21 जून फादर्स डे अर्थात-पितृदिवस…पर अमृतमपत्रिका परिवार द्वारा अभिवादन! संघर्ष कर रहे पिता को सादर नमन! परमात्मा स्वरूप पितृ को प्रणाम….

पिता वो हस्ती है, जो बच्चों से हारने पर
प्रसन्नता का अनुभव करता है। अर्थात
जिसका पुत्र-पुत्री, पिता से भी आगे निकल
जाए, सफल हो जाए-उस पिता या पापा
की आत्मा गद-गद हो जाती है।
आदमी ऐसी शख्शियत है जिसे केवल
अपने बच्चों से हारने में आनन्द आता है।
बाकी दुनिया में हर क्षेत्र में पुरुष को
जीतने का लालसा होती है!

पिताजी के बारे में बहुत सी बातें पहली बार जाने…

मर्द का दर्द...

दर्द में होता हूँ, तो रो देता हूँ खुलकर कभी, बस इसलिए मुझे जमाना मर्द नहीं समझता!

■ पिता क्या है?…..
■ पिता का महत्व……
■ पिता का गौरव…..
■ पिता की आत्मा……
■ पिता का त्याग……
■ पिता का संघर्ष….
■ पिता की तकलीफ…..
■ पिता के सपने…..

■ पिता की भावुकता…

■ पिता की आत्मा में पुत्र-पुत्री का वास होता है
■ पितृदोष-कालसर्प क्या है?
■ हिंदुओ का पितृदिवस कब होता है-

लगभग 40 ग्रन्थों का सार इस ब्लॉग में पढ़ें
क्या लिखा है- वेद-पुराणों में पितृ, पिता-
परमपिता और पूर्वजों के विषय में..
..
परमपिता शिवस्वरूप सूर्य को प्रणाम…
सबसे पहले इस अनन्त सृष्टि और
कोटि-कोटि  ब्रह्माण्ड, को चलाने वाले
जगतपिता शिवरूपी जगदीश यानि
सूर्य को नमन करते हैं।

परिवार की ऊर्जा, हिम्मत और विश्वास है,
उम्मीद और आस की पहचान है- पिता।

पितृदिवस अर्थात फादर्स डे सन्सार के
सभी पिताओं के सम्मान में
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक
रूप से मनाया जाने वाला दिन है।
दुनिया में हर वर्ष इसे जून के तीसरे रविवार
तथा भारत में इसे पितृ-पूर्वजों की श्राध्द
तथा पितृपक्ष के रूप में सितम्बर-अक्टूबर
माह में 16 दिनों तक मनाते हैं। यह मदर्स डे(मातृ-दिवस) का पूरक है।

वैदिक धर्म में पिता का रहस्य..
पिता शब्द ‘पा रक्षणे’ धातु से निष्पन्न होता है। ‘यः पाति स पिता’  जो बच्चों की रक्षा करता है, वह पिता कहलाता है।

मनुस्मृति के श्लोक २-२२६! में कहा है….
!!पिता मूर्त्ति: प्रजापतेः!!
पिता पालन करने से प्रजापति, राजा
और ईश्वर स्वरूप मूर्तिरूप है।

महाभारत २६६-२१ वनपर्व में उल्लेख है कि-
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः!
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवता!!
अर्थात् –
पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और
पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है।
पिता के प्रसन्न हो जाने पर परमपिता
परमात्मा भी खुशी से रोने लगते हैं।

सन्सार के सभी धर्मशास्त्रों में पिता को
आसमान से भी ऊंचा बताया है अर्थात्
पिता के हृदय रूपी आकाश में अपने
पुत्र के लिए जो असीम स्नेह होता है
उसका वर्णन असम्भव है।

वेद-पुराणों में छुपा है पिता का महत्व
ऋषि यास्काचार्य रचित भाष्य
‘निरुक्त’ के सूत्र संख्या- ४/२१ में लिखा है-
‘‘पिता पाता वा पालयिता वा”।
‘‘पिता–गोपिता”
अर्थात् –
इस धरती पर पिता ही पुत्रों का सच्चा,
सहृदय पालक, पोषक और रक्षक होता है।

मनुस्मृति-२/१४५ संस्कृत के श्लोकानुसार-
उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता! सहस्त्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते!!
भावार्थ-
दस उपाध्यायों से बढ़कर आचार्य,
सौ आचार्यों से बढ़कर पिता और
एक हजार पिताओं से बढ़कर माता
गौरव में अधिक है अर्थात् सम्मानित हैं।

वेदों में शिव गायत्री मंत्र रूप में परमपिता….
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय
धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
महादेव को ही सन्सार का प्रथम पितृपुरुष
परमपिता बताया है। प्रत्येक पुरुष में ये पंचमहाभूतों के रूप में रहते है।

पुराणों में पिता पर एक प्रसन्न पूछा है?
का स्विद् गुरुतरा भूमेः
स्विदुच्चतरं च खात्।
किं स्विच्छीघ्रतरं वायोः
किं स्विद् बहुतरं तृणात्।।’
अर्थात् पृथिवी से भारी क्या है?
आकाश से ऊंचा क्या है?
वायु से भी तीव्र चलनेवाला क्या है?
और तृणों यानि सूक्ष्म तना से भी असंख्य-अनन्त और असीम-विस्तृत क्या है?

जाने-उपरोक्त सवाल का जबाब...
‘माता गुरुतरा भूमेः,
पिता चोच्चतरं च खात्।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात्।।’ अर्थात् माता पृथिवी से भारी है।
पिता का दर्जा आकाश से भी ऊंचा है।
मानव-मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है
और चिन्ता, तनाव तिनकों से भी अधिक
विस्तृत एवं अनन्त है।

पद्मपुराण सृष्टिखंड के संस्कृत एक  श्लोक-४७-७१ में वर्णन है...
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।
अर्थात:
माता दुःख मिटाने वाली स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्वरूप सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण
देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार
से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए।

उपनिषदों का यह मन्त्र कभी स्कूल में अपने गुरु, अध्यापक टीचर को समर्पित था,
इस संस्कृत श्लोक की सभी छात्र बहुत
ही भावुक होकर प्रार्थना करते थे।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव,
त्वमेव सर्वमम मम् देवदेवः।।

इसका अर्थ सभी जानते हैं।

आदमी के ६ सच्चे सम्बन्धी या मित्र….
सत्यं माता पिता ज्ञानं
धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र:
षडेते मम बान्धवा:॥
अर्थात-
सत्य मेरी माता है,
ज्ञान मेरा पिता है,
धर्म मेरा भाई है,
दया मेरी मित्र है,
शांति मेरी पत्नी है,
क्षमा मेरा पुत्र है।

आचार्य चाणक्य इन पाँच को पिता
कहा गया है…”
चाणक्य नीति”
जनिता चोपनेता च, यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता, पंचैते पितरः स्मृताः॥
अर्थात-
जन्मदाता, उपनयन करने वाला,
विद्या देने वाला, अन्नदाता और भयत्राता।

ये 5 भी पिता समान हैं-

पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत: ।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ।।
अर्थात-
पिता , माता अग्नि ,आत्मा और गुरु –
मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े
यत्न से सेवा करनी चाहिए।

इन्हें भी पिता का दर्ज हासिल है
महाभारत के आदिपर्व -३:३७ में संस्कृत
के एक श्लोक में तीन पिता तुल्य मनुष्यों
का उल्लेख है-
शरीरकृत् प्राणदाता यस्य चान्नानि भुंजते! क्रमेणैते त्रयोऽप्युक्ताः पितरो धर्मशासने!!
अर्थात-
पहला पितातुल्य वह है, जो गर्भाधान
द्वारा शरीर का निर्माण करता है।
दूसरा अभयदान देकर प्राणों की
जो रक्षा करता है वह द्वितीय है और
जिसका अन्न भोजन किया जाता है,
वह तृतीय यानि तीसरा
यह तीनों पितातुल्य होते हैं।

परिवार का आधार ही पिता है,
पिता से ही जीवन होता है।
पिता रहित जीवन अनुसाशन हीन होकर
एक कटी हुई पतंग के सामान हो जाता है।

श्रीमद्भागवत-१४/४ के इस संस्कृत श्लोक के मुताबिक-

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः!
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता!!
भावार्थ-
समस्त योनियों में जितनी मूर्तियाँ (शरीर)
उत्पन्न होती हैं, उन सबकी योनि अर्थात्
गर्भ है महद्ब्रह्म और मैं बीज की स्थापना
करने वाला पिता हूँ।।

हरिवंश पुराण के विष्णु पर्व में लिखा है-
दारुणे च पिता पुत्रे नैव दारुणतां व्रजेत्‌।
पुत्रार्थे पदःकष्टाः पितरः प्राप्नुवन्ति हि॥
अर्थात-
बच्चों का स्वभाव हठीला, क्रूर हो जाए,
तो भी पिता उसके प्रति निष्ठुर नहीं हो सकता क्योंकि हरेक पिता अपने बच्चों के लिए
अनेक तरह की कष्टदायिनी विपत्तियाँ
झेलता है! उठाता है।

भारतवासियों का पितृदिवस यानि फादर्स डे- ग्रँथन के अनुसार कब होता है…
सनातन धर्म की प्रत्येक परम्परा निराली हैं।
हमारे देश में सम्पूर्ण सृष्टि में विभिन्न सूक्ष्म आत्म-योनि में विचरण कर रहे
पितरों की स्मृति में हिंदू पंचांग मास
का एक पूरा पखवाड़ा यानि पंद्रह दिनों
तक परमपिता महादेव,
जगतपिता भगवान विष्णु और सभी
के पापा-डेड्डी तथा पिताओं के त्याग,
संघर्ष के फलस्वरूप उन्हें साधूवाद
करने, धन्यवाद देने के लिए पशु-पक्षी,
गरीबों को अन्नदान, वस्त्रदान एवं जलदान
आदि कर बड़ी श्रद्धा से पितरों की
पूजा-अर्चना करते हैं।
हिंदुओं में पितरों की प्रसन्नता के लिए
समर्पित इस पर्व को पितृदिवस या श्राध्द
पक्ष भी कहा जाता है।

पढ़ें – पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष क्या होता है?
https://amrutampatrika.com/shradpaksha/

पितृ दिवस और पितृ दोष..
गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसी मान्यता है
कि-पितरों को कुशा या पवित्री द्वारा
जल देने, कौओं, पक्षियों को दही-इमरती
खिलाने एवं पितरों के निमित्त दान-पुण्य
करने से उन्हें मुक्ति मार्ग जल्दी मिलता है।
ऐसा नहीं करने से पितृदोष लगता है,
जिससे जीवन बहुत संघर्षों से भर जाता है।
गरीबी पीछा नहीं छोड़ती। सम्पत्ति और
सन्तति का क्षय होने लग जाता है।
मानसिक सन्ताप, तनाव, रोग आदि
की समस्या सदैव बनी रहती है।
पितरों को पहचाने! क्योंकि यह उन्नति में सहायक होते हैं। बिना इनकी कृपा के
सन्सार में सफलता सहज, सरल नहीं है।

पितर कौन होते हैं?.
पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष क्या होता है इसके लिये अमृतम पत्रिका के अन्य लेख नीचे दिये लिंक पर क्लिक कर आप विस्तार से पढ़ सकते हैं।
https://amrutampatrika.com/bhuloaurpaponkaprayashchithaishrad/

हिंदुओं में तो जातक की जन्मकुंडली से ज्ञात हो जाता है कि जातक की कुंडली पितृ दोष से पीड़ित है या नहीं। यदि है, तो पिता और पिता के पूर्वजों को प्रसन्न करना जरूरी होता है।

दुनिया क्यों मनाया जाता है फादर्स डे अर्थात विश्व पितृदिवस…

भारत में यह परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। यह पितृदिवस पितृपक्ष के रूप में १५ दिन तक मनाने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। सूर्य जब गोचर में कन्या राशि में संक्रमण करते हैं, तब  इसे श्राध्द काल भी कहा जाता हैं।

विदेशियों का विश्वास….
वैसे तो इसकी जड़े भारत में गढ़ी हैं।
भारत की ये परम्परा देखकर विश्ववासियों
में भी जागृति आई है। इससे प्रभावित होकर
ही पश्चिम देशों ने पितृदिवस को फादर्स डे
बनाकर  इसकी एक कहानी बनाकर
दुनिया में फेल दिया।
फादर्स डे के श्रीगणेश की बात करें, तो
इसका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। सन१९०७/१९०८ के करीब शुरू होने वाले इस दिन का एक भावुक किस्सा प्रकट किया गया है।

अमेरिका का 38 वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य पश्चिमी वर्जीनिया के ही मोनोंगाह में  6 दिसंबर 1907 को एक खान में
210 लोग दबने से मर गए। दुर्भाग्य से ये सब किसी न किसी बच्चे के पिता थे।
इन मृत आत्माओं की शान्ति और
दुनिया के सभी पिताओं/फादर्स के सम्मान
में श्रीमति ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने फादर्स डे
का पहला बहुत विशाल कार्यक्रम 5 जुलाई 1908 को  एक चर्च में रखा गया।

भारत में फादर्स डे का महत्व...
बताने की आवश्यकता नहीं है।
भारत का तो समाज ही पितृ-सत्तात्मक
समाज माना जाता है।
प्रत्येक घर में पिता के हाथ में पूरे परिवार
की बागडौर एवं जिम्मेदारी होती है।
गौर करें, तो हर पिता अथाह मेहनत,
संघर्ष करके अपने बच्चों के
जीवन को सुखमय बनाकर उनका
भविष्य संभारता है। इसलिए हरेक
बच्चे का यह फर्ज बनता है कि वे
हर हाल में सर्वविध अपने पिता का
ध्यान रखें, उनकी देखभाल सेवा करें।

फादर्स डे पर लें संकल्प
फादर्स डे यानि पितृ दिवस पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने पिता सहित घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान करेंगें जैसी कि भारतीय परंपरा भी रही है। क्योंकि आज हम जिस मुकाम पर खड़े हैं निश्चित तौर पर हमारी कामयाबी के पीछे हमारे माता-पिता की कड़ी मेहनत, उनकी लगन का हाथ है। उनके आशीर्वाद के बिना हम यह सफर तय नहीं कर पाते। जब हम खुद माता-पिता के भूमिका में आते हैं तो उनकी मेहनत को अच्छे से समझ पाते हैं।

मर्द की माया भी बहुत मायावी है

नीचे अंत तक पढ़े-व्यंग, शायरी, कुटेशन

मजा आ जायेगा…

केवल पुरुषों और पिताओं को समर्पित…
पहली बार अमृतम पत्रिका पर
केवल ऑनलाइन उपलब्ध-

क्या आदमी भी रोता है?
हाँ, मर्द के भी दिल में दर्द होता है

मर्द का दिल रोता है और
औरत की आँख रोती है।
ये बहुत पुरानी कहावत है।

जानिए-पुरुष की बीस से ज्यादा रस भरी बातें।
मर्द के दिल में दुनिया का दिया हुआ इतना दर्द इकट्ठा हो जाता है कि- दिल भी डरकर भाग जाता है, तो इलाज किसका करें।

 तभी, तो मंजर लखनवी ने लिखा–
दर्द हो मर्द के दिल में, तो दवा कीजे,
और जो दिल ही न हो, तो क्या कीजे।

आदमी का संघर्ष करते-करते, जब उसका पर्स खाली ही रहता है। सफलता हाथ नहीं लगती, तो पुरुष भी रो पड़ता है,
यही सच्चाई है।
मर्द के दर्द की फ़र्द (लिस्ट) बहुत लंबी है।
आदमी वह जिंदादिल इंसान होता है, जो तपती गर्मी हो या भयंकर सर्द वह कभी घबराता नहीं है।

अत्यंत दर्द सहकर ज़ुबैरअली ताबिश
ने कभी कहा था-
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर,
दर्द भरा दिल दुखा दिया मैं ने।

पुरुष परिवार की परेशानी दूर करने में पूरी शक्ति झोंक देता है, ताकि गरीबी रूपी गर्द-गन्दगी से आने वाली पीढ़ी को मुक्त कर उन्नति की सीढ़ी दे सके।

हर इंसान, पूरी शान से जीने की कोशिश करता है। एक सच्ची शायरी है….

जिम्मेदारी से मर्द का दर्द दबा होता है
रोता वह भी है, बस दर्द छुपाना होता है।
कह देती है दुनिया ये केसा मर्द है,

जो रोता है
ध्यान से देखो, तो रोटी का आटा भी
पसीने से भीगा होता है।

रुद्र भी रोया था एक बार–
शिवपुराण अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिवतन्त्र रहस्य आदि ग्रन्थ पढ़े, तो पता चलता है कि – एक बार भगवान शिव भी एक बार रो पड़े थे, तभी से महादेव का एक नाम रुद्र पड़ गया।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति का कारण शिव कल्याणेश्वर के आंसुओं से हुई थी।
!!शिवः सङ्कल्प मस्तु:!!
संकल्प शक्ति से सधा व्यक्ति सफलता
के लिए 100 बार संघर्ष करता हुआ

बेख़ुद देहलवी के शब्दों में कहता है…
राह में बैठा हूँ मैं,
तुम संग-ए-रह समझो मुझे।
आदमी बन जाऊँगा,
कुछ ठोकरें खाने के बाद।।

शिवकृपा के बिना, कैसे हो भला…

यदि कोई मर्द अच्छे परिवार में पला लेकिन किस्मत से नहीं फला या सही राह पर नहीं चला अथवा उसके नहीं हो पाया लला (बच्चे) और जिस मर्द को कोई नहीं आती कला…  उसे जीवन भर भुसा-तला खाना पड़ता है।

असफल मर्द को समाज ताने मारता है।
किसी ने कहा है कि–
अपनी अपनी सोच का फर्क है बस
वरना आदमी तो कोई भी खराब नहीं

एक मुहावरा है-
आदमी-आदमी अन्तर,
कोई हीरा कोई कंकर!

अर्थात-सबका मुकद्दर एक सा नहीं होता।

कोई-कोई दुनिया में इसे कर्मों का खेल
भी मानती है। श्रीमद्भागवत गीता या अन्य धर्म-ग्रंथो का सार तो यह कहता है।

मानो न मानो, मर्जी आपकी….
आदमी जो सुनता है, आदमी जो कहता है ज़िंदगी भर वो सदायें पीछा करती हैं
आदमी जो देता है, आदमी जो करता है
रास्ते भर वो दुआएं पीछा करती हैं।

मुस्लिम धर्म के मुताबिक…
आदमी अशरफ-उल-मख़लूक़ात
अर्थात- मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है।

मर्द आखिर मर्द है….
जीवनभर मर्द हर तरह के मर्ज, कर्ज, मर्ज
मिटाता हुआ महायात्रा के लिए पलायन करता है। यह सब बिना दर्द के असंभव है

हमारा मत, तो यह है साहिब..
मर्द मन से बड़ा होना चाहिए ‘अशोक’
बड़ी-बड़ी बाते,तो सब बेकार की बाते हैं।

आदमी हमेशा इस डर में जीता है कि-
क्या कहेंगे लोग। यह दुनिया में सबसे बड़ा रोग भी है। हर पुरुष के दिल में एक दर्द छुपा होता है, जिसे कोई जानने की कोशिश नहीं करता।

मर्द के कुछ पुराने हमदर्द लोग
पहले समय में कुछ अच्छा-बुरा लिखकर छोड़ गये हैं। एक बानगी देखिए…
आदमी का शैतान आदमी
यानि मनुष्य ही मनुष्य को गड्ढे में गिराता है। मतलब सीधा सा है कि- जो व्यक्ति तैरना सिखाता है, चेला सबसे पहले उसे ही डुबोता है।
मन महीप के आचरण,
दृग दिमान कह देत ।

अर्थ यही है कि-मनुष्य के हृदय के भाव उसके चेहरे पर दिखाई देने लगते हैं।

आदमी अनाज का कीड़ा है।
अर्थात- हर कोई अन्न पर ही जीवित रहता है।

गुलजार साहब लिखते हैं-
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इसकी भी आदमी सी है

दुष्यंत कुमार की दया
सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर
झोले में उसके पास कोई संविधान है

कुछ अनुभवी साहूकार ज्ञानियों
की सलाह यह भी है कि…
इतना ही उधार दो कि –
किसी का उद्धार हो जाए।
ज्यादा उदारता से आदमी की,
खाल उधड़ जाती है।

एक दुनिया हजार तहखाने,
आदमी कहाँ है, ईश्वर जाने

आजकल खुदा भी बनाने लगा है-

इंसान कुछ 2 हाथ वाले मर्द इतने बेदर्द होते हैं कि- हजार हाथ वाले  भगवान को भी
वेवकूफ बनाने में कसर नहीं छोड़ते।

मर्द की मान्यता
भगवान को आदमी बनाने में 9 महीने
लग जाते हैं और आदमी 9 दिन में लोगों
को खुदा बनाने लगे हैं।

स्वार्थी साधक….
■ भगवान आदमी को बदल नहीं पाया,
तो आदमी ने मन्दिर बदल दिए।

हफ़ीज़ जालंधरी लिखते हैं….
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं

बड़ी कड़वी बात
मर्द का पेट कभी एक औरत से नहीं भरता।
वो भी शामिल रही कैसे दिलाऊं यकीन

पिता हूँ, झूठी ही लगेंगी सब कहानियां मेरी।
दिल धड़कता है सबके सीने में
तुम्हारे भी और हमारे भी वही

मेरी तो यही सलाह है कि-
वो मर्द बनो जिसे औरत चाहने लगे
वह मर्द नहीं, जिसे औरत चाहिए
मर्द वही है, जिसे शोहरत चाहिए।

जरा गौर फरमाएं….
मर्द औरत के माथे का श्रृंगार है।
हाथों में एक दूसरे की पतवार है।।

मर्द की मददगार महिला….
हिम्मते मर्दा मदद दे खुदा,
हिम्मते औरत मदद ए खुदा!
अर्थात –
हिम्मती आदमी की मदद खुदा भी करता पर हिम्मती औरत खुदा की भी मदद कर सकती है।

व्यक्ति के हाथ में बरक्कत नहीं होती..
उल्लू लक्ष्मी का कारक होता है
पुरुष लक्ष्मी का मारक होता है

इतना भी मत उड़ो….
न राम हूँ, न मैं सीता हूँ
मैं मर्द हूँ, मर्जी से जीता हूँ।

बस, बदनाम हैं मर्द…
हर मर्द औरत के पीछे भागते है मतलब
सीधा से है कि औरतें पहले से आगे हैं।

हर आदमी औरत के साथ जीना चाहता है,
उससे जीतना नहीं।

बहुत से मर्द हैं बहुतों के साथ सोएं हैं
काश कोई मर्द किसी एक साथ जाग गया होता।

मर्द को दर्द नहीं होता….यही सोचकर अक्सर वे इश्क कर बैठते हैं।

तेरे जाने से ,कुछ नहीँ बदला ..
बस पहले जहाँ दिल रहता था,
अब वहाँ  दर्द होता है ..
..!!!

कुछ मर्दों के सिर के बाल जा रहे हैं
फिर भी वे मर्द कहलाये जा रहे हैं।
‘कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा’ बालों में लगाए।

https://amrutampatrika.com/hypoallergichaircare/

कड़ी मशक्कत के बाद जब आशाएं अपूर्ण
रह जाती हैं, तो मर्द को दर्द होता है और
वह बेचारा रो पड़ता है।

“जाँ निसार अख़्तर” की अर्ज है….
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं 

काश, कुछ संस्कार होते…
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने
बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं
(शायर महताब आलम)

अभी और भी पूरुषों के लिये बेहतरीन ब्लॉग
पढ़ते रहें अमृतम पत्रिका
केवल ऑनलाइन
www.amrutampatrika.com

विनम्र निवेदन…
यह ब्लॉग आपको अच्छा लगे, तो
लाइक, शेयर, कमेंट्स कर सकें, तो
ठीक रहेगा, अन्यथा
अपनी भी जिंदगी कुछ,
इस तरह चल रही है…
मानो धीमी सी आंच पर,
चाय उबल रही है…
बस इंस्टाग्राम पर  कुछ फॉलोअर्स की कमी है….
बाकी मेंरे भी घर में  5 फैन है,
मर्द हैं हम हसें और मुस्कराएं
अमृतम ओषधियाँ अपनाएं।

जंग से ही जीवन सुधरता है…
संघर्ष और जंग लड़े बिना जिंदगी में जंग लग जाती है। संघर्ष का संधि-विच्छेद करें, तो होगा
संग-हर्ष अर्थात संघर्ष से ही व्यक्ति के जीवन में हर्ष आता है
जंग के कारण आदमी जीने का ढंग
सीख पाता है। तकलीफों से ही
व्यक्ति का रंग निखार आता है।
सोना तपकर कुंदन हो जाता है।

अलसी लोग चाहते हैं कि-
जिंदगी में किसी भी प्रकार का
रंग में भंग न हो तथा हाथ तंग न हो।
मन मस्त-मलंग रहे। यह सब जंग लड़कर
पाया जा सकता है। 

जिन-जिन फर्श यानि जमीन वालों ने
संघर्ष किया वे नामी-गर्मी हुए।

वैसे चेहरे को निखारने के लिए
दाग-धब्बे और त्वचा की जंग
मिटाने और गजब की सुंदरता बढ़ाने के
लिए एक बार
अमृतम “फेस क्लीनअप”
एवं अमृतम उबटन का
उपयोग कर सकते हैं।

जीवन की जंग आपको लड़ना है।
त्वचा का रंग अमृतम उत्पादों से
ठीक किया जा सकता है।
बाल ने बेहाल कर रखा हो, तो
कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा
बालों में लगायें और
कुन्तल केयर माल्ट खाएं
बस 1 महीने।
!! अमृतम पत्रिका !!
परिवार से जुड़ने के लिए शुक्रिया!
यह कूपन कोड खासकर
अमृतम पत्रिका के  पाठकों के लिए आलंभित किया गया है :
AMRUTAMPATRIKASHIVA
इस्तेमाल कर हमारे ऑनलाइन स्टोर पर
पाए १०% की छुट
www.amrutam.co.in

माथे पर चन्दन तिलक या त्रिपुण्ड अवश्य लगाएं। जाने 108 फायदे– चन्दन के

https://amrutampatrika.com/chandan/

पर्यावरण और आचरण पर ध्यान देने के लिए पढ़ें–

https://amrutampatrika.com/environment-day/

कोरोना में कैसे करें बचाव-

https://amrutampatrika.com/quarantine-2/

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *