगे।

महर्षियों का पर्यावरण शान्ति का प्रयास....
वेद की एक ऋचा में पर्यावरण की रक्षा एवं सन्सार में कल्याण के लिए सर्वत्र शान्ति की
ईश्वर से प्रार्थना की गई है।
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी
शान्ति राप: शान्ति रौषधय: शान्ति।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शान्तिर्ब्रह्मं
शान्ति: सर्वशान्तिदेव शान्ति: सामा

शान्तिरेधि। (यजुर्वेद शान्ति:पाठ:)
अर्थात-
सृष्टि में सब कुछ शांत रहे। सब और फैली
अशान्ति शांत हो। हमारे प्राचीन वैदिक
वैज्ञानिक यानि मुनि-महर्षि जानते थे कि पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि,
अन्तरिक्ष तथा वायु इन से ही मानव शरीर
निर्मित है। प्रकृति को हर-भरा और पर्यावरण
की रक्षा करके ही इन पंचमहाभूतों का आनंद
लिया जा सकता है।
भारतीय दृष्टि आदिकाल से सम्पूर्ण चराचर
जगत के प्राणियों एवं वनस्पतियों के कल्याण
की अभिलाषा रखती आई है।
यद्पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे’ सूक्ति भी पुरुष तथा प्रकृति के मध्य अन्योन्याश्रय सम्बन्ध की वैदिक-विज्ञानपुष्ट अवधारणा को बताती है।

पंचस्वन्तु पुरुष आविवेशतान्यन्त:
पुरुषे अर्पितानि!

हमारे त्रिकलद्रष्टा प्राचीन पर्यावरणविदों
को इस बात तथा तथ्य-सत्य का ज्ञान-भान
कि यदि इन पंचतत्वों में से एक भी महाभूत प्रदूषित हो गया, तो उसका जहरीला दुष्प्रभाव ब्रह्माण्ड को बर्बाद, नष्ट कर देगा।

प्रकृति का सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान शान्तिपाठ
करने का आव्हान किया है। ताकि प्रकृति के समस्त तत्व जल-अग्नि-भूमि-आकाशादि, ओषधि, वनस्पति इत्यादि अंग में  साम्यावस्था बनी रहे।

बाबा विश्वनाथ द्वारा बरसात की व्यवस्था
वेदों में यज्ञ का अर्थ ‘प्राकृतिक चक्र को
सन्तुलित करने की प्रक्रिया’ कहा गया है।
विश्व के पर्यावरण वैज्ञानिकों ने भी माना है
कि- यज्ञ के द्वारा ही वातावरण में ऑक्सीजन तथा कॉर्बन डाइ ऑक्साइड का सही सन्तुलन स्थापित करना सम्भव है।
अथर्ववेद में कहा गया है कि यज्ञ की
अग्नि से धुंआ यानी धूम उत्पन्न
होता है, धूम से बादल बनते हैं और
बादलों से वर्षा होती है।
अनेकों बार जब वर्षा न होने के कारण
भूमि पर जल का अभाव होता है, तो
यज्ञादि करने से भयंकर बरसात होने
लगती है।
आजमाया गया फार्मूला..
जून 2009 में भारतीय वैज्ञानिकों ने
उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के कुछ खेतों में वैदिक ऋचाओं के समवेत गायन की ऋचाएं गाने-बजाने, सुनने से खेतों में पैदावार दो से
तीन गुना तक की अधिक वृद्धि हुई थी।

परिवारों में मां-दादियां इसी भाव से तुलसी की पत्तियां तोड़ती हैं। वेद में एक ऐसी ही प्रार्थना की गई है –
यत्ते भूमे विखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु।
मां ते मर्म विमृग्वरी या ते हृदयमर्पितम्‌॥

भावार्थ-
हे भूमि माता! मैं भूलवश कभी तुम्हें
परेशानी पहुंचाता हूं, शीघ्र ही उसकी क्षतिपूर्ति हो जावे। हम यह भी स्मरण रखें कि अत्यधिक गहराई तक स्वर्ण-कोयला, मिट्टी आदि खोदने में सावधानी रखकर क्षमा मांगते रहें।  व्यर्थ खोदकर उसकी शक्ति को नष्ट न करें

संस्कृत का एक श्लोक के अनुसार

{} दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है ।

{} दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब है,
{} दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है,
{} दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है!
अतः वृक्षों को वन-जंगल, नदी-तालाब किनारे, शहर-ग्रामों, घर-भवन में और खेत-खलियान की मेढ़ पर पेड़ लगाएं।

वृक्षों में जीवन है। हम वृक्षों को बचाए
रखेंगे, तो ही हम भविष्य में जीवित
रह पायेंगे।

एक विनम्र निवेदन
कृपया पेड़ों  की पुत्र जैसी देखभाल करें।
पेड़ हमें अधेड़ बनाने से बचाते हैं।
पेड़ों के गुच्छे बेलों की झालर डॉलर से
कम नहीं होती हैं।

!!तमः प्राया:अव्यक्तचैतन्या:!!
मतलब है, वृक्षों को अव्यक्त
चेतना शक्ति होती है ।
!!वृक्ष अन्तः स्पर्शा:!!
अर्थात- इन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है ।
इसप्रकार जिन पुराने वक्त के वृद्ध वृक्ष वैज्ञानिको, ऋषियों ने पर्यावरण की रक्षा हेतु
आदमी को आमंत्रण दिया, उनके नाम जाने…

【1】गुणरत्न,
【2】कणाद,
【3】उदयनाचार्य
आदि वृक्षाचार्यों ने वृक्षों में जीवन है
यह खोज कर दुनिया को चोंका
दिया कि पेड़ भी प्राणी की तरह प्रकृति के
हर भाव-प्रभाव, स्वभाव को समझते हैं ।
वृक्ष बस बोल नहीं पाते
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है!
■ लाजवंती
इसे छूने, स्पर्श करने से ही यह पत्र-डाली
सहित सिकुड़ जाती है ।
अमृतम आयुर्वेदिक निघण्टु
नामक ग्रन्थ में, तो इतना तक लिखा है कि
रजः स्वला स्त्री पेड़, पौधों को छूले, तो वे
सूख जाते हैं।
■ अशोक व बकुल वृक्ष 
पर नवयुवती के स्पर्श करने, छूने से
इसमें पुष्प पल्लवित हो, प्रकट हो जाते हैं ।
■ कुष्मांड इसी से पेठा बनता है ,
इसे उंगली दिखाने पर तुरन्त मुरझा
जाता है। फिर, हम जो आयुर्वेदिक
दवाएँ इस्तेमाल कर रहे हैं, ये सब
प्रकृति और पर्यावरण की कृपा है।

रोगों का काम खत्म….
अमृतम हर्बल दवाएँ जैसे-
● कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा (हेम्पयुक्त)
● कुन्तल शेम्पो, ● हेयर ऑयल,
● कुन्तल माल्ट आदि कुन्तल कॉम्बो
(बालों का झड़ना-टूटना 3 दिन में रोकता है)
● अमृतम फेस क्लीनअप
● अमृतम कुमकुमादि फेस ऑयल
● अमृतम फेस उबटन
एवं दिमाग की शान्ति तथा घबराहट,

बैचेनी मिटाकर,याददास्त बढ़ाने हेतु-
● ब्रैन की गोल्ड माल्ट & टेबलेट 

अत्यन्त लाभदायक है।
● ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट &केप्सूल

(88 तरह के वातरोगों का नाशक)
● बी फेराल गोल्ड माल्ट & केप्सूल
(केवल पूरुषों के लिए उपयोगी)
आदि 90 प्रकार अत्यंत उपयोगी
ओषधियाँ हैं, ये सब प्राकृतिक वृक्षों
की ही देंन हैं।

■ शिवलिंग स्वरूप वृक्ष में श्रीहरिहर का निवास करते है।
■ हर-हर-हर महादेव का जयकारा
प्रथ्वी को हरा-भरा बनाये रखता है।

■ वृक्ष अल्लाहताला की सौगात है।
■ पारदियों व फारसियों का प्रेम है।
■ ईसाइयों की जान है।
■ जीव-जंतुओं का जीवन है।
■ वृक्ष बच्चों का बचपन है।
■ पेड़ पशुओं के लिए परमात्मा है।
■ वृक्ष विश्व-ब्रह्मांड की आत्मा हैं।

आचार्य चतुरसेन के अनुसार
वृक्ष का ज्ञान रखने वाले लोग
हर काम में दक्ष होते हैं।

देवरहा बाबा” ने एक बार कहा था कि —
वृक्षों ने हमें निरोगी बना दिया।

स्कन्द पुराण” में एक अद्भुत श्लोक है
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान् ।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

इस श्लोक का अर्थ है-
अश्वत्थः अर्थात-पीपल
पिचुमन्दः अर्थात-नीम
न्यग्रोधः अर्थात-वट वृक्ष
चिञ्चिणी: इमली को कहते हैं।
कपित्थः का मतलब Wood apple है।
बिल्वः का बेल होता है।
आमलकः अर्थात आंवला
आम्रः अर्थात आम
उप्ति का अर्थ है-पेड़/पौधे लगाना
धर्मग्रंथों के अनुसार
जो भी इन सारे वृक्षों का वृक्षारोपण
करता है उसे जीवन में कभी दुःख-दुर्भाग्य
नहीं देखने पड़ता। वह व्यक्ति नरक रहित
स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है।

सेहत और शरीर बिगाड़ देगा-बिगड़ता
पर्यावरण और हवा में बढ़ता पॉल्युशन.

प्रदूषण के शोषण से बचने हेतु
शुद्ध आयुर्वेदिक ओषधि का सेवन करें!
यह वात-पित्त-कफ को सन्तुलित कर
बीमारियों को विषमे बनाने से रोकती हैं।

संक्रमण का रक्षक अमृतम च्यवनप्राश का नियमित सेवन करें, जो आपकी इम्युनिटी को कमजोर होने से बचाएगा।

50 से अधिक देश की देशी जड़ीबूटियों
के काढ़े, आँवला, स्वर्णमाक्षिक भस्म, प्रवाल-मोती से बना अमृतम च्यवनप्राश
से होंगे 11 फायदे.
..
[!] यह आयुर्वेद की सबसे प्राचीन कारगर उम्र रोधी यानि एंटीएजिंग मेडिसिन है।
[!!] तन के अंदर या बाहर सभी तरह प्रदूषण से होने वाले संक्रमण से रक्षा करता है।
[!!!] दुषित वातावरण में हर तरह के संक्रमण से रक्षा करता है।
[!v] देह में अंदरूनी इम्युनिटी पॉवर बढ़ाता है।
[v] शरीर को ढुलमुल या कमजोर नहीं होने देता।
[v!] फेफड़ों को शुद्धकर गले को राहत देता है।
[v!!] फेफड़ों को एलर्जी आदि से रक्षा करे।
[v!!!] पॉल्युशन, प्रदूषण, एलर्जी, संक्रमण, दमा, खांसी, निमोनिया की यह निरापद आयुर्वेदिक मेडिसिन है।
[!×] किसी तरह के वायरस के दुष्प्रभाव
से शरीर का रक्षक है।
[×] अमृतम च्यवनप्राश संक्रमित सन्सार में फैल रहे प्रदूषित वातावरण के लिए एक सुरक्षित हर्बल मेडिसिन है।
[×!] खोखले तन और बेजान में जान डाल देता है अमृतम च्यवनप्राश
ONLY ऑनलाइन उपलब्ध
400 ग्राम ₹-1849/-
www.amrutam.co.in

च्यवनप्राश त्रिदोषनाशक होता है।

यह शरीर के सिस्टम को पूरी तरह

ठीक कर “रोगप्रतिरोधक क्षमता”

में वृद्धि करता है। बशर्ते इसे कम

से कम 3 माह तक सेवन करें।

https://amrutampatrika.com/rogokaraita/

पर्यावरण की रक्षा-चिन्ता करो!
समय रहते चैत जाओ-
अन्यथा चिता जल जायेगी 
…..

वर्तमान में प्रदूषण के दुष्प्रभाव
की वजह से प्रलय वाली स्थिति बन
रही है, जिससे परम् पिता भी रक्षा
नहीं कर पायेगा।
अब भयंकर खतरनाक संक्रमण
(वायरस) के आक्रमण से बचने हेतु,
युद्ध जैसी तैयारी की जरूरत है।
आने वाला समय इस जीव-जगत के लिए भयावह साबित हो सकते हैं।

दुनिया पर बढ़ते प्रदूषण और
प्राकृतिक आपदाओं व पशु-पक्षियों के
कारण अनेक संक्रमण (वायरस) तथा असंख्य अनजान महामारी का खतरा मँडरा रहा है।

चिकित्सा शास्त्री व वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन से पता लगाया है कि आने वाले 7 या 8 वर्ष सम्पूर्ण सन्सार के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं।

करीब 10 से 12 करोड़ से भी अधिक लोग अनजान महामारी, वायरस की चपेट में आकर मौत के मुँह में समा जाएंगे।
ये महामारी बेक्टेरिया, संक्रमण,
प्रदूषित खानपान या वायरस के द्वारा तेजी
से इंसान को अपना शिकार बना सकतेे है।

महत्वपूर्ण मीडिया माध्यम के मुताबिक
माइक्रोसॉफ्ट के सहसंस्थापक एवं
अध्यक्ष “बिल गेट्स“ ने पूरी दुनिया के
सोते लोगों को चेताया है कि-ऐसा वायरस, संक्रमण से उत्पन्न बीमारी-महामारी आज
तक देखी या सुनी नहीं होगी।

पर्यावरण वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि-
प्रदूषण से उत्पन्न इस ख़ौफ़नाक
महामारी से बचने के लिए युद्ध
जैसी तैयारी करनी चाहिये।
बिल गेट्स द्वारा स्थापित
बिल & मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन
संक्रमित, संक्रमण से पैदा होने वाले
रोगों तथा महामारी फैलाने वाली कई
बीमारियों पर अध्ययन कर रहा है,
ताकि विश्व को रोग रहित रखा जा सके।

कैसे फैलेगा वायरस–
विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों के बताये अनुसार
बढ़ते वायु प्रदूषण, दुषित वातावरण,
गलत खानपान, गन्दगी से जन्में मच्छर, चमगादड़ या फिर अतिसूक्ष्म कृमियों,
विषाणुओं-कीटाणुओं तथा कीड़ों के कारण इन्सानों में नित्य नई-नई बीमारियां आने वाले समय में फैलेंगी।आगामी भविष्य भयंकर भय व व्याधियों से घिरा होगा।

अल्लाह जाने क्या होगा आगे….
शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता
अर्थात रेजिस्टेंस पावर या इम्युनिटी
पॉवर की कमी से, कह नहीं सकते-
कब कौन, किस क्षण- काल के गाल
में समा जाएगा। लोगों की चाल, ढाल,
गाल, खाल सब सब विकराल विष रोग
से घिर जाएगी। तब बस एक ही मार्ग
बचेगा-महाकाल की शरण।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ)
ने संक्रमण या वायरस के जरिये पनपने वाली अनेकों खतरनाक बीमारियों की सूची बनाई है, जो सम्पूर्ण जीव-जगत एवं इंसानों के तन-मन एवं मूत्र मार्ग के लिये घातक हो सकती है। जिससे बचने का एक मात्र इलाज है –
प्राकृतिक उपाय। पर्यावरण की सुरक्षा।

कब, क्या खाने और किस-किस से बचें…
इम्युनिटी बढ़ाने के लिए-करें ये 30 उपाय

【१】प्रातःकाल सूर्योदय के समय
बिस्तर त्यागने की आदत डालें।
【२】सुबह उठते ही खाली पेट
कम से कम आधा से 1 लीटर सादा
पानी आराम से जरूर पियें।
【३】प्रतिदिन नहाने से पहले अभ्यंग
अवश्य करें। रोज अमॄतम “काया की तेल
की मालिश कर स्न्नान से नाड़ियाँ शिथिल
नहीं होती। हमेशा फुर्ती बनी रहती है।
【४】बिना स्नान के बिस्कुट आदि
अन्न ग्रहण न करें।
【५】गरिष्ठ व प्रदूषित खानपान से बचें!
【६】अधिक मधपान न करें !

【७】किचन में किच-किच (क्लेश)
और कीच यानि गन्दगी न करें।
【८】भोजन बनाते समय पंचतत्व
की शक्ति से परिपूर्ण पंचाक्षर
मन्त्र !!ॐ नमःशिवाय!! गुनगुनाते हुए
धीरे-धीरे मंदी आंच पर पकाएं।
【९】 आयुर्वेद की मृदा चिकित्सा
के मुताबिक भोजन यदि मिट्टी के पात्र
में बनायें। इससे उदर रोग, पेट की
परेशानी, गैस, वायु-विकार नहीं होते।
【१०】 सुबह नाश्ते या खाने में मीठा
दही या लस्सी लेना शक्तिवर्द्धक होता है।
लेकिन रात्रि में दही लेने से बचें।
【११】आयुर्वेदिक ‘स्वास्थ्य विशेषांक’
के अनुसार-कभी नमकयुक्त दही न लेवें।
यह रक्त दोष या खून की खराबी
उत्पन्न करता है।
【१२】नमकीन दही कभी लेना हो,
तो मठा बनाकर लेवें।
दही का चार गुना पानी में नमक,
भूंजा जीरा, अजवायन आदि मिलाकर
मट्ठा, छाछ पियें।
【१३】भोजन को अन्न देवता मानकर
माँ अन्नपूर्णा का ध्यान कर,बहुत ही
आराम से बैठकर धीरे-धीरे ग्रहण करें।
【१४】खाना हमेशा बहुत चबा-चबाकर
ऐसे खाएं, जैसे पी रहे हों।
【१५】भोजन के 2 घण्टे बाद पानी
पीने से पाचनतंत्र मजबूत रहता है।
【१६】पानी हमेशा बैठकर ही पियें,
जिससे जोड़ों में दर्द नहीं होगा।
जल कभी जल्दबाजी में नहीं पियें।
【१७】जल को सदैव बड़ी तसल्ली से एक-एक घूंट करके ग्रहण करें। जैसे खा रहे हों।

【१८】दिन में न सोएं।

【१९】रात को समय पर सोने की आदत डाले! मनुष्य को किस तरीके से सोना चाहिए! आयुर्वेद शास्त्रों में निद्रा की मुद्राऐ भी बताई गई हैं! यथा –
उल्टा सोये भोगी, सीधा सोये योगी,
दांऐं सोये रोगी, बाऐं सोये निरोगी।

【२०】रात को भोजन के बाद टहलते हुए गहरी सांस लेवे। सोते समय एक गिलास गुन-गुना पानी पियें, लेकिन सुबह उठते ही सादा पानी पियें। फिर, दिन भर सादा या गर्म पानी ले सकते हैं। सुबह गर्म पानी पीने से होता है नुकसान

 क्यों पीना चाहिए सुबह सादा जल-
आयुर्वेद के अनेक ग्रंथो में जल
चिकित्सा का वर्णन आया है।
औषधि शास्त्ररस रत्नाकरशरीर शास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, रसेन्द्र मंगल,
कक्षपुटतंत्र एवं आरोग्य मंजरी आदि
आयुर्वेदिक पुस्तकों में उल्लेख है कि-
सुबह जब व्यक्ति सोकर उठता है, तो
उसकी जठराग्नि अर्थात पेट की गर्मी
तेज रहती है, इसलिए उठकर सदैव
सादा पानी पीने से उदर तथा शरीर
की गर्माहट शान्त हो जाती है,
जिससे शरीर में कभी अकड़न-
जकड़न नहीं होती। थायरॉइड
जैसे वात रोग नहीं सताते। इसलिए
सुबह उठते ही सादा जल पीना ही श्रेष्ठ
रहता है।

【२१】रात को अरहर यानि तुअर की पीली दाल न खाएं। यदि खावें, तो दाल में देशी घी या मख्खन पर्याप्त मात्रा में मिलाएं और भोजन के 2 घण्टे उपरांत पानी अधिक पियें।

【२२】सप्ताह में 2 से 3 बार एक बार
मूंग की छिलका दाल जरूर लेवें।
【२३】फेफड़ों को संक्रमण से
बचाने के लिए 24 घण्टे में कम से
कम 50 से 100 बार बहुत धीरे-धीरे,
आराम से गहरी श्वास जरूर लेवें।
इस प्रक्रिया से त्रिदोष शान्त होता है।
कफ-विकार नहीं होते।

आम के आम, गुठलियों के दाम….
【२४】नित्य प्राणायाम-व्यायाम करें !
【२५】प्रतिदिन 10 हजार कदम रोज चलें ! आयुर्वेद के नियमानुसार
【२६】जो चला, वही फला
सुबह की वायु-आयु वृद्धिकारक है।
वायु का उल्टा युवा होता है।
इसलिये मॉर्निंग वाक बहुत जरूरी है।
【२७】श्वांस धीरे-धीरे लेवें !
【२८】जीने के लिए सबको साँसे मिली है, उम्र नहीं। अमृतम आयुर्वेद में श्वांस के
उपयोग का भी तरीका बताया है –

बैठत 12, चलत 18,
सोबत में 36, भोग करें, तो
64 टूटें क्या करें जगदीश!

अर्थात- बैठने पर एक मिनिट में 12 तथा
सम्भोग करने पर 64 सांसे चलती हैं।

【२९】ध्यान रखें- ज्यादा कफ नहीं बनना चाहिए...

कफ की बीमारी ही सब रोगों की जननी है, इसलिए कभी कफ खांसी, जुकाम से बचें। शरीर में संक्रमण इसी वजह से फैलता है।

कफ विकार से बचाव के लिए सदैव पेट साफ रखें। कब्ज नहीं होने देवें।

【३०】निम्न ओषधियाँ अपने भोजन का हिस्सा बना लेवें। जैसे-

मुलेठी, @कालीमिर्च, 
@अडूसा काढा, @ तुलसी पत्र,
@ टंकण भस्म, आवलां मुरब्बा,
@ हरड़ मुरब्बा, @ गुलकन्द, @ द्राक्षा,

अजवायन, @ जीरा, @ सेंधा नमक, 

आदि लेना हितकारी है। आप चाहें,
तो उपरोक्त ओषधियों से निर्मित
अमॄतम च्यवनप्राश हमेशा
सपरिवार लेकर हमेशा स्वस्थ्य रह
सकते हैं। यह उपाय त्रिदोषनाशक है
तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता में बेतहाशा वृद्धि करता है।

लापरवाही से होते हैं-बारह LOSS...
अमृतम आयुर्वेद के अनुसार तन को
खनन व हनन से बचाना चाहिए।
तन रूपी गाड़ी के पुर्जो (मशीनरी) की
देखभाल या सर्विसिंग भी जरूरी है।
अन्यथा पतन होते देर नहीं लगती।
हेल्दी बने रहने के लिए बचें इन आदतों से
【1】रात रात भर जागने से “किडनी“
कमजोर होती है।
【2】बहुत ठंडे भोजन से उदर रोग होते हैं।
【3】फेफड़ों को धुंवे से डर लगता है।
【4】गरिष्ठ भोजन से लिवर (यकृत) कमजोर होकर अपचन यानि इनडाइजेशन रोग होता है।
【5】 अधिक नमक वाले भोजन से हृदय की धमनियों पर दुष्प्रभाव एवं बीपी है होता है।
【6】 पेनक्रियाज खराब हो जाता है- बहुभोजन या बार-बार खाने से
【7】 मांसाहारी भोजन से आँतो को हानि होती है।
【8】 मोबाइल और कंप्यूटर के स्क्रीन की लाइट से आँखे कमजोर व खराब
होकर कम उम्र में ही मोतियाबिंद होने लगता है।
【9】समय पर सुबह का नाश्ता नहीं करने पर गाल ब्लेडर को हानि पहुंचती है।
【10】ज्यादा ठंडे के ऊपर गर्म और गर्म ऊपर ठण्डा एवं खट्टा खाने से
नाख़ूनों की सुंदरता नष्ट हो जाती है।
【11】ज्यादा क्रोध करने, व्यर्थ की चिन्ता, सोचने-विचारने से केश (बाल) व कैश (नगद) दोनों झड़ जाते हैं। मधुमेह रोग प्रकट होता है।
【12】ज्यादा आलस्य व सोने से शरीर में यूरिक एसिड और वात-विकार बढ़ जाते हैं!

यदि आप पित्तदोष से पीड़ित हैं, तो नीचे लिंक क्लिक कर 10000 हजार शब्दों का यह ब्लॉग जरूर पढ़ें…

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अमृतम च्यवनप्राश

Amrutam Chawanprash
नियमित सेवन करके 
अनेक साध्य-असाध्य विकारों तथा प्रदूषण के वायरस से बचा जा सकता है।

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भगवान विष्णुजी को सुदर्शन चक्र किस स्थान पर मिल था और किसने दिया था

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पर्यावरण की समाजशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों की बहुत सी मान्यताओं
को मानना मर्दों को मनन करना चाहिए।
जाने पर्यावरणविदों के विचार..

# गिलबर्ट के अनुसार- ‘पर्यावरण वह सब
कुछ है जो किसी वस्तु को चारों ओर से
घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।’

# पर्यावरण कोई बाह्य शक्ति है जो हमको प्रभावित करती है। (ई.जे. रास)

# रामकृष्ण परमहँस के हिसाब से-
पर्यावरण और जीवन का एक-दूसरे से घनिष्ठ संबंध है कि पर्यावरण के बिना जीवन नहीं हो सकता और जीवन के बिना पर्यावरण नहीं हो सकता।

बहुत अच्छी खबर…

पर्यावरण बचाने के लिए सड़कों पर सायकिल का पुनरागमन हो रहा है। सुबह की ठंडी छाव में जोश से भरे युवाओं की सायकिल टोली शहर के चारों तरफ और दूर दूर तक दिखाई  देती है।
यह एक अच्छी पहल है। क्योंकि इससे धुंआ उगलते वाहन, आग निकालती कारें प्रकृति के लिए खतरे की घण्टी है।

सायकिल आवागमन का सस्ता, टिकाऊ और स्वास्थ्य वर्द्धक साधन है। जाने कैसे..

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सावधान
सरकार के भरोसे बिल्कुल न बैठे रहें।
क्योंकि सूखती नदी में नाव चला पाना
सम्भव नहीं है। सरकारी व्यवस्था की
नाव में तूफान छुपा है।

अतः आत्मनिर्भर बनने हेतु पढ़ें यह लेख-

https://amrutampatrika.com/jaane-svadeshee-ka-arth/

पर्यावरण को बचाने का वैदिक उपाय…
यजुर्वैदिक ऋषि शन्नो देवीरभिष्टय
आपो भवन्तु पीतये। शन्योरभिस्त्रवन्तु न:!
ऋचा गायन कर धरती में पवित्र जल के प्रवाहित होने की कामना करता है।
अथर्ववेद में पृथिवी पर शुद्ध पेय जल के सर्वदा उपलब्ध रहने की ईश्वर से कामना की गयी है-

अमरनाथ की अमरकथा का महत्व और रहस्य जानने के लिए
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सूतक क्या होता है?

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कोविड-19 से डरने की ज्यादा जरूरत नहीं है। बस अपनी इम्युनिटी बढ़ाएं

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